Class 11 History Chapter 4 Notes In Hindi

अनुभाग तीन 一 बदलती परंपराएँ

विषय 4: तीन वर्ग

बदलती परंपराएँ

5वीं सदी में पश्चिम में रोमन साम्राज्य के विघटन के बाद पश्चिमी और मध्य यूरोप में रोमन साम्राज्य के अवशेषों ने अपने को वहाँ पर राज्य स्थापित करने वाले कबीलों की प्रशासनिक आवश्यकताओं और अपेक्षाओं के अनुसार ढाल लिया था।

  • पूर्वी यूरोप, पश्चिमी एशिया एवं उत्तरी अफ़्रीका की तुलना में पश्चिमी यूरोप में नगरीय केंद्र छोटे थे।
  • 9वीं सदी तक, पश्चिमी और दक्षिणी यूरोप के वाणिज्यिक और शहरी केंद्र एक्स, लंदन, रोम व सियना महत्वपूर्ण थे।
  • 9वीं से 11वीं सदी के मध्य पश्चिमी यूरोप के ग्रामीण क्षेत्रों में चर्च व शाही शासन ने वहाँ के कबीलों के प्रचलित नियमों और रोमन संस्थाओं में तालमेल बिठाने में मदद की।
  • पश्चिमी यूरोप में 9वीं से 17वीं सदी के मध्य वैज्ञानिक ज्ञान का विकास, लोक सेवाओं का निर्माण, संसद और विभिन्न कानूनी धाराओं के अनुसार सरकार के संगठन पर गहन विचार और उद्योग व कृषि में तकनीकी सुधार हुए।

➡ फलस्वरूप “सामंती” व्यवस्था अस्तित्व में आई। जिसमें मेनर (दुर्गों) की भूमि पर कृषक कार्य करते थे। ये वफ़ादार होने के साथ माल और सेवा प्रदान करने और लॉर्ड, बड़े लॉर्डों के (राजा के सामंत) प्रति वचनबद्ध थे।

  • कैथलिक चर्च सामंतवाद को समर्थन देता था और उनकी अपनी भूमि भी थी।
  • मठों का निर्माण हुआ जहाँ पर धर्म में आस्था रखने वाले लोग कैथलिक चर्चवासियों के अनुसार सेवा में लगते थे।
  • चर्च स्पेन से बाइज़ेंटियम तक के मुस्लिम राज्यों में फैले विद्वत्ता तंत्र का भाग थे।
  • इसके अलावा वे यूरोप के अधीनस्थ राजाओं, पूर्वी भूमध्यसागर तथा सुदूर क्षेत्रों को प्रचुर मात्रा में धन-संपदा उपलब्ध कराते थे।

12वीं सदी से वेनिस और जिनेवा के भूमध्यसागरीय उद्यमियों से प्रेरित होकर सामंती व्यवस्था पर, वाणिज्य और नगरों का प्रभाव बढ़ता व बदलता गया। इन उद्यमियों के जहाज़ मुस्लिम राज्यों एवं पूर्व में बचे हुए रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार करते रहे।

14वीं सदी (पुनर्जागरण काल) से उत्तरी इटली के नगरों में रईस लोगों का मृत्यु के बाद के जीवन से अधिक वास्ता रखने पर मूर्तिकार, चित्रकार और लेखक, मानव और संसार की खोज में अधिक दिलचस्पी लेने लगे।

15वीं सदी के अंत तक, इस तरह की परिस्थितियों ने यात्रा और खोजों को बढ़ावा दिया। उत्तरी अफ़्रीका के साथ व्यापार करने वाले स्पेनवासी और पुर्तगाली, पश्चिमी अफ़्रीका के तट पर और दक्षिण में जाने लगे।

  • इस तरह उत्तमाशा-अंतरीप होते हुए भारत पहुँचे जो यूरोप में मसालों का महत्वपूर्ण स्रोत था।
  • कोलंबस 1492 ई. में भारत का पश्चिमी मार्ग खोजने के प्रयास में वेस्टइंडीज़ जा पहुँचा। दूसरे खोजकर्ताओं ने आर्कटिक की ओर से भारत और चीन के लिए उत्तरी मार्ग खोजने का प्रयास किया।

16वीं सदी के पूर्वार्ध में हसन-अल-वज़ान ने पोप लियो दशम के लिए अफ़्रीका का भूगोल पहली बार लिखा। जेसुइट चर्च के सदस्यों ने 16वीं सदी में जापान के बारे में लिखा।

  • 17वीं सदी में अंग्रेज़ विल एडम्स, जापानी शोगुन, तोकोगावा ईयास का मित्र एवं सलाहकार बन गया।
  • एज़टेक की डोना मेरिना ने मेक्सिको के स्पेनी विजेता कोरटेस से दोस्ती की, उसके लिए दुभाषिये का काम किया और कई तरह के प्रबंध करवाए।

➡ यूरोपवासी नए लोगों के साथ सामना होने पर सचेत, और चौकन्ने होने के साथ वे व्यापारिक एकाधिकार स्थापित करने और हथियारों के बल पर अपनी सत्ता थोपने का प्रयास करते रहे।

  • वे दबंग, आक्रामक एवं क्रूर थे जिनसे मिले उन्हें अज्ञानी मान कर अपने आप को श्रेष्ठ होने का भाव प्रदर्शित किया।
  • कैथलिक चर्च ने दोनों रवैयों को प्रोत्साहन दिया। चर्च, दूसरी सभ्यताओं और भाषाओं के अध्ययन का केंद्र था, लेकिन उसने गैर-ईसाई लोगों पर होने वाले हमलों को बढ़ावा दिया।
  • 17वीं सदी के अंत तक अधिकांश इस्लामी क्षेत्रों और भारत तथा चीन के लिए यूरोपवासी एक कौतूहल का विषय थे।
  • 16वीं सदी के उत्तरार्ध तक जापानियों ने उनकी प्रौद्योगिकी के कुछ लाभ सीख कर बड़े पैमाने पर बंदूकों का उत्पादन शुरू कर दिया।

तीन वर्ग

रोमन साम्राज्य के पतन के बाद पूर्वी एवं मध्य यूरोप के अनेक जर्मन मूल के समूहों ने इटली, स्पेन और फ्रांस के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था।

