Class 9 History Chapter 1 Notes In Hindi

अध्याय 1: फ़्रांसीसी क्रांति

सारांश

14 जुलाई 1789 को पेरिस नगर में लगभग 7000 मर्द और औरतों ने टॉउन हॉल के सामने इकट्ठे होकर एक जन-सेना का गठन किया।

अंतत: सैकड़ों लोगों के एक समूह ने पेरिस नगर के पूर्वी भाग में स्थित बास्तील किले की जेल को तोड़कर गोला-बारूद इकट्ठा किया, फिर किले को ढहा दिया गया। इस लड़ाई में बास्तील का कमांडर मारा गया और कैदी (केवल सात) छुड़ा लिए गए। क्योंकि अफ़वाह थी कि सम्राट नागरिकों पर गोलियाँ चलाने का आदेश देने वाला है।

➡ इस घटना के बाद कई दिनों तक पेरिस तथा देश के देहाती क्षेत्रों में कई और संघर्ष हुए। जनता पावरोटी की महँगी कीमतों का विरोध कर रही थी। इस घटनाक्रम की आखिरी कड़ी में फ़्रांस के सम्राट को फाँसी दी गई।

अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध में फ़्रांसीसी समाज

1774 में बूर्बों राजवंश का लुई ⅩⅥ केवल 20 साल की उम्र में फ़्रांस की राजगद्दी पर बैठा। उसका विवाह ऑस्ट्रिया की राजकुमारी मेरी एन्तोएनेत से हुआ था।

राज्यारोहण के समय राजकोष खाली मिलने के निम्नलिखित कारण थे:-

  1. लंबे समय तक चले युद्धों के कारण फ़्रांस के वित्तीय संसाधन नष्ट हो चुके थे।
  2. वर्साय के विशाल महल और राजदरबार की शानो-शौकत बनाए रखने की फिज़ूलखर्ची का बोझ था।
  3. फ़्रांस द्वारा अमेरिका के 13 उपनिवेशों को ब्रिटेन से आज़ाद कराने में 10 अरब लिव्रे से अधिक का कर्ज़ हो गया था।
  4. पहले से 2 अरब लिव्रे का कर्ज़ था। कर्ज़दाता अब 10% ब्याज की माँग करने लगे थे। इस कारण फ़्रांसीसी सरकार अपने बजट का बहुत बड़ा हिस्सा कर्ज़ चुकाने के लिए प्रयोग करती थी।

18वीं सदी में फ़्रांसीसी समाज तीन एस्टेटस में बँटा था। जो मध्यकालीन सामंती व्यवस्था का अंग था।

  • प्रथम एस्टेट (पादरी वर्ग)
  • द्वितीय एस्टेट (कुलीन वर्ग)
  • तृतीय एस्टेट (बड़े व्यवसायी, व्यापारी, अदालती कर्मचारी, वकील आदि। किसान और कारीगर। छोटे किसान, भूमिहीन मज़दूर, नौकर।) 

पूरी आबादी में लगभग 90% किसान थे। लेकिन, लगभग 60% ज़मीन पर कुलीनों, चर्च और तीसरे एस्टेट्स के अमीरों का अधिकार था। 

  • प्रथम और द्वितीय एस्टेट को राज्य को दिए जाने वाले करों से छूट थी। जबकि तृतीय एस्टेट के लोग (जनसाधारण) ही कर अदा करते थे।
  • कुलीन वर्ग किसानों से सामंती कर वसूलते थे। यह किसान अपने स्वामी की सेवा करने के लिए बाध्य थे।

टाइद (धार्मिक कर) चर्च द्वारा किसानों से वसूलने वाला कर। यह कृषि उपज के दसवें हिस्से के बराबर होता था।

टाइल (प्रत्यक्ष कर) तृतीय एस्टेट द्वारा सीधे राज्य को दिए जाने वाला कर। साथ में अप्रत्यक्ष कर (रोज़ाना की वस्तुओं पर) भी शामिल था।

