विषय 7: आधुनिकीकरण के रास्ते
Table of Contents
Toggle19वीं सदी की शुरुआत में चीन का पूर्वी एशिया पर प्रभुत्व था। लेकिन कुछ ही दशकों के अंदर चीन औपनिवेशिक चुनौती का सामना नहीं कर पाया।
- छींग राजवंश का राजनीतिक नियंत्रण जाता रहा और देश गृहयुद्ध की लपटों में आ गया।
- चीन ने आधुनिक दुनिया का सामना करने के लिए अपनी परंपराओं को पुन: परिभाषित, राष्ट्र-शक्ति का पुनर्निर्माण और पश्चिमी व जापानी नियंत्रण से मुक्त होने की कोशिश की।
- 1949 में चीनी साम्यवादी पार्टी ने गृहयुद्ध में जीत हासिल की। 1970 के दशक के आखिरी तक अर्थव्यवस्था में व्यापक सुधार किए गए।
- इससे पूँजीवाद और मुक्त बाज़ार की वापसी हुई, तथापि साम्यवादी दल का राजनीतिक नियंत्रण अब भी बरकरार रहा।
➡ जापान एक आधुनिक राष्ट्र-राज्य के निर्माण में, औद्योगिक अर्थतंत्र की रचना में, ताइवान (1895) तथा कोरिया (1910) को अपने में मिलाते हुए एक औपनिवेशिक साम्राज्य कायम करने में सफल रहा।
- उसने अपनी संस्कृति और अपने आदर्शों की स्रोत-भूमि चीन को 1894 में हराया और 1905 में रूस जैसी यूरोपीय शक्ति को पराजित करने में कामयाब रहा।
- जापान उन्नत औद्योगिक राष्ट्र बन गया, लेकिन साम्राज्य के लालच में 1945 में आंग्ल-अमरीकी सैन्यशक्ति से उसकी हार हुई।
- अमरीकी आधिपत्य के साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था की शुरुआत हुई और 1970 के दशक तक जापान अपनी अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण करके एक प्रमुख आर्थिक शक्ति बनकर उभरा।
- जापान का आधुनिकीकरण का सफ़र पूँजीवाद के सिद्धांतों पर आधारित था।
- यहाँ विकास का तेज़ी से होना जापानी संस्थाओं और समाज में परंपरा की सुदृढ़ता, उनकी सीखने की शक्ति और राष्ट्रवाद की ताकत को दर्शाता है।
➡ चीन और जापान में इतिहास लेखन की लंबी परंपरा रही है क्योंकि इतिहास शासकों के लिए मार्गदर्शक और शासकों का आकलन करने का काम करता है।
- इसलिए शासकों ने अभिलेखों की देखरेख और राजवंशों का इतिहास लिखने के लिए सरकारी विभागों की स्थापना की।
- सिमा छियन (145-90 ई.पू.) को प्राचीन चीन का महानतम इतिहासकार माना जाता है।
- मेजी सरकार ने 1869 में एक ब्यूरो की स्थापना की। जिसको अभिलेखों को इकट्ठा कर मेजी पुनर्स्थापना के बारे में मेजी विजेताओं के नज़रिए से लेखन करना था।
- सरकारी इतिहास, विद्वत्तापूर्ण लेखन, लोकप्रिय साहित्य और धार्मिक परचे आदि लिखित स्रोत उपलब्ध है।
- मुद्रांकन और प्रकाशन पूर्व आधुनिक काल में महत्वपूर्ण उद्योग थे।
आधुनिक विद्वानों ने इन बुद्धिजीवियों के कामों को आगे बढ़ाया:—
- चीनी बौद्धिकों जैसे लिमांग छिचाओ, कुमे कुनीताके (1839-1931)
- यूरोपीय मुसाफ़िरों के लेखन जैसे इटली के मार्को पोलो (1254-1324, जो चीन में 1274 से 1290 तक रहे)
- चीन में जैसूट पादरी मैटियो रिक्की (1552-1610)
- जापान में लुई फ़रॉय (1532-1597)
इन सभी ने इन देशों के बारे में समृद्ध जानकारियाँ दी हैं। आधुनिक विश्व को 19वीं सदी के ईसाई मिशनरियों के लेखन से इन देशों के बारे में बहुमूल्य सामग्री मिलती है।
- जोज़फ नीडहम ने चीनी सभ्यता में विज्ञान के इतिहास पर लिखा।
- जापानी इतिहास और संस्कृति पर जॉर्ज सैन्सम के कार्य लिखित है।
नाइतो कोनन (1866-1934)
- ये चीन पर काम करने वाले प्रमुख जापानी विद्वान थे, जिनके लेखन ने अन्य जापानी लेखकों को प्रभावित किया।
- उन्होंने अपने काम में पश्चिमी इतिहास-लेखन की नई तकनीकों तथा अपने पत्रकारिता के अनुभवों का इस्तेमाल किया।
- 1907 में क्योतो विश्वविद्यालय में प्राच्य अध्ययन का विभाग बनाने में मदद की।
- शिनारॉन (चीन पर, 1914) में उन्होंने तर्क दिया कि गणतांत्रिक सरकार के ज़रिए चीनी सुंग राजवंश (960-1279) के अभिजात वर्ग के नियंत्रण और केंद्रीय सत्ता को खत्म कर सकते हैं।
- उन्हें चीनी इतिहास में ऐसी क्षमताएँ नज़र आईं जो चीन को आधुनिक और लोकतांत्रिक बना सकती थीं।
- जापान चीन में एक अहम भूमिका निभा सकता था लेकिन वे चीनी राष्ट्रवाद की शक्ति का सही आकलन नहीं कर पाए।
परिचय
चीन और जापान के भौतिक भूगोल में काफी अंतर है। चीन विशालकाय महाद्वीपीय देश, जिसमें कई तरह की जलवायु वाले क्षेत्र हैं। देश का बहुत सा हिस्सा पहाड़ी है।
इसकी 3 प्रमुख नदियाँ हैं:—
- पीली नदी (हुआंग हे)
- यांग्त्सी नदी (छांग जिआंग ㅡ दुनिया की तीसरी सबसे लंबी नदी)
- पर्ल नदी
➡ हान सबसे प्रमुख जातीय समूह और प्रमुख भाषा चीनी (पुतोंगहुआ) है लेकिन कई और राष्ट्रीयताएँ (उइघुर, हुई, मांचू और तिब्बती) भी हैं।
- कैंटनीज़ कैंटन (गुआंगज़ाओ) की बोली उए और शंघाईनीज़ (शंघाई की बोली -वू) जैसी बोलियों के अलावा कई अल्पसंख्यक भाषाएँ भी बोली जाती हैं।
चीनी खानों में क्षेत्रीय विविधता की झलक मिलती है जिसमें चार प्रमुख है:–
- सबसे प्रसिद्ध पाकप्रणाली दक्षिणी या केंटोनी है, जो कैंटन व उसके आंतरिक क्षेत्रों की है। विदेशों में रहने वाले ज़्यादातर चीनी कैंटन प्रांत से आते हैं।
- जाना-माना डिम सम (दिल को छूना) यहीं का खाना है जो गुंथे हुए आटे को सब्ज़ी आदि भरकर उबाल कर बनाए गए व्यंजन जैसा है।
- उत्तर में गेहूँ मुख्य आहार है, जबकि शेचुआँ में प्राचीन काल में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा लाए गए मसाले और रेशम मार्ग के ज़रिए 15वीं सदी में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा लाई गई मिर्च के चलते खासा झालदार और तीखा खाना मिलता है।
- पूर्वी चीन में चावल और गेहूँ, दोनों खाए जाते हैं।
➡ जापान एक द्वीप श्रृंखला है जिसमें चार सबसे बड़े द्वीप है होंशू, क्यूशू, शिकोकू और होकाइदो।
- ओकिनावा द्वीपों की श्रृंखला सबसे दक्षिण में है।
- मुख्य द्वीपों की 50% से अधिक ज़मीन पहाड़ी है।
- जापान बहुत ही सक्रिय भूकंप क्षेत्र में है।
- इन भौगोलिक परिस्थितियों ने वहाँ की वास्तुकला को प्रभावित किया है।
➡ अधिकतर जनसंख्या जापानी है लेकिन कुछ आयनू अल्पसंख्यक और कुछ कोरिया के लोग हैं जिन्हें श्रमिक मज़दूर के रूप में उस समय जापान के उपनिवेश कोरिया से लाया गया था।
- जापान में पशुपालन की परंपरा नहीं है।
