अध्याय ग्यारह : महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन (सविनय अवज्ञा और उससे आगे)
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Toggleराष्ट्रवाद के इतिहास में प्राय: एक अकेले व्यक्ति को राष्ट्र-निर्माण के साथ जोड़कर देखा जाता है।
उदाहरण : इटली के निर्माण के साथ गैरीबाल्डी को, अमेरिकी स्वतंत्रता युद्ध के साथ जॉर्ज वाशिंगटन को, वियतनाम को औपनिवेशिक शासन से मुक्त करने के संघर्ष में हो ची मिन्ह को और इसी तरह महात्मा गाँधी को भारतीय राष्ट्र का “पिता” माना गया है।
- गाँधी जी स्वतंत्रता संघर्ष में भाग लेने वाले सभी नेताओं में सर्वाधिक प्रभावशाली और सम्मानित थे।
- वाशिंगटन तथा हो ची मिन्ह की तरह महात्मा गाँधी का राजनीतिक जीवन-वृत्त उनके अपने समाज ने सँवारा और नियंत्रित किया।
स्वयं की उद्घोषणा करता एक नेता
मोहनदास कमरचंद गाँधी विदेश में दो दशक रहने के बाद 1915 में भारत लौटे। दक्षिण अफ़्रीका में वे एक वकील के रूप में गए थे।
- वहाँ उन्होंने पहली बार सत्याग्रह के रूप में जानी गई अहिंसात्मक विरोध का इस्तेमाल कर विभिन्न धर्मों के बीच सौहार्द बढ़ाने का प्रयास किया तथा उच्च जातीय भारतीयों को निम्न जातियों और महिलाओं के प्रति भेदभाव वाले व्यवहार के लिए चेतावनी दी।
- इतिहासकार चंद्रन देवनेसन ने टिप्पणी की है कि दक्षिण अफ़्रीका ने ही गाँधी जी को “महात्मा” बनाया।
➡ 1915 में भारत लौटने पर गाँधी जी ने ब्रिटिश भारत को राजनीतिक दृष्टि से कहीं अधिक सक्रिय पाया।
- अधिकांश प्रमुख शहरों और कस्बों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की शाखाएँ बन गई थीं।
- 1905-07 के स्वदेशी आंदोलन के विस्तार से कुछ प्रमुख नेताओं का जन्म हुआ जिसमें महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक, बंगाल के विपिन चंद्र पाल और पंजाब के लाला लाजपत राय थे।
- इन नेताओं ने औपनिवेशिक शासन के प्रति लड़ाकू विरोध का समर्थन किया।
- उदारवादियों का एक समूह था जो एक क्रमिक व लगातार प्रयास करते रहने के विचार का हिमायती था।
- इसमें गाँधी जी के राजनीतिक परामर्शदाता गोपाल कृष्ण गोखले के साथ मोहम्मद अली जिन्ना थे।
➡ गोखले की सलाह पर है गाँधी जी ने 1 वर्ष तक ब्रिटिश भारत की यात्रा की जिससे वे इस भूमि और इसके लोगों को जान सकें।
- पहली सार्वजानिक उपस्थिति फरवरी 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में हुई।
- यहाँ एनी बेसेंट जैसे कांग्रेस के कुछ महत्वपूर्ण नेता भी उपस्थित थे।
- गाँधी जी को यहाँ दक्षिण अफ़्रीका में उनके द्वारा किए गए कार्य के आधार पर आमंत्रित किया गया था।
- यहाँ उन्होंने अपने भाषण में लोगों को अनुपस्थित किसानों और कामगारों की याद दिलाई।
- विशेष सुविधा प्राप्त आमंत्रितों से कहा कि “भारत के लिए मुक्ति तब तक संभव नहीं है जब तक कि आप अपने को इन अलंकरणों से मुक्त न कर लें और इन्हें भारत के अपने हमवतनों की भलाई में न लगा दें।”
- यह भारतीय राष्ट्रवाद को संपूर्ण भारतीय लोगों का और अधिक अच्छे ढंग से प्रतिनिधित्व करने में सक्षम बनाने की गाँधी जी की प्रथम सार्वजनिक उद्घोषणा थी।
असहयोग की शुरुआत और अंत
दिसंबर 1916 लखनऊ अधिवेशन में चंपारण (बिहार) से आए किसान ने गाँधी जी को वहाँ के अंग्रेज़ नील उत्पादकों द्वारा किसानों के प्रति किए गए कठोर व्यवहार के बारे में बताया।
- 1917 में उन्होंने किसानों के लिए काश्तकारी की सुरक्षा के साथ अपनी पसंद की फ़सल उपजाने की आज़ादी दिलाई।
- 1918 में पहले अहमदाबाद (गुजरात) के श्रम विवाद में हस्तक्षेप कर कपड़े की मिलों में काम करने वालों के लिए काम करने की बेहतर स्थितियों की माँग की।
- फिर खेड़ा (गुजरात) में फ़सल चौपट होने पर राज्य से किसानों का लगान माफ़ करने की माँग की।
