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BHIC-132 भारत का इतिहास : लगभग 300 सी. ई. से 1206 तक पाठ्यक्रम परिचय
यह पाठ्यक्रम प्रारंभिक ऐतिहासिक काल से भारतीय इतिहास के आरंभिक मध्यकाल तक (लगभग 300 सी. ई. से 1206 तक) के संक्रमण पर एक गहरी अंतर्दृष्टि डालता है।
इकाई 1 में गुप्त साम्राज्य के उदय, विस्तार और एकत्रीकरण की परिस्थितियों से संबंधित, गुप्तों के उत्तराधिकार के क्रम, उनके सैन्य कारनामों तथा उनके पतन के कारणों व प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया है।
इकाई 2 में गुप्तों के प्रशासनिक तंत्र; कृषि, शिल्प उत्पादन और व्यापार के संदर्भ में उनकी आर्थिक परिस्थितियों एवं संस्कृति और सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा है।
इकाई 3 लगभग पाँचवी-छठी शताब्दी सी.ई. में उत्तर भारत का राजनीतिक परिदृश्य बदलने, नए प्रकार के राजनीतिक केन्द्रों (जयस्कंधवाड़) के उदय, कन्नौज उत्तर भारत का राजनीतिक केंद्र क्यों बना, हर्ष की राजनीतिक गतिविधियों, उसके साम्राज्य का विस्तार और त्रिपक्षीय संघर्ष के प्रभाव के कारण कन्नौज का उदय होना आदि की चर्चा की गई है।
इकाई 4 दक्कन और दक्षिण भारत में उत्पन्न हुए राज्यों की पृष्ठभूमि प्रदान करती है। उनके उद्भव में भूगोल की भूमिका, उनके परस्पर संबंधों और उन राज्यों में लोग कैसे शासित हुए इस बात पर प्रकाश डालती हैं।
इकाई 5 पल्लवों, पांडयों व कलचुरियों के राजनीतिक इतिहास, उनके उत्थान और पतन, प्रशासन, शासन काल के दौरान सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक परिस्थितियों तथा साहित्य, कला और वास्तुकला के क्षेत्र में उनके सांस्कृतिक प्रयासों और कार्यों की चर्चा करती है।
इकाई 6 कदंबों, बादामी के चालुक्यों, चोलों तथा होयसाल शासकों की राजशाही राजनीति की प्रकृति को स्पष्ट करती है। उनके क्षेत्रीय विस्तार एवं उनकी प्रशासनिक और संस्थागत संरचनाओं पर भी ध्यान केंद्रित करती है।
इकाई 7 में गुप्तोत्तर समय में हुए आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों जैसे भूमि-अनुदानों की उत्पत्ति और आर्थिक प्रभाव, शहरों/शहरी बस्तियों के क्रमिक पतन और गांवों व ग्राम अर्थव्यवस्था की प्रक्रिया और परिणामों, कृषि संबंध, कृषि उत्पादन, वर्ण व्यवस्था और वर्ण-पदानुक्रम को संषोधित करने वाले विभिन्न कारकों, जिनके कारण नई जातियों का उदय हुआ, समाज में महिलाओं की स्थिति के संदर्भ में तथा इन सभी मापदंडों के माध्यम से समझाया गया है।
इकाई 8 उत्तर-गुप्तकाल में राजनीतिक, धर्म और संस्कृति पर प्रकाश डालती हैं। इस अवधि के राजनीतिक संगठन को कई इतिहासकारों द्वारा सामंती प्रकृति के रूप में वर्णन करना। उत्तर-कालीन ब्राह्मणवाद की मुख्य विशेषताओं, भक्ति पंथ तथा तंत्रवाद जैसे नए धार्मिक रूझानों, मंदिर वास्तुकला, साहित्य और इस अवधि के दौरान ज्ञान के नए क्षेत्रों के उदय की व्याख्या भी करती है।
इकाई 9 में प्रारंभिक मध्ययुगीन उत्तर भारत में राजपूतों के उद्भव, समकालीन स्रोतों से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर उनकी उत्पत्ति से संबंधित वाद-विवाद तथा उनके राजनीतिक व सैन्य चरित्र पर चर्चा है।
