BHIE 144 Book PDF In Hindi

Hello दोस्तों, आज हम आपके लिए IGNOU BHIE-144 भारत में इतिहास लेखन की परम्पराएँ Study Material Hindi में लेकर आए है। आप यहाँ से BHIE 144 Book PDF In Hindi की सभी इकाईयों को PDF के रूप में Download कर सकते है।

BHIE-144 भारत में इतिहास लेखन की परम्पराएँ पाठ्यक्रम परिचय

यह पाठ्यक्रम विशेष रूप से यूरोपीय केंद्रित अवधारणा कि “भारत में कभी कोई इतिहास नहीं था” पर पुनर्दृष्टि डालने का एक प्रयास है। इस पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य भारत में ऐतिहासिक लेखन में ऐतिहासिक चेतना की उपस्थिति का अवलोकन करना है। इतिहास लेखन के तीन आधारभूत घटक होते हैं: तथ्यों का संग्रह, उनका चयन और व्याख्या। यह पाठ्यक्रम विभिन्न शैलियों में, विभिन्न उपलब्ध ऐतिहासिक कृतियों पर दृष्टि डालने का प्रयास करेगा।

इसमें अतीत का अध्ययन करते हुए “यूरोपीय-केंद्रीय” इतिहास लेखन की विचारधारा से दूरी रखी गई है क्योंकि भारत में मौजूद रही इतिहास लेखन की श्रेणियाँ तथा परंपराएँ आवश्यक रूप से इन “वेबरवादी” तथा “मार्क्सवादी” विचारों से मेल नहीं खाती। यूरोपीय धारणाओं के अनुसार पौराणिक वंशावलियों, बौद्ध पालि संहिताओं और जैन पट्टावलियों में वर्णित आख्यान किंवदंतियों और मिथको से ज्यादा कुछ नहीं थे।

खंड Ⅰ प्रारंभिक भारतीय इतिहास के निर्माण के साथ शुरू होता है जिसमें चर्चा की गई है कि ऐतिहासिक परंपरा और इसके सामाजिक-आर्थिक तथा राजनीतिक संदर्भ से क्या समझते हैं? प्रारंभिक भारत में अतीत के ऐतिहासिक पठन तथा अभिलेखन की क्या अंतर्दृष्टि तथा प्रकृति रही थी? अतीत के अन्तर्बद्ध तथा मूर्त ऐतिहासिक स्वरूप की क्या विशेषताएँ थी?

खंड Ⅱ का इकाई 2 इतिहास पुराण परंपरा पर केंद्रित है, किस प्रकार दान-स्तुति, गाथा और आख्यान साहित्य तथा महाभारत और रामायण तथा बौद्ध और जैन ग्रंथ एक संभावित ऐतिहासिक स्रोत सामग्री के रूप में प्रयुक्त हो सकता था?

इकाई 3 अतीत की रचना में संघ की भूमिका पर नज़र डालती हैं।

इकाई 4 इतिहास को रचने के इन महत्वपूर्ण रूपों, कथाओं और चरितों, का विश्लेषण करने का प्रयास करती है।

इकाई 5 में अभिलेखों तथा प्रशस्तियों की ऐतिहासिक ज्ञान के प्रमुख स्रोतों के रूप में, और किस प्रकार ये अतीत के पुनर्निर्माण में सहायक होते है, की व्याख्या करता है।

इकाई 6 में राजतरंगिणी के ऐतिहासिक महत्व का आकलन किया गया है। यह इस अर्थ में अनूठी है कि यह इतिहास लेखन का एक काव्यात्मक प्रयास है।

खंड 3 का इकाई 7 प्रारंभिक दक्षिण भारतीय साहित्य परंपराओं में ग्रंथों और ऐतिहासिक पद्धतियों के बीच मध्य संबंधों पर दृष्टि डालता हैं। इस संदर्भ में संगम साहित्य, विशेष रूप से तोलकाप्पियम, पत्तुपट्टु, मदुरैकाँची और आमुक्तमाल्यद तथा रायवाचकमु को लिया गया है।

इकाई 8 में विजयनगर साम्राज्य के इतिहास की अवधारणा को एक विस्तृत पटल पर व्याख्यायित करने के लिए तेलुगु साहित्यिक ग्रंथों (आमुक्तमाल्यद तथा रायवाचकमु) पर दृष्टि डाली गई है।

खंड Ⅳ के इकाई 9 में भक्ति तथा सूफ़ियों से संबंधित प्रशंसापूर्ण संत जीवनचरित है। संतचरितो में “करिश्मों” और “चमत्कारों” के तत्व शामिल और कई बार इनमें “असंभव कालक्रमों” को दर्ज किया गया है। ये अक्सर अपने समकालीन विश्वासों और मनोवृत्तियों के संबंध में मूल्यवान जानकारी प्रदान करते हैं जो उस समय के ऐतिहासिक विकासक्रम को समझने के लिए आवश्यक है।