जीने का संघर्ष

फ़्रांस की जनसंख्या 1715 में 2.3 करोड़ थी जो 1789 में बढ़कर 2.8 करोड़ हो गई। जिस कारण मुख्य खाद्य-पावरोटी-की कीमत तेज़ी से बढ़ी।

➡ परंतु महँगाई के हिसाब से मज़दूरी नहीं बढ़ी। सूखे या ओले के प्रकोप से पैदावार गिरने के कारण रोज़ी-रोटी का संकट पैदा हो जाता था। प्राचीन राजतंत्र के दौरान फ़्रांस में ऐसे जीविका संकट काफ़ी आम थे।

उभरते मध्य वर्ग में विशेषाधिकारों के अंत की कल्पना की

18वीं सदी में एक नए सामाजिक समूह का उदय हुआ जिसे मध्य वर्ग कहा गया, जिसने फैलते समुद्रपारीय व्यापार और ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों के उत्पादन के बल पर संपत्ति अर्जित की थी।

➡ इन सौदागरों एवं निर्माताओं के अलावा प्रशासनिक सेवा व वकील जैसे पेशेवर लोगों का मानना था कि समाज में किसी व्यक्ति की सामाजिक हैसियत का आधार जन्मना विशेषाधिकार की जगह उसकी योग्यता ही होनी चाहिए।

स्वतंत्रता, समान नियमों तथा समान अवसरों के विचार पर आधारित समाज की परिकल्पना जॉन लॉक और ज़्याँ ज़ाक रूसो जैसे दार्शनिकों ने प्रस्तुत की थी।

  • टू ट्रीटाइज़ेज़ ऑफ़ गवर्नमेंट में लॉक ने राजा की दैवी और निरंकुश अधिकारों के सिद्धांत का खंडन किया था।
  • रूसो ने इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए जनता और उसके प्रतिनिधियों के बीच एक सामाजिक अनुबंध पर आधारित सरकार का प्रस्ताव रखा।
  • द स्पिरिट ऑफ़ द लॉज़ में मॉन्तेस्क्यू ने सरकार के अंदर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता विभाजन की बात कही। अमेरिका में 13 उपनिवेशों ने ब्रिटेन से आज़ादी के बाद इसी मॉडल की सरकार बनाई।

फ़्रांस के राजनीतिक चिंतकों के लिए अमेरिकी संविधान और उसमें दी गई व्यक्तिगत अधिकारों की गारंटी प्रेरणा का एक महत्वपूर्ण स्रोत थी।

➡ दार्शनिकों के विचारों पर कॉफ़ी हाउसों व सैलॉन की गोष्ठियों में बहस हुआ करती और पुस्तकों एवं अखबारों के माध्यम से इनका व्यापक प्रचार प्रसार हुआ। इसी समय लुई ⅩⅥ द्वारा फिर से कर लगाए जाने की खबर से विशेषाधिकार वाली व्यवस्था के विरुद्ध गुस्सा भड़क उठा।

क्रांति की शुरुआत

प्राचीन राजतंत्र के तहत फ़्रांसीसी सम्राट को नए करों के अपने प्रस्तावों पर मंज़ूरी लेने के लिए एस्टेटस जेनराल (प्रतिनिधि सभाーएक राजनीतिक संस्था थी जिसमें तीनों एस्टेट अपने-अपने प्रतिनिधि भेजते थे।) की बैठक बुलानी पड़ती थी। लेकिन सिर्फ़ सम्राट ही बैठक की तारीख तय करता था। अंतिम बैठक 1614 में बुलाई गई थी।

5 मई 1789 को नए करों के प्रस्ताव की मंज़ूरी के लिए लुई ⅩⅥ ने एस्टेटस जेनराल की बैठक बुलाई।

  • पहले और दूसरे एस्टेट के 300-300 प्रतिनिधि आए। तीसरे एस्टेट के 600 प्रतिनिधि। जो समृद्ध एवं शिक्षित वर्ग के थे।
  • किसानों, औरतों एवं कारीगरों का सभा में प्रवेश वर्जित था। फिर भी 40,000 पत्रों के माध्यम से उनकी शिकायतों एवं माँगों की सूची को प्रतिनिधि द्वारा लाया गया।

