Class 11 History Chapter 2 Notes In Hindi

अनुभाग दो 一 साम्राज्य

विषय 2: तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य

साम्राज्य

छठी सदी ई. तक ईरानियों ने असीरिया साम्राज्य के अधिकांश भाग पर अपना नियंत्रण कर लिया था। फलस्वरूप व्यापार में सुधार (काला सागर के उत्तर के यायावर लोगों के साथ व्यापारिक संपर्क से फ़ायदा) और पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र में यूनानी नगर (जैसे: एथेंस और स्पार्टा) तथा उनकी बस्तियों को लाभ हुआ।

➡ चौथी सदी ई. के उत्तरार्ध में यूनानी राज्यों में सिकंदर (मेसीडोन राजा) ने कई सैन्य अभियान कर उत्तरी अफ़्रीका, पश्चिमी एशिया व ईरान तथा भारत में व्यास तक के क्षेत्र को जीत लिया था।

  • इस पूरे क्षेत्र में यूनानियों और स्थानीय लोगों में आदर्शों और सांस्कृतिक परंपराओं का आदान-प्रदान (यूनानीकरणーहेलेनाइज़ेशन) हो रहा था।
  • लेकिन सिकंदर की मृत्यु के बाद यह राजनीतिक एकता विघटित हो गई। हालाँकि इसके तीन सदी बाद तक यूनानी संस्कृति इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण होने के कारण इस काल को प्राय: यूनानी काल कहा जाता है।

➡ दूसरी सदी ई. से रोम के इतालवी सैन्य बल ने उत्तरी अफ़्रीका और पूर्वी भूमध्यसागर पर नियंत्रण कर लिया था।

  • उस समय रोम एक गणतंत्र था।
  • सरकार निर्वाचन की व्यवस्था पर आधारित थी।
  • राजनीतिक संस्थाएँ जन्म और धन-संपदा को कुछ महत्व देती थीं।
  • समाज दासता से भी लाभान्वित था।
  • सैन्य शक्ति ने सिकंदर के साम्राज्य का भाग रहे राज्यों के बीच व्यापार हेतु तंत्र स्थापित किया था।

➡ प्रथम सदी ई. के मध्य सैन्य नायक जूलियस सीज़र के अधीन “रोम साम्राज्य” वर्तमान ब्रिटेन और जर्मनी तक फैल गया था।

  • लातिनी साम्राज्य की मुख्य भाषा थी।
  • पूर्व के कई लोग यूनानी भाषा का ही प्रयोग करते थे।
  • रोम के लोगों को यूनानी संस्कृति के प्रति गहरा आदर-भाव था।

➡ चौथी सदी ई. में शासन को ढंग से चलाने के लिए रोम साम्राज्य को पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में बाँट दिया गया। लेकिन पश्चिम में सीमावर्ती क्षेत्रों (गोथ, विसीगोथ, वैंडल व अन्य) की जनजातियों तथा रोम के बीच व्यवस्थाओं (व्यापार, सैन्य-भर्ती व बसने से जुड़ी) के बिगड़ने से उसने रोम प्रशासन पर अपने आक्रमणों को बढ़ा दिया।

➡ 5वीं सदी ई. आते-आते पश्चिम का साम्राज्य नष्ट हो गया और पूर्व के साम्राज्य की सीमा के अंतर्गत ही जनजातीयों ने अपने-अपने राज्य स्थापित कर लिए। 9वीं सदी ई. में ईसाई चर्च से प्रोत्साहन पाकर कुछ राज्यों को मिलाकर पवित्र रोमन साम्राज्य की स्थापना की गई।

➡ 7वीं-15वीं सदी ई. के बीच पूर्वी रोमन साम्राज्य (कुंस्तुनतुनिया केंद्रित) अधिकांश भूमि पर अरब साम्राज्य ने अधिकार कर लिया था।

  • जिसे पैगंबर मुहम्मद के अनुयायियों (उत्तराधिकारियों) द्वारा दमिश्क में स्थापित किया गया था।
  • इस क्षेत्र की यूनानी व इस्लामी परंपराओं के बीच आदान-प्रदान था।
  • व्यापारिक तंत्र तथा समृद्धि ने उत्तर के पशुचारी लोगों (तुर्क़ी जनजातियों) को आकर्षित किया।
  • इन्होंने इस क्षेत्र के शहरों पर आक्रमण कर नियंत्रण किया।

➡ इस क्षेत्र पर आक्रमण का अंतिम प्रयास मंगोल का था। 13वीं सदी में चंगेज़ ख़ान और उसके उत्तराधिकारियों के अधीन मंगोलों ने पश्चिम एशिया, यूरोप, मध्य एशिया और चीन में प्रवेश किया।

➡ इस पूरे क्षेत्र में फैले व्यापारिक तंत्र के संसाधन पर नियंत्रण के लिए साम्राज्य बनाने और बनाए रखने के ये सारे प्रयास थे। सभी साम्राज्यों ने व्यापार को स्थिरता प्रदान करने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था और विभिन्न तरीकों के सैन्य संगठन विकसित करने का प्रयास किया।

  1. कुछ समय बाद इस क्षेत्र में बोली और लिखी जाने वाली चार भाषाएँㅡ फ़ारसी, यूनानी, लातिनी और अरबी महत्वपूर्ण हो गईं।
  2. विभिन्न क्षेत्रों के संसाधनों को लेकर आपस में लड़ने-झगड़ने के कारण ये साम्राज्य बहुत स्थिर नहीं थे।
  3. पशुचारी लोगों से इन साम्राज्य को व्यापार के साथ सेना और उत्पादों के लिए श्रम भी प्रदान किया।
  4. चंगेज़ खान और उसके उत्तराधिकारियों द्वारा शासित मंगोल साम्राज्य नगर-केंद्रित नहीं थे।
  5. धर्म जो अलग-अलग भाषाएँ बोलने वाले विभिन्न नृजातीय उत्पत्ति के लोगों को आकर्षित कर सकते थे, विशाल साम्राज्य निर्माण की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण थे। जैसे:—
  • ईसाई धर्म (प्रथम सदी ई. के फ़िलिस्तीन में उदित)
  • इस्लाम धर्म (सातवीं सदी में उदित)
रोम के इतिहासकारों के स्रोत-सामग्री को तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है:

