Class 8 History Chapter 1 Notes In Hindi

अध्याय 1 प्रारंभिक कथन: कैसे, कब और कहाँ

तारीख़ें कितनी महत्वपूर्ण होती हैं?

इतिहास अलग-अलग समय पर आने वाले बदलावों के बारे में ही होता है। जैसे ही हम अतीत और वर्तमान की तुलना करते हैं, हम समय का ज़िक्र करते हुए, “पहले” और “बाद में” की बात करने लगते हैं।

➡ चाय या कॉफ़ी पीने का चलन, रेलगाड़ी का चलना, सुबह-सुबह अख़बार पढ़ना, ब्रिटिश शासन की स्थापना होना, राष्ट्रीय आंदोलन का शुरू होना, अर्थव्यवस्था या समाज में बदलाव आना आदि। ये सारी चीज़ें एक लंबे समय में घटित हुई। इसकी हम सिर्फ़ एक अवधि बता सकते हैं, कोई स्पष्ट तिथि नहीं।

➡ एक समय था जब युद्ध और बड़ी-बड़ी घटनाओं के ब्योरों को ही इतिहास माना जाता था। यह इतिहास राजा-महाराजाओं और उनकी नीतियों के बारे में होता था। अब इतिहासकार दूसरे मुद्दों के बारे में भी लिखने लगे हैं। लोग किस तरह अपनी रोज़ी-रोटी चलाते थे। वे क्या पैदा करते, और खाते थे। शहर कैसे बने और बाज़ार किस तरह फैले। किस तरह रियासतें बनीं, नए विचार पनपे और संस्कृति व समाज किस तरह बदले।

रॉबर्ट क्लाइव ने जेम्स रेनेल को हिंदुस्तान के नक्शे तैयार करने का काम सौंपा था। रेनेल को भारत पर अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करने की प्रक्रिया में नक्शे तैयार करना महत्वपूर्ण लगता था।

कौन-सी तारीख़ें?

जब हम कुछ खास घटनाओं को महत्वपूर्ण मानकर चलते हैं तब इसकी तारीख़ें महत्वपूर्ण हो जाती हैं। मगर जब अध्ययन का विषय बदल दिया जाए, नए मुद्दों पर ध्यान दिया जाए तब महत्वपूर्ण तारीख़ें भी बदल जाती हैं।

➡ ब्रिटिश इतिहासकारों ने जो इतिहास लिखा, उनमें हर एक गवर्नर-जनरल का शासनकाल महत्वपूर्ण है। यह इतिहास प्रथम गवर्नर-जनरल (वॉरेन हेस्टिंगस) के शासन से शुरू होकर आख़िरी वायसरॉय (लॉर्ड माउंटबेटन) के साथ खत्म होता है।

➡ इतिहास की इन किताबों में सारी तारीख़ों का महत्व इन अधिकारियों, उनकी गतिविधियों, नीतियों, उपलब्धियों के आधार पर ही तय होता था। इनके जीवन से बाहर कोई ऐसी चीज़ जानना महत्वपूर्ण नहीं समझा गया।

हम अवधियाँ कैसे तय करते हैं?

1817 में स्कॉटलैंड के अर्थशास्त्री और राजनीतिक दार्शनिक जेम्स मिल ने “ए हिस्ट्री ऑफ़ ब्रिटिश इंडिया” (ब्रिटिश भारत का इतिहास) नामक एक किताब लिखी। इस किताब में उन्होंने भारत के इतिहास को हिंदू, मुस्लिम और ब्रिटिश, इन तीन काल खंडों में बाँटा था।

➡ हम एक दौर की ख़ासियतों, उसके केंद्रीय तत्वों को जानने-समझने के लिए इतिहास को अलग-अलग काल खंडों में बाँटते हैं। इस तरह हम एक अवधि से दूसरी अवधि के बीच आए बदलावों का महत्व जान सकते हैं।

जेम्स मिल को लगता था कि सारे एशियाई समाज सभ्यता के मामले में यूरोप से पीछे हैं।

  • भारत में अंग्रेजों के आने से पहले यहाँ हिंदू और मुसलमान तानाशाहों का ही राज चलता था।
  • यहाँ चारों ओर केवल धार्मिक बैर, जातिगत बंधनों और अंधविश्वासों का ही बोलबाला था।
  • मिल की राय में ब्रिटिश शासन द्वारा भारत को सभ्यता की राह पर ले जाने के लिए भारत में यूरोपीय शिष्टाचार, कला, संस्थानों और कानूनों को लागू किया जाए।
  • भारतीय जनता को ज्ञान और सुखी जीवन प्रदान करने के लिए मिल ने सुझाव दिया था कि अंग्रेज़ों को भारत के सारे भूभाग पर कब्जा कर लेना चाहिए।
  • उनका मानना था कि अंग्रेज़ों की मदद के बिना हिंदुस्तान प्रगति नहीं कर सकता।

अन्य इतिहासकार भारतीय इतिहास को “प्राचीन”, “मध्यकालीन”, तथा “आधुनिक” काल में बाँटते हैं। इतिहास को इन खंडों में बाँटने की यह समझ भी पश्चिम से आई है।

➡ पश्चिम में आधुनिक काल को विज्ञान, तर्क, लोकतंत्र, मुक्ति और समानता जैसी आधुनिकता की ताकतों की विकास का युग माना जाता है। लेकिन अंग्रेजों के शासन में लोगों के पास समानता, स्वतंत्रता या मुक्ति नहीं थी। और न ही यह आर्थिक विकास और प्रगति का दौर था। बहुत सारे इतिहासकार इस युग को “औपनिवेशिक” युग कहते हैं।

औपनिवेशिक क्या होता है?