  • परंतु संगठित राजनीतिक बल के अभाव में हमेशा युद्ध होते थे। इसलिए अपनी भूमि की रक्षा के लिए संसाधन जुटाना ज़रूरी था।
  • ईसाई धर्म, रोम के पतन के बाद भी बचा रहा और धीरे-धीरे मध्य और उत्तरी यूरोप में फैल गया। चर्च भी यूरोप में एक मुख्य भूमिधारक तथा राजनीतिक शक्ति बन गया था।
  • तीन वर्ग (सामाजिक श्रेणियाँ) थे : ईसाई पादरी, भूमिधारक अभिजात वर्ग और कृषक। इनके बीच बदलते संबंध ने कई सदियों तक यूरोप के इतिहास को प्रभावित किया।

➡ यूरोपीय इतिहासकारों ने भू-स्वामित्व के विवरणों, मूल्यों और कानूनी मुकद्दमों जैसे दस्तावेज़ों की मदद से विविध क्षेत्रों के इतिहासों का अध्ययन किया।

  • चर्चों से मिले जन्म, मृत्यु तथा विवाह के अभिलेखों से परिवारों तथा जनसंख्या, दूसरे अभिलेखों से व्यापारिक संस्थाओं और गीत व कहानियों द्वारा हमें त्योहारों तथा सामुदायिक गतिविधियों के बारे में पता चला।
  • इनका प्रयोग इतिहासकार आर्थिक एवं सामाजिक जीवन, जनसंख्या में वृद्धि, कृषक विद्रोहों आदि को समझने के लिए करते हैं।

➡ सामंतवाद पर सबसे पहले फ्रांस के मार्क ब्लॉक ने काम किया। जिनका तर्क था कि इतिहास की विषयवस्तु राजनीतिक इतिहास, अंतर्राष्ट्रीय संबंध और महान व्यक्तियों की जीवनियों से कुछ अधिक है और भूगोल के महत्व द्वारा मानव इतिहास को गढ़ा जाए।

  • ब्लॉक का सामंती समाज यूरोपीयों, 900 से 1300 के मध्य, फ्रांसीसी समाज के सामाजिक संबंधों और श्रेणियों, भूमि प्रबंधन और उस काल की जन संस्कृति का असाधारण विवरण देता है।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध में नाज़ियों द्वारा गोली मारकर हत्या करने के कारण उनके शोध व अध्यापन पर अचानक विराम लग गया।

सामंतवाद का परिचय

इतिहासकारों द्वारा “सामंतवाद” शब्द का प्रयोग मध्यकालीन यूरोप की आर्थिक, विधिक, राजनीतिक और सामाजिक संबंधों का वर्णन करने के लिए किया जाता है।

  • यह जर्मन शब्द “फ्यूड” से बना है जिसका अर्थ “एक भूमि का टुकड़ा है” यह ऐसे समाज को इंगित करता है जो मध्य फ्रांस और बाद में इंग्लैंड और दक्षिणी इटली में भी विकसित हुआ।
  • आर्थिक संदर्भ में, सामंत और कृषकों के संबंधों पर आधारित कृषि उत्पादन को इंगित करता है। कृषक अपने खेतों के साथ-साथ लॉर्ड के खेतों पर भी कार्य करते थे। श्रम सेवा के बदले में उन्हें सैनिक सुरक्षा मिलती थी।
  • इसकी जड़े रोमन साम्राज्य में विद्वान प्रथाओं और फ्रांस के राजा शॉर्लमेन (742-814) के काल में पाई जाने से कहा जाता है कि इसकी उत्पत्ति यूरोप के अनेक भागों में 11वीं सदी के उत्तरार्ध में हुई।

फ़्रांस और इंग्लैंड

गॉल रोमन साम्राज्य का एक प्रांत था। जिसमें दो विस्तृत तट-रेखाएँ, पर्वत-श्रेणियाँ, लंबी नदियाँ, वन और कृषि करने के लिए उपयुक्त मैदान थे।

  • जर्मनी की एक जनजाति, फ्रैंक ने गॉल को अपना नाम देकर उसे फ्रांस बना दिया।
  • छठी सदी से यह प्रदेश फ्रैंकिश (फ्रांस के ईसाई राजाओं) द्वारा शासित राज्य था।
  • फ्रांसीसियों के चर्च के साथ प्रगाढ़ संबंध थे। पोप ने राजा शॉर्लमेन से समर्थन पाने के लिए उसे पवित्र रोमन सम्राट की उपाधि दी।
  • 11वीं सदी में इंग्लैंड-स्काटलैंड द्वीपों को नारमंडी (फ्रांस का प्रांत) के राजकुमार ने जीत लिया था।

फ्रांस का प्रारंभिक इतिहास

  • 481  —  क्लोविस फ्रैंक लोगों का राजा बना
  • 486  —  क्लोविस और फ्रैंक ने उत्तरी गॉल का विजय अभियान प्रारंभ किया
  • 496  —  क्लोविस और फ्रैंक लोग धर्म परिवर्तन करके ईसाई बने
  • 714  —  चॉर्ल्स मारटल राजमहल का मेयर बना
  • 751  —  मारटल का पुत्र पेपिन फ्रैंक लोगों के शासक को अपदस्थ करके शासक बना और उसने एक अलग वंश की स्थापना की। विजय अभियानों ने राज्य का आकार दुगुना कर दिया
  • 768  —  पेपिन का स्थान उसके पुत्र शॉर्लमेन/चार्ल्स महान द्वारा लिया गया
  • 800  —  पोप लियो Ⅲ ने शॉर्लमेन को पवित्र रोमन सम्राट का ताज पहनाया
  • 840 से  —  नार्वे से वाइकिंग लोगों के हमले

तीन वर्ग

फ्रांसीसी पादरी इस अवधारणा में विश्वास रखते थे कि प्रत्येक व्यक्ति कार्य के आधार पर तीन वर्गों में से किसी एक का सदस्य होता है। इस तरह समाज मुख्य रूप से तीन वर्ग पादरी, अभिजात और कृषक वर्ग से बना था।

दूसरा वर्ग  —  अभिजात वर्ग

पादरियों ने स्वयं को प्रथम वर्ग में तथा अभिजात वर्ग को दूसरे वर्ग में रखा था। परंतु भूमि पर नियंत्रण के कारण सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

