Class 6 History Chapter 9 Notes In Hindi

अध्याय 9: नए साम्राज्य और राज्य

क्या बताती हैं प्रशस्तियाँ

गुप्तवंश के प्रसिद्ध राजा समुन्द्रगुप्त के बारे में अशोक स्तंभ (इलाहाबाद में) पर खुदे एक अभिलेख से पता चलता है। इसकी रचना हरिषेण (समुन्द्रगुप्त के दरबारी कवि व मंत्री) ने काव्य के रूप में की थी। इस अभिलेख को प्रशस्ति (प्रशंसा) कहते है। गुप्तकाल में प्रशस्तियाँ लिखने का महत्त्व और बढ़ गया। 

समुन्द्रगुप्त की प्रशस्ति

कवि ने प्रशस्ति में राजा को एक योद्धा, युद्धों को जीतने वाला, विद्वान तथा एक उत्कृष्ट कवि के रूप में भरपूर प्रशंसा की है। यहाँ तक कि उसे ईशवर के समान बताया गया है।

हरिषेण ने चार विभिन्न प्रकार के राजाओं और उनके प्रति समुन्द्रगुप्त की नीतियों का वर्णन किया है।

  1. आर्यावर्त्त के 9 शासकों को समुन्द्रगुप्त ने हराकर उनके राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया।
  2. दक्षिणापथ के 12 शासकों ने हार जाने पर समुन्द्रगुप्त के सामने समर्पण कर दिया था। समुन्द्रगुप्त ने उन्हें फिर से शासन करने की अनुमति दे दी।
  3. असम, तटीय बंगाल, नेपाल और उत्तर-पश्चिम के कई गण या संघ समुन्द्रगुप्त के लिए उपहार लाते, उनकी आज्ञाओं का पालन करते तथा उनके दरबार में उपस्थित हुआ करते थे।
  4. कुषाण, शक और श्रीलंका के शासकों ने समुन्द्रगुप्त की अधीनता स्वीकार की और अपनी पुत्रियों का विवाह उससे किया।

वंशावलियाँ

➡ समुन्द्रगुप्त की प्रशस्ति समुन्द्रगुप्त के प्रपितामह, परदादा (महाराजा), दादा (महाराजा), पिता और माता के बारे में बताती है। उनकी माँ कुमार देवी, लिच्छवि गण की थीं और पिता चन्द्रगुप्त (महाराजाधिराज) गुप्तवंश के पहले शासक थे।

➡ समुन्द्रगुप्त के बेटे चन्द्रगुप्त द्वितीय की वंशावली, अभिलेखों तथा सिक्कों से भी समुन्द्रगुप्त के बारे में पता चलता है। चन्द्रगुप्त द्वितीय ने पश्चिम भारत में सैन्य अभियान में अंतिम शक शासक को हराया। ऐसा माना जाता है कि उनका दरबार विद्वानों से भरा था।

हर्षवर्धन तथा हर्षचरित

हर्षवर्धन के बारे में हमें उनकी जीवनी हर्षचरित से पता चलता है। इसकी रचना उनके दरबारी कवि बाणभट्ट ने संस्कृत में की थी। इसमें हर्षवर्धन की वंशावली देते हुए उनके राजा बनने तक का वर्णन है।

  • चीनी यात्री शवैन त्सांग, हर्ष के दरबार में रहे और वहाँ जो कुछ देखा उसका विस्तृत विवरण दिया है।
  • हर्ष अपने पिता और बड़े भाई की मृत्यु के बाद थानेसर के राजा बने।
  • जब बंगाल के शासक ने उनके बहनोई (कन्नौज के शासक) को मार डाला, तो हर्ष ने कन्नौज को अपने अधीन कर बंगाल पर आक्रमण कर दिया।
  • हर्ष को मगध, बंगाल जीतकर पूर्व में सफलता मिली। परन्तु नर्मदा नदी को पार कर दक्कन की ओर बढ़ने पर चालुक्य नरेश, पुलकेशिन द्वितीय ने उन्हें रोक दिया।

पल्ल्व, चालुक्य और पुलकेशिन द्वितीय की प्रशस्तियाँ

➡ इस काल में दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण राजवंश पल्लव और चालुक्य थे। पल्लवों का राज्य उनकी राजधानी काँचीपुरम के आस-पास के क्षेत्रों से लेकर कावेरी नदी के डेल्टा तक फैला था, जबकि चालुक्यों का राज्य कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच स्थित था।

➡ चालुक्यों की राजधानी ऐहोल, एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था जो एक धार्मिक केंद्र भी बन गया जहाँ कई मंदिर थे। पल्लव और चालुक्य एक-दूसरे की समृद्ध शहर (राजधानियों) को निशाना बनाते रहते थे।