1. पाठ्य सामग्री: समकालीन व्यक्तियों द्वारा लिखा गया उस काल का इतिहास, पत्र, व्याख्यान, प्रवचन, कानून, आदि।

2. प्रलेख या दस्तावेज़: उत्कीर्ण अभिलेखों या पैपाइरस पेड़ के पत्तों आदि पर लिखी गई पांडुलिपियाँ।

  • अभिलेख पत्थर की शिलाओं पर खोदे गए थे, जो बड़ी मात्रा में यूनानी और लातिनी में पाए गए हैं।
  • पैपाइरस (सरकंडा जैसा पौधा) मिस्र में नील नदी के किनारे उगा करता था, जिससे लेखन सामग्री तैयार करने के साथ रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी प्रयोग किया जाता था।
  • हज़ारों की संख्या में संविदापत्र, लेख, संवादपत्र और सरकारी दस्तावेज़ आज भी पैपाइरस पत्र पर लिखे पाए गए हैं।

3. भौतिक अवशेष: इमारतें, स्मारक और अन्य प्रकार की संरचनाएँ, मिट्टी के बर्तन, सिक्के, पच्चीकारी का सामान और भूदृश्य।

➡ ईसा मसीह के जन्म से लेकर 630 के दशक तक की अवधि में अधिकांश यूरोप, उत्तरी अफ़्रीका और मध्य-पूर्व तक के विशाल क्षेत्र में दो साम्राज्यों रोम और ईरान का शासन था।

  • ये दोनों आपस में प्रतिद्वंद्वी अधिकांश काल में लड़ते रहे। उनके साम्राज्य को भूमि की एक संकरी पट्टी (जिसके किनारे फ़रात नदी बहती थी) अलग करती थी।
  • रोमन साम्राज्य का भूमध्यसागर और उत्तर तथा दक्षिण की दोनों दिशाओं में सागर के आसपास स्थित सभी प्रदेशों पर प्रभुत्व था।
  • उत्तर में साम्राज्य की सीमा का निर्धारण दो महान नदियों राइन और डैन्यूब से होता था और दक्षिणी सीमा सहारा रेगिस्तान से बनती थी।
  • कैस्पियन सागर के दक्षिण से पूर्वी अरब तक का समूचा इलाका और कभी-कभी अफ़गानिस्तान के कुछ हिस्सों पर भी ईरान का नियंत्रण था।
  • चीनी लोग उस अधिकांश भाग को ता-चिन (बृहत्तर चीन या पश्चिम) कहा करते थे। 

साम्राज्य का आरंभिक काल

रोमन साम्राज्य : तीसरी सदी के मुख्य भाग तक की संपूर्ण अवधि को “पूर्ववर्ती साम्राज्य” और उसके बाद की अवधि को “परवर्ती साम्राज्य” कहा जाता है।

  • इन अवधि के दौरान पार्थियाई तथा बाद में ससानी राजवंशों ने ईरान पर शासन किया, प्रजा अधिकतर ईरानी थी।
  • रोमन साम्राज्य की सरकार एक साझी प्रणाली द्वारा एक-दूसरे से जुड़ी हुई थी। साम्राज्य में अनेक भाषाएँ बोली जाती थीं लेकिन प्रशासन के लिए लातिनी तथा यूनानी भाषाओं का ही प्रयोग होता था।
  • पूर्वी भाग के उच्चतर वर्ग यूनानी भाषा और पश्चिम भाग के लोग लातिनी भाषा बोलने और लिखते थे। अफ़्रीकी प्रांत त्रिपोलितानिया (लातिनी भाषी) और सायरेनाएका (यूनानी भाषी)
  • साम्राज्य में रहने वाले लोग, एकमात्र शासक यानी सम्राट की ही प्रजा थे, चाहे वे कहीं भी रहते हो और कोई भी भाषा बोलते हों।

➡ रोम में गणतंत्र अभिजात वर्ग की सरकार का शासन (509 ई.पू. से 27 ई.पू. तक) “सैनेट” (संस्था) के माध्यम से चलता था। लेकिन 27 ई.पू. में जूलियस सीज़र के दत्तक पुत्र तथा उत्तराधिकारी ऑक्टेवियन ने उसका तख्ता पलट कर सत्ता हथिया ली। और प्रथम सम्राट ऑगस्टस बना। उसके राज्य को प्रिंसिपेट कहा जाता था।

  • “सैनेट” को सम्मान प्रदान करने के लिए इस कल्पना को जीवित रखा गया कि वह केवल एक प्रमुख नागरिक था, निरंकुश शासक नहीं।
  • इस संस्था का अस्तित्व कई शताब्दियों तक रहा। जिसमें कुलीन एवं अभिजात वर्गों (रोम के धनी परिवारों) का प्रतिनिधित्व था लेकिन आगे चलकर उसमें इतालवी मूल के ज़मींदारों को भी शामिल किया गया था।
  • रोम के इतिहास की अधिकांश पुस्तकें (यूनानी तथा लातिनी में) इन्हीं लोगों द्वारा लिखी गई थीं।
  • इन पुस्तकों के अनुसार सम्राटों की परख सैनेट के प्रति व्यवहार से स्पष्ट होता था।
  • सैनेट के सदस्यों के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने, उनको शक की नज़र से देखने या फिर उनके साथ क्रूरता व हिंसा करने वाले सम्राट को सबसे बुरा माना जाता था।

➡ सम्राट और सैनेट के बाद साम्राज्यिक शासन में प्रमुख संस्था सेना थी। (फ़ारस के साम्राज्य में बलात (अनिवार्य रूप से) भर्ती वाली सेना थी) रोम की सेना एक व्यावसायिक सेना थी जिसमें प्रत्येक सैनिक को वेतन मिलता और न्यूनतम 25 वर्ष तक सेवा करनी पड़ती थी।

  • सेना साम्राज्य में सबसे बड़ा एकल संगठित निकाय थी (चौथी सदी तक 6 लाख सैनिक थे) और उसके पास सम्राटों का भाग्य निर्धारित करने की शक्ति थी।
  • सैनिक बेहतर वेतन और सेवा-शर्तों के लिए लगातार आंदोलन करते रहते थे और सेनापतियों या सम्राट द्वारा निराश होने पर सैनिक विद्रोह कर देते थे।