  • फ्रांस के शासकों का लोगों से जुड़ाव वैसलेज नामक प्रथा के कारण था।
  • यह प्रथा जर्मन मूल के लोगों (फ्रैंक लोग भी) में समान रूप से विद्यमान थी।
  • बड़े भूस्वामी और अभिजात वर्ग राजा के अधीन होते थे जबकि कृषक भूस्वामियों के अधीन होते थे।
  • अभिजात वर्ग राजा को अपना स्वामी मानकर, वे आपस में वचनबद्ध होते थे।
  • सेन्योर/लॉर्ड दास की रक्षा करता जो बदले में उसके प्रति निष्ठावान रहता था।
  • इन संबंधों के रीति-रिवाज और शपथों को चर्च में बाईबल की शपथ लेकर की जाती थी।
  • समारोह में मालिक दास को भूमि के प्रतीक के रूप में एक लिखित अधिकार पत्र या एक छड़ी या एक मिट्टी का डला देता था।

➡ अभिजात वर्ग की एक विशेष हैसियत थी। उनका अपनी संपदा पर स्थायी तौर पर पूर्ण नियंत्रण था। उन्हें अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने, स्वयं का न्यायालय लगाने और अपनी मुद्रा चलाने का अधिकार था।

  • वे विस्तृत क्षेत्रों के स्वामी थे जिसमें उनके घर (मेनर), उनके निजी खेत, जोत व चरागाह और उनके असामी कृषकों के घर और खेत होते थे।
  • उनकी व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी जो आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय पैदल सैनिकों के रूप में कार्य करते थे और अपने खेतों पर भी काम करते थे।

मेनर की जागीर

लॉर्ड का अपना मेनर भवन होता था। वह गाँवों पर नियंत्रण रखता था। कुछ लॉर्ड, अनेक गाँवों के मालिक थे। किसी छोटे मेनर की जागीर में दर्जन भर और बड़ी जागीर में 50 या 60 परिवार हो सकते थे।

  • अनाज खेतों में उगाए जाते, लोहार तथा बढ़ई लॉर्ड के औज़ारों की देखभाल तथा हथियारों की मरम्मत करते, राजमिस्त्री इमारतों की देखभाल करते, औरतें वस्त्र कातती एवं बुनती और बच्चे लॉर्ड की मदिरा सम्पीडक में कार्य करते थे।
  • जागीरों के विस्तृत अरण्यभूमि और वन में लॉर्ड शिकार करते थे।
  • उनके पशु और घोड़े वहाँ के चरागाह में चरते थे। वहाँ पर एक चर्च और सुरक्षा के लिए एक दुर्ग होता था।
  • 13वीं सदी से कुछ दुर्गों को बड़ा बनाए जाने से वह नाइट के परिवार का निवास स्थान बन गया।
  • इंग्लैंड में नॉरमन विजय से पहले दुर्गों की जानकारी नहीं थी और इनका विकास सामंत प्रथा के तहत राजनीतिक प्रशासन तथा सैनिक शक्ति के केंद्रों के रूप में हुआ था।
  • नमक, चक्की का पाट और धातु के बर्तन बाहर के स्रोतों से प्राप्त करने के कारण मेनर कभी भी आत्मनिर्भर नहीं हो सकते थे।
  • महँगे साजो समान, वाद्य यंत्र और आभूषण लोगों को दूसरे स्थान से खरीदना पड़ता था।

नाइट

9वीं सदी से यूरोप में स्थानीय युद्ध प्राय: होते रहते थे। कृषक सैनिक पर्याप्त नहीं थे और कुशल अश्वसेना की आवश्यकता थी।  इसने एक नए वर्ग नाइट्स को बढ़ावा दिया। वे लॉर्ड से उसी प्रकार संबद्ध थे जिस प्रकार लॉर्ड राजा से संबद्ध था।

  • लॉर्ड ने नाइट को भूमि का एक भाग (फ़ीफ़) देकर उसकी रक्षा करने का वचन दिया। फ़ीफ़ को उत्तराधिकार में पाया जा सकता था।
  • यह 1000-2000 एकड़ या उससे अधिक हो सकती थी जिसमें नाइट और उसके परिवार के लिए एक पनचक्की तथा मदिरा संपीडक के अतिरिक्त, घर चर्च और उस पर निर्भर व्यक्तियों के रहने की व्यवस्था शामिल थी।
  • फ़ीफ़ को कृषक जोतते थे। बदले में, नाइट अपने लॉर्ड को एक निश्चित रकम और युद्ध में उसकी तरफ से लड़ने का वचन देता था।
  • अपनी सैन्य योग्यताओं को बनाए रखने के लिए नाइट प्रतिदिन बाढ़ बनाने/घेराबंदी करने और पुतलों से रणकौशल एवं अपने बचाव का अभ्यास करते थे।
  • नाइट अपनी सेवाएँ अन्य लॉर्डों को भी दे सकता था पर उसकी सर्वप्रथम निष्ठा अपने लॉर्ड के लिए ही होती थी।

➡ 12वीं सदी से गायक फ्रांस के मेनरों में वीर राजाओं और नाइट्स की वीरता की कहानियाँ, गीतों के रूप में सुनाते हुए घूमते रहते थे जो ऐतिहासिक और काल्पनिक होती थीं। उस काल में अधिक पढ़े-लिखे लोग और पांडुलिपियाँ न होने के कारण ये घुमक्कड़ चारण बहुत प्रसिद्ध थे।

प्रथम वर्ग  —  पादरी वर्ग

कैथोलिक चर्च के अपने नियम थे। राजा द्वारा दी गई भूमियों से कर उगाहने के कारण ये शक्तिशाली संस्था राजा पर निर्भर नहीं थी।

  • पश्चिमी चर्च के अध्यक्ष पोप रोम में रहते थे। यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशपों तथा पादरियों द्वारा किया जाता था जो प्रथम वर्ग के अंग थे।
  • अधिकतर गाँवों में अपने चर्च हुआ करते थे जहाँ पर प्रत्येक रविवार को लोग पादरी के धर्मोपदेश सुनने तथा सामूहिक प्रार्थना करने के लिए इकट्ठा होते थे।
  • कृषि-दास, शारीरिक रूप से बाधित और स्त्रियाँ पादरी नहीं हो सकते थे और पुरुष पादरी शादी नहीं कर सकते थे।
  • धर्म के क्षेत्र में बिशप अभिजात माने जाते थे। जिनके पास लॉर्ड की तरह विस्तृत जागीरें और शानदार महल थे।