- चावल बुनियादी फसल और मछली प्रोटीन का मुख्य स्रोत है।
- कच्ची मछली साशिमी या सूशी अब दुनिया भर में सेहतमंद होने के कारण बहुत लोकप्रिय हो गई है।
जापान (राजनीतिक व्यवस्था)
जापान पर क्योतो में रहनेवाले सम्राट का शासन था लेकिन 12वीं सदी तक सत्ता शोगुनों के हाथ में आ गई जो सैद्धांतिक रूप से राजा के नाम पर शासन करते थे।
- 1603 से 1867 तक तोकुगावा परिवार के लोग शोगुनपद पर कायम थे।
- देश 250 भागों में विभाजित था जिनका शासन दैम्यो चलाते थे। इनपर शोगुन का नियंत्रण था।
- शोगुन दैम्यो को लंबे अरसे के लिए राजधानी एदो (तोक्यो) में रहने का आदेश देते थे ताकि उनकी तरफ़ से कोई खतरा न रहे।
- शोगुन प्रमुख शहरों और खदानों पर भी नियंत्रण रखते थे।
- सामुराई (योद्धा वर्ग) शासन करने वाले कुलीन थे जो शोगुन तथा दैम्यो की सेवा में थे।
16वीं सदी के अंतिम भाग में तीन परिवर्तनों ने आगे के विकास को प्रभावित किया:—
- किसानों से हथियार ले लिए गए, अब केवल सामुराई तलवार रख सकते थे। इससे शांति और व्यवस्था बनी रही जबकि पिछली सदी में इस वजह से अक्सर लड़ाइयाँ होती रहती थीं।
- दैम्यो को अपने क्षेत्रों की राजधानियों में काफ़ी हद तक स्वायत्तता के साथ रहने के आदेश दिए गए।
- मालिकों और करदाताओं का निर्धारण करने के लिए ज़मीन का सर्वेक्षण कर उत्पादकता के आधार पर भूमि का वर्गीकरण किया गया।
➡ दैम्यो की राजधानियाँ बड़ी होने से 17वीं सदी के मध्य तक जापान में एदो दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर बन गया और ओसाका तथा क्योतो अन्य बड़े शहरों के रूप में उभरे।
- इससे वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था का विकास हुआ और वित्त तथा ऋण की प्रणालियाँ स्थापित हुई।
- व्यक्ति के गुण उसके पद से अधिक मूल्यवान समझे जाने लगे।
- शहरों में बढ़ते व्यापारी वर्ग ने नाटक और कलाओं को प्रोत्साहन दिया।
- लोगों के पढ़ने के शौक ने लेखकों के लिए लेखन से अपनी जीविका चलाना संभव बनाया।
- एदो में लोग नूडल की कटोरी की कीमत पर किताब किराए पर ले सकते थे।
➡ जापान अमीर देश समझा जाता था, क्योंकि वह चीन से रेशम और भारत से कपड़ा जैसी विलासी वस्तुएँ आयात करता था।
- इन आयतों के लिए चाँदी और सोने में कीमत अदा करने से अर्थव्यवस्था पर भार पड़ने पर तोकुगावा ने कीमती धातुओं के निर्यात पर रोक लगा दी।
- रेशम का आयात कम करने के लिए उन्होंने क्योतो के निशिजिन में रेशम उद्योग का विकास किया। इसका रेशम दुनिया भर में बेहतरीन रेशम माना जाने लगा।
- मुद्रा का बढ़ता प्रयोग और चावल के शेयर बाज़ार का निर्माण आदि अर्थतंत्र के विकास को दर्शाते है।
प्राचीन जापानी साहित्य में और जापान की उत्पत्ति की पौराणिक कथाओं में, मिथकीय कहानियाँ बताती हैं कि इन द्वीपों को भगवान ने बनाया था और सम्राट सूर्य देवी के उत्तराधिकारी थे।
मेजी पुनर्स्थापना
1867-68 में मेजी वंश के नेतृत्व में तोकुगावा वंश का शासन समाप्त किया गया। मेजियों की पुनर्स्थापना के पीछे कई कारण थे:—
- देश में तरह-तरह के असंतोष के साथ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व कूटनीतिक संबंधों की माँग हो रही थी।
- 1853 में अमरीका ने कॉमोडोर मैथ्यू पेरी को जापानी सरकार से राजनयिक और व्यापारिक संबंध बनाने की लिए भेजा। इस समझौते पर जापान ने 1854 में हस्ताक्षर किए।
- उस समय केवल एक ही पश्चिमी देश हॉलैंड, जापान के साथ व्यापार करता था।
पेरी के आगमन ने जापानी राजनीति पर महत्वपूर्ण असर डाला:—
- सम्राट की अहमियत बढ़ गई, जिसके पास पहले बहुत कम राजनैतिक सत्ता थी।
- 1868 में एक आंदोलन द्वारा शोगुन को ज़बरदस्ती सत्ता से हटा कर सम्राट मेजी को एदो ले आया गया।
- एदो को राजधानी बनाकर इसका नाम तोक्यो (पूर्वी राजधानी) रखा गया।
➡ ब्रितानियों के हाथों चीन की हार की खबरें फैलने से जापानी सरकार ने फुकोकु क्योहे (समृद्ध देश, मज़बूत सेना) के नारे के साथ नयी नीति का ऐलान किया।
- उन्हें समझ आ गया कि अपनी अर्थव्यवस्था का विकास और मज़बूत सेना का निर्माण करना ज़रूरी है, वरना भारत की तरह पराधीनता का सामना करना पड़ेगा।
- इसके लिए उन्होंने जनता के बीच राष्ट्र की भावना का निर्माण करने और प्रजा को नागरिक की श्रेणी में बदलने की शुरुआत की।
- इसके साथ ही नयी सरकार ने “सम्राट-व्यवस्था” के पुनर्निर्माण का काम शुरू किया।
- राजतांत्रिक व्यवस्था के नमूनों को समझने के लिए कुछ अधिकारियों को यूरोप भेजा गया।
- सम्राट को सूर्य देवी का वंशज माना गया, लेकिन साथ ही उसे पश्चिमीकरण का नेता भी बनाया गया।
- सम्राट का जन्मदिन राष्ट्रीय छुट्टी का दिन बन गया, वह पश्चिमी अंदाज़ के सैनिक कपड़े पहनने लगा और उसके नाम से आधुनिक संस्थाएँ स्थापित करने के अधिनियम जारी किए जाने लगे।
- 1890 की शिक्षासंबंधी राजाज्ञा ने लोगों को पढ़ने, जनता के सार्वजनिक एवं साझे हितों को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया।
➡ 1870 के दशक से नयी विद्यालय व्यवस्था से लड़के और लड़कियों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य हो गया। 1910 तक लगभग स्कूल जाने से कोई भी वंचित नहीं रहा।
- पढ़ाई की फ़ीस बहुत कम थी। शुरू में पाठयचर्या पश्चिमी नमूनों पर आधारित थी लेकिन 1870 के दशक तक आधुनिक विचारों पर ज़ोर देने के साथ राज्य के प्रति निष्ठा और जापानी इतिहास के अध्ययन पर बल दिया गया।
- शिक्षा मंत्रालय पाठ्यचर्या पर, किताबों के चयन और शिक्षकों के प्रशिक्षण पर नियंत्रण रखता था।
- नैतिक संस्कृति का विषय पढ़ना ज़रूरी था। किताबों में माता-पिता के प्रति आदर, राष्ट्र के प्रति वफ़ादारी और अच्छे नागरिक बनने की प्रेरणा दी जाती थी।
➡ राष्ट्र के एकीकरण के लिए मेजी सरकार ने पुराने गाँवों और क्षेत्रीय सीमाओं को बदलकर नया प्रशासनिक ढाँचा तैयार किया।
- स्थानीय स्कूल, स्वास्थ्य सुविधाओं और सेना के लिए भर्ती केंद्रों के काम के लिए पर्याप्त राजस्व ज़रूरी था।
- 20 साल से अधिक उम्र के नौजवानों के लिए कुछ अरसे सेना में काम करना अनिवार्य हो गया।
- एक आधुनिक सैन्य बल तैयार किया गया। राजनीतिक गुटों के गठन को देखने, बैठकें बुलाने पर नियंत्रण रखने और सख्त सेंसर व्यवस्था बनाने के लिए कानून व्यवस्था बनाई गई।