➡ रोम सेना के बारे में सैनेट के प्रति सहानुभूति रखने वाले इतिहासकारों ने लिखा है। सेना हिंसा का स्रोत थी, विशेष रूप से तीसरी सदी की तनावपूर्ण परिस्थितियों में जब सरकार को अपने बढ़ते हुए सैन्य खर्चों को पूरा करने के लिए भारी कर लगाने पड़े थे। इसलिए सैनेट सेना से घृणा करती और डरती थी।

  • अलग-अलग सम्राटों की सफलता का सेना पर नियंत्रण रख पाने से पता चलता था। सेना के विभाजित हो जाने पर गृहयुद्ध होता था।

➡ टिबेरियस (14-37 ई.) (ऑगस्टस का गोद लिया पुत्र) को प्राप्त साम्राज्य इतना लंबा-चौड़ा था कि इसमें अधिक विस्तार करना अनावश्यक प्रतीत होता था।

  • ऑगस्टस का शासन काल शांति के लिए याद किया जाता है क्योंकि यह काल दशकों तक चले आंतरिक संघर्ष और सदियों के सैनिक विजय के बाद आया था।
  • एकमात्र अभियान कर सम्राट त्राजान (113-17 ई.) ने फ़रात नदी के पार के क्षेत्रों पर निरर्थक कब्जा कर लिया था। लेकिन उसके उत्तराधिकारियों ने उन इलाकों को छोड़ दिया।
  • इस काल में रोमन साम्राज्य के प्रत्यक्ष शासन का क्रमिक रूप से विस्तार के लिए आश्रित राज्यों को रोम के प्रांतीय राज्य-क्षेत्र में मिला लिया गया।
  • दूसरी सदी के प्रारंभिक वर्षों तक फ़रात नदी के पश्चिम के क्षेत्रों को भी रोम द्वारा हड़प लिया गया।

➡ साम्राज्य के सभी क्षेत्र प्रांतों में बँटे हुए थे और उनसे कर वसूला जाता था। दूसरी सदी में रोमन साम्राज्य स्कॉटलैंड से आर्मेनिया की सीमाओं तक और सहारा से फ़रात और कभी-कभी उससे भी आगे तक फैला हुआ था।

  • भूमध्यसागर के तटों पर स्थापित बड़े शहरी केंद्र (कार्थेज, सिकंदरिया तथा एंटिऑक) साम्राज्यिक प्रणाली के मूल आधार थे।
  • इन्हीं शहरों के माध्यम से सरकार प्रांतीय ग्रामीण क्षेत्रों पर कर लगाती थी, जिनसे साम्राज्य को अधिकांश धन-संपदा प्राप्त होती थी।
  • स्थानीय उच्च वर्ग, रोमन साम्राज्य को कर वसूली और अपने क्षेत्रों के प्रशासन कार्य में सहायता करते थे।
  • दूसरी और तीसरी सदी के दौरान, अधिकतर प्रशासक तथा सैनिक अफ़सर इन्हीं उच्च प्रांतीय वर्गों में से होते थे।
  • इस प्रकार उनका एक नया संभ्रांत वर्ग बना जो सैनेट के सदस्यों की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली था।
  • नए समूह उभरने के कारण, सम्राट गैलीनस (253-68) ने सैनेटरों को सैनिक कमान से हटाकर इस नए वर्ग के उदय को सुदृढ़ बना दिया।

➡ सैनेट पर कम से कम तीसरी सदी तक इतालवी मूल के लोगों का प्रभुत्व बना रहा, लेकिन बाद में प्रांतों से लिए गए सैनेटर बहुसंख्यक हो गए। इन प्रवृत्तियों से साम्राज्य में, राजनीतिक तथा आर्थिक दृष्टि से इटली का पतन हो चला था।

  • स्पेन के दक्षिणी हिस्सों, अफ़्रीकी और पूर्वी भागों में नए संभ्रांत वर्गों का उदय हो रहा था।
  • रोम के संदर्भ में नगर (शहरी केंद्र), जिसके अपने दंडनायक, नगर परिषद और अपना एक सुनिश्चित राज्य-क्षेत्र था जिसमें उसके अधिकार क्षेत्र में आने वाले कई ग्राम शामिल थे।
  • सार्वजनिक स्नान-गृह रोम के शहरी-जीवन की एक ख़ास विशेषता थी। शहरी लोग वर्ष के 176 दिन में कोई न कोई मनोरंजक कार्यक्रम या प्रदर्शन ज़रूर करते थे।

तीसरी शताब्दी का संकट

पहली और दूसरी सदी शांति, समृद्धि तथा आर्थिक विस्तार का प्रतीक थी, पर तीसरी सदी आंतरिक तनाव लेकर आई। ईरान में, 225 ई. में एक आक्रामक वंश (ससानी) उभर कर आया और केवल 15 वर्षों के भीतर तेज़ी से फ़रात की दिशा में फैल गया।

➡ तीन भाषाओं में खुद एक शिलालेख में, ईरान के शासक शापुर प्रथम ने दावा किया कि उसने 60,000 रोमन सेना का सफ़ाया किया और रोम साम्राज्य की पूर्वी राजधानी एंटिऑक पर कब्ज़ा कर लिया।

  • इस बीच, कई जर्मन जनजातियों और राज्य समुदायों (एलमन्नाइ, फ्रैंक और गोथ) को राइन तथा डैन्यूब नदी की सीमाओं की ओर बढ़ना पड़ा।
  • 233 से 280 तक की अवधि में काला सागर से लेकर आल्पस और दक्षिणी जर्मनी तक फैले प्रांतों की सीमा पर बार-बार आक्रमण हुए।
  • रोमनवासियों को डैन्यूब से आगे का क्षेत्र छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा, जबकि इस काल के सम्राट विदेशी बर्बर के विरुद्ध युद्ध करते रहे।
  • तीसरी सदी में थोड़े-थोड़े अंतर से अनेक सम्राट (47 वर्षों में 25 सम्राट) सत्तासीन होने से स्पष्ट होता है कि इस अवधि में साम्राज्य को बेहद तनाव की स्थिति से गुज़रना पड़ा।

लिंग, साक्षरता, संस्कृति

रोमन समाज में एकल परिवार का चलन और दासों को परिवार में सम्मिलित करना रोमवासियों के लिए परिवार की अवधारणा थी।

