Class 8 History Chapter 6 Notes In Hindi

अध्याय 6: “देशी जनता” को सभ्य बनाना राष्ट्र को शिक्षित करना

भारत में अंग्रेज़ केवल भूक्षेत्र पर विजय और आय पर नियंत्रण ही नहीं चाहते थे बल्कि देशी समाज को सभ्य बनाना और उनके रीति-रिवाज़ों और मूल्य-मान्यताओं को भी बदलना चाहते थे।

अंग्रेज़ शिक्षा को किस तरह देखते थे

प्राच्यवाद की परंपरा

1783 में विलियम जोन्स को कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट में जूनियर जज के पद पर तैनात किया गया था। कानून का माहिर होने के साथ-साथ जोन्स एक भाषाविद भी थे। उन्हें ग्रीक, लैटिन, फ़्रैंच, अंग्रेज़ी, अरबी और फ़ारसी भाषाएँ आती थी।

  • कलकत्ता आने के बाद उन्होंने संस्कृत विद्वानों से संस्कृत व्याकरण और काव्यों का अध्ययन किया।
  • फिर कानून, दर्शन, धर्म, राजनीति, नैतिकता, अंकगणित, चिकित्सा विज्ञान और अन्य विज्ञानों की प्राचीन भारतीय पुस्तकों का अध्ययन शुरू कर दिया।

अंग्रेज़ अफ़सर जैसे हैनरी टॉमस कोलब्रुक और नैथेनियल हॉलहेड भी भारतीय भाषाएँ सीख कर संस्कृत व फ़ारसी रचनाओं का अंग्रेज़ी में अनुवाद कर रहे थे। इनके साथ मिलकर जोन्स ने एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल का गठन किया और एशियाटिक रिसर्च नामक शोध पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया।

जोन्स और कोलब्रुक का भारत और पश्चिम दोनों की प्राचीन संस्कृतियों के प्रति गहरा आदर भाव था। उनका मानना था कि भारतीय सभ्यता प्राचीन काल में अपने उत्कर्ष पर थी परंतु बाद में उसका धीरे-धीरे पतन हो गया। भारत को समझने के लिए और हिंदुओं तथा मुसलमानों के असली विचारों व कानूनों को समझने के लिए प्राचीन रचनाएँ महत्वपूर्ण है। इन रचनाओं के पुन: अध्ययन से ही भारत के भावी विकास का आधार पैदा हो सकता है।

  • जोन्स और कोलब्रुक प्राचीन ग्रंथों को ढूँढ़ने, उनकी व्याख्या करने, अनुवाद करने और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक अपने नतीजे पहुँचाने में जुट गए।
  • इन प्रयासों और विचारों से प्रभावित होकर कंपनी के बहुत सारे अधिकारियों ने भारतीयों को पश्चिमी ज्ञान की बजाय भारतीय ज्ञान देने को प्रोत्साहन दिया।
  • इनका मानना था कि हिंदुओं और मुसलमानों को अनजाने विषयों की जगह अपने परिचित विषय ही पढ़ाना चाहिए जिसे वे आदर और महत्व देते हैं।
  • 1781 में अरबी, फ़ारसी, इस्लामिक कानून के अध्ययन के लिए कलकत्ता में मदरसा खोला गया।
  • 1791 में बनारस में हिंदू कॉलेज की स्थापना की गई ताकि वहाँ प्राचीन संस्कृत ग्रंथों की शिक्षा दी जा सके।

पूरब की जघन्य ग़लतियाँ

शिक्षा के प्राच्यवादी दृष्टिकोण के आलोचकों का कहना था कि पूर्वी समाजों का ज्ञान त्रुटियों से भरा हुआ और अवैज्ञानिक है। पूर्वी साहित्य अगंभीर और सतही था।

  • जेम्स मिल का मानना था कि भारतीयों को शिक्षा के ज़रिए उपयोगी और व्यावहारिक चीज़ों का ज्ञान दिया जाना चाहिए। पश्चिम की वैज्ञानिक और तकनीकी सफलताओं के बारे में पढ़ाना चाहिए।
  • थॉमस बैबिंगटन मैकॉले भारत को असभ्य देश मानते थे जिसे सभ्य बनाना ज़रूरी था। अंग्रेज़ी भाषा सिखाने पर ज़ोर देते हुए उनका तर्क था कि भारत में ब्रिटिश सरकार को प्राच्यवादी ज्ञान पर पैसा बर्बाद नहीं करना चाहिए।

