BHIC 131 Study Material In Hindi PDF

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BHIC-131 भारत का इतिहास : प्राचीनतम काल से लगभग 300 सी.ई. तक पाठ्यक्रम परिचय

इस पाठ्यक्रम का केंद्र बिंदु समाज, अर्थव्यवस्था, राजनीति, धर्म, प्रौद्योगिकी आदि में प्राचीनतम काल से लेकर लगभग 300 सी. ई. तक में होने वाले बदलाव है।

इकाई 1 प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों से संबंधित है। पुरातत्व एक महत्वपूर्ण स्रोत है, विशेष रूप से जिस अवधि के लिए कोई लिखित दस्तावेज़ नहीं है। कभी-कभी यह लिखित प्रमाणों की पुष्टि भी करता है और जहाँ लिखित प्रमाणों की पुष्टि नहीं करता वहाँ एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान करता है।

शिलालेख और साहित्यिक ग्रंथ अधिकतर अभिजात वर्ग जैसे राजाओं, ब्राह्मणों, दरबारी-कवियों आदि का प्रतिनिधित्व करते है, इसलिए पुरातात्विक स्रोतों को अधिक विश्वसनीय तथा प्रामाणिक माना जाता है क्योंकि वे सामान्य जन की भावनाओं और विचारों के बारे में बताते हैं।

इकाई 2 एक स्रोत के रूप में पुरातत्व की प्रकृति, खुदाई और समन्वेषण के परिष्कृत तरीकों की चर्चा के साथ-साथ वैज्ञानिक तकनीकों द्वारा पुरातात्विक साक्ष्य को दिनांकित करने के अलावा अतीत के मानव व्यवहार, बस्तियों, उत्पादन प्रक्रियाओं और प्राचीन प्रौद्योगिकियों, व्यापार और विनिमय, जीविका और आहार तथा सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे कि सामाजिक-आर्थिक स्थिति, धर्म तथा धार्मिक अनुष्ठानों, पद्धतिओं आदि को समझने में सक्षम बनाती है।

इकाई 3 में भूगोल और ऐतिहासिक प्रक्रियाओं तथा घटनाक्रमों पर इसके प्रभाव को समझाया गया है। क्योंकि किसी भी देश के इतिहास के अध्ययन के लिए उसकी भौतिक विशेषताओं की समझ और यह जानना कि मानव संस्कृतियों और सभ्यताओं की उत्पत्ति और विकास को कैसे निर्धारित एवं प्रभावित करती है। इसमें अधिवास के प्रतिरूप, जनसंख्या घनत्व और व्यापार, क्षेत्रों के निर्माण आदि मापदंडों को उचित महत्व दिया गया है।

इकाई 4 में पूर्व-ऐतिहासिक शिकारी संग्रहकर्ताओं की शुरुआत के रूप में भारतीय इतिहास के आरंभ का वर्णन किया गया है। उनके इतिहास के पुनर्निर्माण के विभिन्न तरीकों, जीवन निर्वाह के प्रतिरूपों, इस्तेमाल किए गए उपकरणों, गुफा-चित्रों द्वारा उनकी कला आदि उनके जीवन के कई पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। यह इकाई कृषि के आगमन और फसलों की खेती, पशुपालन की शुरुआत, ग्रामीण बस्तियों के आरंभ, धातुओं के निर्माण तथा नए प्रकार के उपकरणों के विनिर्माण, मिट्टी के बर्तनों के उपयोग आदि से भी संबंधित है।

इकाई 5 और 6 में हड़प्पा सभ्यता की खोज, कालक्रम, भौगोलिक विस्तार एवं अधिवास के प्रतिरूपों के जलवायु संबंधी पहलुओं, प्रसार और विघटन, मुख्य स्थल और भौतिक अवशेषों के रूप में उनकी विशेषताओं, इन स्थलों के भौतिक लक्षणों में एकरूपताओं, बाहरी दुनिया के साथ संपर्क की प्रकृति, व्यापार और विनिमय तंत्र, समाज तथा जीवन-यापन से संबंधित विशेषताओं, मुख्य व्यवसायों, शासक वर्गों की प्रकृति, वेशभूषा एवं खानपान संबंधी प्रतिरूपों, लिपि और भाषा, धार्मिक प्रथाओं, दफनाने के तरीकों, इसके पतन को समझाने में विद्वानों के सामने आई समस्याओं और पतन के कारणों आदि के बारे में बताया गया है।

कला और वास्तुविद्या, जल विकास प्रणाली, प्रारंभिक हड़प्पा से परिपक्व हड़प्पा तक संक्रमण, पतन के पश्चात भी इसके अस्तित्व और निरंतरता आदि के कारण यह सभ्यता भारतीय इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण थी।