➡ गणतंत्र के परवर्तीकाल (प्रथम सदी ई.पू.) तक विवाह का रूप ऐसा था कि:—

  • पत्नी अपने पति को अपनी संपत्ति नहीं देती थी।
  • महिला का दहेज वैवाहिक अवधि के दौरान उसके पति के पास चला जाता था।
  • महिला अपने पिता की मुख्य उत्तराधिकारी बनी रहती और पिता की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति की स्वतंत्र मलिक बन जाती थी।
  • कानून के अनुसार पति-पत्नी को संयुक्त रूप से एक नहीं बल्कि अलग-अलग दो वित्तीय हस्तियाँ माना जाता था।
  • तलाक देना आसान था इसके लिए पति अथवा पत्नी द्वारा केवल विवाह-भंग करने के इरादे से सूचना देना ही काफी था।
  • पुरुष की शादी 28-29, 30-32 की आयु में, जबकि लड़कियों की शादी 16-18, 22-23 की आयु में की जाती थी।
  • विवाह आम-तौर पर परिवार द्वारा नियोजित होते थे जिसमें महिलाओं पर उनके पति अकसर हावी रहते थे।
  • कैथोलिक बिशप ऑगस्टीन ने लिखा है कि उनकी माता की उनके पिता द्वारा नियमित रूप से पिटाई की जाती थी।
  • पिताओं का अपने बच्चों पर कानूनी नियंत्रण होता था, अवांछित बच्चों के मामले में उन्हें जिंदा रखने या मार डालने का कानूनी अधिकार था।

➡ 79 ई. में पोम्पेई नगर ज्वालामुखी फटने से दफ़न हो गया था। वहाँ कामचलाऊ साक्षरता व्यापक रूप में विद्यमान थी। मुख्य गलियों की दीवारों पर अंकित विज्ञापन और समूचे शहर में अभिरेखण पाए गए हैं।

  • मिस्र में आज भी सैकड़ों पैपाइरस बचे हुए हैं जिन पर औपचारिक दस्तावेज़ (संविदा-पत्र) लिखे हुए हैं। जिसे व्यावसायिक लिपिकों ने लिखा था।
  • ये बताता है कि अमुक व्यक्ति ‘क’ अथवा ‘ख’ पढ़ या लिख नहीं सकता। किंतु सैनिकों, फौजी अफ़सरों और संपदा प्रबंधकों आदि वर्गों के लोगों में साक्षरता अधिक थी।

➡ रोमन साम्राज्य में सांस्कृतिक विविधता कई रूपों एवं स्तरों पर दिखाई देती है जैसे:—

  • धार्मिक संप्रदायों तथा स्थानीय देवी-देवताओं में
  • बोलचाल की अनेक भाषाएँ
  • वेशभूषा की विभिन्न शैलियाँ
  • तरह-तरह के भोजन में
  • सामाजिक संगठनों के रूप (जनजातीय और अन्य)
  • उनकी बस्तियों के अनेक रूप
  • अरामाइक निकटवर्ती पूर्व (फ़रात के पश्चिम में) की प्रमुख भाषा थी
  • कॉप्टिक (मिस्र), प्यूनिक तथा बरबर (उत्तरी अफ़्रीका) और स्पेन तथा उत्तरी-पश्चिमी में कैल्टिक भाषा बोली जाती थी

इनमें बहुत सी भाषाई संस्कृतियाँ पूर्णत: मौखिक थीं। अर्मिनियाई भाषा का लिखना 5वीं सदी में शुरू हुआ। हालांकि तीसरी सदी के मध्य तक बाइबिल का कॉप्टिक भाषा में अनुवाद हो चुका था। प्रथम सदी के बाद केल्टिक भाषा का स्थान लातिनी भाषा ने ले लिया।

आर्थिक विस्तार

साम्राज्य में बंदरगाहों, खानों, खदानों, ईंट भट्ठों, जैतून के तेल की फैक्टरियाँ आदि काफी अधिक थी, जिनसे उसका आर्थिक ढाँचा काफी मज़बूत था।

  • गेहूँ, अंगूरी शराब तथा जैतून का तेल मुख्य व्यापारिक मदें जो स्पेन, गैलिक प्रांतों, उत्तरी अफ़्रीका, मिस्र तथा इटली से आती थीं।
  • शराब, जैतून का तेल तथा अन्य तरल पदार्थों की ढुलाई मटकों या कंटेनरों में होती थी जिन्हें “एम्फ़ोरा” कहते थे।
  • इनके टुकड़े की मिट्टी का भूमध्य सागरीय क्षेत्रों में उपलब्ध चिकनी मिट्टी के नमूनों के साथ मिलान के बाद उनके निर्माण स्थल का पता चला।
  • इस प्रकार, स्पेन में जैतून का तेल निकालने का उद्यम 140-160 ई. में खूब होता था।
  • उन दिनों जैतून का तेल कंटेनरों (ड्रेसल-20) में ले जाया जाता था। इसके अवशेष भूमध्यसागरीय क्षेत्र में अनेक उत्खनन-स्थलों पर पाए गए हैं।

➡ भिन्न-भिन्न प्रदेशों के ज़मींदार एवं उत्पादन अलग-अलग वस्तुओं का बाज़ार हथियाने के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा करते रहते थे। तीसरी तथा चौथी शतब्दियों के अधिकांश भाग में उत्तरी अफ़्रीका के उत्पादकों ने महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया।

  • फिर 425 ई. के बाद पूर्व ने उत्तर अफ़्रीका के प्रभुत्व को तोड़कर पाँचवीं और छठी सदी में एगियन, दक्षिणी एशिया-माइनर (तुर्की), सीरिया और फ़िलिस्तीन के व्यापारी अंगूरी शराब तथा जैतून तेल के प्रमुख निर्यातक बन गए।
  • जबकि भूमध्यसागर के बाज़ारों में अफ्रीका से आने वाले कंटेनरों में अचानक कमी आ गई। 
साम्राज्य के अंतर्गत बहुत से क्षेत्र अपनी उर्वरता के कारण बहुत प्रसिद्ध थे जैसे:—
  • इटली में कैम्पैनिया और सिसिली
  • मिस्र में फैय्यूम, गैलिली, बाइजैकियम (ट्यूनीसिया), दक्षिणी गॉल (गैलिया नार्बोनेंसिस) तथा बाएटिका (दक्षिणी स्पेन)।