➡ एस्टेटस जेनराल के नियमों के अनुसार प्रत्येक वर्ग को एक मत देने का अधिकार था। परंतु तीसरे वर्ग के प्रतिनिधियों ने माँग रखी कि प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार होना चाहिए। सम्राट के इस माँग को अस्वीकार करने पर तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि विरोध में सभा से बाहर चले गए।

➡ तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि खुद को संपूर्ण फ़्रांसीसी राष्ट्र का प्रवक्ता मानते थे। 20 जून को ये प्रतिनिधि वर्साय के इन्डोर टेनिस कोर्ट में जमा होकर अपने आपको नैशनल असेंबली घोषित कर दिया और शपथ ली कि सम्राट की शक्तियों को कम करने वाला संविधान बनने तक असेंबली भंग नहीं होगी। उनका नेतृत्व मिराब्यो और आबे सिए ने किया।

  • इधर नैशनल असेंबली संविधान का प्रारूप तैयार करने में व्यस्त थी। उधर ठंड के कारण फ़सल मारी गई जिससे पावरोटी की कीमतें बढ़ गई थी।
  • बेकरी की दुकानों पर गुस्सायी औरतों की भीड़ ने दुकान पर धावा बोल दिया। जिस कारण सम्राट ने सेना को पेरिस में प्रवेश करने का आदेश दे दिया।

इसी समय भीड़ ने (14 जुलाई 1789) बास्तील पर धावा बोलकर उसे नेस्तनाबूद कर दिया।

  • जागीर मालिकों के लठैतों-लुटेरों द्वारा फ़सलों को तबाह करने की अफ़वाह से किसानों ने ग्रामीण किलों पर आक्रमण कर दिए।
  • अन्न भंडारों को लूट लिया और लगान संबंधी दस्तावेज़ों को जला दिया। भय से कुछ कुलीन अपनी जागीरें छोड़कर भाग गए, जबकि बहुत से पड़ोसी देशों में चले गए।

विद्रोही प्रजा की शक्ति का अनुमान करके, अंततः लुई ⅩⅥ ने नैशनल असेंबली को मान्यता दे दी।

4 अगस्त 1789 को असेंबली ने करों, कर्त्तव्यों और बंधनों वाली सामंती व्यवस्था के उन्मूलन का आदेश पारित किया।

  • पादरी वर्ग के लोगों को अपने विशेषाधिकारों को छोड़ने के लिए विवश किया गया।
  • धार्मिक कर समाप्त कर दिया गया।
  • चर्च के स्वामित्व वाली भूमि ज़ब्त कर ली गई।
  • इस प्रकार कम से कम 20 अरब लिव्रे की संपत्ति सरकार के हाथ में आ गई।

फ़्रांस संवैधानिक राजतंत्र बन गया

नैशनल असेंबली ने 1791 में संविधान का प्रारूप पूरा कर लिया। इसका मुख्य उद्देश्य था一 सम्राट की शक्तियों को सीमित करना।

  • इन शक्तियों को विभिन्न संस्थाओं一 विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में विभाजित कर दिया गया। इस प्रकार फ़्रांस में संवैधानिक राजतंत्र की नींव पड़ी। 
  • कानून बनाने का अधिकार नैशनल असेंबली को सौंपा गया। नैशनल असेंबली अप्रत्यक्ष रूप से चुनी जाती थी।
  • सबसे पहले नागरिक (25 वर्ष से अधिक उम्र वाले केवल पुरुष, जो तीन दिन की मज़दूरी के बराबर कर चुकाते थे) एक निर्वाचक समूह का चुनाव करते थे, जो पुन: असेंबली के सदस्यों को चुनते थे। 
  • संविधान “पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र” के साथ शुरू हुआ था। जीवन के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और कानूनी बराबरी के अधिकार को नैसर्गिक अधिकार (जन्म से प्राप्त) के रूप में स्थापित किया गया।