- सेना और नौकरशाही को सीधा सम्राट के निर्देश में रखा गया।
- सेना ने और इलाके जीतने के मकसद से मज़बूत विदेश नीति के लिए दबाव डाला।
- इस वजह से चीन और रूस के साथ जंग हुई, दोनों में ही जापान विजयी रहा।
- जापान आर्थिक रूप से विकास करता गया और उसने अपना एक औपनिवेशिक साम्राज्य कायम किया।
- अपने देश में उसने लोकतंत्र के प्रसार को कुचलने के साथ उपनिवेशीकृत लोगों के साथ टकराव का रिश्ता कायम किया।
अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण
मेजी सरकार ने अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण करने के लिए कृषि पर कर लगाकर धन इकट्ठा किया।
- जापान की पहली रेल लाइन 1870-72 में तोक्यो और योकोहामा बंदरगाह के बीच बिछाई गई।
- वस्त्र उद्योग के लिए मशीनें यूरोप से आयात की गई।
- मज़दूरों के प्रशिक्षण के लिए विदेशी कारीगरों को बुला कर उन्हें जापानी विश्वविद्यालयों और स्कूलों में पढ़ाने के लिए भेजा गया।
- जापानी विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए विदेश भी भेजा गया।
- 1872 में आधुनिक बैंकिंग संस्थाओं का प्रारंभ हुआ।
- मित्सुबिशी और सुमितोमो जैसी कंपनियों को सब्सिडी और करों में फ़ायदे के ज़रिए प्रमुख जहाज़ निर्माता बनने से जापानी व्यापार जापानी जहाज़ों में होने लगा।
- ज़ायबात्सु (बड़ी व्यापारिक संस्थाएँ जिन पर विशिष्ट परिवारों का नियंत्रण था) का प्रभुत्व दूसरे विश्व युद्ध के बाद तक अर्थव्यवस्था पर बना रहा।
➡ 1872 में जनसंख्या 3.5 करोड़ थी जो 1920 में 5.5 करोड़ हो गई। जनसंख्या को कम करने के लिए सरकार ने प्रवास को बढ़ावा दिया।
- पहले उत्तरी टापू होकाइदो (आयनू कहे जानेवाले देसी लोग रहते थे); फिर हवाई तथा ब्राज़ील और जापान के बढ़ते हुए औपनिवेशिक साम्राज्य की तरफ़।
- उद्योग के विकास के साथ लोग शहरों में आए। 1925 तक 21% जनता शहरों में रहती थी, जो 1935 तक 32% हो गई।
औद्योगिक मज़दूर
औद्योगिक मज़दूरों की संख्या 1870 में 7 लाख से बढ़कर 1913 में 40 लाख पहुँच गई। अधिकतर इकाइयों में 5 से कम मज़दूर काम करते थे जिनमें मशीनों और विद्युत ऊर्जा का प्रयोग नहीं होता था।
- इन कारखानों में काम करने वालों में आधे से ज़्यादा महिलाएँ थीं। 1886 में पहली आधुनिक हड़ताल का आयोजन महिलाओं ने ही किया।
- 1900 के बाद कारखानों में पुरुषों की संख्या बढ़ी लेकिन 1930 के दशक में आकर ही इनकी संख्या महिलाओं से अधिक हुई।
- 100 से ज़्यादा मज़दूर वाले कारखानों की संख्या 1909 में 1000, 1920 तक 2000 से अधिक और 1930 के दशक में 4000 हो गई।
- फिर भी 1940 में 5,50,000 कारखानों में 5 से कम मज़दूर काम करते थे। इससे परिवार केंद्रित विचारधारा बनी रही।
➡ उद्योग के तेज़ और अनियंत्रित विकास और लकड़ी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की माँग से पर्यावरण का विनाश हुआ।
- संसद के पहले निम्न सदन के सदस्य तनाको शोज़ो ने 1897 में औद्योगिक प्रदूषण के खिलाफ़ पहला आंदोलन छेड़ा।
- 800 गाँववासियों ने विरोध में इकट्ठे होकर सरकार को कार्रवाई करने के लिए मज़बूर किया।
आक्रामक राष्ट्रवाद
मेजी संविधान सीमित मताधिकार पर आधारित था और उसने डायट बनाई जिसके अधिकार सीमित थे।
- शाही पुनःस्थापना करने वाले नेता सत्ता में बने रहे और उन्होंने राजनीतिक पार्टियों का गठन किया।
- 1918 और 1931 के बीच जनमत से चुने गए प्रधानमंत्रियों ने मंत्रिपरिषद बनाए।
- इसके बाद उन्होंने पार्टियों का भेद भुला कर बनाई गई राष्ट्रीय एकता मंत्रिपरिषदों के हाथों अपनी सत्ता खो दी।
- सम्राट सैन्यबलों का कमांडर था और 1890 से थलसेना और नौसेना का नियंत्रण स्वतंत्र है।
- 1899 में प्रधानमंत्री के आदेश से केवल सेवारत जनरल और एडमिरल ही मंत्री बन सकते हैं।
पश्चिमीकरण और परंपरा
जापान के अन्य देशों के साथ संबंधों पर जापानी बुद्धिजीवियों के विचार अलग-अलग थे।
- फ़ुकुज़ावा यूकिची मेजी काल के प्रमुख बुद्धिजीवियों में से थे। उनका कहना था कि जापान को अपने एशियाई लक्षण छोड़कर पश्चिम का हिस्सा बन जाना चाहिए।
- दर्शनशास्त्री मियाके सेत्सुरे ने तर्क पेश किया कि विश्व सभ्यता के हित में हर राष्ट्र को अपने खास हुनर का विकास करना चाहिए।
- बहुत से बुद्धिजीवी पश्चिमी उदारवाद से आकर्षित होकर चाहते थे कि जापान अपना आधार सेना की बजाय लोकतंत्र पर बनाए।
- उएकी एमोरी फ्रांसीसी क्रांति में मानवों की प्राकृतिक अधिकार और जन प्रभुसत्ता के सिद्धांतों के प्रशंसक उदारवादी शिक्षा के पक्ष में थे।
- कुछ दूसरे लोगों ने महिलाओं के मताधिकार की भी सिफ़ारिश की। इस दबाव ने सरकार को संविधान की घोषणा करने पर बाध्य किया।
रोज़मर्रा की ज़िंदगी
जापान का एक आधुनिक समाज में रूपांतरण रोज़ाना की ज़िंदगी में आए बदलावों में दिखता है।
- लोगों के समृद्ध होने पर पैतृक परिवार व्यवस्था मूल परिवार में बदल गई, जहाँ पति-पत्नी साथ कमाते और घर बसाते थे।
- इससे नए तरह के घरेलू उत्पादों, नए क़िस्म के पारिवारिक मनोरंजन और नए प्रकार के घर की माँग पैदा हुई।
- 1920 के दशक में निर्माण कंपनियों ने 200 येन देने के बाद लगातार 10 साल के लिए 12 महीनों की किश्तों पर लोगों को सस्ते मकान मुहैया कराए।
आधुनिकता पर विजय
1930-40 के दौरान सत्ता केंद्रित राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिला जब जापान ने चीन और एशिया में अपने उपनिवेश बढ़ाने के लिए लड़ाइयाँ छेड़ीं।
- ये लड़ाइयाँ दूसरे विश्व युद्ध में जापान द्वारा अमरीका के पर्ल हार्बर पर हमला करने पर मिल गई।
- इस दौर में सामाजिक नियंत्रण में वृद्धि हुई। असहमति प्रकट करने वालों पर ज़ुल्म ढाए गए और उन्हें जेल भेजा गया।
- देश भक्तों की ऐसी संस्थाएँ बनी जो युद्ध का समर्थन करती थी। इनमें महिलाओं के कई संगठन थे।
- 1943 में एक संगोष्ठी में आधुनिक रहते हुए पश्चिम पर विजय पाने पर चर्चा हुई।
- संगीतकार मोरोइ साबुरो जापानी संगीत को पश्चिमी वाद्यों पर बजा कर आगे ले जाने की राह खोज रहे थे।