स्ट्रैबो तथा प्लिनी जैसे लेखकों के अनुसार ये सभी प्रदेश घनी आबादी वाले और सबसे धनी भागों में से कुछ थे।

  • बढ़िया किस्म की अंगूरी शराब कैम्पैनिया से आती थी।
  • सिसिली और बाइजैकियम रोम को भारी मात्रा में गेहूँ का निर्यात करते थे।
  • गैलिली में गहन खेती की जाती थी।
  • स्पेन का जैतून का तेल स्पेन के दक्षिण में गुआडलक्विविर नदी के किनारे बसी अनेक जमींदारियों से आता था।
रोम क्षेत्र के अनेक बड़े-बड़े हिस्से बहुत कम उन्नत अवस्था में थे उदाहरण:—
  • नुमीडिया (अल्जीरिया) के देहाती क्षेत्रों में ऋतु प्रवास व्यापक पैमाने पर होता था।
  • चरवाहे तथा अर्ध-यायावर अपने साथ में अवन आकार की झोंपड़ियाँ उठाए इधर-उधर घूमते रहते थे।
  • लेकिन उत्तरी-अफ़्रीका में रोमन जागीरों का विस्तार होने पर खानाबदोश चरवाहों की आवाजाही नियंत्रित हो गई।

➡ स्पेन में भी, उत्तरी क्षेत्र बहुत कम विकसित और इसमें अधिकतर केल्टिक भाषी किसानों की आबादी थी, जो पहाड़ियों की चोटियों पर बसे गाँवों (कैस्टेला) में रहते थे।

  • भूमध्यसागर के आसपास पानी की शक्ति का प्रयोग मिलें चलाने में और स्पेन की सोने और चाँदी की खानों में खुदाई के लिए किया जाता था।
  • पहले और दूसरी शताब्दियों में बड़े भारी औद्योगिक पैमाने पर इन खानों से खनिज निकाले जाते थे जो 19वीं सदी तक भी देखने को नहीं मिलते।
  • उस समय सुगठित वाणिज्यिक और बैंकिंग व्यवस्था थी और धन का व्यापक रूप से प्रयोग होता था।

श्रमिकों पर नियंत्रण

भूमध्यसागर और पश्चिम एशिया में दासता की जड़ें बहुत गहरी थीं। चौथी सदी में ईसाई धर्म ने राज्य-धर्म बनने के बाद भी इस गुलामी प्रथा को कोई चुनौती नहीं दी।

  • उन दिनों दासों को पूँजी-निवेश की दृष्टि से देखा जाता था।
  • रोम के लेखक ने ज़मींदारों को उन गुलामों का इस्तेमाल न करने की सलाह दी जहाँ फसल की कटाई के लिए उनकी बहुत बड़ी संख्या में आवश्यकता हो अथवा जहाँ स्वास्थ्य को, मलेरिया जैसी बीमारियों से नुकसान पहुँच सकता हो।
  • उच्च वर्ग के लोग दासों के प्रति क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते थे लेकिन साधारण लोग उनके प्रति सहानुभूति रखते थे।

➡ पहली सदी में शांति स्थापित होने के साथ दासों की आपूर्ति में कमी आने लगी और दास-श्रम का प्रयोग करने वालों को दास प्रजनन अथवा वेतनभोगी मज़दूरों का सहारा लेना पड़ा।

  • वेतनभोगी मज़दूर सस्ते होने के साथ, उन्हें आसानी से छोड़ा और रखा जा सकता था।
  • रोम में सरकारी निर्माण-कार्यों पर मुक्त श्रमिकों का व्यापक प्रयोग होता था क्योंकि दास-श्रम का प्रयोग बहुत मँहगा पड़ता था। उन्हें रखने के लिए वर्ष भर भोजन देना और उनके अन्य खर्चे देने पड़ते थे।
  • बाद की अवधि में कृषि-क्षेत्र (पूर्वी प्रदेशों) में अधिक संख्या में गुलाम मज़दूर नहीं रहे।
  • इन दासों और मुक्त व्यक्तियों को व्यापार-प्रबंधकों के रूप में व्यापक रूप से नियुक्त किया जाने लगा। और अपनी ओर से व्यापार चलाने के लिए पूँजी या फिर पूरा का पूरा कारोबार सौंप दिया।

➡ पहली सदी के लेखक, कोलूमेल्ला ने ज़मींदारों को अपनी ज़रूरत से दुगुनी संख्या में उपकरणों तथा औज़ारों का भंडार रखने की सिफ़ारिश की ताकि उत्पादन लगातार होता रहे।

  • मुक्त तथा दास, श्रमिकों के लिए निरीक्षण सबसे महत्वपूर्ण था, इसे सरल बनाने के लिए कामगारों को कभी-कभी छोटे दलों में बाँट दिया जाता था।
  • प्लिनी (प्रकृति विज्ञान के लेखक) ने दास समूहों के प्रयोग की निंदा की क्योंकि अलग-अलग समूह में काम करने वाले दासों को पैरों में जंजीर डालकर एक साथ रखा जाता था।
रोमन साम्राज्य में कुछ औद्योगिक प्रतिष्ठानों में बहुत कड़े नियंत्रण लागू थे जैसे:—
  • प्लिनी ने सिकंदरिया की फ्रैंकिन्सेंस (सुगंधित राल) की फैक्ट्रियों का वर्णन किया जहाँ कामगारों के ऐप्रनों पर सील लगा देते तथा सिर पर एक गहरी जाली वाला मास्क पहनाते और बाहर जाने से पहले सभी कपड़े उतरवा लेते थे।
  • तीसरी सदी के एक राज्यादेश में मिस्र के किसानों द्वारा अपने गाँव छोड़कर जाने का उल्लेख है ताकि उन्हें खेती का काम न करना पड़े।
  • 398 के कानून के अनुसार कामगारों को दागा जाता था ताकि उनके भागने या छिपने पर उन्हें पहचाना जा सके।
  • कई निजी मालिक कामगारों के साथ ऋण-संविदा के रूप में करार करके उन्हें अपना कर्ज़दार बना लेते थे।
  • दूसरी सदी के लेखक के अनुसार बहुत से गरीब परिवारों ने जीवित रहने के लिए ऋणबद्धता स्वीकार कर ली थी।
  • ऑगस्टीन के एक पत्र से जानकारी मिलती है कि माता-पिता अपने बच्चों को 25 वर्ष के लिए बेच कर बंधुआ मज़दूर बना देते थे।
  • ग्रामीण ऋण-ग्रस्तता भी बहुत व्यापक थी। 66 ई. के यहूदी विद्रोह (जूडेया में रोम शासन के विरुद्ध) में क्रांतिकारियों ने जनता का समर्थन पाने के लिए साहूकारों के ऋणपत्र नष्ट कर डाले।