➡ चर्च को एक वर्ष के अंतराल के कृषक से उसकी उपज का दसवाँ भाग (टीथ) लेने का अधिकार था। अमीरों द्वारा अपने कल्याण और मरणोपरांत अपने रिश्तेदारों के कल्याण हेतु दिया जाने वाला दान भी आय का एक स्रोत था।

  • प्रार्थना करते वक्त, हाथ जोड़कर तथा सर झुकाकर घुटनों के बल झुकना, नाइट द्वारा अपने वरिष्ठ लॉर्ड के प्रति वफ़ादारी की शपथ लेना और ईश्वर के लिए लॉर्ड शब्द का प्रचलन आदि सामंती कुलीनों की नकल थीं।

भिक्षु

श्रद्धालु अत्यधिक धार्मिक व्यक्ति एकांत ज़िंदगी जीना पसंद करते थे। मनुष्य की आम आबादी से बहुत दूर वे धार्मिक समुदायों (ऐबी या मोनैस्ट्री मठ) में रहते थे।

  • दो सबसे प्रसिद्ध मठ, सेंट बेनेडिक्ट (529 ई. इटली में) और क्लूनी (910 ई. बरगंडी में) था।
  • भिक्षु अपना सारा जीवन ऑबे में रहने, प्रार्थना करने, अध्ययन और कृषि जैसे शारीरिक श्रम में लगाने का व्रत लेता था।
  • भिक्षु की ज़िंदगी पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही अपना सकते थे। ऐसे पुरुषों को मोंक और स्त्रियों को नन कहते थे।
  • पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग ऑबे थे। पर कुछ को छोड़कर ज़्यादातर में एक ही लिंग के व्यक्ति रह सकते थे। भिक्षु और भिक्षुणियाँ भी विवाह नहीं कर सकते थे।

➡ 10 या 20 पुरुष/स्त्रियों के छोटे समुदाय से बढ़कर मठ अब सैकड़ो की संख्या में समुदाय बन गए जिसमें बड़ी इमारतें और भू-जगीरों के साथ स्कूल या कॉलेज और अस्पताल संबद्ध थे। इन समुदायों ने कला के विकास में योगदान दिया।

  • आबेस हिल्डेगार्ड एक प्रतिभाशाली संगीतज्ञ, जिसने चर्च की प्रार्थनाओं में सामुदायिक गायन की प्रथा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

➡ 13वीं सदी से भिक्षुओं के कुछ समूह (फ़्रायर) ने मठों में न रह कर एक स्थान से दूसरे स्थान घूम-घूम कर लोगों को उपदेश देने और दान से अपनी जीविका चलाने का निर्णय लिया।

➡ 14वीं सदी तक, मठवाद के महत्व और उद्देश्य के बारे में कुछ शंकाएँ व्याप्त होने लगीं।

  • इंग्लैंड में, लैंग्लैंड की कविता पियर्स प्लाउमैन (1360-70 ई.) में कुछ भिक्षुओं के आरामदायक एवं विलासितापूर्ण जीवन की साधारण कृषकों, गड़रियों और गरीब मजदूरों के विशुद्ध विश्वास से तुलना की गई है।
  • इंग्लैंड में चॉसर ने कैंटरबरी टेल्स में भिक्षु, भिक्षुणी और फ़्रायर का हास्यास्पद चित्रण किया है।

चर्च और समाज

यूरोपवासियों ने ईसाई बनने के बाद भी कुछ हद तक चमत्कार और रीति रिवाजों से जुड़े अपने पुराने विश्वासों को नहीं छोड़ा था।

  • चौथी सदी से ही क्रिसमस और ईस्टर कैलेंडर की महत्वपूर्ण तिथियाँ बन गए थे।
  • ईसा मसीह के जन्मदिन (25 दिसंबर) ने एक पुराने पूर्व-रोमन त्योहार का स्थान ले लिया। इस तिथि की गणना सौर-पंचांग के आधार पर की गई थी।

➡ ईस्टर ईसा के शूलारोपण और उनके पुनर्जीवित होने का प्रतीक था परंतु उसकी तिथि निश्चित नहीं थी क्योंकि उसने चंद्र-पंचांग पर आधारित एक प्राचीन त्यौहार का स्थान लिया था जो लंबी सर्दी के पश्चात बसंत के आगमन का स्वागत करने के लिए मनाया जाता था।

  • उस दिन प्रत्येक गाँव के व्यक्ति अपने गाँव की भूमि का दौरा करते थे।
  • ईसाई धर्म के आने पर भी इसे जारी रखा पर अब उसे ग्राम के स्थान पर पैरिश (एक पादरी की देखरेख में आने वाला क्षेत्र) कहने लगे।
  • काम से दबे कृषक इन पवित्र दिनों/छुट्टियों का स्वागत करते थे क्योंकि इन दिनों उन्हें कोई काम नहीं करना पड़ता था।
  • यह दिन प्रार्थना करने के लिए था परंतु लोग सामान्यत: अधिकतर समय मौज-मस्ती करने और दावतों में बिताते थे।

तीर्थयात्रा, ईसाइयों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी और बहुत से लोग शहीदों की समाधियों या बड़े गिरजाघरों की लंबी यात्राओं पर जाते थे।

तीसरा वर्ग  —  किसान, स्वतंत्र और बंधक

काश्तकार दो तरह के थे स्वतंत्र किसान और कृषि-दास। जिनका काम पहले दो वर्गों का भरण-पोषण करना था।

➡ स्वतंत्र कृषक अपनी भूमि को लॉर्ड के काश्तकार के रूप में देखते थे। पुरुषों को वर्ष में कम से कम 40 दिन सैनिक सेवा देना होता था।

  • कृषकों के परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर सप्ताह के तीन या उससे अधिक दिन काम करना पड़ता था। इससे होने वाला उत्पादन (श्रम-अधिशेष) सीधे लॉर्ड के पास जाता था।
  • उन्हें अन्य श्रम जैसे गड्ढे खोदना, जलाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करना, बाड़ बनाना और सड़कें व इमारतों की मरम्मत करना पड़ता था इसके लिए उन्हें कोई मज़दूरी नहीं मिलती थी।
  • खेतों में मदद करने के अलावा, स्त्रियों व बच्चों को सूत कातना, कपड़ा बुनना, मोमबत्ती बनाना और लॉर्ड के लिए अंगूरों से रस निकाल कर मदिरा तैयार करना होता था।
  • एक प्रत्यक्ष कर “टैली” राजा को देना होता था। (पादरी और अभिजात वर्ग इस कर से मुक्त थे)।