➡ दर्शनशास्त्री निशितानी केजी ने “आधुनिक” को तीन पश्चिमी धाराओं के मिलन और एकता से परिभाषित किया: पुनर्जागरण, प्रोटैस्टेंट सुधार और प्राकृतिक विज्ञानों का विकास।
- उन्होंने कहा कि जापान की “नैतिक ऊर्जा” ने उसे उपनिवेश बनने से बचा लिया। इसलिए जापान एक नयी विश्व पद्धति, एक विशाल पूर्वी एशिया के निर्माण के लिए विज्ञान और धर्म को जोड़े।
हार के बाद—एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में वापसी
जापान की औपनिवेशिक साम्राज्य की कोशिशें संयुक्त बलों के हाथों हारकर खत्म हो गई। तर्क दिया गया कि युद्ध जल्दी खत्म करने के लिए हिरोशिमा और नागासाकी पर नाभिकीय बम गिराए गए।
- लेकिन अन्य का मानना था कि इतने बड़े पैमाने पर विध्वंस और दुख-दर्द का तांडव पूरी तरह से अनावश्यक था।
- अमरीकी नेतृत्व वाले कब्ज़े (1945-47) के दौरान जापान का विसैन्यीकरण करके एक नया संविधान लागू हुआ।
- इसके अनुच्छेद 9 के अनुसार युद्ध का राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में प्रयोग वर्जित है।
- कृषि सुधार, व्यापारिक संगठनों का पुनर्गठन और जापानी अर्थव्यवस्था में ज़ायबात्सु की पकड़ को खत्म करने की कोशिश की गई।
- राजनीतिक पार्टियों को पुनर्जीवित करने के बाद पहले चुनाव 1946 में हुए, इसमें पहली बार महिलाओं ने भी मतदान किया।
➡ भयंकर हार के बावजूद जापानी अर्थव्यवस्था का तेज़ी से पुनर्निर्माण को चमत्कार कहा गया है। संविधान को औपचारिक रूप से गणतांत्रिक रूप इसी समय दिया गया।
- लेकिन जापान में जनवादी आंदोलन और राजनीतिक भागेदारी का आधार बढ़ाने में बौद्धिक सक्रियता की ऐतिहासिक परंपरा रही है।
- अमरीकी समर्थन और कोरिया तथा वियतनाम में जंग से जापानी अर्थव्यवस्था को मदद मिली।
- 1964 में तोक्यो में हुए ओलंपिक खेल और शिंकांसेन (बुलेट ट्रेन) का जाल जापानी अर्थव्यवस्था का प्रतीक बना।
➡ 1960 के दशक में नागरिक समाज आंदोलन का विकास हुआ। बढ़ते औद्योगीकरण की वजह से स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़े दुष्प्रभाव को नज़र अंदाज करने का विरोध किया गया।
- अरगजी का ज़हर एक आरंभिक सूचक था। इसके बाद 1960 के दशक में मिनामाता के पारे के ज़हर के फैलने और 1970 के दशक में वायु प्रदूषण की समस्याएँ जन्मीं।
- जमीनी स्तरों पर दबाव बनाने वाले गुटों के कारण सरकारी कार्रवाई और नए कानूनों से स्थिति बेहतर हुई।
- 1990 तक जापान में विश्व के कुछ कठोरतम पर्यावरण नियंत्रण अमल में लाए गए।
आज एक विकसित देश के रूप में यह विश्व शक्ति की अपनी हैसियत को बनाए रखने के लिए अपनी राजनीतिक और प्रौद्योगिकीय क्षमताओं का प्रयोग करने की चुनौतियों का सामना कर रहा है।
चीन
चीन का आधुनिक इतिहास संप्रभुता की पुनर्प्राप्ति, विदेशी कब्ज़े के अपमान का अंत और समानता तथा विकास को संभव करने के चीनी बहसों में तीन समूहों के नज़रिए झलकते हैं।
- कांग योवेल या लियांग किचाउ जैसे सुधारकों ने पश्चिम की चुनौतियों का सामना करने के लिए पारंपरिक विचारों को नए और अलग तरीके से प्रयोग करने की कोशिश की।
- गणतंत्र के पहले राष्ट्राध्यक्ष सन यात-सेन जैसे गणतांत्रिक क्रांतिकारी जापान और पश्चिम के विचारों से प्रभावित थे।
- चीन की कम्युनिस्ट पार्टी युगों-युगों की असमानताओं को खत्म करना और विदेशियों को खदेड़ना चाहती थी।
➡ आधुनिक चीन की शुरुआत 16वीं और 17वीं सदी से मानी जाती है, जबकि जेसुइट मिशनरियों ने खगोलविद्या और गणित जैसे पश्चिमी विज्ञानों को वहाँ पहुँचाया।
- 19वीं सदी में ब्रिटेन के अफ़ीम व्यापार को बढ़ाने के लिए सैन्य बलों का प्रयोग करने से पहला अफ़ीम युद्ध (1839-1942) हुआ।
- इसने सत्ताधारी क्विंग राजवंश को कमज़ोर कर सुधार तथा बदलाव की मांगों को मज़बूती दी।
- कांग यूवेई और लियांग किचाउ जैसे क्विंग सुधारकों ने व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए एक आधुनिक प्रशासकीय व्यवस्था, नयी सेना और शिक्षा व्यवस्था के निर्माण नीतियाँ बनाने के साथ संवैधानिक सरकार की स्थापना के लिए स्थानीय विधायिकाओं का भी गठन किया।
➡ उपनिवेश बनाए गए देशों के नकारात्मक उदाहरणों (पोलैंड, भारत) ने चीनी विचारकों पर ज़बर्दस्त प्रभाव डाला।
- विचारक लियांग किचाउ का मानना था कि चीनी लोगों में एक राष्ट्र की जागरूकता लाकर ही चीन पश्चिम का विरोध कर पाएगा।
- 1930 में उन्होंने लिखा कि भारत किसी और देश से नहीं बल्कि एक कंपनी (ईस्ट इंडिया कंपनी) के हाथों बर्बाद हो गया।
- कइयों ने परंपरागत सोच को बदलना ज़रूरी समझा। कन्फयूशियसवाद चीन में प्रमुख विचारधारा रही है। यह विचारधारा कन्फयूशियस (551-479 ई.पू.) और उनके अनुयायियों की शिक्षा से विकसित की गई।
- इसमें अच्छे व्यवहार, व्यावहारिक समझदारी और उचित सामाजिक संबंधों के सिद्धांत थे।
- इसने चीनियों के जीवन के प्रति रवैये को प्रभावित किया, सामाजिक मानक दिए और चीनी राजनीतिक सोच और संगठनों को आधार दिया।
➡ लोगों को नए विषयों में प्रशिक्षित करने के लिए विद्यार्थियों को जापान, ब्रिटेन और फ्रांस में पढ़ने भेजा गया।
- 1890 के दशक में बड़े तादाद में चीनी विद्यार्थी पढ़ने के लिए जापान गए। वे नए विचार साथ लाए और गणतंत्र की स्थापना करने में भूमिका निभाई।
- चीनी और जापानी भाषा एक ही चित्रलिपि का प्रयोग करती है, चीन ने जापान से न्याय, अधिकार और क्रांति के यूरोपीय विचारों के जापानी अनुवाद लिए।
- 1905 में रूसी-जापानी युद्ध के बाद सदियों पुरानी चीनी परीक्षा प्रणाली समाप्त करी गई, जो प्रत्याशियों को अभिजात सत्ताधारी वर्ग में दाखिला दिलाने का काम करती थी।
गणतंत्र की स्थापना
1911 में मांचू साम्राज्य समाप्त कर सन यात-सेन के नेतृत्व में गणतंत्र की स्थापना की गई। वे निर्विवाद रूप से आधुनिक चीन के संस्थापक माने जाते हैं।
- वे एक गरीब परिवार से थे और मिशन स्कूलों में शिक्षा ग्रहण की जहाँ उनका परिचय लोकतंत्र और ईसाई धर्म से हुआ।
- उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई की लेकिन वे चीन के भविष्य को लेकर चिंतित थे।
- उनका कार्यक्रम तीन सिद्धांत (सन मिन चुई) के नाम से मशहूर है:—
- राष्ट्रवाद (मांचू वंश) को सत्ता से हटाना
- अन्य साम्राज्यवादियों को हटाना