इकाई 7 ताम्र पाषाण और लौह युग की संस्कृतियों की चर्चा करती है। इसमें हड़प्पा काल के बाद की मिट्टी के बर्तनों को बनाने वाली संस्कृतियों, जिन्हें पूर्व-लौह संस्कृतियों तथा लौह युगीन संस्कृतियों की व्याख्या की गई है। लौह धातु चित्रित धूसर मृदभाण्ड में प्रवेश कर उत्तर भारत के छठी सदी संबद्ध शहरी चरण के साथ जुड़ा। इसमें दक्षिण भारत में प्रारंभिक कृषक समुदायों और महापाषाण संस्कृति के विशेष संदर्भ में उत्तरवर्ती लौह युग के विभिन्न पहलुओं की विवेचना की गई है।

इकाई 8 और 9 वैदिक युग पर प्रकाश डालती हैं। पहली बार मिले लिखित साक्ष्य के अध्ययन से वैदिक काल के राजनैतिक तंत्र, अर्थव्यवस्था, समाज, धर्म आदि महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त किया जा सकता है। अर्थव्यवस्था मुख्यतः पशुपालन से संबंधित थी तथा कृषि गौण महत्व रखती थी। समाज आदिवासी और मूल रूप से समतावादी था। कबीले और नातेदारी पर आधारित संबंध इसकी बुनियाद थे।

लगभग 1500-1000 बी.सी.ई. के दौरान आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक क्षेत्र में बदलाव हो रहे थे। उत्तर वैदिक काल में राजा की बदलती स्थिति, स्पष्ट परिभाषित राजनीतिक एकांगों के उदय, समाज के स्तरीकरण, नई धार्मिक प्रवृत्तियों आदि देखे जा सकते हैं।

इकाई 10 छठी शताब्दी बी.सी.ई. के बारे में है जिसके दौरान भारतीय इतिहास में पहली बार उत्तर भारत में राज्यों, कुलीनतंत्रों और मुखियातंत्रों की स्थापना की ओर होते बदलावों को देखा गया। राजनीति में परिवर्तनों के साथ-साथ शहरीकरण हुआ और राज्यों के गठन के रूप में एक स्पष्ट संक्रमण दिखा।

महाजनपदों में नए प्रकार के सामाजिक-राजनीतिक विकास हो रहे थे, उनमें से कई मध्य गंगा घाटी में स्थित थे जो चावल उगाने वाला क्षेत्र था। जिससे जनसंख्या का अधिक घनत्व संभव था। मगध और महाजनपद के लिए धातु अयस्कों जैसे महत्वपूर्ण संसाधन आसानी से उपलब्ध थे जिसके कारण राजनीतिक-आर्थिक शक्ति के केंद्र के रूप में मध्य-गंगा घाटी का उद्भव हुआ।

इकाई 11 लगभग छठी शताब्दी बी.सी.ई. के दौरान उत्तर भारत में नए धार्मिक विचारों की उत्पत्ति के बारे में है। ब्राह्मणवादी रूढ़िवादिता तथा उससे उत्पन्न सामाजिक अशांति ने बौद्ध धर्म, जैन धर्म, आजीविका संप्रदाय आदि जैसे वैकल्पिक धार्मिक आंदोलनों/ प्रणालियों को जन्म दिया। इन धार्मिक अवधारणाओं ने वैदिक धर्म को सीधी चुनौती दी। इकाई उनके महत्व तथा समकालीन समाज पर उनके प्रभाव को बताता है।

इकाई 12 एरियन के वृतांत सिकंदर के अभियानों के मुख्य स्रोत है। उसकी कृति इंडिका में भारत से संबंधित कुछ तथ्यात्मक और कुछ काल्पनिक सूचना का विवरण दिया है जो अन्य यात्रियों के वृतांतों पर आधारित है।

इकाई 13 और 14 मौर्यों के शासनकाल की व्याख्या करती है। मगध के ”साम्राज्य” बनने से लेकर मौर्यों के मूल और वंशवादी इतिहास, राज्य के घटक, विशाल प्रशासनिक तंत्र और इसके विस्तृत ढाँचे के विभिन्न स्तरों की चर्चा की गई है। इसके लिए विभिन्न प्रकार के स्रोतों जैसे अर्थशास्त्र शासन से संबंधित मुद्दों के बारे में, अशोक के शिलालेख शाही उद्घोषणाओं तथा मेगस्थनीज़ का वृत्तांत चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकालीन राज्य तथा समाज संबंधी कार्यप्रणालियों को दर्शाता है।