➡ कृषिदास लॉर्ड के स्वामित्व वाले भूखंडों पर कृषि करते थे। इसके लिए उन्हें कोई मज़दूरी नहीं मिलती थी और वे लॉर्ड की आज्ञा के बिना जागीर नहीं छोड़ सकते थे।

  • वे केवल अपने लॉर्ड की चक्की में ही आटा पीस सकते, उनके तंदूर में ही रोटी सेंक सकते और उनकी मदिरा संपीडक में ही आसवन मदिरा और बीयर तैयार कर सकते थे।
  • लॉर्ड तय करता था कि कृषिदास का विवाह किसके साथ करना था या फिर कृषिदास की पसंद को अपना आशीर्वाद दे सकता था परंतु इसके लिए वह शुल्क लेता था।

इंग्लैंड

सामंतवाद का विकास इंग्लैंड में 11वीं सदी से हुआ।
  • छठी सदी में मध्य यूरोप से एंजिल और सैक्सन इंग्लैंड (देश का नाम “एंजिल लैंड” का रूपांतरण) में आकर बस गए।
  • 11वीं सदी में नारमैंडी के ड्यूक, विलियम ने एक सेना के साथ इंग्लिश चैनल पार करके इंग्लैंड के सैक्सन राजा को हरा दिया।
  • विलियम प्रथम ने भूमि नपवाई, नक्शे बनवाए और उसे अपने साथ आए 180 नॉरमन अभिजातों में बाँट दिए।
  • ये लॉर्ड राजा के प्रमुख काश्तकार बन गए जिनसे वह सैन्य सहायता की उम्मीद करता था।
  • वे राजा को कुछ नाइट देने के लिए बाध्य थे। सेवा की आशा में वे नाइटों को कुछ भूमि उपहार में देने लगे।
  • किंतु वे नाइटों को अपने निजी युद्ध के लिए उपयोग नहीं करते थे क्योंकि इस पर इंग्लैंड में प्रतिबंध था। 
  • एंग्लो-सैक्सन कृषक विभिन्न स्तरों के भू-स्वामियों के काश्तकार बन गए।

सामाजिक और आर्थिक संबंधों को प्रभावित करने वाले कारक

प्रथम दोनों वर्गों के सदस्यों ने सामाजिक व्यवस्था को स्थिर और अपरिवर्तनीय पाया परंतु पर्यावरण में परिवर्तन, धीरे-धीरे और लगभग अदृश्य थे। कृषि प्रौद्योगिकी में बदलाव और भूमि का उपयोग अधिक स्पष्ट था। लॉर्ड और सामंत के सामाजिक और आर्थिक संबंध इन परिवर्तनों से बने और इन्हें प्रभावित कर रहे थे।

पर्यावरण

  • 5वीं से 10वीं सदी तक यूरोप का अधिकांश भाग वनों से घिरा हुआ था और कृषि के लिए उपलब्ध भूमि सीमित थी।
  • साथ ही, अपनी परिस्थितियों से असंतुष्ट कृषक अत्याचार से बचने के लिए भाग कर वनों में चले जाते थे।
  • इस समय यूरोप में सर्दियाँ प्रचंड तथा लंबी अवधि की और फसलों का उपज काल छोटा हो गया। जिस कारण कृषि की पैदावार कम हो गई।
  • 11वीं सदी से यूरोप में औसत तापमान बढ़ने से कृषि के लिए लंबी अवधि मिलने लगी।

पर्यावरण इतिहासकारों का कहना है कि इससे यूरोप के अनेक भागों के वन क्षेत्रों में उल्लेखनीय कमी हुई और फलस्वरूप कृषि भूमि का विस्तार हुआ।

भूमि का उपयोग

प्रारंभ में, कृषि प्रौद्योगिकी बहुत आदिम किस्म की थी। कृषक को केवल बैलों की जोड़ी से चलने वाला लकड़ी का हल मिलता था जो केवल पृथ्वी की सतह को खुरच पाता था।

  • भूमि को प्राय: 4 वर्ष में एक बार हाथ से खोदा जाता था जिसमें अत्यधिक मानव श्रम की आवश्यकता होती थी।
  • साथ ही भूमि को दो भागों में बाँटकर, एक भाग में शरद ऋतु में गेहूँ और दूसरे भाग को परती या खाली रखा जाता था।
  • अगले वर्ष परती भूमि पर राई बोई जाती थी जबकि दूसरा आधा भाग खाली रखा जाता था।
  • इस व्यवस्था के कारण, मिट्टी की उर्वरता धीरे-धीरे ह्यस होने लगा और अकाल पड़ने लगे।
  • दीर्घकालिक कुपोषण और विनाशकारी अकाल बारी-बारी पड़ने से गरीबों के लिए जीवन अत्यंत दुष्कर हो गया।

➡ इन कठिनाइयों के बावजूद, लॉर्ड अपनी आय को अधिकतम करने के लिए उत्सुक रहते थे।

  • उत्पादन बढ़ना संभव न होने के कारण कृषकों को मेनरों की जागीर की समस्त भूमि को कृषिगत बनाने के लिए बाध्य किया गया और इसके लिए उन्हें निर्धारित समय से अधिक समय मिलता था।
  • कृषक अत्याचार का खुलकर विरोध नहीं कर सकते थे इसलिए वे अपने खेतों पर कृषि करने में अधिक समय लगाने लगे, अधिकतर उत्पाद अपने लिए रखने लगे और बेगार करने से बचने लगे।
  • उनका उन लॉर्डों के साथ विवाद होने लगा। क्योंकि लॉर्ड इस भूमि को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति समझते थे जबकि कृषक इसको संपूर्ण समुदाय द्वारा उपयोग की जाने वाली संपदा मानते थे।

नयी कृषि प्रौद्योगिकी

11वीं सदी तक विभिन्न प्रौद्योगिकियों में बदलाव के प्रमाण मिलते हैं। लकड़ी के बने हल की जगह लोहे की भारी नोक वाले हल और साँचेदार पटरे का उपयोग होने लगा।