राजनीतिक प्रतीकों के मायने

  • टूटी हुई ज़ंजीर : दासों को बाँधने के लिए ज़ंजीरों का प्रयोग होता था। टूटी हुई हथकड़ी उनकी आज़ादी का प्रतीक है।
  • छड़ों का बर्छीदार गट्ठर : अकेली छड़ को आसानी से तोड़ा जा सकता है पर पूरे गट्ठर को नहीं। एकता में ही बल है।
  • त्रिभुज के अंदर रोशनी बिखेरती आँख : सर्वदर्शी आँख ज्ञान का प्रतीक है। सूर्य की किरणें अज्ञान रूपी अंधेरे को मिटा देंगी।
  • राजदंड : शाही सट्टा का प्रतीक
  • अपनी पूँछ मुँह में लिए साँप : सनातनता का प्रतीक। अँगूठी का कोई ओर-छोर नहीं होता।
  • लाल फ्राइजियन टोपी : दासों द्वारा स्वतंत्र होने के बाद पहनी जाने वाली टोपी।
  • नीला-सफ़ेद-लाल : फ़्रांस के राष्ट्रीय रंग।
  • डैनों वाली स्त्री : कानून का मानवीय रूप।
  • विधि पट : कानून सबके लिए समान है और उसकी नज़र में सब बराबर हैं।

फ़्रांस में राजतंत्र का उन्मूलन और गणतंत्र की स्थापना

लुई ⅩⅥ का प्रशा के राजा से गुप्त वार्ता चल रही थी। साथ में फ़्रांस की घटनाओं से अन्य पड़ोसी देशों के शासक भी चिंतित थे। इन शासकों द्वारा सेना भेजने से पहले ही अप्रैल 1792 में नैशनल असेंबली ने प्रशा एवं ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा का प्रस्ताव पारित कर दिया।

  • प्रांतों से हज़ारों स्वयंसेवी सेना ने इस युद्ध को यूरोपीय राजाओं एवं कुलीनों के विरुद्ध जनता की जंग के रूप में लिया।
  • पुरुषों के मोर्चे पर चले जाने के बाद घर-परिवार और रोज़ी-रोटी की ज़िम्मेवारी औरतों के कंधों पर आ पड़ी।

➡ लोगों ने क्रांति को इसलिए आगे बढ़ाना चाहा क्योंकि 1791 के संविधान से सिर्फ़ अमीरों को ही राजनीतिक अधिकार प्राप्त हुए थे। लोग राजनीतिक क्लबों में अड्डे जमा कर सरकारी नीतियों और अपनी कार्ययोजना पर बहस करने लगे। इस पूरी अवधि में महिलाएँ भी सक्रिय रही और अपने क्लब भी बनाए।

➡ जैकोबिन क्लब के सदस्य मुख्यत: समाज के कम समृद्ध हिस्से से आते थे। इनका नेता मैक्समिलियन रोबेस्प्येर था। इन्होंने धारीदार लंबी पतलून पहनने का निर्णय लिया जो ब्रीचेस (घुटन्ना) पहनने वाले कुलीनों से खुद को अलग दिखाना चाहते थे।

➡ इसलिए जैकोबिनों को “सौं कुलॉत” (बिना घुटन्ने वाले) के नाम से जाना गया। ये लाल रंग की टोपी भी पहनते थे जो स्वतंत्रता का प्रतीक थी। लेकिन महिलाओं को ऐसा करने की अनुमति नहीं थी।

➡ 1792 की गर्मियों में जैकोबिनों ने खाद्य पदार्थों की महँगाई एवं अभाव से पेरिसवासियों के साथ एक विशाल हिंसक विद्रोह की योजना बनाई। 10 अगस्त की सुबह उन्होंने ट्यूलेरिए के महल पर धावा बोल दिया, राजा के रक्षकों को मार कर राजा को कई घंटे तक बंधक बनाए रखा।