➡ सबसे प्रसिद्ध चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय थे। दरबारी कवि रविकीर्ति द्वारा रचित प्रशस्ति से हमें उनके पूर्वजों (पिछली चार पीढ़ियों), राज्य चाचा से प्राप्त हुआ था, उनके पूर्व तथा पश्चिम दोनों समुंद्रतटीय इलाकों में अभियान, उन्होंने हर्ष को आगे बढ़ने से रोका, पल्लव राजा के ऊपर आक्रमण आदि के बारे में पता चलता है। अन्तत: पल्लवों और चालुक्यों को राष्ट्रकूट तथा चोलवंशो ने समाप्त कर दिया।

राज्यों का प्रशासन कैसे चलता था?

प्रशासन की प्राथमिक इकाई गाँव होते थे। भूमि कर के अलावा राजाओं ने आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक या सैन्य शक्ति रखने वाले लोगों का समर्थन जुटाने के लिए कई कदम उठाए।

  • कुछ महत्वपूर्ण प्रशासकीय पद आनुवंशिक बन गए जैसे कि कवि हरिषेण अपने पिता की तरह महादण्डनायक (मुख्य न्याय अधिकारी) थे।
  • कभी-कभी, एक व्यक्ति कई पदों पर कार्य करता था जैसे कि हरिषेण एक महादंडनायक होने के साथ-साथ कुमारामात्य (एक महत्वपूर्ण मंत्री) तथा एक संधि-विग्रहिक (युद्ध और शांति के विषयों का मंत्री) भी था।
  • नगर-श्रेष्ठी (मुख्य बैंकर या शहर का व्यापारी), सार्थवाह (व्यापारियों के काफ़िले का नेता), प्रथम-कुलिक (मुख्य शिल्पकार) तथा कायस्थों (लिपिकों के प्रधान) जैसे लोगो का स्थानीय प्रशासन में बहुत बोलबाला था।

इस तरह की नीतियाँ कुछ हद तक प्रभावशाली होती थी, पर समय के साथ ये इतने शक्तिशाली हो जाते थे कि अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लेते थे।

एक नए प्रकार की सेना

➡ राजाओं की सेना में हाथी, रथ, घुड़सवार और पैदल सिपाही होते थे। साथ में कुछ सेनानायक भी होते थे जो ज़रूरत पड़ने पर राजा को सैनिक सहायता दिया करते थे। इनको वेतन की जगह भूमिदान दिया जाता था। जिससे कर वसूल कर वे सेना तथा घोड़ों की देखभाल करते और युद्ध के लिए हथियार जुटाते थे। इस तरह के लोग सामंत कहलाते थे। शासक के दुर्बल होते ही ये सामंत स्वतंत्र होने की कोशिश करते थे।

दक्षिण के राज्यों में सभाएँ

ब्राह्मण भूस्वामियों का संगठन जिसे सभा कहते थे। ये सभाएँ उप-समितियों के ज़रिए सिंचाई, खेतीबाड़ी से जुड़े विभिन्न काम, सड़क निर्माण, स्थानीय मंदिरो की देखरेख आदि का काम करती थी। इन सभाओं पर धनी तथा शक्तिशाली भूस्वामियों और व्यापारियों का नियंत्रण था।

गैर ब्राह्मण इलाकों में उर नामक ग्राम सभा होती थी।

नगरम व्यापारियों के एक संगठन का नाम था।

उस ज़माने में आम लोग

➡ कालिदास अपने नाटकों में राज-दरबार के जीवन चित्रण के लिए प्रसिद्ध है। इन नाटकों में राजा और ब्राह्मणों को संस्कृत बोलते हुए, अन्य लोगों और महिलाओं को प्राकृत बोलते हुए दिखाया गया है।

➡ उनका प्रसिद्ध नाटक ‘अभिज्ञान-शाकुन्तलम’ दुष्यंत (राजा) शकुंतला की प्रेम कहानी है। इस नाटक में एक गरीब मछुआरे के साथ राजकर्मचारियों के दुर्व्यवहार के बारे में बताया गया है।

➡ चीनी तीर्थयात्री फा-शिएन ने उन लोगों की दुर्गति के बारे में बताया, जिन्हें ऊँचे और शक्तिशाली लोग अछूत मानते थे। इन्हें शहरों के बाहर रहना पड़ता था। 

कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ

  • गुप्त वंश की शुरुआत (1700 वर्ष पूर्व)
  • हर्षवर्धन का शासन (1400 वर्ष पूर्व) 

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