- समाजवाद, जो पूँजी का नियमन कर भूस्वामित्व में बराबरी लाए
➡ 4 मई 1919 को बीजिंग में युद्धोत्तर शांति सम्मेलन के विरोध में प्रदर्शन, आंदोलन में बदल गया।
- चीन ब्रितानिया के नेतृत्व में विजयी देशों का सहयोगी था, पर उससे हथियाए इलाके वापस नहीं मिले थे।
- इसने चीन को आधुनिक विज्ञान, लोकतंत्र और राष्ट्रवाद के ज़रिए बचाने की माँग की।
- क्रांतिकारियों ने देश के संसाधनों पर कब्ज़ा जमाए विदेशियों को भगाने, असमानताएँ हटाने, गरीबी कम करने, लेखन में एक ही भाषा का प्रयोग, पैरों को बाँधने की प्रथा, औरतों की अधीनस्थता के खात्मे और शादी में बराबरी जैसे सुधारों की वकालत की।
➡ कुओमीनतांग (नेशनल पीपुल्स पार्टी) और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी मुल्क को एकताबद्ध करने और स्थिरता लाने के लिए महत्त्वपूर्ण ताक़तों के रूप में उभरीं।
- सन यात-सेन के विचार कुओमीनतांग के राजनीतिक दर्शन का आधार बने।
- उन्होंने कपड़ा, खाना, घर और परिवहन जैसी ज़रूरतों को रेखांकित किया।
- उनकी मृत्यु के बाद चियांग काइशेक नेता बनकर सैन्य अभियान के ज़रिए वारलार्ड्स को अपने नियंत्रण में लेकर साम्यवादियों को खत्म कर डाला।
- उन्होंने सेक्युलर और विवेकपूर्ण ”इहलौकिक” कन्फूशियसवाद की हिमायत के साथ राष्ट्र का सैन्यकरण करने की भी कोशिश की।
- उन्होंने लोगों को एकताबद्ध व्यवहार की प्रवृत्ति और आदत का विकास करने को कहा।
- महिलाओं को चार सद्गुण (सतीत्व, रूप-रंग, वाणी तथा काम) पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया और उनकी भूमिका को घरेलू स्तर पर ही देखने पर ज़ोर दिया।
➡ कुओमीनतांग का सामाजिक आधार शहरी इलाकों और औद्योगिक विकास धीमा तथा गिने-चुने क्षेत्रों में था।
- शंघाई जैसे शहरों में 1919 में औद्योगिक मज़दूरों की संख्या 5 लाख थी, लेकिन इनके कुछ प्रतिशत ही जहाज़ निर्माण जैसे आधुनिक उद्योगों में काम कर रहे थे।
- ज़्यादातर लोग नगण्य शहरी (शियाओ शिमिन), व्यापारी और दुकानदार होते थे।
- शहरी मज़दूरों, खासकर महिलाओं का कम वेतन, काम करने के घंटे बहुत लंबे और परिस्थितियाँ बहुत खराब थी।
- व्यक्तिवाद बढ़ने से महिलाओं के अधिकार, परिवार बनाने के तरीके और प्यार-मुहब्बत पर चर्चा बढ़ती गई।
➡ स्कूल और विश्वविद्यालयों के फैलने से सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव हुए। पीकिंग विश्वविद्यालय की स्थापना 1902 में हुई।
- शाओ तोआफ़ेन द्वारा संपादित लोकप्रिय लाइफ़ वीकली नयी विचारधारा की प्रतिनिधि थी।
- इसने अपने पाठकों को नए विचारों के साथ गांधी और तुर्की के आधुनिकता पसंद नेता कमाल अतातुर्क जैसे नेताओं से अवगत कराया।
- इसका वितरण 1926 में 2000 प्रतियों से बढ़कर 1933 में 2 लाख हो गया।
➡ देश को एकीकृत करने की कोशिशों के बावजूद कुओमीनतांग अपने संकीर्ण सामाजिक आधार और सीमित राजनीतिक दृष्टि के चलते असफल हो गया।
- पार्टी द्वारा किसानों और बढ़ती सामाजिक असमानता की अनदेखी करने से पूँजी का नियमन तथा भूमि अधिकारों में बराबरी लाना कभी अमल में नहीं आया और फ़ौजी व्यवस्था थोपने का प्रयास किया गया।
समय — रेखा
जापान
- 1603 — तोकुगावा लियासु द्वारा ईडो शोगुनेट की स्थापना
- 1630 — डचों के साथ अपने सीमित व्यापार को छोड़ कर अन्य पश्चिमी शक्तियों के लिए जापान के दरवाज़े बंद
- 1854 — जापान और संयुक्त राज्य अमरीका द्वारा शांति-समझौते को अंतिम रूप देना, जापान के अलगाव का अंत
- 1868 — मेज़ी पुनर्स्थापना
- 1872 — अनिवार्य शिक्षा व्यवस्था तोक्यो और योकोहामा के बीच पहली रेलवे लाइन
- 1889 — मेज़ी संविधान अमल में आया
- 1894-95 — चीन और जापान के बीच युद्ध
- 1904-05 — जापान और रूस के बीच युद्ध
- 1910 — कोरिया का समामेलन, 1945 तक उपनिवेश
- 1914-18 — पहला विश्वयुद्ध
- 1925 — सभी पुरुषों को मताधिकार
- 1931 — चीन पर जापान का हमला
- 1941-45 — प्रशांत युद्ध
- 1945 — हिरोशिमा और नागासाकी पर अणुबम विस्फोट
- 1946-52 — अमरीका के नेतृत्व में जापान पर कब्ज़ा, जापान का लोकतंत्रीकरण और असैन्यीकारण करने के लिए सुधार
- 1956 — जापान संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना
- 1964 — एशिया में पहली बार तोक्यो में ओलंपिक खेल
चीन
- 1644-1911 — छींग राजवंश
- 1839-60 — दो अफ़ीम युद्ध
- 1912 — सन यात सेन द्वारा कुओमीनतांग की स्थापना
- 1919 — 4 मई का आंदोलन
- 1921 — चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना
- 1926-49 — चीन में गृहयुद्ध
- 1934 — लॉन्ग मार्च
- 1949 — चीन का जनवादी गणतंत्र, चियांग काई शेक ने ताइवान में चीनी गणतंत्र की स्थापना की
- 1962 — सीमा विवाद को लेकर भारत पर चीन का आक्रमण
- 1966 — सांस्कृतिक क्रांति
- 1976 — माओ त्सेतुंग का और चाऊ एनलाई का निधन
- 1997 — ब्रिटेन द्वारा चीन को हांगकांग की वापसी
चीनी साम्यवादी दल का उदय
1937 में जापानियों द्वारा चीन पर हमला करने पर कुओमीनतांग पीछे हट गया और इस लंबे युद्ध से चीन कमज़ोर हो गया।
- 1945-49 के बीच कीमतें 30% प्रति महीने की रफ़्तार से बढ़ने से आम आदमी की ज़िंदगी तबाह हो गई।
ग्रामीण चीन में दो संकट थे:—
- पर्यावरण संबंधी (बंजर ज़मीन, वनों का नाश और बाढ़)
- सामाजिक-आर्थिक जो विनाशकारी ज़मीन-प्रथा, आदिम प्रौद्योगिकी और निम्न स्तरीय संचार के कारण था।
➡ रूसी क्रांति (1917) की सफलता ने पूरी दुनिया पर ज़बर्दस्त प्रभाव डाला। लेनिन और ट्रॉटस्की जैसे नेताओं ने मार्च 1918 में कौमिंटर्न (तृतीय अंतर्राष्ट्रीय) का गठन किया जिससे विश्व स्तरीय सरकार बनाई जाए जो शोषण को खत्म कर सके।
- इसके बाद चीन की साम्यवादी पार्टी की स्थापना 1921 में हुई।
- कौमिंटर्न और सोवियत संघ ने दुनिया भर में साम्यवादी पार्टियों का समर्थन किया, कि क्रांति शहरी इलाकों में मज़दूर वर्ग लाएँगे।
- शुरू में विभिन्न देशों के लोग इससे आकर्षित हुए लेकिन जल्द ही सोवियत यूनियन ने स्वार्थ में इसे 1943 में खत्म कर दिया।
- माओ त्सेतुंग (सी.सी.पी. के प्रमुख नेता) ने क्रांति के कार्यक्रम को किसानों पर आधारित किया।
- उनकी सफलता से चीनी साम्यवादी पार्टी एक शक्तिशाली राजनीतिक ताकत बनकर कुओमीनतांग को हराया।