➡ बाद में असेंबली ने शाही परिवार को जेल में डाल देने का प्रस्ताव पारित किया। नए चुनाव कराए गए। 21 वर्ष से अधिक उम्र वाले सभी पुरुषों一चाहे उनके पास संपत्ति हो या नहीं一 को मतदान का अधिकार दिया गया।

नवनिर्वाचित असेंबली को कन्वेंशन का नाम दिया गया। 21 सितंबर 1792 को इसने राजतंत्र का अंत करके फ़्रांस को एक गणतंत्र घोषित कर दिया। लुई ⅩⅥ को न्यायालय द्वारा देशद्रोह के आरोप में 21 जनवरी 1793 को प्लेस डी लॉ कॉन्कॉर्ड में सार्वजनिक रूप से फाँसी दे दी गई। जल्द ही रानी मेरी एन्तोएनेत का भी वही हश्र हुआ।

आतंक राज

रोबेस्प्येर के नियंत्रण एवं दंड की सख्त नीति के कारण 1793 से 1794 तक के काल को आतंक का युग कहा जाता है।

  • गणतंत्र का कोई भी शत्रु ㅡ कुलीन एवं पादरी, अन्य राजनीतिक दलों के सदस्य, उसकी कार्यशैली से असहमति रखने वाले पार्टी सदस्य ㅡ उन सभी को गिरफ़्तार कर जेल में डाल कर क्रांतिकारी न्यायालय द्वारा उन पर मुकदमा चलाया गया।
  • न्यायालय द्वारा दोषी पाने पर गिलोटिन पर चढ़ाकर उनका सिर कलम कर दिया जाता था।

गिलोटिन: दो खंभों के बीच लटकते आरे वाली मशीन, जिस पर अपराधी का सिर रख कर धड़ से अलग कर दिया जाता था। इस मशीन का नाम इसके आविष्कारक डॉ. गिलोटिन के नाम पर पड़ा।

रोबेस्प्येर की नीतियाँ जिसे शक्ति से लागू किया गया 一

  • मज़दूरी एवं कीमतों की अधिकतम सीमा तय कर दी।
  • गोश्त एवं पावरोटी की राशनिंग कर दी गई।
  • किसानों को अपना शहरों में ले जाकर सरकार द्वारा तय कीमत पर बेचने के लिए बाध्य किया गया।
  • महँगे सफ़ेद आटे की जगह साबुत गेहूँ से बनी “समता रोटी” खाना अनिवार्य कर दिया गया।
  • फ़्रांसीसी पुरषों एवं महिलाओं को सितोयेन (नागरिक) एवं सितोयीन (नागरिका) नाम से संबोधित किया जाने लगा।
  • चर्चों को बंद करके, भवनों को बैरक या दफ़्तर बना दिया गया।

इन सख्त नीतियों के कारण जुलाई 1794 में न्यायालय द्वारा रोबेस्प्येर को दोषी ठहराया गया और गिरफ़्तार करके अगले ही दिन उसे गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया।

डिरेक्ट्री शासित फ़्रांस

जैकोबिन सरकार के पतन के बाद मध्य वर्ग के संपन्न तबके के पास सत्ता आ गई।

  • नए संविधान के तहत सम्पत्तिहीन तबके को मताधिकार से वंचित कर दिया गया।
  • इस संविधान में दो चुनी गई विधान परिषदों का प्रावधान था। इन परिषदों ने 5 सदस्यों वाली कार्यपालिका ー डिरेक्ट्री ー को नियुक्त किया।
  • लेकिन, डिरेक्टरों का झगड़ा अकसर विधान परिषदों से होता और तब परिषद उन्हें बर्खास्त करने की चेष्टा करती।
  • डिरेक्ट्री की राजनीतिक अस्थिरता ने सैनिक तानाशाह नेपोलियन बोनापार्ट के उदय का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

➡ इन सभी परिवर्तनों के दौरान स्वतंत्रता, विधिसम्मत समानता और बंधुत्व प्रेरक आदर्श बने रहे। इन मूल्यों ने आगामी सदी में फ़्रांस के साथ-साथ बाकी यूरोप के राजनीतिक आंदोलनों को भी प्रेरित किया।

क्या महिलाओं के लिए भी क्रांति हुई?