  • ऐसे हल अधिक गहरा खोद सकते थे और साँचेदार पटरे सही ढंग से उपरि मृदा को पलट सकते थे। फलस्वरुप भूमि में व्याप्त पौष्टिक तत्वों का बेहतर उपयोग होने लगा।
  • अब जुआ पशुओं के गले के स्थान पर कंधे पर बाँधने से पशुओं को अधिक शक्ति मिलने लगी।
  • घोड़े के खुरों पर लोहे की नाल लगाने से उनके खुर सुरक्षित हो गए।
  • यूरोप में अन्न को पीसने और अंगूरों को निचोड़ने के लिए अधिक जल और वायु शक्ति से चलने वाले कारखाने स्थापित हो रहे थे।

➡ अब दो खेतों वाली व्यवस्था से तीन खेतों वाली व्यवस्था अपनाई जाने लगी इसमें कृषक 3 वर्षों में से 2 वर्ष अपने खेत का उपयोग कर सकता था। कृषक अपनी जोतों को तीन खेतों में बाँट देते थे।

  • एक खेत में मानव उपभोग के लिए शरद ऋतु में गेहूँ या राई बोते थे।
  • दूसरे में, बसंत ऋतु में मटर, सेम तथा मसूर और घोड़ों के लिए जौ तथा बाजरा बोते थे।
  • तीसरा खेत परती (खाली) रखा जाता था। प्रत्येक वर्ष वे तीनों खेतों का प्रयोग बदल-बदल कर करते थे।

➡ इन सुधारों के कारण, भूमि की प्रत्येक इकाई में होने वाले उत्पादन में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई।

  • मटर और सेम जैसे पौधों का अधिक उपयोग एक औसत यूरोपीय के आहार में अधिक प्रोटीन का तथा उनके पशुओं के लिए अच्छे चारे का स्रोत बन गया।
  • फलस्वरूप कृषक अब कम भूमि पर अधिक भोजन का उत्पादन कर सकते थे।
  • 13वीं सदी तक एक कृषक के खेत का औसत आकार 100 एकड़ से घटकर 20 से 30 एकड़ तक रह गया।

➡ इससे कृषकों को अन्य गतिविधियों के लिए समय मिला। कृषकों के पास पनचक्की और पवनचक्की स्थापित करने के लिए पर्याप्त धन नहीं था इसलिए इसमें लॉर्डों ने पहल की।

➡ कृषकों ने भी कई अन्य क्षेत्रों में पहल की जैसे खेती योग्य भूमि का विस्तार, फ़सलों की तीन चक्रीय व्यवस्था को अपनाया और गाँव में लोहार की दुकानें और भट्ठियाँ स्थापित कीं, जहाँ लोहे की नोक वाले हल और घोड़े की नाल बनाने और मरम्मत करने के काम को सस्ती दरों पर किया जाने लगा।

➡ 11वीं सदी से आर्थिक लेन देन अधिक से अधिक मुद्रा पर आधारित होने लगा। लॉर्ड, कृषकों से लगान उनकी सेवाओं के बजाए नकदी में लेने लगे।

  • कृषकों ने अपनी फ़सल व्यापारियों को मुद्रा में बेचना शुरू कर दिया जो उन वस्तुओं को शहर में बेच देते थे।
  • धन का बढ़ता उपयोग कीमतों को प्रभावित करने लगा जो खराब फ़सल के समय बहुत अधिक हो जाती थीं।
  • उदाहरण इंग्लैंड में 1270 और 1320 के बीच कृषि मूल्य दुगुने हो गए थे।

चौथा वर्ग? नए नगर और नगरवासी

कृषि में विस्तार के साथ जनसंख्या, व्यापार और नगरों का भी विस्तार हुआ। यूरोप की जनसंख्या 1000 में लगभग 420 लाख थी जो बढ़कर 1200 में लगभग 620 लाख और 1300 में 730 लाख हो गई।

  • पुरुषों की तुलना में स्त्रियों और बालिकाओं की जीवन अवधि छोटी थी क्योंकि पुरुष बेहतर भोजन करते थे।
  • रोमन साम्राज्य के पतन के बाद उसके नगर उजाड़ और तबाह हो गए थे। परंतु 11वीं सदी से कृषि के विस्तार से नगर फिर से बढ़ने लगे।
  • कृषि-अधिशेष बेचने, उपकरण और कपड़े आदि खरीदने के स्थान की ज़रूरत ने मियादी हाट-मेलों को बढ़ावा दिया और छोटे विपणन केन्द्रों का विकास किया।
  • एक नगर चौक, चर्च, सड़कें (यहाँ पर व्यापारियों ने घर व दुकानों का निर्माण किया) और कार्यालय (जहाँ नगर पर शासन करने वाले व्यक्ति मिलें) उभरे।
  • दूसरे स्थानों पर नगरों का विकास, बड़े दुर्गों, बिशपों की जागीरों और बड़े चर्चों के चारों तरफ होने लगा।

➡ नगरों में लोग, जिनकी भूमि पर नगर बसे थे उन लॉर्डों को कर देने लगे।स्वतंत्र होने की इच्छा रखने वाले अनेक कृषिदास भाग कर नगरों में छिप जाते थे। अपने लॉर्ड की नज़रों से एक वर्ष व एक दिन तक छिपने में सफल होने वाला कृषिदास स्वतंत्र नागरिक बन जाता था।

  • नगरों में रहने वाले अधिकतर या तो स्वतंत्र कृषक या भगोड़े कृषिदास थे।
  • दुकानदार और व्यापारी बहुतायत में थे। बाद में विशिष्ट कौशल वाले व्यक्तियों जैसे साहूकार और वकीलों की आवश्यकता ने उन्हें समाज में एक चौथा वर्ग बना दिया।

➡ आर्थिक संस्था का आधार श्रेणी था। प्रत्येक शिल्प या उद्योग एक श्रेणी के रूप में संगठित था जो उत्पादन की गुणवत्ता, उसके मूल्य और बिक्री पर नियंत्रण रखती थी।

  • श्रेणी सभागार प्रत्येक नगर का आवश्यक अंग था यहाँ अनुष्ठानिक समारोह में गिल्डों के प्रधान औपचारिक रूप से मिला करते थे।
  • पहरेदार नगर के चारों ओर गश्त लगाकर शांति स्थापित करते थे। 
  • संगीतकारों को प्रीतिभोजों और नागरिक जुलूसों में अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए बुलाया जाता था और सरायवाले यात्रियों की देखभाल करते थे।