➡ 1928-34 के बीच जियांग्सी में उन्होंने के कुओमीनतांग हमलों से सुरक्षित शिविर लगाए।
- मज़बूत किसान परिषद (सोवियत) का गठन कर ज़मीन पर कब्ज़ा और पुनर्वितरण के साथ एकीकरण किया।
- उन्होंने आज़ाद सरकार और सेना पर ज़ोर दिया।
- ग्रामीण महिला संघों को उभरने में प्रोत्साहन दिया।
- शादी के नए कानून में आयोजित शादियों और शादी के समझौते खरीदने तथा बेचने पर रोक लगाई और तलाक को आसान बनाया।
➡ कम्युनिस्टों की सोवियत की कुओमीनतांग द्वारा नाकेबंदी के कारण उन्हें लॉंग मार्च (1934-35) पर जाना पड़ा, जो शांग्सी तक 6000 मील का सफ़र था।
- येनान में उन्होंने युद्ध सामंतवाद को खत्म करने, भूमि सुधार लागू करने और विदेशी साम्राज्यवाद से लड़ने के कार्यक्रम को आगे बढ़ाया।
- युद्ध के मुश्किल सालों में साम्यवादियों और कुओमीनतांग ने मिलकर काम किया लेकिन युद्ध के बाद साम्यवादी सत्ता में आ गए और कुओमीनतांग की हार हो गई।
नए जनवाद की स्थापना : 1949-65
1949 में बनी पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की सरकार एक नए लोकतंत्र के सिद्धांतों पर आधारित सभी सामाजिक वर्गों का गठबंधन था।
- अर्थव्यवस्था के मुख्य क्षेत्र सरकार के नियंत्रण में रखे गए और निजी कारखानों तथा भूस्वामित्व को खत्म करने का कार्यक्रम 1953 तक चला।
- 1958 में देश का तेज़ी से औद्योगीकरण करने की कोशिश में लोगों को अपने घर के पीछे इस्पात की भट्ठियाँ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
- ग्रामीण इलाकों में पीपुल्स कम्यून्स (लोग इकट्ठे ज़मीन के मालिक बन मिलजुलकर फसल उगाते थे) शुरू किए गए। 1958 तक 26,000 ऐसे समुदाय थे जो कि कृषक आबादी का 98% था।
➡ माओ जनसमुदाय को प्रेरित करने में सफल रहे। वे समाजवादी व्यक्ति (जिसे पाँच चीज़ें प्रिय होंगी: पितृभूमि, जनता, काम, विज्ञान और जन संपत्ति) बनाना चाहते थे।
- किसानों, महिलाओं, छात्रों और अन्य गुटों के लिए जन संस्थाएँ बनाई गई।
- जैसे: ऑल चाइना डेमोक्रेटिक वीमेंस फ़ेडरेशन के 760 लाख सदस्य और ऑल चाइना स्टूडेंटस फ़ेडरेशन के 32 लाख 90 हज़ार सदस्य थे।
- लेकिन 1953-54 में कुछ लोग औद्योगिक संगठन और आर्थिक विकास की तरफ ध्यान देना चाहते थे।
- लीऊ शाओछी और तंग शीयाओफींग ने कुशलता से काम न करने के कारण कम्यून प्रथा को बदलने की कोशिश की।
- घरों के पीछे बनाई गई स्टील औद्योगिक लिहाज़ से अनुपयोगी था।
दर्शनों का टकराव : 1965-78
माओ ने 1965 में सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति अपने आलोचकों से सामना करने के लिए शुरू की।
- पुरानी संस्कृति, पुराने रिवाज़ों और पुरानी आदतों के खिलाफ़ अभियान के लिए रेड गार्ड्स (छात्रों और सेना) का इस्तेमाल किया गया।
- छात्रों और पेशेवर लोगों को जनता से ज्ञान हासिल करने के लिए ग्रामीण इलाकों में भेजा गया।
- विचारधारा (साम्यवादी होना) पेशेवर ज्ञान से ज़्यादा महत्वपूर्ण थी।
- सांस्कृतिक क्रांति से पार्टी कमज़ोर हो गई और अर्थव्यवस्था तथा शिक्षा व्यवस्था में भारी रुकावट आई।
1975 में एक बार फिर पार्टी ने अधिक सामाजिक अनुशासन और औद्योगिक अर्थव्यवस्था का निर्माण करने पर ज़ोर दिया ताकि चीन एक शक्तिशाली देश बन सके।
1978 से शुरू होने वाले सुधार
तंग शीयाओफींग ने पार्टी पर नियंत्रण बनाने के साथ देश में समाजवादी बाज़ार अर्थव्यवस्था की शुरुआत की।
- 1978 में पार्टी ने आधुनिकीकरण के अपने चार सूत्री (विज्ञान, उद्योग, कृषि और रक्षा का विकास) लक्ष्य की घोषणा की। पार्टी से सवाल-जवाब न करने की हद तक बहस की इजाज़त थी।
- 5 दिसंबर 1978 को दीवार पर लगे एक पोस्टर ने पाँचवीं आधुनिकता का दावा किया कि लोकतंत्र के बिना अन्य आधुनिकताएँ कुछ भी नहीं बन पाएँगी।
- उसने गरीबी न हटने और लैंगिक शोषण खत्म न कर पाने के लिए सी.सी.पी. की आलोचना की।
- इन मांगों को दबाने के बावजूद 1989 में 4 मई के आंदोलन की 70वीं सालगिरह पर बुद्धिजीवियों ने ज़्यादा खुलेपन के और कड़े सिद्धांतों को खत्म करने की माँग की।
- बीजिंग के तियानमेन चौक पर छात्रों के प्रदर्शन को क्रूरतापूर्वक दबाने पर दुनिया भर में आलोचना हुई।
पहले के पारंपरिक विचार (कन्फ्यूशियसवाद) पुनर्जीवित होने पर तर्क दिया गया कि पश्चिम की नकल करने के बजाए चीन अपनी परंपरा पर चलते हुए एक आधुनिक समाज बन सकता है।
ताइवान का किस्सा
चीनी साम्यवादी दल द्वारा पराजित होने के बाद चियांग काई-शेक 30 करोड़ से अधिक अमरीकी डॉलर और बेशकीमती कलाकृतियाँ लेकर 1949 में ताइवान भागकर वहाँ चीनी गणतंत्र की स्थापना की।
- 1894-95 में जापान-चीन युद्ध में यह जगह जापान के हाथ उपनिवेश बन गई थी।
- कायरो घोषणापत्र (1943) और पोट्सडैम उदघोषणा (1949) के द्वारा चीन को संप्रभुता वापस मिली।
- फरवरी 1947 में हुई प्रदर्शनों के बाद कुओमीनतांग ने नेताओं की एक पूरी पीढ़ी की हत्या करवा दी।
- चियांग काई-शेक के नेतृत्व में कुओमीनतांग ने एक दमनकारी सरकार की स्थापना की।
- बोलने और राजनीतिक विरोध करने की आज़ादी छीन ली और सत्ता की जगहों से स्थानीय आबादी को बाहर कर दिया।
➡ उन्होंने भूमि सुधार लागू किया, जिससे खेती की उत्पादकता बढ़ी। अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण करने से 1973 में कुल राष्ट्रीय उत्पाद में ताइवान पूरे एशिया में जापान के बाद दूसरे स्थान पर रहा।
- अर्थव्यवस्था, व्यापार पर आधारित, लगातार वृद्धि करती गई और अमीर तथा गरीब के बीच अंतराल घटता गया।
➡ ताइवान का लोकतंत्र में बदलना 1975 में चियांग की मौत के बाद धीरे-धीरे शुरू होकर 1887 में फौजी कानून हटने तथा विरोधी दलों को कानूनी इजाज़त मिलने पर आगे बढ़ी।
- पहले स्वतंत्र मतदान ने स्थानीय ताइवानियों को सत्ता में लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी।
- ताइवान को चीन का हिस्सा मानने के कारण यहाँ पूर्ण राजनयिक संबंध और दूतावास रखना संभव नहीं है।
- मुख्य भूमि के साथ पुन:एकीकरण विवादस्पद होने पर भी खाड़ी-पार के संबंध (चीन और ताइवान के मध्य) सुधर रहे हैं।