➡ प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान अंग्रेज़ों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगाकर बिना जाँच के कारावास की अनुमति दे दी थी। सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली समिति ने इसे जारी रखा।
- 1919 में गाँधी जी ने देशभर में “रॉलेट एक्ट” के खिलाफ एक अभियान चलाया।
- उत्तरी और पश्चिमी भारत के कस्बों में चारों तरफ बंद के समर्थन में दुकानों और स्कूलों को बंद किया गया था।
- पंजाब में विशेष रूप से कड़ा विरोध हुआ। पंजाब जाते समय गाँधी जी को क़ैद और स्थानीय कांग्रेसजनों को गिरफ़्तार कर लिया गया था।
- स्थिति के तनावपूर्ण होने के बाद अप्रैल 1919 में अमृतसर में हुए जलियाँवाला बाग हत्याकांड में 400 से अधिक लोग मारे गए।
- अब गाँधी जी ने अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ असहयोग अभियान की माँग कर दी।
- उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे स्कूलों, कॉलेज़ों, न्यायालय न जाएँ और कर न चुकाएँ।
- गाँधी जी ने कहा कि असहयोग का ठीक ढंग से पालन करने पर भारत एक वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्त कर लेगा।
उन्होंने अपने संघर्ष में खिलाफ़त आंदोलन को भी मिला लिया। जो हाल ही में तुर्की शासक कमाल अतातुर्क द्वारा समाप्त किए गए सर्व-इस्लामवाद के प्रतीक खलीफा की पुनर्स्थापना की माँग कर रहा था।
खिलाफ़त आंदोलन क्या था?
यह 1919-1920 में मुहम्मद अली और शौकत अली के नेतृत्व में भारतीय मुसलमानों का एक आंदोलन था। इसकी निम्नलिखित माँगें थीं:—
- ऑटोमन साम्राज्य के सभी इस्लामी पवित्र स्थानों पर तुर्की सुल्तान अथवा खलीफ़ा का नियंत्रण बना रहे।
- जज़ीरात-उल-अरब (अरब, सीरिया, इराक, फिलिस्तीन) इस्लामी सम्प्रभुता के अधीन रहें।
- खलीफ़ा के पास इतने क्षेत्र हों कि वह इस्लामी विश्वास को सुरक्षित करने के योग्य बन सके।
एक लोकप्रिय आंदोलन की तैयारी
गाँधी जी की आशा के अनुसार असहयोग-खिलाफ़त आंदोलन ने एक लोकप्रिय कार्यवाही के बहाव को उन्मुक्त कर दिया था।
- विद्यार्थियों ने सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया।
- वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया।
- कई कस्बों और नगरों में श्रमिक-वर्ग हड़ताल पर चला गया।
- 1921 में 396 हड़तालें हुई जिनमें 6 लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख कार्यदिवसों का नुकसान हुआ था।
- उत्तरी आंध्र की पहाड़ी जनजातियों ने वन्य कानूनों की अवहेलना कर दी।
- अवध के किसानों ने कर नहीं चुकाए।
- कुमाऊँ के किसानों ने औपनिवेशिक अधिकारियों का सामान ढोने से मना कर दिया।
- किसानों, श्रमिकों और अन्य ने असहयोग के लिए अपने हितों से मेल खाते तरीकों का इस्तेमाल कर कार्रवाही की।
➡ महात्मा गाँधी के अमरीकी जीवनी लेखक लुई फिशर ने लिखा है कि असहयोग भारत और गाँधी जी के जीवन के एक युग का ही नाम हो गया।
- असहयोग शांति की दृष्टि से नकारात्मक किंतु प्रभाव की दृष्टि से बहुत सकारात्मक था।
- इसके लिए प्रतिवाद, परित्याग और स्व अनुशासन आवश्यक थे। यह स्वशासन के लिए प्रशिक्षण था।
- 1857 के विद्रोह के बाद पहली इस आंदोलन के कारण अंग्रेज़ी राज की नींव हिल गई थी।
- फरवरी 1922 में किसानों के एक समूह द्वारा चौरी-चौरा पुरवा (संयुक्त प्रांत) में एक पुलिस स्टेशन पर आक्रमण कर आग लगने से कई पुलिस वालों की जान चली गई।
- हिंसा होते देख गाँधी जी ने यह आंदोलन तत्काल वापस ले लिया।
- इस आंदोलन के दौरान हज़ारों भारतीयों को जेल में डाल दिया गया।
- गाँधी जी को मार्च 1922 में राजद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया। जज जस्टिस सी. एन. ब्रूमफील्ड ने उन्हें 6 वर्षों की जेल की सजा सुनाई।
जन नेता
