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BHIC-112 भारत का इतिहास-VII (c.1605-1750) पाठ्यक्रम परिचय
यह पाठ्यक्रम सत्रहवीं से अठारहवीं शताब्दी के मध्य की गतिविधियों पर केन्द्रित है। यह कई मायनों में संक्रमण की अवधि हैं, मुगल साम्राज्य इसमें अपनी चरम् सीमा पर पहुँच गया था, लेकिन इस अवधि के दौरान उसका पतन भी देखा जा सकता है। यह अवधि ऐतिहासिक प्रलेखनीकरण में बहुत समृद्ध है। इसमें प्राकृतिक संसाधनों के लिए बढ़ती प्रतिस्पर्धा की जाँच-पड़ताल के साथ-साथ समाज, अर्थव्यवस्था, राज्य–व्यवस्था आदि की कार्यप्रणाली पर एक व्यापक अन्तर्दृष्टि प्रदान किया गया है।
खंड 1 मुख्य रूप से साहित्यिक परंपराओं से संबंधित है। यह फारसी, देसी भाषाओं की परंपराओं और यात्रा वृत्तांतों पर है और इस अवधि के ऐतिहासिक विकास को समझने के लिए महत्वपूर्ण स्रोत सामग्री के रूप में उनका महत्व है।
खंड 2 सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में भारत की राजनीतिक परिस्थितियों से शुरू होती है और मराठों व बाद में सिखों के उदय की जांच-पड़ताल करती है। यह भाग मुगल – राजपूत संबंधों की प्रकृति को भी उजागर करता है, जिसे टकराव और सहयोग कहा जा सकता है।
खंड 3 कारीगर उत्पादन प्रणालियों और वाणिज्यिक प्रथाओं की जांच करता है। इस खंड के तहत् भारतीय व्यापार और वाणिज्य की जटिलता और यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के साथ इसके संबंधों को सम्बोधित किया गया है। व्यापारिक समुदायों और व्यापारिक प्रथाओं की भूमिका और महत्व को भी विस्तार से बताया गया है।
खंड 4 सत्रहवीं शताब्दी की पहचान कई महत्वपूर्ण परिवर्तनों के साथ कराता है, विशेष रूप से राज्य के चरित्र, राज्य और धर्म के बीच संबंधों, धार्मिक विचारों, उन्नत प्रलेखन, ज्ञान तक अधिक पहुंच, विचारों का गठन, प्रसार और मुद्रा अर्थव्यवस्था की अधिक पैठ आदि के संबंध में, जिसकी वैश्विक प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है।
खंड 5 मोटे तौर पर दृश्य संस्कृति पर केन्द्रित है। शासक, चाहे मुगल हो या राजपूत या मराठा स्मारकों की प्रतीकात्मक शक्ति से अवगत थे। मुगलों को कई महत्वपूर्ण स्मारकों के निर्माण का श्रेय दिया जाता है; उनमें से कुछ अब यूनेस्कों की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में हैं। इस काल में सराय व पुलों के साथ-साथ मन्दिर निर्माण को भी संरक्षण मिला। मुगल और कुलीन वर्ग कलाकारों को संरक्षण प्रदान करते थे, इस प्रकार हमारे पास फलती-फूलती चित्रकला थी। चित्रकला की परंपराएँ क्षेत्रीय विविधताओं के साथ और अधिक विकसित हुई, पहाड़ी, किशनगढ़ी, दक्कनी आदि।
खंड 6 दरबारी संस्कृति की बारीकियों को विस्तार से बताता है। इस अवधि में, एक बहुत स्पष्ट शिष्टाचार और सांस्कृतिक प्रथाओं को विकसित किया था। मिर्जा और उनसे जुड़ी पुरूषत्व की धारणाओं को बहु-पोषित किया गया और उन पर दरबारी शिष्टाचार में बल दिया गया। अधीनता की परतों के साथ-साथ अभिकथनों को उजागर करने के लिए लिंग संबंधों की जाँच-पड़ताल की गई है।
खंड 7 अठारहवीं शताब्दी में मुगल पतन से संबंधित है और मुगल पतन के संभावित कारणों की व्याख्या करने के लिए प्रस्तावित विभिन्न सिद्धांतों पर विस्तार से बताता है। यह इकाई महान विचलन वाद-विवाद के मुद्दे पर चल रही बहस से भी परिचित कराती है।
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यह अध्ययन सामग्री IGNOU BA Honours के छात्रों और उन सभी छात्रों के लिए निःशुल्क है, जो UPSC और UGC NET (History) जैसी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे है। इन दोनों बड़ी परीक्षाओं में छात्रों को इतिहास जैसे विषय की अच्छी तैयारी के लिए IGNOU इतिहास की पुस्तकें बहुत मददगार होती है। इस पाठ्यक्रम में सत्रहवीं से अठारहवीं शताब्दी के मध्य की गतिविधियों पर केन्द्रित इतिहास को सरल भाषा में विस्तार से समझाया गया है।
खंड 1 स्रोत और साहित्यिक परंपराएँ
खंड 2 राजनैतिक प्रक्रियाएं
इकाई 3 दक्कन में राजनैतिक गतिविधियां और मराठों का उदय
इकाई 4 राजपूतः संघर्ष और सहयोग
इकाई 5 सिख शक्ति का उदय
खंड 3 उत्पादन और वाणिज्यिक प्रथाएँ
इकाई 6 शिल्प उत्पादन, विनिर्माण और कारीगर समूह
इकाई 7 आंतरिक व्यापार
इकाई 8 हिन्द महासागर व्यापारिक संजाल
इकाई 9 व्यापारी समुदाय और वाणिज्यिक पद्धतियां
खंड 4 राज्य, समाज और धर्म
इकाई 10 धार्मिक विचार और आन्दोलन – I
इकाई 11 धार्मिक विचार और आन्दोलन – II
इकाई 12 राज्य, धर्म और समाज
खंड 5 दृश्य संस्कृति
खंड 6 समाज और संस्कृति
खंड 7 अठारहवीं शताब्दी
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