- ताइवानी व्यापार और निवेश मुख्य भूमि में बड़े पैमाने पर और आवागमन सहज होने से संभवतः चीन इसको एक अर्धस्वायत्त क्षेत्र के रूप में स्वीकार कर लेगा।
कोरिया की कहानी (आधुनिकीकरण की शुरुआत)
19वीं सदी के अंत में, कोरिया के जोसोन वंश को आंतरिक और सामाजिक संघर्ष के साथ चीन, जापान और पश्चिमी देशों का विदेशी दबाव भी सहना पड़ा।
- इसी बीच कोरिया ने अपनी सरकारी संरचनाओं, राजनयिक संबंधों, बुनियादी ढाँचे एवं समाज के आधुनिकीकरण के लिए सुधार नीतियाँ लागू कीं।
- 1910 में साम्राज्यवादी जापान द्वारा अपनी कॉलोनी के रूप में कोरिया पर कब्ज़ा करने से जोसोन राजवंश का अंत हो गया।
- किंतु कोरियाई लोगों ने कोरियाई संस्कृति एवं नैतिक मूल्यों के दमन के खिलाफ़ प्रदर्शन किया।
- उन्होंने एक अस्थायी सरकार की स्थापना कर कैरो, याल्टा और पॉट्सडैम सम्मेलनों जैसी अंतर्राष्ट्रीय बैठकों में विदेशी नेताओं से अपील करने के लिए प्रतिनिधि मंडल भेजें।
- अगस्त 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के साथ कोरिया को स्वतंत्रता मिली।
- कोरियाई उपद्वीप के उत्तरी क्षेत्र में सोवियत संघ और दक्षिण क्षेत्र में यू. एन. के द्वारा संचालन किया गया।
- 1948 में उत्तर और दक्षिण में अलग-अलग सरकारें स्थापित होने के साथ यह विभाजन स्थायी रूप से स्थापित हो गया।
युद्धोत्तर राष्ट्र
जून 1950 में दक्षिण कोरिया में अमेरिकी संयुक्त राष्ट्र सेना और उत्तर कोरिया में कम्युनिस्ट चीन सेना के समर्थन से शीत युद्ध काल जुलाई 1953 में युद्धविराम समझौते से समाप्त हुआ, और कोरिया हमेशा के लिए विभाजित हो गया।
- युद्ध से जीवन और संपत्ति के नुकसान के साथ मुक्त बाज़ार आर्थिक विकास और लोकतंत्रीकरण भी धीमी गति से हुआ।
- युद्ध के दौरान जारी की गई मुद्रा एवं राष्ट्रीय खर्च के कारण मुद्रास्फ़ीति से कीमतें अचानक बढ़ गई।
- औपनिवेशिक काल के दौरान निर्मित औद्योगिक सुविधाओं को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया।
- इस कारण दक्षिण कोरिया को अमेरिका की आर्थिक सहायता लेनी पड़ी।
➡ 1948 में कोरियाई युद्ध के बाद लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के माध्यम से दक्षिण कोरिया के पहले राष्ट्रपति सिन्गमैन री को चुना गया था।
- लेकिन उन्होंने अवैध संवैधानिक संशोधन के माध्यम से दो बार अपना प्रशासन काल बढ़ाया।
- 1960 में (अप्रैल क्रांति) नागरिकों द्वारा धाँधली चुनावों के खिलाफ़ विरोध करने से री को इस्तीफ़ा देना पड़ा।
- इस क्रांति से री के प्रशासन काल के दौरान लोगों की दबी हुई भावनाएँ, प्रदर्शनों और माँगों के रूप में उठने लगीं।
- सुधारवादी राजनीतिक शक्तियाँ उभरीं और छात्र आंदोलनों ने एकीकारण आंदोलनों का रूप ले लिया।
- मई 1961 में जनरल, पार्क चुंग-ही और अन्य सैन्य अधिकारियों के सैन्य तख्तापलट द्वारा लोकतांत्रिक पार्टी की सरकार को उखाड़ फेंका गया।
तीव्र औद्योगिकीकरण एवं मज़बूत नेतृत्व
अक्टूबर 1963 के चुनाव में सैन्य नेता पार्क चुंग-ही राष्ट्रपति बने। इनकी 5 वर्षीय आर्थिक योजनाओं ने बड़े कॉरपोरेट फ़र्मों का समर्थन किया, रोज़गार के विस्तार पर भारी ज़ोर दिया और कोरिया की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा दिया।
- 1960 के दशक से राज्य नीति आयात प्रतिस्थापन औद्योगिकी से निर्यात पर केंद्रित हो गई, जिसमें हलके औद्योगिक उत्पादों जैसे वस्त्रों पर ध्यान दिया गया।
- 1960-70 के दशक के दौरान पुनः लघु उद्योगों से उच्च मूल्यवर्धित भारी और रासायनिक उद्योगों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- इस्पात, अलौह धातु, मशीनरी, जहाज़ निर्माण, इलैक्ट्रॉनिक्स और रासायनिक उत्पादन को आर्थिक विकास के लिए चुना गया।
➡ 1970 में ग्रामीण जनसंख्या को प्रोत्साहन और कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण के लिए नया गाँव (सैमौल) आंदोलन शुरु हुआ।
- इस अभियान द्वारा लोगों को सक्रिय तथा आशावान बनाया, अपने गाँव के विकास तथा समुदाय के जीवन शैली को सुधारने के लिए सशक्त किया।
- औद्योगिक संयंत्रों तथा शहरी क्षेत्रों के आस-पास के इलाकों के विकास के लिए विस्तार किया गया।
➡ उच्च स्तर की शिक्षा, खुली आर्थिक नीति (अन्य देशों के अधिक उन्नत संस्थाओं और तकनीकों को अपने देश में लाना), विदेशी निवेश, कोरिया की उच्च घरेलू बचत दर और विदेशों में दक्षिण कोरियाई श्रमिकों के प्रेषण ने भी आर्थिक विकास में योगदान दिया।
➡ पार्क द्वारा किए गए संविधान संशोधन से उन्हें तीसरे कार्यकाल के चुनाव द्वारा 1971 में चुना गया।
- अक्टूबर 1972 में, पार्क द्वारा यूसिन संविधान ने स्थायी अध्यक्षता को संभव बनाया।
- इसके तहत राष्ट्रपति को कानून के क्षेत्राधिकार तथा प्रशासन पर पूर्ण अधिकार और किसी भी कानून को ”आपातकालीन नियम” के रूप में निरस्त करने का एक संवैधानिक अधिकार था।
- इस कारण लोकतंत्र अस्थायी रूप से निलंबित हो गया।
- 1979 में दूसरे तेल संकट से देश की आर्थिक नीतियों में काफ़ी बाधाएँ आई।
- पार्क प्रशासन द्वारा आपातकालीन उपायों के आह्वान और राजनैतिक अस्थिरता के दमन से छात्रों, विद्वानों और विपक्ष ने संविधान के खिलाफ़ प्रदर्शन किया।
- इसी बीच पार्क का प्रशासन अक्टूबर 1979 में ”पार्क चुंग-ही” की हत्या के साथ खत्म हो गया।
लोकतंत्रीकरण की माँग और निरंतर आर्थिक विकास
दिसंबर 1979 में एक बार फिर, एक सैन्य नेता ”चुन डू-हवन” की अगुवाई में सैन्य तख्तापलट का मंच तैयार हुआ।
- मई 1980 में, लोकतंत्र की माँग करने वाले छात्रों और नागरिकों द्वारा राष्ट्र के प्रमुख शहरों में विभिन्न विरोध प्रदर्शन होने से सैन्य दल ने पूरे देश में मार्शल कानून लागू कर दिया।
- किंतु ग्वांगजू शहर में, छात्र और नागरिक लगातार मार्शल कानून को समाप्त करने की माँग करते रहे।
- फिर भी वर्ष के अंत में, चुन यूसुइन संविधान के तहत एक अप्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से राष्ट्रपति बन गए।
➡ चुन प्रशासन ने अपनी सरकार को स्थिर बनाने के लिए लोकतांत्रिक प्रभाव का मज़बूती से दमन किया।
- हालाँकि, उसने अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक दृष्टिकोण से, कोरिया के आर्थिक विकास को 1980 के 1.7% से बढ़ाकर 1983 तक 13.2% और मुद्रास्फ़ीति को भी कम कर दिया था।