अब इस आंदोलन में व्यावसायिकों व बुद्धिजीवियों के साथ हज़ारों की संख्या में किसानों, श्रमिकों और कारीगरों ने भी भाग लेना शुरू कर दिया।
- गाँधी जी के प्रति आदर व्यक्त करते हुए उन्हें अपना “महात्मा” कहने लगे।
- अन्य राष्ट्रवादी नेता पश्चिमी शैली के सूट तथा भारतीय बंदगला जैसे औपचारिक वस्त्र पहनते थे वहीं गाँधी जी लोगों के बीच एक साधारण धोती में जाते थे।
- गाँधी जी प्रतिदिन कुछ हिस्सा चरखा चलाने में बिताते और अन्य राष्ट्रवादियों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करते थे।
- इस कार्य से पारंपरिक जाति व्यवस्था में प्रचलित मानसिक श्रम और शारीरिक श्रम की दीवार को तोड़ने में मदद मिली।
➡ इतिहासकार शाहिद अमीन ने अध्ययन में स्थानीय प्रेस द्वारा ज्ञात रिपोर्टों और अफवाहों के ज़रिए पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों के मन में महात्मा गाँधी की कल्पना को ढूँढ़ने की कोशिश की है।
- फरवरी 1921 में जब वे इस क्षेत्र से गुजर रहे थे तो हर जगह भीड़ ने उनका बड़े प्यार से स्वागत किया।
- वे जहाँ भी गए उनकी चामत्कारिक शक्तियों की अफवाहें फैल गईं।
- उन्हें राजा द्वारा किसानों के दुख तकलीफों में सुधार के लिए भेजा गया है।
- उनके पास सभी स्थानीय अधिकारियों के निर्देशों को अस्वीकृत करने की शक्ति है।
- गाँधी जी की शक्ति अंग्रेज़ बादशाह से उत्कृष्ट है और उनके आने से औपनिवेशिक शासक ज़िले से भाग जाएँगे।
- उनकी आलोचना करने वाले गाँव के लोगों के घर रहस्यात्मक रूप से गिर गए और उनकी फसल चौपट हो गई।
➡ “गाँधी बाबा”, “गाँधी महाराज” व “महात्मा” जैसे नामों से ज्ञात गाँधी जी भारतीय किसान के लिए एक उद्वारक के समान थे जो उनकी ऊँची करों तथा दमनात्मक अधिकारियों से सुरक्षा करने और उनके जीवन में मान-मर्यादा तथा स्वायत्तता वापस लाने वाले थे।
- गाँधी जी जाति से एक व्यापारी व पेशे से वकील थे, लेकिन उनकी सादी जीवन-शैली तथा हाथों से काम करने के प्रति लगाव की वजह से ग़रीब श्रमिकों के प्रति बहुत अधिक सहानुभूति रखते थे।
- वे उनकी तरह दिखने, उन्हें समझने और उनके जीवन के साथ स्वयं को जोड़ने के लिए सामने आते थे।
राष्ट्रवाद के आधार को और व्यापक बनाने के लिए इन तरीकों का प्रयोग किया गया:—
- भारत के विभिन्न भागों में कांग्रेस की नई शाखाएँ खोली गयी।
- रजवाड़ों में राष्ट्रवादी सिद्धांत को बढ़ावा देने के लिए “प्रजा मंडलों” की एक श्रृंखला स्थापित की गई।
- गाँधी जी ने राष्ट्रवादी संदेश का संचार मातृ भाषा में करने को प्रोत्साहित किया।
- जी. डी. बिड़ला जैसे कुछ उद्यमियों ने राष्ट्रीय आंदोलन का खुला समर्थन किया जबकि अन्यों ने नहीं।
➡ 1917 से 1922 के बीच भारतीयों के एक प्रतिभाशाली वर्ग ने स्वयं को गाँधी जी से जोड़ लिया।
- इनमें महादेव देसाई, वल्लभ भाई पटेल, जे. बी. कृपलानी, सुभाष चंद्र बोस, अबुल कलाम आज़ाद, जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, गोविंद वल्लभ पंत और सी. राजगोपालाचारी शामिल थे।
- गाँधी जी के ये घनिष्ठ सहयोगी भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के साथ ही भिन्न-भिन्न धार्मिक परंपराओं से आए थे।
- उन्होंने अनगिनत अन्य भारतीयों को कांग्रेस में शामिल होने और इसके लिए काम करने के लिए प्रेरित किया।
➡ फरवरी 1924 में गाँधी जी ने जेल से रिहा होने के बाद अपना ध्यान घर में बुने कपड़े (खादी) को बढ़ावा देने तथा छूआ-छूत को समाप्त करने पर लगाया।
- उनका विश्वास था कि स्वतंत्रता के योग्य बनने के लिए भारतीयों को बाल विवाह और छूआ-छूत जैसी सामाजिक बुराइयों से मुक्त होना पड़ेगा।
- उन्होंने हिंदू-मुसलमानों के बीच सौहार्द्र पर बल दिया और आर्थिक स्तर पर भारतीयों को स्वावलंबी बनना सिखाया।
नमक सत्याग्रह (नज़दीक से एक नज़र)