तीसरे एस्टेट की अधिकांश महिलाएँ जीविका निर्वाह के लिए सिलाई-बुनाई, कपड़ों की धुलाई, बाज़ारों में फलーफूलーसब्ज़ियाँ बेचना, संपन्न घरों में घरेलू काम करना, बहुत सारी महिलाएँ वेश्यावृत्ति करती थीं।

केवल कुलीनों की लड़कियाँ अथवा तीसरे एस्टेट के धनी परिवारों की लड़कियाँ ही कॉन्वेंट में पढ़ पाती थीं, इसके बाद उनकी शादी कर दी जाती थी।

➡ कामकाजी महिलाओं को अपने परिवार का पालन-पोषण भी करना पड़ता था一जैसे खाना पकाना, पानी लाना, लाइन लगा कर पावरोटी लाना और बच्चों की देख-रेख आदि करना। फिर भी उनकी मज़दूरी पुरुषों की तुलना में कम थी। महिलाओं ने अपने हितों की हिमायत करने और उन पर चर्चा करने के लिए खुद के राजनीतिक क्लब शुरू किए और अखबार निकाले।

➡ फ़्रांस के विभिन्न नगरों में महिलाओं के लगभग 60 क्लब अस्तित्व में आए। उनमें “द सोसाइटी ऑफ़ रेवलूशनरी एंड रिपब्लिकन विमेन” सबसे मशहूर क्लब था। 1791 के संविधान में उन्हें निष्क्रिय नागरिक का दर्जा दिया गया था। महिलाओं ने मताधिकार, असेंबली के लिए चुने जाने तथा राजनीतिक पदों की माँग रखी।

प्रारंभिक वर्षों में क्रांतिकारी सरकार महिलाओं के जीवन में सुधार लाने के लिए कुछ कानून लागू किए ㅡ

  • सरकारी विद्यालयों की स्थापना के साथ ही सभी लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया।
  • शादी को स्वैच्छिक अनुबंध माना गया और नागरिक कानूनों के तहत उनका पंजीकरण किया जाने लगा।
  • तलाक को कानूनी रूप दे दिया गया और मर्द-औरत दोनों को ही इसकी अर्ज़ी देने का अधिकार दिया गया।
  • अब महिलाएँ व्यावसायिक प्रशिक्षण ले सकती थीं, कलाकार बन सकती थीं और छोटे-मोटे व्यवसाय चला सकती थीं।

➡ फिर भी, राजनीतिक अधिकारों के लिए महिलाओं का संघर्ष जारी रहा। आतंक राज के दौरान सरकार ने महिला क्लबों को बंद करने और उनकी राजनितिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून लागू दिया था। कई जानी-मानी महिलाओं को गिरफ़्तार कर लिया गया और उनमें से कुछ को फाँसी पर चढ़ा दिया गया।

➡ मताधिकार और समान वेतन के लिए महिलाओं का आंदोलन अगली सदी में भी अनेक देशों में चलता रहा। मताधिकार का संघर्ष 19वीं सदी के अंत एवं 20वीं सदी के प्रारंभ तक अंतर्राष्ट्रीय मताधिकार आंदोलन के ज़रिए जारी रहा। अंतत: 1946 में फ़्रांस की महिलाओं ने मताधिकार हासिल कर लिया।

दास प्रथा का उन्मूलन

फ़्रांसीसी उपनिवेशों में दास प्रथा का उन्मूलन जैकोबिन शासन के क्रांतिकारी सामाजिक सुधारो में से एक था।