जब एक देश पर दूसरे देश के दबदबे से राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव आते हैं तो इस प्रक्रिया को औपनिवेशीकरण कहा जाता है।

  • अंग्रेजों ने नवाबों और राजाओं को दबाकर अपना शासन स्थापित किया।
  • उन्होंने अर्थव्यवस्था व समाज पर नियंत्रण स्थापित कर अपने सारे खर्चे को निपटने के लिए राजस्व वसूल किया।
  • अपनी ज़रूरत की चीज़ों को सस्ती कीमत पर ख़रीदा, निर्यात के लिए महत्वपूर्ण फसलों की खेती कराई।
  • ब्रिटिश शासन ने यहाँ की मूल्य-मान्यताओं और पसंद-नापसंद, रीति-रिवाज़ तौर-तरीकों में बदलाव किया।

हम किस तरह जानते हैं?

इतिहासकार भारतीय इतिहास के पिछले 250 सालो का इतिहास लिखने के लिए इन स्रोतों का इस्तेमाल करते हैं:-

प्रशासन द्वारा तैयार किए गए अभिलेख

अंग्रेज़ी शासन ने हर निर्देश, हर योजना, नीतिगत फ़ैसले, सहमति, जाँच को साफ़-साफ़ लिखा। ऐसा करने से बाद में चीजों को अच्छी तरह अध्ययन कर उन पर वाद विवाद किया जा सकता है। इस समझदारी के कारण ज्ञापन, टिप्पणी और प्रतिवेदन पर आधारित शासन की संस्कृति पैदा हुई।

  • तमाम अहम दस्तावेज़ों और पत्रों को सँभालकर उन्होंने सभी शासकीय संस्थाओं में अभिलेख कक्ष बनवाए।
  • तहसील के दफ़्तर, कलेक्टरेट, कमिश्नर के दफ़्तर, प्रांतीय सचिवालय, कचहरी 一 सबके अपने रिकॉर्ड रूम होते थे।
  • महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों को बचाकर रखने के लिए अभिलेखागार (आर्काइव) और संग्रहालय जैसे संस्थान भी बनाए गए।

➡ 19वीं सदी के शुरुआती सालों में इन दस्तावेजों की सावधानीपूर्वक नकल बनाई जाती थीं। उन्हें खुशनवीसी या सुलेखनवीस (बहुत सुंदर ढंग से लिखने वाले लोग) के माहिर लिखते थे। और 19वीं सदी के मध्य तक छपाई तकनीक फैलने के कारण प्रत्येक सरकारी विभाग की कार्रवाइयों के दस्तावेज़ों की कई-कई प्रतियाँ बनाई जाने लगीं।

सर्वेक्षण का बढ़ता महत्व

19वीं सदी की शुरुआत तक पूरे देश का नक्शा तैयार करने के लिए बड़े-बड़े सर्वेक्षण किए जाने लगे। और 19वीं सदी के आख़िर से हर 10 साल में जनगणना भी की जाने लगी। 

  • गाँवों में राजस्व सर्वेक्षण किए गए। इन सर्वेक्षणों में धरती की सतह, मिट्टी की गुणवत्ता, वहाँ मिलने वाले पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं तथा स्थानीय इतिहासों व फ़सलों का पता लगाया जाता था।
  • जनगणना करने से भारत के सभी प्रांतों में रहने वाले लोगों की संख्या, उनकी जाति, इलाके और व्यवसाय के बारे में जानकारियाँ इकट्ठी होने लगी।

इसके अलावा वानस्पतिक सर्वेक्षण, प्राणि वैज्ञानिक सर्वेक्षण, पुरातात्वीय सर्वेक्षण, मानवशास्त्रीय सर्वेक्षण, वन सर्वेक्षण आदि कई दूसरे सर्वेक्षण भी किए जाते थे।

अधिकृत रिकॉर्ड्स से क्या पता नहीं चलता

इन सरकारी रिकॉर्ड से हमें सिर्फ़ सरकारी अफ़सर की सोच और दिलचस्पी का पता चलता है ना कि देश के दूसरे लोग क्या महसूस करते थे इसके बारे में।

➡ इन बातों को जानने के लिए लोगों की डायरियाँ, तीर्थ यात्राओं और यात्रियों के संस्मरण, महत्वपूर्ण लोगों की आत्मकथाएँ और स्थानीय बाज़ारों में बिकने वाली लोकप्रिय पुस्तक-पुस्तिकाएँ महत्वपूर्ण हो जाती हैं।

➡ छपाई की तकनीक बढ़ने से, अखबार छपने लगे, विभिन्न मुद्दों पर नेताओं और सुधारकों ने अपने विचारों को फैलाने के लिए लिखा, कवियों और उपन्यासकारों ने भी अपने भावनाओं को व्यक्त करने के लिए लिखा।

इन सब से हमें फिर भी आदिवासी और किसान, खदानों में काम करने वाले मज़दूर या सड़कों पर ज़िंदगी गुज़ारने वाले गरीबों के अनुभव के बारे में पता नहीं चलता हैं। 

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