Class 6 History Chapter 10 Notes In Hindi

अध्याय 10: इमारतें, चित्र तथा किताबें

लौह स्तंभ

महरौली (दिल्ली) में कुतुबमीनार के परिसर में खड़े लौह स्तंभ की ऊँचाई 7.2 मीटर और वज़न 3 टन से भी ज़्यादा है। इसका निर्माण लगभग 1500 वर्ष पूर्व हुआ। इस पर खुदे अभिलेख पर “चन्द्र” नामक शासक का (संभवत: गुप्त वंश) ज़िक्र है।

ईंटों और पत्थरों की इमारतें

स्तूप (टीला) विभिन्न आकार के थे-गोल, लंबे, बड़े और छोटे। प्राय: सभी स्तूपों के भीतर एक छोटा-सा डिब्बा (धातु-मंजूषा) रखा रहता है, जिसमें बुद्ध या उनके अनुयायियों के शरीर के अवशेष (दाँत, हड्डी या राख), उनके द्वारा प्रयुक्त कोई चीज़ या कीमती पत्थर या सिक्के रखे रहते हैं।

  • पहले स्तूप, धातु-मंजूषा के ऊपर रखा मिट्टी का टीला होता था। बाद में टीले को ईंटों से ढक दिया गया और बाद के काल में टीले को तराशे हुए पत्थरों से ढक दिया गया।
  • स्तूपों के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए एक वृत्ताकार पथ (प्रदक्षिणा पथ) बना होता था।
  • इस रास्ते को रेलिंग (वेदिका) से घेर दिया जाता था, जिसमे प्रवेशद्वार बने होते थे। रेलिंग तथा तोरण प्राय: मूर्तिकला की सुंदर कलाकृतियों से सजे होते थे।

अमरावती में एक भव्य स्तूप हुआ करता था, लगभग 2000 वर्ष पूर्व इसे सजाने के लिए शिलाओं पर चित्र उकेरे गए थे। 

पहाड़ियों को काट कर बनावटी गुफाएँ बनाई जाती थी। कई गुफाओं को मूर्तियों तथा चित्रों द्वारा सजाया जाता था।

इस काल में कुछ हिन्दू मंदिरों को भी बनाया गया। इसमें विष्णु, शिव तथा दुर्गा की पूजा होती थी। मंदिरों का महत्वपूर्ण भाग गर्भगृह, जहाँ देवी या देवता की मूर्ति को रखा जाता था।

  • गर्भगृह को पवित्र स्थान दिखाने के लिए, भितरगाँव मंदिर के गर्भगृह के ऊपर काफी ऊँचाई तक निर्माण किया गया था, जिसे शिखर कहते थे।
  • अधिकतर मंदिरों में मण्डप (सभागार) नाम की एक जगह होती थी, जहाँ लोग इकट्ठा होते थे।

स्तूप तथा मंदिर किस तरह बनाए जाते थे?

स्तूपों तथा मंदिरों को बनाने में काफी धन खर्च होता था, इसलिए राजा या रानी ही इसे बनवाते थे।

स्तूपों तथा मंदिरों का निर्माण कई चरण में होता था:-

  1. अच्छे किस्म के पत्थर ढूँढ़कर शिलाखंडों को खोदकर निकालना।
  2. मंदिर या स्तूप के लिए तय किए गए स्थान पर शिलाखंडों को पहुँचाना।
  3. पत्थरों को काट-छाँटकर तराशने के बाद खंभों, दीवारों की चौखटों, फ़र्शों तथा छतों को आकार देना।
  4. इन सबके तैयार हो जाने के बाद सही जगह पर लगाना।

स्तूपों या मंदिरों में आने वाले भक्तो द्वारा दिए गए उपहार से इन इमारतों की सजावट की जाती थी। जैसे हाथी दांत का काम करने वाले श्रमिकों के संघ ने साँची के एक अलंकृत तोरण को बनाने का खर्च दिया था।

व्यापारी, कृषक, माला बनाने वाले, इत्र बनाने वाले, लोहार-सुनार आदि लोगों ने इसकी सजावट के लिए पैसे दिए। जिनके नाम खम्भों, रेलिंगों तथा दीवारों पर खुदे है।