  • कैरिबीआई उपनिवेश ― मार्टिनिक, गॉडेलोप और सैन डोमिंगों ― तंबाकू, नील, चीनी एवं कॉफ़ी जैसी वस्तुओं के महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता थे।
  • बागानों में श्रम की कमी को पूरा करने के लिए यूरोप, अफ़्रीका एवं अमेरिका के बीच त्रिकोणीय दास व्यापार 17वीं सदी में शुरू हुआ।
  • फ़्रांसीसी सौदागर बोर्दे या नान्ते बंदरगाह से अफ़्रीका तट पर जहाज़ ले जाते थे, जहाँ वे स्थानीय सरदारों से दास खरीदते थे। इस कारण ये बंदरगाह समृद्ध नगर बन गए।

➡ दासों को दाग कर एवं हथकड़ियाँ डाल कर अटलांटिक महासागर के पार कैरिबिआई देशों तक तीन माह की लंबी समुद्री यात्रा के लिए जहाज़ों में ठूँस दिया जाता था। वहाँ उन्हें बागान मालिकों को बेच दिया जाता था। दास-श्रम के बल पर यूरोपीय बाज़ारों में चीनी, कॉफ़ी एवं नील की बढ़ती माँग को पूरा करना संभव हुआ।

➡ दास व्यापार पर निर्भर व्यापारियों के विरोध के भय से नैशनल असेंबली में दास प्रथा के विरुद्ध कोई कानून पारित नहीं किया गया। लेकिन अंतत: 1794 के कन्वेंशन में फ़्रांसीसी उपनिवेशों में सभी दसों की मुक्ति का कानून पारित कर दिया। 10 साल बाद नेपोलियन ने दास प्रथा पुन: शुरू कर दी। बागान-मालिकों को अपने आर्थिक हित साधने के लिए अफ़्रीकी नीग्रो लोगों को गुलाम बनाने की स्वतंत्रता मिल गई। फ़्रांसीसी उपनिवेशों से अंतिम रूप से दास प्रथा का उन्मूलन 1848 में किया गया। 

क्रांति और रोज़ाना की ज़िंदगी 

क्रांतिकारी सरकारों ने कानून बना कर स्वतंत्रता एवं समानता के आदर्शों को रोज़ाना की ज़िंदगी में उतारने का प्रयास किया। 

➡ प्राचीन राजतंत्र के अंतर्गत तमाम लिखित सामग्री और सांस्कृतिक गतिविधियोंकिताब, अखबार, नाटकको  राजा के सेंसर अधिकारियों द्वारा पास किए जाने के बाद प्रकाशित किया जाता था। परंतु बास्तील के विध्वंस के बाद 1789 में सेंसरशिप की समाप्ति कर दी गई। अब अधिकारों के घोषणापत्र ने भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नैसर्गिक अधिकार घोषित कर दिया। इस कारण फ़्रांस के शहरों में अखबारों, पर्चों, पुस्तकों एवं  छपी हुई तस्वीरों की तेज़ी गाँव-देहात तक जा पहुँची। 

नेपोलियन बोनापार्ट 

1804 में नेपोलियन बोनापार्ट फ़्रांस का सम्राट बना। पुराने राजवंशों को हटाकर उसने नए साम्राज्य बनाए और उनकी बागडोर अपने खानदान के लोगों के हाथ में दे दी।

  • नेपोलियन खुद को यूरोप के आधुनिकीकरण का अग्रदूत मानता था।
  • उसने निजी संपत्ति की सुरक्षा के कानून बनाए।
  • दशमलव पद्धति पर आधारित नाप-तौल की एक समान प्रणाली चलाई।

18 जून 1815 में वाटरलू  के युद्ध में मित्र राष्ट्रों (ब्रिटेन, रूस, प्रशा, आस्ट्रिया, हंगरी) से  नेपोलियन की हार हुई।

फ़्रांसीसी क्रांति की सबसे महत्वपूर्ण विरासत स्वतंत्रता और जनवादी अधिकारों के विचार थे। ये विचार 19वीं सदी में फ़्रांस से निकल कर बाकी यूरोप में फैले और इनके कारण सामंती व्यवस्था का नाश हुआ। टीपू सुल्तान और राजा राममोहन रॉय क्रांतिकारी फ़्रांस में उपजे विचारों से प्रेरित थे। 

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