असहयोग आंदोलन समाप्त होने के कई वर्षों बाद तक गाँधी जी समाज सुधार कार्यों में लगे रहे।
- 1928 में साइमन कमीशन (उपनिवेश की स्थितियों की जाँच-पड़ताल के लिए इंग्लैंड से भेजा गया) के विरुद्ध अखिल भारतीय अभियान और बारदोली के किसान सत्याग्रह में उन्होंने भाग नहीं लिया परंतु अपना आशीर्वाद दिया था।
दिसंबर 1929 में कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन दो दृष्टियों से महत्वपूर्ण था:—
- जवाहरलाल नेहरू का अध्यक्ष के रूप में चुनाव जो युवा पीढ़ी को नेतृत्व की छड़ी सौंपने का प्रतीक था।
- “पूर्ण स्वराज” पूर्ण स्वतंत्रता की उद्घोषणा। 26 जनवरी 1930 को विभिन्न स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर और देशभक्ति के गीत गाकर “स्वतंत्रता दिवस” मनाया गया।
गाँधी जी ने इस दिन को इस तरह से मनाने का निर्देश दिया:—
- नगाड़े पीटकर पारंपरिक तरीके से संगोष्ठी के समय की घोषणा की जाए।
- राष्ट्रीय ध्वज को फहराए जाने से समारोह की शुरुआत होगी।
- दिन का बाकी हिस्सा किसी रचनात्मक कार्य जैसे: सूत कताई, अछूतों की सेवा, हिंदुओं व मुसलमानों का पुनर्मिलन और निषिद्ध कार्य करने में व्यतीत होगा।
दाण्डी
स्वतंत्रता दिवस मनाने के तुरंत बाद गाँधी जी ने घोषणा की कि वे राज्य के नमक एकाधिकार को तोड़ने के लिए एक यात्रा का नेतृत्व करेंगे।
- गाँधी जी ने अपनी “नमक यात्रा” की पूर्व सूचना वायसराय लॉर्ड इर्विन को दी थी किंतु इर्विन उनकी इस कार्रवाही के महत्व को न समझ सके।
- 12 मार्च 1930 को गाँधी जी ने साबरमती आश्रम से यात्रा शुरू की। 6 अप्रैल 1930 को दाण्डी पहुँचकर मुट्ठी भर नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा।
- इसी बीच देश के अन्य भागों में समान्तर नमक यात्राएँ आयोजित की गईं।
- देश के विशाल भाग में किसानों ने दमनकारी औपनिवेशिक वन कानूनों का उल्लंघन किया।
- कुछ कस्बों में फैक्ट्री कामगार हड़ताल पर चले गए।
- वकीलों ने ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार कर दिया।
- विद्यार्थियों ने सरकारी शिक्षा संस्थानों में पढ़ने से इनकार कर दिया।
- गाँधी जी ने तमाम भारतीय वर्गों को औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध अपना असंतोष व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया।
- सरकार ने नमक सत्याग्रह के सिलसिले में लगभग 60,000 लोगों को गिरफ़्तार किया जिसमें गाँधी जी भी थे।
➡ समुद्र तट की ओर गाँधी जी की यात्रा की प्रगति का पता उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए तैनात पुलिस अफसरों द्वारा भेजी गई गोपनीय रिपोर्टों से चलता है।
- उन्होंने स्थानीय अधिकारियों से आह्वान किया कि वे सरकारी नौकरियाँ छोड़कर स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल हो जाएँ।
- वसना नामक गाँव में गाँधी जी ने ऊँची जाति वालों को अछूतों के साथ किए दुर्व्यवहार को सुधारने के लिए प्रेरित किया।
- स्वराज के लिए हिंदू, मुसलमान, पारसी और सिख, सबको एकजुट होना पड़ेगा।
- गाँधी जी की सभा में तमाम जातियों के औरत-मर्द शामिल हो रहे हैं।
- औपनिवेशिक पदों से इस्तीफ़े देकर सरकारी अफ़सर राष्ट्रवादी उद्देश्य के लिए सामने आ रहे हैं।
जिला पुलिस सुपरिंटेंडेंट ने लिखा था कि “श्री गाँधी शांत और निश्चित दिखाई दिए। वे जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे हैं, उनकी ताकत बढ़ती जा रही है।”
- अमेरिकी समाचार पत्रिका टाइम पहले गाँधी जी की कदकाठी का मज़ाक उड़ाती थी पर यात्रा को जनसमर्थन मिलने पर वे उन्हें “साधु” और “राजनेता” कह कर सलामी देने लगे थे।
संवाद
नमक यात्रा तीन कारणों से उल्लेखनीय थी:—
- इस घटना के चलते महात्मा गाँधी दुनिया की नज़र में आए। इस यात्रा को यूरोप और अमेरिकी प्रेस ने व्यापक कवरेज दी।