11वीं सदी आते-आते, पश्चिम एशिया के साथ नवीन व्यापार मार्ग विकसित हो रहे थे। स्कैंडिनेविया के व्यापारी वस्त्र के बदले में फ़र तथा शिकारी बाज़ लेने के लिए उत्तरी सागर से दक्षिण की समुद्री यात्रा करते थे और अंग्रेज़ व्यापारी राँगा बेचने के लिए आते थे।

12वीं सदी तक फ्रांस में वाणिज्य और शिल्प विकसित होने लगा था। पहले, दस्तकारों को एक मेनर से दूसरे मेनर में जाना पड़ता था। पर अब वे एक स्थान पर बसकर वस्तुओं का उत्पादन और उनका व्यापार कर सकते थे। 

नगरों की संख्या बढ़ने से व्यापार का विस्तार होता गया। अब नगर के व्यापारी अधिक अमीर और शक्तिशाली होने लगे और अभिजात्यता के लिए प्रतिस्पर्धा करने लगे।

कथीड्रल नगर

चर्चों को दान देना अमीर व्यापारियों द्वारा अपने धन को खर्च करने का एक तरीका था। 12वीं सदी से फ्रांस में कथीड्रल चर्चों के निर्माण में लोगों के विभिन्न समूहों ने अपने श्रम, वस्तुओं और धन से सहयोग दिया।

  • पत्थर के बने कथीड्रल पूरा करने में अनेक वर्ष लगते थे। उन्हें बनाते समय उनके आसपास का क्षेत्र और अधिक बस गया और निर्माण पूरा होने पर वे स्थान तीर्थ-स्थल बन गए। इस प्रकार, उनके चारों तरफ छोटे नगर विकसित हुए।
  • कथीड्रल इस प्रकार बनाए गए थे कि पादरी की आवाज़ लोगों के जमा होने वाले सभागार में, भिक्षुओं का गायन और लोगों को प्रार्थना के लिए बुलाने वाली घंटियाँ दूर तक सुनाई पड़ सकें।
  • खिड़कियों के लिए प्रयोग अभिरंजित काँच दिन में सूरज की रोशनी अंदर के लोगों के लिए चमकदार बना देती थी और रात में मोमबत्तियों की रोशनी बाहर के व्यक्तियों के लिए दृश्यमान बनाती थी।
  • इन खिड़कियों पर बने चित्र बाईबल की कथाओं का वर्णन करते थे जिन्हें अनपढ़ व्यक्ति भी पढ़ सकते थे।

चौदहवीं सदी का संकट

14वीं सदी की शुरुआत तक, यूरोप का आर्थिक विस्तार तीन कारकों से धीमा पड़ गया।

  1. उत्तरी यूरोप में, 13वीं सदी के अंत तक तीव्र ठंडी ग्रीष्म ऋतु आ गई। पैदावार वाले मौसम छोटे हो गए और ऊँची भूमि पर फसल उगाना कठिन हो गया।
  2. तूफानों और सागरीय बाढ़ों के अनेक फार्म प्रतिष्ठानों के नष्ट होने के कारण सरकार को करों द्वारा कम आमदनी हुई।
  3. भूमि की गहन जुताई ने तीन क्षेत्रीय फसल चक्र के प्रचलन के बावजूद भूमि को कमज़ोर बना दिया।

➡ चरागाहों की कमी के कारण पशुओं की संख्या में कमी आई। जनसंख्या बढ़ने से संसाधन कम होने के कारण 1315 और 1317 के बीच यूरोप में भयंकर अकाल पड़े। उसके बाद 1320 के दशक में अनगिनत पशुओं की मौतें हुईं।

  • ऑस्ट्रिया और सर्बिया की चाँदी की खानों के उत्पादन में कमी के कारण धातु मुद्रा में भारी कमी आने से व्यापार प्रभावित हुआ।
  • इस कारण सरकार को मुद्रा में चाँदी की शुद्धता को घटाकर सस्ती धातुओं का मिश्रण करना पड़ा।
  • 12वीं व 13वीं सदी में वाणिज्य में विस्तार होने से दूर देशों से व्यापार करने वाले पोतों के साथ-साथ चूहे भी यूरोपीय तटों पर आने लगे।
  • जो अपने साथ ब्यूबोनिक प्लेग जैसी महामारी का संक्रमण लाए। पश्चिमी यूरोप, 1347 और 1350 के मध्य इस महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ।
  • इस कारण यूरोप की आबादी का लगभग 20% और कुछ स्थानों पर लगभग 40% भाग काल-कवलित हो गया।

➡ व्यापार केंद्र होने के कारण नगर सबसे अधिक प्रभावित हुए। मठों और आश्रमों में एक व्यक्ति के प्लेग की चपेट में आने पर लगभग कोई नहीं बचता था।

  • प्लेग, शिशुओं, युवाओं और बुर्ज़ुगों को सबसे अधिक प्रभावित करता था। यूरोप की जनसंख्या 1300 में 730 लाख से घटकर 1400 में 450 लाख हो गई।
  • इस विनाशलीला के साथ आर्थिक मंदी के जुड़ने से व्यापक सामाजिक विस्थापन हुआ।
  • जनसंख्या में ह्यस के कारण मज़दूरों की संख्या में कमी आने से कृषि और उत्पादन के बीच गंभीर असंतुलन उत्पन्न हो गया। खरीदारों की कमी के कारण कृषि उत्पादों की मूल्यों में कमी आई।
  • प्लेग के बाद इंग्लैंड में मज़दूरों (कृषि मज़दूरों) की भारी माँग के कारण मज़दूरी की दरों में 250% तक की वृद्धि हो गई।

सामाजिक असंतोष

मज़दूरी की दरें बढ़ने तथा कृषि संबंधी मूल्यों की गिरावट ने अभिजात वर्ग की आमदनी को घटा दिया।

उन्होंने हाल ही में अपनाई धन संबंधी अनुबंधों को तोड़कर पुरानी मज़दूरी सेवाओं को फिर से प्रचलित कर दिया। इसका पढ़े-लिखे और समृद्ध कृषकों द्वारा हिंसक विरोध किया गया।