उनका मानना था कि अंग्रेज़ी के ज्ञान से भारतीयों को दुनिया की श्रेष्ठतम साहित्यिक कृतियों को पढ़ने का मौका मिलेगा। अंग्रेज़ी पढ़ाना लोगों को सभ्य बनाने, उनकी रुचियों, मूल्यों और संस्कृति को बदलने का रास्ता हो सकता है। मैकॉले मिनट्स 1835 के अनुसार अंग्रेज़ी को उच्च शिक्षा का माध्यम बनाया गया। अब स्कूलों के लिए भी अंग्रेज़ी पाठ्यपुस्तके छपने लगीं।

व्यवसाय के लिए शिक्षा

1854 वुड का नीतिपत्र (वुड्स डिस्पैच) में प्राच्यवादी ज्ञान के स्थान पर यूरोपीय शिक्षा को अपनाने के व्यावहारिक लाभों के बारे में बताया गया। 

  • यूरोपीय शिक्षा के माध्यम से भारतीयों को व्यापार और वाणिज्य के विस्तार से लाभ और देश के संसाधनों का विकास होगा।
  • यूरोपीय जीवन शैली से भारतीयों को अवगत करने से उनकी रुचियों और आकांक्षाओं में भी बदलाव आएगा और ब्रिटिश वस्तुओं की माँग पैदा होगी।
  • यूरोपीय शिक्षा से भारतीयों के नैतिक चरित्र का उत्थान होगा। इससे वे ज़्यादा सत्यवादी और ईमानदार बन जाएंगे और कंपनी के पास भरोसेमंद कर्मचारियों की कमी नहीं रहेगी।

सरकारी शिक्षा विभागों का गठन किया गया ताकि शिक्षा संबंधी सभी मामलों पर सरकार का नियंत्रण हो सके। 1857 में कलकत्ता, मद्रास और बम्बई विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई।

स्थानीय पाठशालाओं का क्या हुआ?

विलियम एडम की रिपोर्ट

1830 के दशक में स्कॉटलैंड से आए ईसाई प्रचारक विलियम एडम ने बंगाल और बिहार के ज़िलों के स्कूलों में शिक्षा की प्रगति पर रिपोर्ट तैयार किया जो इस प्रकार है:-

  1. बंगाल और बिहार में एक लाख से ज़्यादा पाठशालाएँ हैं। ये बहुत छोटे-छोटे केंद्र थे जिसमें 20 से ज्यादा विद्यार्थी नहीं होते थे। विद्यार्थियों की कुल संख्या 20 लाख से भी ज़्यादा थी।
  2. ये पाठशालाएँ संपन्न लोगों या स्थानीय समुदाय द्वारा चलाई जा रही थीं। कई पाठशालाएँ स्वंय गुरु द्वारा ही प्रारंभ की गई थीं।
  3. पाठशालाएँ बरगद की छाँव में चलती थी तो कई गाँव की किसी दुकान या मंदिर के कोने में या गुरु के घर पर ही बच्चों को पढ़ाया जाता था।
  4. बच्चों की फीस उनके मां-बाप की आमदनी से तय होती थी अमीरों को ज़्यादा और गरीबों को कम फ़ीस देनी पड़ती थी।
  5. शिक्षा मौखिक होती थी क्या पढ़ाना है यह बात विद्यार्थियों की ज़रूरतों को देखते हुए गुरु ही तय करते थे। सभी कक्षा के बच्चे एक ही साथ बैठते थे।
  6. फसलों की कटाई के समय कक्षाएँ बंद हो जाती थी क्योंकि उस समय गाँव के बच्चे प्राय: खेतों में काम करने चले जाते थे। कटाई और अनाज निकल जाने के बाद पाठशाला दोबारा शुरू हो जाती थी।

नई दिनचर्या, नए नियम 

1854 के बाद कंपनी ने देशी शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए मौजूदा व्यवस्था के भीतर ही बदलाव कर एक नई दिनचर्या, नए नियमों और नियमित निरीक्षणों के ज़रिए पाठशालाओं को और व्यवस्थित किया। 

  • कंपनी ने बहुत सारे पंडितों को सरकारी नौकरी पर रख कर प्रत्येक पंडित को 4-5 स्कूलों की देखरेख का जिम्मा सौंपा दिया गया। इनका काम पाठशालाओं का दौरा करना और वहाँ अध्यापन की स्थितियों में सुधार लाना था।
  • प्रत्येक गुरु को निर्देश दिया गया कि वे समय-समय पर अपने स्कूल के बारे में रिपोर्ट भेजें और कक्षाओं को नियमित समय-सारणी के अनुसार पढ़ाएँ।
  • अब अध्यापन पाठ्यपुस्तकों पर आधारित हो गया और विद्यार्थियों की प्रगति को मापने के लिए वार्षिक परीक्षाएँ होने लगी।
  • विद्यार्थियों को नियमित शुल्क देना, नियमित रूप से कक्षा आना, तय सीट पर बैठना और अनुशासन के नियमों का पालन करना ज़रूरी हो गया।