- यह पहली राष्ट्रवादी गतिविधि थी जिसमें औरतों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। कमलादेवी चट्टोपाध्याय उन असंख्यक औरतों में से एक थीं जिन्होंने नमक या शराब कानूनों का उल्लंघन करते हुए सामूहिक गिरफ़्तारी दी थी।
- नमक यात्रा के कारण अंग्रेजों को अहसास हुआ कि उनका राज बहुत दिन तक नहीं टिकेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना पड़ेगा।
➡ इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने लंदन में “गोल मेज सम्मेलनों” का आयोजन शुरू किया।
1. पहला गोलमेज सम्मेलन नवंबर 1930 में आयोजित हुआ जिसमें देश के प्रमुख नेता शामिल नहीं हुए। इस कारण यह बैठक निरर्थक साबित हुई।
- जनवरी 1931 में गाँधी जी जेल से रिहा हुए। अगले महीने वायसराय के साथ कई लंबी बैठकों के बाद “गाँधी-इर्विन समझौते” पर सहमति बनी।
- जिनकी शर्तों में सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस लेना, सारे कैदियों की रिहाई और तटीय इलाकों में नमक उत्पादन की अनुमति देना शामिल था।
- रैडिकल राष्ट्रवादियों ने समझौते की आलोचना की क्योंकि गाँधी जी वायसराय से भारतीयों के लिए राजनीति स्वतंत्रता का आश्वासन हासिल नहीं कर पाए थे।
2. दूसरा गोलमेज सम्मेलन 1931 के आखिर में लंदन में हुआ। उसमें गाँधी जी कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे थे उनका कहना था कि उनकी पार्टी पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करती है।
इस दावे को तीन पार्टियों ने चुनौती दी:—
- मुस्लिम लीग का कहना था कि वह मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हित में काम करती है।
- राजे-राजवाड़ों का दावा था कि कांग्रेस का उनके नियंत्रण वाले भूभाग पर कोई अधिकार नहीं है।
- वकील और विचारक बी.आर.अंबेडकर का कहना था गाँधी जी और कांग्रेस पार्टी निचली जातियों का प्रतिनिधित्व नहीं करते।
इस सम्मेलन का भी कोई नतीजा न निकलने पर गाँधी जी को खाली हाथ लौटना पड़ा। भारत लौटने पर उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया।
3. तीसरा गोलमेज सम्मेलन 17 नवंबर से 24 दिसंबर 1932 को लंदन में हुआ।इसमें केवल 46 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। ब्रिटेन की लेबर पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भाग नहीं लिया।
- इसमें उदारवादी नेता तेज बहादुर सप्रू और दलित नेता बी.आर. अंबेडकर शामिल हुए थे।और चौधरी रहमत अली ने विभाजित भारत के मुस्लिम भाग का नाम “पाकिस्तान” रखा।
- इस सम्मेलन के बाद मार्च 1933 में एक श्वेत पत्र जारी किया गया। जिसमें भारत के नए संविधान के लिए निर्देश दिए गए थे।
- लॉर्ड लिनलिथगो समिति बनाई गई जिसकी सिफ़ारिशों पर भारत सरकार अधिनियम 1935 बनाया गया था।
- 1937 में इसके आधार पर हुए चुनावों में 11 में से 8 प्रांतों में कांग्रेस के प्रधानमंत्री सत्ता में आए जो ब्रिटिश गवर्नर की देखरेख में काम करते थे।
➡ सितंबर 1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने पर महात्मा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू ने फैसला लिया कि युद्ध समाप्त होने के बाद भारत को स्वतंत्रता मिलने पर ही कांग्रेस उनके युद्ध प्रयासों में सहायता देगी।
- सरकार ने उनका प्रस्ताव ख़ारिज कर दिया। इसके विरोध में कांग्रेसी मंत्रीमंडलों ने अक्टूबर 1939 में इस्तीफ़ा दे दिया।
- स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए शासकों पर दबाव डालने के लिए 1940-41 के दौरान कांग्रेस ने अलग-अलग सत्याग्रह कार्यक्रमों का आयोजन शुरू किया।
- मार्च 1940 में मुस्लिम लीग द्वारा उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए स्वायत्तता की माँग करने पर राजनीतिक भूदृश्य जटिल हो गया।