- आर्थिक विकास ने शहरीकरण, शिक्षा के स्तर में सुधार और मीडिया की प्रगति को जन्म दिया।
- जिससे नागरिकों द्वारा राष्ट्रपति के प्रत्यक्ष चुनाव के लिए संवैधानिक संशोधन की माँग की गई।
- मई 1987 में, एक विश्वविद्यालय के छात्र की अत्याचारों से हुई मौत के बाद नागरिकों द्वारा लोकतंत्रीकरण के लिए किए प्रदर्शन को दबाने की कोशिश की गई।
- इसके बाद चुन सरकार के खिलाफ़ लोकतंत्रीय आंदोलन में छात्रों के साथ मध्यवर्ग के नागरिकों ने भी भाग लिया।
- इस प्रकार चुन प्रशासन ने संविधान में संशोधन किया और नागरिकों को सीधे चुनाव का अधिकार मिला।
कोरियाई लोकतंत्र और आई.एम.एफ. संकट
नए संविधान के अनुसार, 1971 के बाद पहले प्रत्यक्ष चुनाव (दिसंबर 1987) में विपक्षी पार्टियों की एकजुटता में विफलता के कारण, चुन के सैन्य दल के एक साथी सैन्य नेता ”रोह ताए-वू” का चुनाव हुआ।
➡ 1990 में, विपक्षी नेता ”किम यंग-सैम” द्वारा एक बड़ी सत्तारूढ़ पार्टी बनाने के लिए रोह की पार्टी से समझौते के बाद दिसंबर 1992 में, किम को राष्ट्रपति चुने जाने से फिर लोकतंत्र की शुरुआत हुई।
- नए प्रशासन की निर्यात नीति के तहत, सैमसंग, हुंडई और एलजी जैसी कंपनियाँ, 1990 के शुरु तक वैश्विक प्रमुखता के स्तर पर पहुँच चुकी थीं।
- सरकारी समर्थन से कोरियाई कंपनियों ने पूंजी प्रधान व्यवसाय, रासायनिक उद्योगों के साथ इलैक्ट्रॉनिक उद्योगों में भी निवेश करना शुरू किया।
- दूसरी ओर सरकार ने औद्योगिक और सामाजिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण पर ध्यान देना जारी रखा।
➡ इस बीच, कोरिया के बाज़ार को अन्य देशों के लिए खोलने के लिए नव-उदारवादी दबाव में किम प्रशासन ने 1996 में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन में शामिल होकर कोरिया के अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा को मज़बूत करने का प्रयास शुरू किया।
- लेकिन व्यापार घाटे में बढ़ोतरी, वित्तीय संस्थानों द्वारा खराब प्रबंधन, संगठनों द्वारा बेईमान व्यापारिक संचालन के कारण कोरिया को 1997 में विदेशी मुद्रा संकट से सामना हुआ।
- इस संकट में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा आपात वित्तीय सहायता के साथ नागरिकों ने गोल्ड कलेक्शन मूवमेंट के माध्यम से विदेशी ऋण भुगतान के लिए सक्रिय रूप से योगदान दिया।
➡ दिसंबर 1997 में, कोरिया में पहली बार शांतिपूर्ण हस्तांतरण के द्वारा विपक्षी पार्टी के नेता किम डे-जुंग सत्ता में आए।
- फिर 2008 में, रूढ़िवादी पार्टी के नेता ली माइंग-बाक अध्यक्ष चुने गए।
- 2012 में, रूढ़िवादी पार्टी की नेता पार्क खन-हे पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में चुनी गई।
- लेकिन अक्टूबर 2016 में, उनके मित्र द्वारा गुप्त रूप से सरकारी मामलों का प्रबंध करने पर राष्ट्रव्यापी विरोध एवं प्रदर्शनों के बाद मार्च 2017 में उन पर महाभियोग चलाकर उन्हें कार्यकाल से हटा दिया गया।
- मई 2017 में, तीसरी बार शांतिपूर्ण हस्तांतरण के द्वारा मून जे-इन ने राष्ट्रपति पद संभाला।
आधुनिकता के दो मार्ग
औद्योगिक समाजों ने एक दूसरे के जैसे बनने की बजाए आधुनिकता के अपने-अपने मार्ग बनाए।
➡ जापान अपनी आज़ादी बनाए रखने में सफल रहा और पारंपरिक हुनर तथा प्रथाओं को नए तरीके से इस्तेमाल किया।
- कुलीन वर्ग के नेतृत्व में आधुनिकीकरण ने एक उग्र राष्ट्रवाद को जन्म देकर, लोकतंत्र की माँग को दबाकर एक औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना की जिससे उस क्षेत्र में बैर की भावना बनी रही और अंदरूनी विकास भी प्रभावित हुआ।
- जापान ने आधुनिकीकरण में पश्चिम की नकल करने के साथ अपने हल भी ढूँढ़ने की कोशिश की।
- एक और जापान एशिया को पश्चिमी आधिपत्य से मुक्त करने की उम्मीद करते थे, दूसरे लोगों के लिए यही विचार साम्राज्य का निर्माण करने के लिए महत्वपूर्ण कारक सिद्ध हुए।
- मेजी स्कूली पद्धति ने यूरोपीय और अमरीकी प्रथाओं के अनुरूप नए विषयों की शुरुआत की।
- किंतु पाठ्यचर्या का मुख्य उद्देश्य निष्ठावान नागरिक बनाना था।
- नैतिकशास्त्र का विषय पढ़ना अनिवार्य था जिसमें सम्राट के प्रति वफ़ादारी पर ज़ोर दिया जाता था।
- परिवार में और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में आए बदलाव विदेशी और देशी विचारों को मिला कर कुछ नया बनाने की कोशिश को दर्शाते हैं।
➡ 19वीं और 20वीं सदी में परंपराओं को ठुकराकर राष्ट्रीय एकता तथा सुदृढ़ता निर्मित करने के रास्तों की तलाश की गई।
- चीन के साम्यवादी दल और उसके समर्थकों ने परंपरा को खत्म करने की लड़ाई लड़ी।
- उन्हें लगा कि परंपरा जनसमुदाय को गरीबी में जकड़े हुए, महिलाओं को अधीन बनाती और देश को अविकसित रखती है।
- उन्होंने लोगों को अधिकार एवं सत्ता देने की बात की परंतु वास्तव में केंद्रीकृत राज्य की स्थापना की।
- दमनकारी राजनीतिक व्यवस्था के कारण लोग मुक्ति और समानता के आदर्शों से प्रभावित हुए।
- इससे सदियों पुरानी असमानताएँ हट गई, शिक्षा का विस्तार हुआ और जनता के बीच एक जागरूकता पैदा हुई।
Class 11 History Chapter 7 Notes In Hindi PDF Download
विषय सूची
अनुभाग एक — प्रारंभिक समाज
विषय 1: लेखन कला और शहरी जीवन
अनुभाग दो — साम्राज्य
विषय 2: तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य
विषय 3: यायावर साम्राज्य
अनुभाग तीन — बदलती परंपराएँ
विषय 4: तीन वर्ग
विषय 5: बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ
अनुभाग चार — आधुनिकीकरण की ओर
विषय 6: मूल निवासियों का विस्थापन
Legal Notice
This is copyrighted content of Study Learning Notes. Only students and individuals can use it. If we find this content on any social media (App, Website, Video, Google Drive, YouTube, Facebook, Telegram Channels, etc.) we can send a legal notice and ask for compensation. If you find this content anywhere else in any format, mail us at historynotes360@gmail.com. We will take strict legal action against them.