Class 6 History Chapter 4 Notes In Hindi

अध्याय 4: क्या बताती हैं हमें किताबें और कब्रें

ऋग्वेद- दुनिया के प्राचीनतम साहित्यिक स्त्रोतों में एक

वेद चार हैं – ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। ऋग्वेद सबसे पुराना वेद हैं, जिसकी रचना लगभग 3500 वर्ष पूर्व हुई थी।

ऋग्वेद में 1000 से ज़्यादा प्रार्थनाएँ हैं जिन्हें सूक्त (अच्छी तरह से बोला गया) कहा जाता हैं। ये विभिन्न देवी- देवताओं की स्तुति में रचे गए हैं। इनमें तीन देवता बहुत महत्वपूर्ण हैं: अग्नि (आग के देवता), इन्द्र (युद्ध के देवता) और सोम (एक पौधा- खास पेय बनाया जाता था)।

वैदिक प्रार्थनाओं की रचना ऋषियों ने की थी, जो पुरुष थे। कुछ प्रार्थनाओ की रचना महिलाओं ने भी की थी।

ऋग्वेद की भाषा प्राक संस्कृत या वैदिक संस्कृत कहलाती है। ऋग्वेद का सिर्फ उच्चारण और श्रवण किया जाता था, इसे पढ़ा नहीं जाता था। रचना के कई सदियों बाद इसे पहली बार लिखा गया। इसे छापने का काम तो लगभग 200 साल पहले हुआ। 

इतिहासकार ऋग्वेद का अध्ययन कैसे करते हैं?

इतिहासकार अतीत की जानकारी इकट्ठा करने के लिए भौतिक अवशेषों के अलावा लिखित स्रोतों का भी उपयोग करते है।

ऋग्वेद के कुछ सूक्त वार्तालाप के रूप में हैं। जैसे विश्वामित्र नामक ऋषि और देवियों के रूप में पूजित दो नदियों (व्यास और सतलुज) के बीच का संवाद।

यह वार्तालाप पढ़कर इतिहासकार बताते हैं कि जहाँ ये नदियाँ बहती है उस क्षेत्र में यह प्रार्थना रची गई होगी। और ऋषि जिस समाज में रहते थे वहाँ घोड़ो और गायों का बहुत महत्व था। इसलिए नदियों की तुलना घोड़ों और गायों से की गई है।

ऋग्वेद की प्रार्थनाओं में सरस्वती, सिन्धु और उसकी सहायक नदियों का भी ज़िक्र है। गंगा और यमुना का उल्लेख सिर्फ़ एक बार हुआ है।

मवेशी, घोड़े और रथ

ऋग्वेद में मवेशियों, बच्चों ( खासकर पुत्रों ) और घोड़ों की प्राप्ति के लिए अनेक प्रार्थनाएँ है। घोड़ों का प्रयोग लड़ाई में रथ खींचने के लिए किया जाता था। इन लड़ाइयों से मवेशी, अच्छी जमीन, पानी के स्रोत और लोगों को जीत कर लाया जाता था।

युद्ध में जीते गए धन का कुछ भाग सरदार रख लेते थे, कुछ भाग पुरोहितों को दिया जाता था, बचा धन आम लोगों में बाँट दिया जाता था। कुछ धन यज्ञ करने के लिए दिया जाता था। यज्ञ में घी, अनाज और कभी-कभी जानवरों की भी आहुति दी जाता थी।

इस समय अधिकांश पुरुष इन युद्धों में भाग लेते थे, इनकी कोई स्थाई सेना नही होती थी, लेकिन लोग सभाओं में मिलजुल कर युद्ध व शांति के विषय में सलाह-मशविरा करते थे। लोग बहादुर और कुशल योद्धा को अपना सरदार चुनते थे।

लोगों की विशेषता बताने वाले शब्द

पुरोहित जिन्हें कभी-कभी ब्राह्मण कहा जाता था, ये तरह-तरह के यज्ञ और अनुष्ठान करते थे।

इस समय के राजा बड़ी राजधानियों और महलों में नहीं रहते थे, इनके पास कोई सेना नहीं थी , और न ये कर वसूलते थे। और न ही राजा की मृत्यु के बाद उसका बेटा शासक बनता था।

जनता या पूरे समुदाय के लिए जन और विश शब्दों का प्रयोग होता था। ऋग्वेद में हमें पुरु-जन या विश, भरत-जन या विश, यदु-जन या विश का उल्लेख मिलता है।