➡ दूसरी तरफ, 5वीं सदी के अंतिम वर्षों में सम्राट ऐनस्टैसियस ने ऊँची मज़दूरियाँ देकर और समूचे पूर्वी क्षेत्र से श्रमिकों को आकर्षित करके तीन सप्ताह से भी कम समय में पूर्वी सीमांत क्षेत्र में दारा शहर का निर्माण किया था।

  • कुछ दस्तावेज़ों से अनुमान लगता है कि छठी सदी तक भूमध्यसागरीय क्षेत्र में (विशेषकर पूर्वी भाग में), वेतनभोगी श्रमिक बहुत अधिक फैल गए थे।

सामाजिक श्रेणियाँ

इतिहासकार टैसिटस ने प्रारंभिक साम्राज्य के प्रमुख सामाजिक समूहों का वर्णन इस प्रकार किया है:—

  • सैनेटर (पैट्रेस: पिता)
  • आश्वारोही वर्ग
  • जनता का सम्माननीय वर्ग
  • फूहड़ निम्नतर वर्ग (कमीनकारू: सर्कस और थिएटर तमाशे देखने के आदि)
  • दास

➡ तीसरी सदी के प्रारंभिक वर्षों में सैनेट की सदस्य संख्या लगभग 1,000 थी जिसमें आधे इतालवी परिवारों के थे। चौथी सदी के प्रारंभिक भाग में (कॉन्स्टैनटाइन प्रथम का शासनकाल) पहले दो समूह एकीकृत होकर एक विस्तृत अभिजात वर्ग बन चुके थे।

  • इनके कुल परिवारों में से आधे अफ़्रीकी तथा पूर्वी मूल के थे। यह वर्ग अधिक धनवान था किंतु कई तरीकों से सैनिक संभ्रांत वर्ग से कम शक्तिशाली था।

➡ मध्यम वर्गों में नौकरशाही और सेना से जुड़े आम लोग शामिल थे किंतु इसमें अधिक समृद्ध सौदागर और किसान भी शामिल थे जिनमें बहुत से लोग पूर्वी प्रांतों के निवासी थे। इनका भरण-पोषण सरकारी सेवा और राज्य पर निर्भरता से ही होता था।

➡ निम्नतम वर्गों को सामूहिक रूप से ह्यूमिलिओरिस (निम्नतर वर्ग) कहा जाता था इनमें शामिल थे:—

  • ग्रामीण श्रमिक (बहुत से लोग स्थाई रूप से बड़ी जागीर में नियोजित)
  • औद्योगिक और खनन प्रतिष्ठानों के कामगार
  • प्रवासी कामगार, जो अनाज तथा जैतून की फ़सल कटाई और निर्माण उद्योग में कार्य करते थे
  • स्व-नियोजित शिल्पकार, जो मज़दूरी पाने वाले श्रमिकों की तुलना में बेहतर खाते-पीते थे
  • बड़े शहरों में काम करने वाले श्रमिक
  • हज़ारों गुलाम, जो विशेष रूप से पश्चिम साम्राज्य में पाए जाते थे

➡ 5वीं सदी के एक इतिहासकार ओलिंपिओडोरस (राजदूत भी) ने लिखा है कि रोम नगर में रहने वाले कुलीन परिवारों को उनकी संपदाओं से वार्षिक आय 4000 पाउंड सोने के बराबर थी।

  • परवर्ती साम्राज्य में प्रथम तीन शताब्दियों से प्रचलित चाँदी-आधारित मौद्रिक प्रणाली समाप्त हो गई क्योंकि स्पेन को खानों से चाँदी मिलनी बंद हो गई थी।
  • कांस्टैनटाइन ने सोने पर आधारित मौद्रिक प्रणाली स्थापित की और परवर्ती काल में इसका प्रचलन रहा।

➡ रोम साम्राज्य के परवर्ती काल में नौकरशाही के उच्च तथा मध्य वर्ग बहुत धनी थे क्योंकि उन्हें अपना वेतन सोने के रूप में मिलता था जिसका बहुत बड़ा हिस्सा वे ज़मीन खरीदने में लगाते थे।

➡ साम्राज्य की न्याय प्रणाली और सैन्य आपूर्तियों के प्रशासन में भ्रष्टाचार बहुत फैल गया था। उच्च अधिकारी और गवर्नर लूट-खसोट और लालच के लिए को कुख्यात हो गए लेकिन सरकार ने भ्रष्टाचार को रोकने के लिए अनेक कानून बनाए।

  • इतिहासविदों तथा अन्य बुद्धिजीवियों ने ऐसे भ्रष्ट कारनामों की खुलकर निंदा की।
  • रोमन राज्य तानाशाही पर आधारित था जहाँ सरकार विरोध का उत्तर, हिंसात्मक कार्रवाई से देती थी।
  • चौथी सदी तक रोमन कानून की प्रबल परंपरा ने सर्वाधिक भयंकर सम्राटों पर भी अंकुश लगाने का काम किया।
  • सम्राट अपनी मनमानी नहीं कर सकते थे और नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए कानून का सक्रिय रूप से प्रयोग किया जाता था। 

परवर्ती पुराकाल

“परवर्ती पुराकाल” शब्द का प्रयोग रोम साम्राज्य के उद्भव, विकास और पतन के इतिहास का वर्णन करता है जो चौथी से सातवीं सदी तक फैली हुई थी। चौथी सदी अनेक सांस्कृतिक और आर्थिक हलचलों से परिपूर्ण थी जिसमें सम्राट कॉन्स्टैनटाइन ने ईसाई धर्म को राजधर्म बना दिया और सातवीं सदी में इस्लाम का उदय हुआ।