इकाई 10 में 8वीं से 11वीं शताब्दी सी.ई. के बीच दक्षिण भारत के विभिन्न क्षेत्रों पर शासन कर रहे बड़े और छोटे राज्यों का उल्लेख है। राष्ट्रकूट राज्य या साम्राज्य के गठन और संगठन एवं राष्ट्रकूटों के शासनकाल के दौरान सामाजिक, धार्मिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का चित्रण भी है। विभिन्न राष्ट्रकूट राजाओं के योगदानों, प्रारंभिक मध्यकालीन राजतंत्र व प्रशासन की प्रकृति, सामंती राजनीतिक संरचना के महत्वपूर्ण घटकों, जैसे कि वैचारिक आधार, नौकरशाही/अधिकारी वर्ग, सेना, नियंत्रण तंत्र, गाँवों आदि पर भी चर्चा की गई है।
इकाई 11 में सिंध क्षेत्र पर अरबों द्वारा कब्ज़ा करने के स्रोतों, कारणों और चरणों को समझाने के साथ-साथ सिंध पर अरबों की विजय की औपनिवेशिक समझ तथा अरबी और भारतीय संस्कृति के परस्पर संगम व आदान-प्रदान की विवेचना की गई है।
इकाई 12 में महमूद गज़नी और मोहम्मद गौरी के आक्रमणों पर प्रकाश डाला गया है। उसकी शक्ति के उदय के कारणों, उत्तर भारत पर विजय के चरणों, राजपूतों की पराजय और मोहम्मद गौरी की सफलता के लिए उत्तरदायी कारणों एवं गज़नी और गौरी आक्रमणकारियों के बीच अंतर पर विचार-विमर्श करते हैं।
इकाई 13 में लगभग 700 से 1200 सी.ई. के काल में भारतीय उपमहाद्वीप में कृषीय विकास, विभिन्न कृषीय बस्तियों की प्रकृति और स्वरूप एवं प्रारंभिक मध्ययुगीन कृषीय अर्थव्यवस्था की विशेषताओं के बारे में चर्चा की गई है।
इकाई 14 में सामाजिक इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए विभिन्न साहित्यिक व पुरातात्विक स्रोतों पर प्रकाश डाला गया है। इसमें सामाजिक जीवन के विशिष्ट लक्षणों, विभिन्न सामाजिक समूहों और वर्गों एवं उनके बीच अंतर्संबंधों, सामाजिक संरचना और लिंग संबंधों में परिवर्तन और निरंतरता के तत्वों, सामाजिक परिवर्तनों के विविध अभिकरणों व कारणों की भूमिका और इन सामाजिक रूपांतरों के अनुरूप अर्थव्यवस्था, राजनीति व संस्कृति में उभरती प्रवृत्तियों का विवरण भी दिया गया है।
इकाई 15 में सांस्कृतिक गतिविधियों हेतु गुप्त शासकों द्वारा अनुदत्त सक्रिय संरक्षण, वास्तुकला, मूर्तिकला व चित्रकला के अभूतपूर्व विकास, संस्कृत भाषा द्वारा प्राप्त असामान्य उन्नति और शोधन तथा इस युग में विपुल साहित्यिक गतिविधि और साहित्य द्वारा सिद्ध व निर्धारित प्रभावशाली मानकों पर विचार किया गया है।
इकाई 16 में विभिन्न रूपों में पौराणिक हिंदू धर्म के उदय, जिन परिस्थियों ने भक्ति भावना को जन्म दिया, भक्ति के प्रक्षेप पथ, तंत्रवाद का उद्धभव और आत्मसातकरण तथा विभिन्न परंपराओं के रूप में इसकी स्थायी विरासत की चर्चा की गई है।
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इकाई 1 गुप्त साम्राज्य : उदय एवं विकास
इकाई 2 अर्थव्यवस्था, समाज, संस्कृति एवं राजतंत्र व्यवस्था : गुप्त साम्राज्य
इकाई 3 पुष्पभूति और हर्ष साम्राज्य का उदय
इकाई 4 दक्कन और दक्षिण भारत के साम्राज्य
इकाई 5 पल्लव, पांड्य और कलचुरी राज्य
इकाई 6 कदंब, बादामी के चालुक्य, चोल और होयसाल राज्य
इकाई 7 उत्तर-गुप्त काल में अर्थव्यवस्था और समाज
इकाई 8 उत्तर-गुप्त काल में राज्य व्यवस्था, धर्म और संस्कृति
इकाई 9 राजपूतों का आविर्भाव
इकाई 10 राष्ट्रकूटों का आविर्भाव
इकाई 11 अरब : हमले एवं विस्तार
इकाई 12 महमूद गज़नी और मोहम्मद गौरी : आक्रमण एवं प्रतिरोध
इकाई 13 भूमि राजस्व पद्धतियाँ और कृषि संबंध : लगभग 700-1200 सी. ई.
इकाई 14 सामाजिक संरचना और लैंगिक संबंध : लगभग 700-1200 सी. ई.
इकाई 15 कला, भाषा और साहित्य का विकास : लगभग 300 सी. ई. से 1206 तक
इकाई 16 धर्म एवं धार्मिक प्रवृत्तियाँ : लगभग 300 सी. ई. से 1206 तक
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