इकाई 10 में वंशावली संबंधी-दस्तावेज़ों की विभिन्न परंपराओं की व्याख्या की गई है। इस संदर्भ में चारण, भाट, वहीवांचा बारोत की चर्चा की गई है, इनमें विशेष रूप से महत्वपूर्ण है बंगाल के कुलग्रंथ और कुमाऊं के पुस्तनामा। इसके विपरीत पारिवारिक दस्तावेज़ है जो बहुत विस्तृत है तथा अपने समय की व्यावसायिक प्रवृत्तियों पर महत्वपूर्ण रोशनी डालते हैं। इस संदर्भ में बड़ौदा के हरि-भक्ति संग्रह के अध्ययन की विस्तार से चर्चा की गई है।

इकाई 11 में क्षेत्रीय साहित्य परंपराओं महाराष्ट्र के बखर तथा असम की बुरँजी पर प्रकाश डाला गया है।

खंड Ⅴ में मध्यकालीन भारत के तीन महान इतिहासकार इकाई 12 में ज़ियाउद्दीन बरनी, इकाई 13 में मुहम्मद क़ासिम फ़रिश्ता और इकाई 14 में अबुल फज़ल की ऐतिहासिक रचनाओं पर चर्चा की गई है।

खंड Ⅵ के इकाई 15 में यूनानी, चीनी, अरबी तथा फारसी विवरणों के जरिए मध्यकालीन भारतीय इतिहास को समझने की कोशिश की गई है।

इकाई 16 में यूरोपीय यात्रियों के अवलोकनों पर ध्यान केंद्रित किया गया है इसमें पीटर मुंडी, डोमिंगो पाएज़, नूनिज़, जेसुइट, पेल्सार्ट, थॉमस रो आदि के विवरणों में लगभग भारतीय जीवन के समस्त पहलुओं के विषय में लिखा गया है।

खंड Ⅶ के इकाई 17 में औपनिवेशिक विचारधारा से संबंध रखने वाले प्रमुख प्रतिपादकों जैसे जेम्स मिल, एलफिंस्टन, इलियट और डाउसन तथा विंसेंट स्मिथ के दृष्टिकोणों तथा विचारों, की विस्तार से चर्चा की गई है।

इकाई 18 में औपनिवेशिक इतिहास लेखन के प्रतिउत्तर में राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने इसका “प्रति-आख्यान” लिखने का प्रयास किया। 19वीं और 20वीं शताब्दियों के कुछ प्रमुख राष्ट्रवादी विचारकों आर. जी. भंडारकर, के. पी. जायसवाल, आर. के. मुखर्जी और आर. सी. मजूमदार की चर्चा की गई है।

खंड Ⅷ में स्वतंत्रता पश्चात भारत का ऐतिहासिक विकासक्रम है। इकाई 19 में मार्क्सवादी और सबाल्टर्न का अध्ययन किया गया है।

इकाई 20 भारतीय इतिहास लेखन की नई प्रवृत्तियों जैसे पर्यावरण इतिहास, लिंगबोध-संबंधी अध्ययन तथा श्रम के इतिहास की विस्तार से चर्चा करती है।

BHIE-144 भारत में इतिहास लेखन की परम्पराएँ in Hindi Study Material PDF Download

यह अध्ययन सामग्री IGNOU BAG के छात्रों और उन सभी छात्रों के लिए निःशुल्क है, जो UPSC और UGC NET (History) जैसी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे है। इन दोनों बड़ी परीक्षाओं में छात्रों को इतिहास जैसे विषय की अच्छी तैयारी के लिए IGNOU इतिहास की पुस्तकें बहुत मददगार होती है। इसमें भारत में इतिहास लेखन की परम्पराओं को बहुत सरल भाषा और विस्तार से समझाया गया है।

खंड I : अतीत तथा इतिहास 

खंड II : प्रारंभिक भारत में इतिहास लेखन 

खंड III : दक्षिण भारत में इतिहास लेखन

खंड IV : इतिहास लेखन की क्षेत्रीय परम्पराएँ

खंड V : इतिहास लेखन की हिंद-फ़ारसी परम्पराएँ

खंड VI : ‘दूसरों’ के नज़रिए से भारत

खंड VII : औपनिवेशिक भारत में इतिहास लेखन

खंड VIII : स्वतंत्रता-पश्चात् इतिहास लेखन

 

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