➡ लेकिन राज्य के ढाँचे में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन सम्राट डायोक्लीशियन (284-305) के समय से प्रारंभ हुए।

  • उसने अनेक प्रदेशों का सामरिक आर्थिक दृष्टि से महत्व न होने पर उन हिस्सों को छोड़कर साम्राज्य को थोड़ा छोटा बना लिया।
  • साम्राज्य की सीमाओं पर किले बनवाए, प्रांतों का पुनर्गठन किया, असैनिक कार्यों को सैनिक कार्यों से अलग कर दिया और सेनापतियों को अधिक स्वायत्तता प्रदान कर दी, जिससे ये सैन्य अधिकारी अधिक शक्तिशाली समूह के रूप में उभर आए।

➡ कॉन्स्टैनटाइन ने इनमें से कुछ परिवर्तनों को पुख़्ता बनाया और अपनी ओर से भी कुछ परिवर्तन किए।

  • उसने मौद्रिक क्षेत्र में सॉलिडस नामक एक नया सिक्का चलाया जो 4.5 ग्राम शुद्ध सोने का बना हुआ था।
  • यह सिक्का रोम साम्राज्य समाप्त होने के बाद भी चलता रहा।
  • ये बड़े पैमाने पर ढाले जाते और लाखों-करोड़ों की संख्या में चलन में थे।
  • उसने दूसरी राजधानी कुंस्तुनतुनिया का निर्माण किया। यह तीन ओर समुद्र से घिरी हुई थी।

➡ चौथी सदी में शासक वर्गों का बड़ी तेजी से विस्तार हुआ। मौद्रिक स्थायित्व और बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण आर्थिक विकास में तेज़ी आई।

  • पुरातत्त्वीय अभिलेखों से पता चलता है कि औद्योगिक प्रतिष्ठानों सहित ग्रामीण उद्योग धंधों में व्यापार के विकास में पर्याप्त मात्रा में पूँजी लगाई गई।
  • इनमें तेल की मिलें और शीशे के कारखाने, पेंच की प्रेसें तथा तरह-तरह की पानी की मिलें थी।
  • धन का अच्छा खासा निवेश पूर्व के देशों के साथ लंबी दूरी के व्यापार में किया गया।
  • परिणामस्वरूप शहरी संपदा एवं समृद्धि में अत्यधिक वृद्धि हुई, जिससे स्थापत्य कला के नए-नए रूप विकसित हुए और भोग विलास के साधनों में भरपूर तेज़ी आई।
  • शासन करने वाले कुलीन पहले से कहीं अधिक धन संपन्न और शक्तिशाली हो गए।
  • मिस्र से मिले पैपाइरस दस्तावेज़ों से पता चलता है कि तत्कालीन समाज अपेक्षाकृत अधिक खुशहाल था, जहाँ मुद्रा का व्यापक रूप से प्रयोग होता था और ग्रामीण संपदाएँ सोने के रूप में लाभ कमाती थी।

➡ यूनान और रोमवासियों की पारंपरिक धार्मिक संस्कृति बहुदेववादी थी। ये लोग जुपिटर, जूनो, मिनर्वा और मॉर्स जैसे अनेक रोमन इतालवी देवों और यूनानी तथा पूर्वी देवी-देवताओं की पूजा के लिए साम्राज्य भर में हज़ारों मंदिर, मठ और देवालय बना रखे थे।

  • रोमन साम्राज्य का एक बड़ा धर्म यहूदी धर्म में अनेक विविधताएँ मौजूद थीं।
  • अत: चौथी या पाँचवी सदियों में साम्राज्य का ईसाईकरण एक क्रमिक एवं जटिल प्रक्रिया के रूप में हुआ।
  • ईसाई धर्मप्रचारको द्वारा बहुदेववादी के धार्मिक रीति-रिवाज़ों का लगातार विरोध और निंदा करने पर भी पश्चिमी प्रांतों में बहुदेववाद तुरंत गायब नहीं हुआ।
  • चौथी सदी के बाद भिन्न-भिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सीमाएँ कठोर और गहरी हो गई क्योंकि शक्तिशाली बिशपों ने अपने अनुयायियों को कड़ाई से धार्मिक विश्वासों तथा रीति-रिवाजों का पालन करने का पाठ पढ़ाया था।

➡ पूर्वी भागों में, जनता में आम खुशहाली अधिक फैली जहाँ आबादी छठी सदी के मुख्य भाग तक बढ़ती रही थी। जबकि यहाँ पर प्लेग महामारी के कारण 540 के दशक में लगभग संपूर्ण भूमध्यसागरीय प्रदेश प्रभावित हो गया था। 

  • पूर्वी भाग में, जस्टीनियन का शासन काल समृद्धि और शाही महत्वाकांक्षा के उच्च स्तर का घोतक था।
  • उसने 533 में अफ़्रीका को वैंडलों के कब्ज़े से छुड़ा लिया और इटली को ऑस्ट्रोगोथों से लेकर वापस उसपर अधिकार कर लिया।
  • इससे देश तहस नहस हो गया और लौंबार्ड के आक्रमण के लिए रास्ता तैयार हो गया।

➡ पश्चिम में साम्राज्य राजनीतिक दृष्टि से विखंडित हो गया क्योंकि उत्तर से आने वाले जर्मन मूल के समूहों (गोथ, वैंडल, लोंबार्ड आदि) ने सभी बड़े प्रांतों को अपने कब्ज़े में लेकर अपने-अपने राज्य स्थापित कर लिए थे जिन्हें रोमोत्तर राज्य कहा जाता है।

  • इनमें सबसे महत्वपूर्ण राज्य थे : स्पेन में विसिगोथों का राज्य (अरबों ने 711 से 720 के बीच नष्ट कर दिया); गॉल में फ्रैंकों का राज्य (लगभग 511-687) और इटली में लोंबार्डों का राज्य (568-774) इस दुनिया को आमतौर पर मध्यकालीन कहा जाता है।