- ब्रिटेन के मुखिया प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल कट्टर साम्राज्यवादी थे।
- 1942 के वसंत में उन्होंने गाँधी जी और कांग्रेस के साथ समझौते का रास्ता निकालने के लिए एक मंत्री सर स्टेफ़र्ड क्रिप्स को भारत भेजा।
- कांग्रेस के इस बात से वार्ता टूट गई कि “अगर धुरी शक्तियों से भारत की रक्षा के लिए ब्रिटिश शासन कांग्रेस के समर्थन चाहता है तो वायसराय को सबसे पहले अपने कार्यकारी परिषद में किसी भारतीय को एक रक्षा सदस्य के रूप में नियुक्त करना चाहिए।”
भारत छोड़ो
क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद गाँधी जी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन “अंग्रेज़ों भारत छोड़ो” 1942 में शुरू कर दिया।
- गाँधी जी के फौरन गिरफ़्तार होने के बाद भी देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन चलाते रहे।
- जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य भूमिगत प्रतिरोध गतिविधियों में सक्रिय थे।
- पश्चिम में सतारा और पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में स्वतंत्र सरकार (प्रतिसरकार) की स्थापना की गई।
- अंग्रेज़ों द्वारा सख्त रवैया अपनाने के बाद भी इस आंदोलन को दबाने में साल भर से ज्यादा समय लग गया।
➡ “भारत छोड़ो” आंदोलन सही मायने में एक जन आंदोलन था जिसमें लाखों आम हिंदुस्तानी शामिल थे।
- इसने युवाओं को बड़ी संख्या में अपनी और आकर्षित किया जिन्होंने अपने कॉलेज छोड़कर जेल का रास्ता अपनाया।
- इसी समय जिन्ना तथा मुस्लिम लीग के उनके साथी अपना प्रभाव क्षेत्र फैलाने में लगे थे।
- लीग को पंजाब और सिंध में अपनी पहचान बनाने का मौका मिला जहाँ उनका कोई वजूद नहीं था।
- जून 1944 में गाँधी जी ने जेल से निकल कर कांग्रेस और लीग के बीच फासले को पाटने के लिए जिन्ना से कई बार बात की।
- 1945 में ब्रिटेन में बनी लेबर पार्टी की सरकार भारतीय स्वतंत्रता के पक्ष में थी।
- उसी समय वायसराय लॉर्ड वावेल ने कांग्रेस मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों के बीच कई बैठकों का आयोजन किया।
➡ 1946 में प्रांतीय विधान मंडलों के चुनाव में सामान्य श्रेणी में कांग्रेस को और मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर मुस्लिम लीग को भारी बहुमत प्राप्त हुआ।
- 1946 में आए कैबिनेट मिशन द्वारा कांग्रेस और मुस्लिम लीग को भारत के भीतर विभिन्न प्रांतों को सीमित स्वायत्तता देने का प्रयास विफल रहा।
- वार्ता टूटने के बाद जिन्ना ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए लीग की माँगों के समर्थन में 16 अगस्त 1946 को “प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस” का आह्वान किया।
- उसी दिन कलकत्ता में खूनी संघर्ष शुरू हो गया। जो ग्रामीण बंगाल, बिहार और संयुक्त प्रांत व पंजाब तक फैल गया। कुछ स्थानों पर मुसलमानों को तो कुछ अन्य स्थानों पर हिंदुओं को निशाना बनाया गया।
➡ फरवरी 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन को वायसराय नियुक्त किया गया। सुलह के लिए उनका प्रयास विफल होने पर उन्होंने ऐलान किया कि ब्रिटिश भारत को स्वतंत्रता दी जाएगी लेकिन इसका विभाजन भी होगा।
- सत्ता हस्तांतरण के लिए 15 अगस्त का दिन नियत किया गया।
- उस दिन भारत के विभिन्न भागों में लोगों ने जमकर खुशियाँ मनाई।
- दिल्ली में संविधान सभा के अध्यक्ष ने गाँधी जी को राष्ट्रपिता की उपाधि देते हुए संविधान सभा की बैठक शुरू की।
आखिरी, बहादुराना दिन
15 अगस्त 1947 को राजधानी में हो रहे उत्सवों की जगह गाँधी जी कलकत्ता में थे।
- लेकिन वहाँ भी उन्होंने किसी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लिया और न ही कहीं झंडा फहराया।