नए नियमों पर चलने वाली पाठशालाओं को सरकारी अनुदान मिलने लगे। जिन गुरुओं ने सरकारी निर्देशों का पालन नहीं किया वह नियमों से चलने वाली पाठशालाओं के सामने कमज़ोर पड़ने लगे। नियमित रूप से स्कूल आने के अनुशासन के कारण गरीब बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे थे क्योंकि वह कटाई के मौसम में खेतों पर काम करने जाया करते थे।

राष्ट्रीय शिक्षा की कार्यसूची

19वीं सदी के शुरुआत से ही कुछ भारतीय विचारको ने अंग्रेज़ों से आह्वान किया कि वे नए स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय खोलें तथा शिक्षा पर ज़्यादा पैसा ख़र्च करें। परंतु बहुत सारे भारतीय पश्चिमी शिक्षा के विरुद्ध थे। जैसे: महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर। 

अंग्रेज़ी शिक्षा ने हमें ग़ुलाम बना दिया है

महात्मा गांधी का कहना था कि औपनिवेशिक शिक्षा ने भारतीयों के मस्तिष्क में हीनता का बोध पैदा कर दिया है यह पश्चिमी सभ्यता को श्रेष्ठतर मानने लगे हैं और इस शिक्षा में विष भरा है, यह पापपूर्ण है, इसने भारतीयों को दास बना दिया है।

  • महात्मा गांधी एक ऐसी शिक्षा के पक्षधर थे जो भारतीयों के भीतर प्रतिष्ठा और स्वाभिमान का भाव पुनर्जीवित करें।
  • राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान उन्होंने विद्यार्थियों को अंग्रेज़ी शिक्षा संस्थानों को छोड़ने का आह्वान किया। कि अब वे ग़ुलाम बने नहीं रहेंगे।
  • शिक्षा केवल भारतीय भाषा में ही देनी चाहिए। पश्चिमी शिक्षा मौखिक ज्ञान की की बजाय केवल पढ़ने-लिखने पर केंद्रित है।
  • जीवन अनुभवों और व्यवहारिक ज्ञान की उपेक्षा की जाती है। गांधी जी का तर्क था कि शिक्षा से व्यक्ति का दिमाग और आत्मा विकसित होनी चाहिए।
  • उनकी राय में केवल साक्षरता पाना ही शिक्षा नहीं होता बल्कि हुनर सीखना भी ज़रूरी है इससे मस्तिष्क और समझने की क्षमता का विकास होता है।

टैगोर का “शांतिनिकेतन”

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यह संस्था 1901 में शुरू की थी। यह स्कूल जहाँ बच्चे खुश खुश रह सके, वे मुक्त और रचनाशील हो, अपने विचारों और आकांक्षाओं को समझ सकें, कड़े और बंधनकारी अनुशासन से मुक्त हो, शिक्षक कल्पनाशील हों, बच्चों को समझते हो।

गांधीजी पश्चिमी सभ्यता और मशीनों का प्रौद्योगिकी की उपासना के कट्टर आलोचक थे। टैगोर आधुनिक पश्चिमी सभ्यता और भारतीय परंपरा के श्रेष्ठ तत्वों का सम्मिश्रण चाहते थे। उन्होंने शांतिनिकेतन में कला, संगीत और नृत्य के साथ-साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी की शिक्षा पर भी ज़ोर दिया।

राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली की रूपरेखा क्या होनी चाहिए

कुछ लोग अंग्रेज़ों द्वारा स्थापित की गई व्यवस्था इस तरह फैलाना चाहते थे कि इसमें ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को पढ़ने का मौका मिलें। जबकि अन्य लोग ऐसी व्यवस्था चाहते थे ताकि लोगों को सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय संस्कृति की शिक्षा दी जा सके। 

Class 8 History Chapter 6 Notes PDF Download In Hindi

Legal Notice

This is copyrighted content of Study Learning Notes. Only students and individuals can use it. If we find this content on any social media (App, Website, Video, Google Drive, YouTube, Facebook, Telegram Channels, etc.) we can send a legal notice and ask for compensation. If you find this content anywhere else in any format, mail us at historynotes360@gmail.com. We will take strict legal action against them.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top