➡ सातवीं सदी के प्रारंभिक दशकों तक रोम और ईरान के बीच लड़ाई फिर छिड़ गई।

  • ससानी शासकों (तीसरी सदी से ईरान पर शासन कर रहे थे) ने मिस्र सहित विशाल पूर्वी प्रांतों में बड़े पैमाने पर आक्रमण कर दिया।
  • बाइज़ेंटियम ने 620 के दशक में प्रांतों पर फिर से अपना कब्ज़ा कर लिया।
  • अरब प्रदेश से शुरू होने वाले इस्लाम के विस्तार को “प्राचीन विश्व इतिहास की सबसे बड़ी राजनीतिक क्रांति” कहा जाता है।
  • 642 तक पूर्वी रोमन और ससानी दोनों राज्यों के बड़े-बड़े भाग भीषण युद्ध के बाद अरबों के कब्ज़े में आ गए।
  • अरब से शुरू होकर ये जीतें सीरियाई रेगिस्तान तथा इराक की सरहदों तक पहुँचीं, जिसके बाद मुस्लिम सेनाएँ और दूर-दूर तक गईं। 

शासक 

  • 27 ई. पू. – 14 ई.  —   ऑगस्टस, प्रथम रोम सम्राट 
  • 14 – 37 ई.  —   टिबेरियस 
  • 98 – 117 ई.  —   त्राजान 
  • 117 – 138 ई.  —   हैड्रियन 
  • 193 – 211 ई.  —   सेप्टिमियस सेवेरस 
  • 241 – 272 ई.  —   ईरान में शापुर प्रथम का शासन 
  • 253 – 268 ई.  —   गैलीनस 
  • 284 – 305 ई.  —   टेट्रार्की (चतुस्तंत्र) डायोक्लीशियन मुख्य शासक 
  • 309 – 379 ई.  —   ईरान में शापुर द्वितीय का शासन 
  • 312 – 337 ई.  —   कॉन्स्टैनटाइन 
  • 408 – 450 ई.  —   थियोडोसियस द्वितीय 
  • 490 – 518 ई.  —   अनैस्टैसियस 
  • 527 – 565 ई.  —   जस्टीनियन 
  • 531 – 579 ई.  —   ईरान में खुसरो प्रथम का शासन 
  • 610 -641 ई.  —   हेराक्लियस 

घटनाएँ 

27 ई. पू.

ऑक्टेवियन द्वारा स्थापित “प्रिंसिपेट”, वह अब अपने आपको ऑगस्टस कहने लगा था

लगभग 24 – 79 ई. 

वरिष्ठ प्लिनी का जीवन; विसूवियस  नामक ज्वालामुखी के फटने से उसकी मृत्यु; उसने रोमन पोम्पेई को भी अपने लावे में दफ़न कर लिया था

66 – 70 ई. 

विशाल यहूदी विद्रोह और रोमन सेनाओं का जेरूसलम पर कब्ज़ा 

लगभग 115 ई. 

त्राजान की पूर्व में विजयों के बाद, रोमन साम्राज्य का अधिकतम विस्तार

212 ई. 

साम्राज्य के सभी मुक्त निवासियों को रोमन नागरिक का दर्ज़ा दे दिया गया

224 ई. 

ईरान में नया वंश स्थापित, जिसे उनके पूर्वज ससान के नाम पर ससानी कहा गया

250 का दशक 

फ़ारसवासियों ने फ़रात के पश्चिम में स्थित रोमन प्रदेशों पर आक्रमण किया

258 ई.

कार्थेज़ के साइप्रसवासी बिशप को मृत्युदंड

260 का दशक

गैलीनस ने फिर से सेना संगठित की

273 ई.

पामाएरा का कारवाँ नगर रोमवासियों द्वारा नष्ट किया गया

297 ई. 

डायोक्लीशियन ने 100 प्रांतों में साम्राज्य का पुनर्गठन किया

लगभग 310 ई. 

कॉन्स्टैनटाइन  ने सोने का नया सिक्का (सॉलिडस) चलाया

312 ई.

कॉन्स्टैनटाइन ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया

324 ई. 

कॉन्स्टैनटाइन अब साम्राज्य का एकमात्र शासक बन गया, उसने कुंस्तुनतुनिया नगर की स्थापना की

354 – 430 ई. 

हिप्पो के बिशप ऑगस्टीन का जीवनकाल

378 ई. 

गोथ लोगों ने ऐड्रियॉनोपोल में रोमन सेनाओं को करारी मात दी

391 ई. 

सिकंदरिया में सेरपियम (सेरापिस के मंदिर) नष्ट किए गए

410 ई. 

विसिगोथों ने रोम का विध्वंस कर दिया

428 ई. 

वैंडल लोगों ने अफ़्रीका के प्रदेश पर कब्ज़ा कर लिया

434 – 453 ई. 

अट्टिला नामक हूण का साम्राज्य

493 ई. 

ऑस्ट्रोगोथों ने इटली में राज्य स्थापित किया

533 – 550 ई.  

जस्टीनियन द्वारा अफ़्रीका और इटली को मुक्त करा लेना

541 – 570 ई. 

ब्यूबोनिक प्लेग का प्रकोप

568 ई.  

लौंबार्ड लोगों ने इटली पर आक्रमण किया

लगभग 570 ई.  

पैगंबर मुहम्मद का जन्म

614 – 619 ई. 

फ़ारस की शासक खुसरो द्वितीय ने पूर्वी रोम प्रदेशों पर आक्रमण करके उन पर कब्ज़ा कर लिया

622 ई. 

पैगंबर मुहम्मद और उनके साथी मक्का छोड़कर मदीना चले गए

633 – 642 ई. 

अरब विजयों का पहला और महत्वपूर्ण चरण; मुस्लिम सेनाओं ने सीरिया, फिलिस्तीन, मिस्र, इराक और ईरान के कुछ हिस्सों पर कब्ज़ा कर लिया

661 – 750 ई.

सीरिया में उमय्या वंश 

698 ई. 

अरबों ने कार्थेज़ को जीत लिया 

711 ई.  

स्पेन  पर अरबों का आक्रमण 

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विषय सूची 

अनुभाग एक — प्रारंभिक समाज 

विषय 1: लेखन कला और शहरी जीवन 

अनुभाग दो — साम्राज्य 

विषय 3: यायावर साम्राज्य 

अनुभाग तीन — बदलती परंपराएँ 

विषय 4: तीन वर्ग 

विषय 5: बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ 

अनुभाग चार — आधुनिकीकरण की ओर 

विषय 6: मूल निवासियों का विस्थापन 

विषय 7: आधुनिकीकरण के रास्ते 

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