- उस दिन वे 24 घंटे के उपवास पर थे। उनका राष्ट्र विभाजित था; हिंदू-मुसलमान एक-दूसरे की गर्दन पर सवार थे।
➡ गाँधी जी और नेहरू के आग्रह पर कांग्रेस ने “अल्पसंख्यकों के अधिकारों” एक प्रस्ताव पारित किया।
- उन्होंने “दो राष्ट्र सिद्धांत” को कभी स्वीकार नहीं किया था।
- “भारत एक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र रहेगा जहाँ सभी नागरिकों को पूर्ण अधिकार प्राप्त होंगे तथा धर्म के आधार पर भेदभाव के बिना सभी को राज्य की ओर से संरक्षण का अधिकार होगा।”
- कांग्रेस ने आश्वासन दिया कि “वह अल्पसंख्यकों के नागरिक अधिकारों के किसी भी अतिक्रमण के विरुद्ध हर मुमकिन रक्षा करेगी।”
➡ बंगाल में शांति स्थापना के लिए अभियान चलाने के बाद गाँधी जी दिल्ली आ गए। वे दंगाग्रस्त पंजाब के जिलों में जाना चाहते थे लेकिन राजधानी में ही शरणार्थियों की आपत्तियों के कारण उनकी सभाएँ अस्त-व्यस्त हो गई।
- 20 जनवरी को गाँधी जी पर हमला हुआ लेकिन वे अविचलित अपना काम करते रहे।
- गाँधी जी ने स्वतंत्र और अखंड भारत के लिए जीवन भर युद्ध लड़ा। देश विभाजित होने के बाद उनकी इच्छा थी कि दोनों देश एक-दूसरे के साथ सम्मान और दोस्ती के संबंध बनाए रखें।
- 30 जनवरी की शाम को गाँधी जी की दैनिक प्रार्थना में नाथूराम गोडसे ने उनको गोली मार कर मौत की नींद सुला दिया। उसने बाद में आत्मसमर्पण कर दिया था।
- गाँधी जी की मृत्यु से चारों ओर शोक की लहर दौड़ गई। भारत भर के राजनीतिक फलक पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई।
- जॉर्ज ऑरवेल तथा एलबर्ट आइंस्टीन जैसे विख्यात गैर-भारतीयों ने भी शोक संदेश भेजे।
- टाइम पत्रिका ने उनके बलिदान की तुलना अब्राहम लिंकन के बलिदान से की।
गाँधी को समझना
सार्वजानिक स्वर और निजी लेखन
महात्मा गाँधी और उनके सहयोगियों व प्रतिद्वंद्वियों, दोनों तरह के समकालीनों के लेखन और भाषण एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
- भाषणों से हमें किसी व्यक्ति के सार्वजनिक विचारों को सुनने का मौका मिलता है जबकि उसके व्यक्तिगत पत्र हमें उसके निजी विचारों, उसका गुस्सा और पीड़ा, असंतोष और बेचैनी, अपनी आशाएँ और हताशाएँ दिखाते हैं।
- बहुत सारे पत्र व्यक्तिगत पत्र होने के साथ कुछ हद तक जनता के लिए भी होते हैं।
- किसी पत्र के प्रकाशित हो जाने की आशंका के कारण बहुधा लोग निजी पत्रों में भी अपना मत स्वतंत्रतापूर्वक व्यक्त नहीं कर पाते थे।
- महात्मा गाँधी हरिजन नामक अपने अखबार में उन पत्रों को प्रकाशित करते थे जो उन्हें लोगों से मिलते थे।
- नेहरू ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान उन्हें लिखे गए पत्रों का एक संकलन तैयार किया और उसे ए बंच ऑफ ओल्ड लेटर्स के नाम से प्रकाशित किया।
छवि गढ़ना
आत्मकथाएँ भी हमें उस अतीत का ब्योरा देती है जो मानवीय विवरणों के हिसाब से काफ़ी समृद्ध होता है।
- ये आत्मकथाएँ प्राय: स्मृति के आधार पर लिखी होती है उनसे हमें पता चलता है कि लिखने वाले को क्या याद रहा, उसे कौन सी चीजें महत्वपूर्ण दिखी, वह क्या याद रखना चाहता था, या वह औरों की नज़र में अपनी ज़िंदगी को किस तरह दर्शाना चाहता था।
इन विवरणों को पढ़ते हुए हमें समझने का प्रयास करना चाहिए:—
- लेखक जो नहीं दिखाना चाहता था
- उन चुप्पियों के कारण को
- इच्छित या अनिच्छित विस्मृति के उन कृत्यों को
पुलिस की नज़र से
सरकारी रिकॉर्ड्स भी हमारे अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
- उस समय पुलिस कर्मियों तथा अन्य अधिकारियों द्वारा लिखे गए पत्र तथा रिपोर्टें गोपनीय थी, लेकिन अब ये दस्तावेज़ अभिलेखागारों में उपलब्ध है जिन्हें कोई भी देख सकता है।
- 20वीं सदी के शुरुआती सालों से ही गृह विभाग द्वारा तैयार की जाने वाली पाक्षिक रिपोर्टें (हर 15 दिन में) काफ़ी महत्वपूर्ण रही हैं।