चित्रकला

➡ अजंता के पहाड़ों में सैकड़ों सालों के दौरान कई गुफाएँ खोदी गई। इनमें से ज़्यादातर बौद्ध भिक्षुओं के लिए बनाए गए विहार थे। इनमें से कुछ को चित्रों द्वारा सजाया गया था।

➡ गुफाओं के अंदर अंधेरे के कारण, अधिकांश चित्र मशालों की रोशनी में बनाए गए थे। इन चित्रों के रंग 1500 साल बाद भी चमकदार हैं। ये रंग पौधों तथा खनिजों से बनाए गए थे।

पुस्तकों की दुनिया

  • लगभग 1800 वर्ष पूर्व तमिल महाकाव्य सिलप्पदिकारम की रचना इलांगो नामक कवि ने की। इसमें कोवलन नाम के एक व्यापारी की कहानी है।
  • लगभग 1400 वर्ष पूर्व मणिमेखलई की रचना सत्तनार ने की। इसमें कोवलन तथा माधवी की बेटी की कहानी है।

पुरानी कहानियों का संकलन तथा संरक्षण

पुराणों में विष्णु, शिव, दुर्गा या पार्वती जैसे देवी-देवताओं से जुड़ी कहानियाँ और इनकी पूजा की विधियाँ दी गई है। इसके अलावा इसमें संसार की सृष्टि तथा राजाओं के बारे में भी कहानियाँ है।

पुराण सरल संस्कृत श्लोक में लिखे गए है। स्त्रियाँ तथा शूद्र जिन्हें वेद पढ़ने की अनुमति नहीं थी, वे इसे सुन सकते थे। मंदिरो में पुजारी पुराणों का पाठ करते थे जिसे लोग सुनने आते थे।

➡ महाभारत कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध की कहानी है। इस युद्ध का उद्देश्य पुरु-वंश की राजधानी हस्तिनापुर की गद्दी प्राप्त करना था। पुराणों और महाभारत का संकलन व्यास नामक ऋषि ने किया था।

➡ रामायण कोसल के राजकुमार की कहानी है। उनके पिता ने उन्हें वनवास दे दिया था। वन में लंका के राजा ने सीता (उनकी पत्नी) का अपहरण कर लिया था जिसे वापस लाने के लिए राम को युद्ध करना पड़ा। वे विजयी होकर कोसल की राजधानी अयोध्या लौटे। संस्कृत रामायण के लेखक वाल्मीकि माने जाते हैं। 

आम लोगों द्वारा कही जाने वाली कहानियाँ

आम लोग भी कहानियाँ कहते थे, कविताओं और गीतों की रचना करते थे, गाते, नाचते और नाटकों को खेलते थे। इनमें से कुछ को जातक और पंचतंत्र की कहानियो के रूप में लिखकर सुरक्षित कर लिया गया। स्तूपों के रेलिंगों और अजंता चित्रों में जातक कथाएँ दर्शायी जाती थी।

विज्ञान की पुस्तकें

आर्यभट्ट ने संस्कृत में आर्यभट्टीयम लिखा। इसमें लिखा है कि दिन और रात पृथ्वी के अपनी धुरी पर चक्कर काटने की वजह से होते है। उन्होंने ग्रहण के बारे में, वृत्त की परिधि को मापने की विधि के बारे में बताया। वराहमिहिर, ब्रहागुप्त और भास्कराचार्य कुछ अन्य गणितज्ञ और खगोलवेत्ता थे जिन्होंने कई खोजें की।

कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ

  • स्तूप निर्माण की शुरुआत (2300 वर्ष पूर्व)
  • अमरावती (2000 वर्ष पूर्व)
  • कालिदास (1600 वर्ष पूर्व)
  • लौह स्तंभ, भीतरगाँव का मंदिर, अजंता की चित्रकारी, आर्यभट्ट (1500 वर्ष पूर्व)
  • दुर्गा मंदिर (1400 वर्ष पूर्व) 

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