इकाई 14 में शुंग और कान्व, इंडो-ग्रीक, शक और पहलव तथा उत्तर-पश्चिम और उत्तर में कुषाणों के उद्भव पर प्रकाश डाला गया है। सिंधु और गंगा नदियों के बीच के मैदानी क्षेत्र में यौधेय तथा अर्जुनयान जैसे आदिवासी राजव्यवस्थाओं, प्राचीन ओडिशा तथा सातवाहन काल में दक्कन में राज्य गठन की प्रक्रिया, अर्थव्यवस्था एवं समाज के बारे में है।

इकाई 15 का विषय सातवाहन वंश का उदय तथा दक्षिण भारत (तमिलहम/तमिलकम) के राज्य गठन का है। तमिलहम विभिन्न पर्यावरणीय क्षेत्रों (तिनई) के द्वारा संगठित था। यह भौगोलिक क्षेत्रों के जीवन निर्वाह प्रतिमानों, राजनीतिक प्राधिकरण का कुल एवं रक्त-संबंधी आधार, राजनीतिक नियंत्रण के विविध स्तरों और मुखियावाद जैसे राजनैतिक गठन के विभिन्न विवरणों के बारे में है।

इकाई 16 में दक्कन और दक्षिण भारत में लगभग 200 बी.सी.ई. से 300 बी.सी.ई. तक कृषक बस्तियों के प्रसार की चर्चा है। यह दक्षिण भारत के पृथक हिस्सों में प्रचलित जीवन यापन के भिन्न रूपों, भूस्वामित्व की प्रवृत्ति, कृषि से प्राप्त राजस्व एवं कृषक बस्तियों में संसाधनों के पुनर्वितरण, कृषक समाज के संगठन, नए तत्वों की शुरुआत और परिवर्तन के आरंभ को वर्णित करती है। सुदूर दक्षिण में चेरों, चोलों और पांड्यो के राज्यों तथा कम महत्वपूर्ण नायकों/कबीले के सरदारों की राजव्यवस्थाओं पर भी केंद्रित है।

इकाई 17 तमिल भाषा एवं साहित्य की प्राचीनता, तमिल वीर कविताओं और उनकी प्रमुख विशेषताओं, रचना की तकनीकों, वर्गीकरण एवं संकलनों के रूप में उनके संहिताकरण, तिथि-निर्धारण की समस्याओं, साहित्य गुणत्व तथा संगम कालावधि कहे जाने वाले लगभग दूसरी शताब्दी बी.सी.ई. से तीसरी शताब्दी सी.ई. तक के समय की अन्य रचनाओं के बारे में बताता है।

BHIC-131 भारत का इतिहास : प्राचीनतम काल से लगभग 300 सी.ई. तक in Hindi Study Material Download

यह अध्ययन सामग्री IGNOU BAG के छात्रों और उन सभी छात्रों के लिए निःशुल्क है, जो UPSC और UGC NET (History) जैसी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे है।

इकाई 1  प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत

इकाई 2  एक स्रोत के रूप में पुरातत्व विज्ञान और प्रमुख पुरातात्विक स्थल

इकाई 3  भारतीय इतिहास : प्राकृतिक विशेषताएँ, गठन एवं लक्षण

इकाई 4  शिकारी संग्रहणकर्ता : पुरातात्विक परिप्रेक्ष्य, कृषि और पशुपालन का आरंभ

इकाई 5  हड़प्पा सभ्यता : कालानुक्रम, भौगोलिक विस्तार, ह्यस और विघटन

इकाई 6  हड़प्पा सभ्यता : भौतिक विशेषताएँ, संपर्कों का रूप, समाज और धर्म

इकाई 7  ताम्र पाषाण युग तथा आरंभिक लौह युग

इकाई 8  प्रारंभिक वैदिक समाज

इकाई 9  उत्तर वैदिक युग में परिवर्तन

इकाई 10  जनपद और महाजनपद : नगीरय केंद्रों का उदय, समाज और अर्थव्यवस्था

इकाई 11  बौद्ध धर्म, जैन धर्म तथा अन्य धार्मिक विचार

इकाई 12  सिकंदर का आक्रमण

इकाई 13  मौर्य शासन की स्थापना और मगध साम्राज्य का विस्तार

इकाई 14  प्रशासनिक संगठन, अर्थव्यवस्था और समाज

इकाई 15  दक्कन और तमिलाहम में आरंभिक राज्य निर्माण

इकाई 16  कृषक बस्तियाँ, कृषक समाज, व्यापार और शहरी केंद्रों का विस्तार – प्रायद्वीपीय भारत

इकाई 17  तमिल भाषा और साहित्य का विकास 

 

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