इन प्रार्थनाओं की रचना करने वाले खुद को आर्य कहते थे और अपने विरोधियों को दास या दस्यु कहते थे। दस्यु लोग यज्ञ नहीं करते थे और दूसरी भाषाएँ बोलते थे।

बाद के समय में दास का मतलब गुलाम हो गया। दास वे स्त्री और पुरुष होते थे जिन्हें युद्ध में बंदी बनाया जाता था।

कहानी महापाषाणों की

लोगों द्वारा दफ़न करने की जगह पर पत्थरों को बड़े करीने से लगाया जाता था, इन शिलाखण्डों को महापाषाण (महा: बड़ा, पाषाण: पत्थर) कहा जाता है। लगभग 3000 वर्ष पूर्व महापाषाण कब्रें बनाने की प्रथा शुरू हुई। यह प्रथा दक्कन, दक्षिण भारत, उत्तर-पूर्वी भारत और कश्मीर में प्रचलित थी।

कुछ महापाषाण ज़मीन के ऊपर, तो कुछ ज़मीन के भीतर होते हैं। पुरातत्वविदों को गोलाकार सजाए हुए पत्थर, तो कई बार अकेला खड़ा पत्थर मिलता है, जो ज़मीन के नीचे कब्रों को दर्शाते है।

इन कब्रों में मृतकों के साथ काले-लाल मिट्टी के बर्तन, लोहे के औज़ार और हथियार, घोड़ो के कंकाल, सामान , पत्थर और सोने के गहने मिले है।

लोगों की सामाजिक असमानताएँ

ब्रह्मगिरि से एक व्यक्ति की कब्र में 33 सोने के मनके और शंख मिले है। दूसरे कंकालों के पास सिर्फ़ कुछ मिट्टी के बर्तन ही मिले हैं। इससे लोगों की सामाजिक भिन्नता का पता चलता है। कुछ अमीर थे, तो कुछ गरीब, कुछ सरदार थे तो कुछ अनुयायी लोग थे।

कुछ क़ब्रगाहे खास परिवारों के लिए

कभी-कभी महापाषाणों में एक से अधिक कंकाल मिले है। शायद एक ही परिवार के लोगों को अलग-अलग समय में पोर्ट-होल के रास्ते कब्रों में लाकर दफ़नाया जाता था। चिन्ह के लिए पत्थरों को गोलाकार लगाया जाता था।

इनाम गाँव के एक विशिष्ट व्यक्ति की कब्र

इनामगाँव में लोगों को गड्ढे में सीधा लिटा कर दफ़नाया जाता था, सिर उत्तर की ओर होता था। कई बार उन्हें घर के अंदर ही दफ़नाया जाता था उनके बर्तन भी उनके साथ रख दिए जाते थे।

एक आदमी को पाँच कमरो वाले मकान के आँगन में, चार पैरों वाले मिट्टी के एक बड़े से संदूक में दफ़नाया गया था। यह घर गाँव के सबसे बड़े घरों में एक था, यहाँ एक अनाज का गोदाम भी था। शव के पैर मुड़े हुए थे शायद यह किसी सरदार का शव हो।

इनामगाँव के लोगों के काम-धंधे

इनामगाँव में पुरातत्वविदों को गेहूँ, जौ, चावल, दाल, बाजरा, मटर और तिल के बीज मिले है। तथा गाय, बैल, भैंस, बकरी, भेड़, कुत्ता, घोड़ा, गधा, सूअर, साँभर, चितकबरा हिरण, कृष्ण-मृग, खरहा, नेवला, चिड़ियाँ, खड़ियाल, कछुआ, केकड़ा और मछली की हड्डियाँ भी मिली है। लोग बेर, आँवला, जामुन, खजूर और कई तरह की रसभरियाँ इकट्ठा करते थे।

कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ

  • वेदों की रचना का प्रारंभ (लगभग 3500 वर्ष पूर्व)
  • महापाषाणों के निर्माण की शुरुआत (लगभग 3000 वर्ष पूर्व)
  • इनामगाँव में कृषकों का निवास (लगभग 3600 से 2700 वर्ष पूर्व)
  • चरक (लगभग 2000 वर्ष पूर्व)

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2 thoughts on “Class 6 History Chapter 4 Notes In Hindi”

    1. Dear Krishna Kumar Tripathi, Due to some issues, the content is not being uploaded. We are working on resolving this issue and hope to complete the history notes up to class 12th within the next 45 days. Please keep your patience.

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