  • 1323 में फ्लैंडर्स में
  • 1358 में फ्रांस में
  • 1381 में इंग्लैंड में

➡ इन विद्रोहों का क्रूरतापूर्वक दमन किया गया पर ये विद्रोह आर्थिक विस्तार के कारण समृद्ध हुए स्थान पर हुए थे। तीव्र दमन के बावज़ूद कृषक विद्रोहों की तीव्रता ने यह सुनिश्चित कर दिया कि पुराने सामंती रिश्तो को पुनः लादा नहीं जा सकता।

11वीं से 14वीं शताब्दियों में

  • 1066  —  नॉरमन लोगों की एंग्लो सैक्सनी लोगों को हराकर इंग्लैंड पर विजय
  • 1100 के पश्चात  —  फ्रांस में कथीड्रलों का निर्माण
  • 1315-17  —  यूरोप में महान अकाल
  • 1347-50  —  ब्यूबोनिक प्लेग
  • 1338-1461  —  इंग्लैंड और फ्रांस के मध्य “सौ वर्षीय युद्ध”
  • 1381  —  कृषकों के विद्रोह

राजनीतिक परिवर्तन

15वीं और 16वीं सदियों में यूरोपीय शासकों ने अपनी सैनिक एवं वित्तीय शक्ति को बढ़ाया जो उस समय होने वाले आर्थिक बदलावों के समान महत्वपूर्ण थे। इसी कारण इतिहासकार इन राजाओं को “नए शासक” कहने लगे।

  • फ्रांस में लुई ग्यारहवें, ऑस्ट्रिया में मैक्समिलन, इंग्लैंड में हेनरी सप्तम और स्पेन में ईसाबेला और फरडीनेंड, निरंकुश शासक थे।
  • जिन्होंने एक स्थायी नौकरशाही और राष्ट्रीय कर प्रणाली स्थापित करने की प्रक्रिया को शुरू किया।

➡ 12वीं और 13वीं सदी में होने वाला सामाजिक परिवर्तन इन राजतंत्रों की सफलता का महत्वपूर्ण कारण था।

  • जागीरदारी और सामंतशाही वाली सामंत प्रथा के विलयन और आर्थिक विकास की धीमी गति ने इन शासकों को प्रभावशाली और सामान्य जनों पर अपने नियंत्रण को बढ़ाने का मौका दिया।
  • शासकों ने सामंतो से अपनी सेना के लिए कर लेना बंद करके बंदूकों और बड़ी तोपों से सुसज्जित प्रशिक्षित सेना बनाई जो पूर्ण रूप से उनके अधीन थी।

नए शासक

  • 1461-1559 फ्रांस में नए शासक
  • 1474-1556 स्पेन में नए शासक
  • 1485-1547 इंग्लैंड में नए शासक

➡ करों को बढ़ाने से शासकों को पर्याप्त राजस्व प्राप्त हुआ। उन्होंने पहले से बड़ी सेना रखी और अपनी सीमाओं की रक्षा तथा विस्तार कर राजसत्ता के प्रति होने वाले आंतरिक प्रतिरोधों को दबाया।

  • कराधान के विरुद्ध इंग्लैंड में हुए विद्रोह को 1497, 1536, 1547, 1549 और 1553 में दमन किया गया।
  • फ्रांस में लुई ⅩⅠ (1461-83) को ड्यूक लोगों और राजकुमारों के विरुद्ध एक लंबा संघर्ष करना पड़ा।
  • अवर कोटि के अभिजातों और अधिकतर स्थानीय सभाओं के सदस्यों ने भी अपनी शक्ति हड़पे जाने का विरोध किया।
  • 16वीं सदी फ्रांस में हुआ “धर्म युद्ध” कुछ हद तक शाही सुविधाओं और क्षेत्रीय स्वतंत्रता के बीच संघर्ष था।

➡ अभिजात वर्ग ने अपने अस्तित्व को बचाने के लिए अपने को राजभक्तों में बदल लिया। लॉर्ड जैसे व्यक्ति को प्रशासनिक सेवाओं में स्थायी स्थान मिले। परंतु नई शासन व्यवस्था कई महत्वपूर्ण तरीकों में अलग थी।

  • अब शासक पिरामिड के शिखर पर नहीं व्यापक दरबारी समाज और आश्रयदाता अनुयायी तंत्र का केंद्र बिंदु था।
  • सहयोग के रूप में धन ग़ैर-अभिजात वर्गों जैसे व्यापारियों और साहूकारों के द्वारा देने पर दरबार में प्रवेश करने लगे।
  • वे राजाओं को धन उधार देते थे जो इसका उपयोग सैनिकों को वेतन देने के लिए करते थे। इस प्रकार राज्य व्यवस्था में ग़ैर-सामंती तत्व आ गए।

➡ 1614 में बालक शासक लुई ⅩⅠⅠⅠ के शासनकाल में फ्रांस की परामर्शदात्री सभा (जिसे एस्टेट्स जनरल कहते थे तीन सदन पादरी वर्ग, अभिजात वर्ग तथा अन्य प्रतिनिधित्व) का एक अधिवेशन हुआ। इसके बाद 1789 तक इसे नहीं बुलाया गया क्योंकि राजा तीन वर्गों के साथ अपनी शक्ति नहीं बाँटना चाहते थे।

➡ इंग्लैंड में नॉरमन विजय से पहले कोई भी कर लगाने से पहले राजा को एंग्लो सैक्सन लोगों की एक महान परिषद से सलाह लेनी पड़ती थी।

  • आगे चलकर यह पार्लियामेंट के रूप में विकसित हुई जिसमें हाउस आफ लॉर्ड्स (सदस्य लॉर्ड और पादरी) व हाउस ऑफ कामन्स (नगरों व ग्रामीण क्षेत्रों का) शामिल थे।
  • राजा चार्ल्स प्रथम (1629-40) ने पार्लियामेंट को बिना बुलाए 11 वर्षों तक शासन किया।
  • एक बार धन की आवश्यकता पड़ने पर उसे बुलाने को बाध्य हुआ तो पार्लियामेंट का एक भाग ने विरोध किया, बाद में उसे प्राणदंड देकर गणतंत्र की स्थापना की गई।
  • परंतु राजतंत्र की पुनः स्थापना इस शर्त पर हुई कि पार्लियामेंट नियमित रूप से बुलाई जाएगी।

वर्तमान में फ्रांस में गणतंत्रीय सरकार और इंग्लैंड में राजतंत्र है। इसका कारण 17वीं सदी के बाद दोनों राष्ट्रों के इतिहासों की अलग-अलग दिशाएँ है। 

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