- इन रिपोर्टों से स्थानीय इलाक़ों की सूचनाएँ मिलती थी लेकिन इसमें दिखता था कि आला अधिकारी क्या देखते थे या क्या मानना चाहते थे।
➡ नमक यात्रा को रिपोर्टों में एक नाटक, एक करतब, ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाने के प्रति अनिच्छुक तथा शासन के अंतर्गत सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे लोगों को गोलबंद करने की हताश कोशिश के रूप में प्रस्तुत किया जाता था।
अखबारों से
अंग्रेज़ी तथा विभिन्न भारतीय भाषाओं में छपने वाले समकालीन अख़बार भी एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं जो महात्मा गाँधी की गतिविधियों पर नज़र रख उनके बारे में छापते थे।
- ये अख़बार आम भारतीयों की सोच का संकेत भी देते हैं।
- लेकिन अख़बार प्रकाशित करने वाले के विचारों से तय होता था कि क्या प्रकाशित किया जाएगा और घटनाओं की रिपोर्टिंग किस तरह की जाएगी।
- इसलिए लंदन से निकलने वाले अख़बार के विवरण भारतीय राष्ट्रवादी अख़बार में छपने वाली रिपोर्टों जैसे नहीं हो सकते थे।
- उनमें ऐसे अफसरों की आशंकाओं और बेचैनियों की झलक भी मिलती है जो किसी आंदोलन को नियंत्रित नहीं कर पा रहे थे और उसके प्रसार के बारे में बेचैन थे।
- औपनिवेशिक सरकार, जनता और उसकी गतिविधियों पर जितनी नज़र रखती थी, अपने शासन के आधार के बारे में उसकी चिंता उतनी ही बढ़ जाती थी।
काल — रेखा
- 1915 — महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से लौटते हैं
- 1917 — चंपारन आंदोलन
- 1918 — खेड़ा (गुजरात) में किसान आंदोलन तथा अहमदाबाद में मजदूर आंदोलन
- 1919 — रॉलेट सत्याग्रह (मार्च-अप्रैल)
- 1919 — जलियांवाला बाग हत्याकांड (अप्रैल)
- 1921 — असहयोग आंदोलन और खिलाफ़त आंदोलन
- 1928 — बारदोली में किसान आंदोलन
- 1929 — लाहौर अधिवेशन (दिसंबर) में “पूर्ण स्वराज” को कांग्रेस का लक्ष्य घोषित किया जाता है
- 1930 — सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू; दांडी यात्रा (मार्च-अप्रैल)
- 1931 — गाँधी-इर्विन समझौता (मार्च); दूसरा गोल मेज सम्मेलन (दिसंबर)
- 1935 — गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में सीमित प्रतिनिधिक सरकार के गठन का आश्वासन
- 1939 — कांग्रेस मंत्रिमंडलों का त्यागपत्र
- 1942 — भारत छोड़ो आंदोलन शुरू (अगस्त)
- 1946 — महात्मा गाँधी सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए नोआखाली तथा अन्य हिंसाग्रस्त के इलाकों का दौरा करते हैं
Class 12 History Chapter 11 Notes PDF Download In Hindi
भाग — 1
विषय एक : ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ (हड़प्पा सभ्यता)
विषय दो : राजा, किसान और नगर (आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ — लगभग 600 ई.पू. से 600 ई.)
विषय तीन : बंधुत्व, जाति तथा वर्ग (आरंभिक समाज — लगभग 600 ई.पू. से 600 ई.)
विषय चार : विचारक, विश्वास और इमारतें (सांस्कृतिक विकास — लगभग 600 ई.पू. से 600 ई.)
भाग — 2
विषय पाँच : यात्रियों के नज़रिए (समाज के बारे में उनकी समझ — लगभग 10वीं से 17वीं सदी तक)
विषय छ: : भक्ति–सूफी परंपराएँ (धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ — लगभग 8वीं से 18वीं सदी तक)
विषय सात : एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर (लगभग 14वीं से 16वीं सदी तक)
विषय आठ : किसान, ज़मींदार और राज्य (कृषि समाज और मुगल साम्राज्य — लगभग 16वीं और 17वीं सदी)
भाग — 3
विषय नौ : उपनिवेशवाद और देहात (सरकारी अभिलेखों का अध्ययन)
विषय दस : विद्रोही और राज (1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान)
विषय बारह : संविधान का निर्माण (एक नए युग की शुरुआत)
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