विषय 3: यायावर साम्राज्य
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Toggleमंगोलों ने चंगेज़ खान के नेतृत्व में अपनी पारंपरिक सामाजिक और राजनीतिक रीति-रिवाजों को बदलकर एक सैनिक-तंत्र और शासन पद्धतियों का सूत्रपात किया।
- इस नए क्षेत्र में उन्हें तरह-तरह के लोगों, अर्थव्यवस्थाओं और धर्मों का सामना करना पड़ा।
- अपना “यायावर साम्राज्य” बनाने के लिए उन्हें नए कदम उठाने और समझौते करने पड़े।
➡ स्टेपी निवासिओं ने अपना कोई साहित्य नहीं रचा था। इसलिए यायावरी समाजों के बारे में इतिवृत्तों, यात्रा-वृत्तांतों और नगरीय साहित्यकारों के दस्तावेज़ों से पता चलता है।
- पर इन लेखकों की यायावरों के जीवन-संबंधी सूचनाएँ अज्ञात और पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हैं।
- बौद्ध, कन्फ्यूशियसवादी, ईसाई, तुर्क और मुसलमान आदि की मंगोलों के प्रति पृष्ठभूमि अलग-अलग थी और मंगोल रीति-रिवाजों का ज्ञान नहीं था।
- उनके विवरणों ने यूरेशिया के लेखों को चुनौती दी, जिसमें मंगोलों को स्टेपी लुटेरा बताया गया है।
संभवत: 18वीं-19वीं सदी में रूसी विद्वानों ने मंगोल पर सबसे बहुमूल्य शोध कार्य किया। ये कार्य सर्वेक्षण-टिप्पणियों के रूप में औपनिवेशिक वातावरण में यात्रियों, सैनिकों, व्यापारियों और पुराविदों ने तैयार किया था।
भूमिका
चंगेज़ खान मध्य-एशिया के स्टेपी-प्रदेश, मंगोल जातियों का एक महासंघ बनाने से कहीं अधिक पूरे विश्व पर शासन करना चाहता था।
- उसने अपना पूरा जीवन मंगोल जातियों पर कब्ज़ा करने और साम्राज्य संलग्न क्षेत्र जैसे उत्तरी चीन, तुरान (ट्राँसओक्सिआना), अफ़गानिस्तान, पूर्वी ईरान, रूसी स्टेपी प्रदेशों के विरुद्ध युद्ध-अभियानों के नेतृत्व और प्रत्यक्ष संचालन में बिताया।
- उसके वंशजों ने इस क्षेत्र से और आगे जाकर दुनिया का सबसे विशाल साम्राज्य का निर्माण किया।
मंगोलों की सामाजिक और राजनैतिक पृष्ठभूमि
मंगोल लोग पूर्व में तातार, खितान और मंचू लोगों से और पश्चिम में तुर्की कबीलों से भाषागत समान होने के कारण परस्पर संबद्ध थे।
- कुछ मंगोल पशुपालक तो कुछ शिकारी संग्राहक थे। पशुपालक घोड़ों, भेड़ों और कुछ हद तक अन्य पशुओं (बकरी और ऊँटों) को भी पालते थे।
- उनका यायावरीकरण मध्यएशिया की चारण भूमि (स्टेपीज) में हुआ।
- जिसके पश्चिमी भाग में अल्ताई पहाड़ों की बर्फ़ीली चोटियाँ, दक्षिण भाग में शुष्क गोबी का मरुस्थल, उत्तर और पश्चिम क्षेत्र में ओनोन और सेलेंगा जैसी नदियाँ और बर्फ़ीली पहाड़ियाँ थीं।
- पशुचारण के लिए अनेक हरी घास के मैदान और प्रचुर मात्रा में छोटे-मोटे शिकार उपलब्ध हो जाते थे।
➡ शिकारी-संग्राहक, पशुपालक कबीलों के आवास-क्षेत्र के उत्तर में साइबेरियाई वनों में रहते थे। जो ज़्यादा गरीब थे और गर्मियों में पकड़े गए जानवरों की खाल के व्यापार से अपना जीवन यापन करते थे।
➡ इस क्षेत्र में कठोर और लंबे शीत काल के बाद अल्पकालीन और शुष्क गर्मियों की अवधि आती थी। इसलिए कृषि सीमित अवधियों में ही संभव थी। परंतु मंगोलों ने कृषि कार्य को नहीं अपनाया। इस कारण यहाँ कोई नगर नहीं उभर पाए।
- मंगोंल तंबुओं और जरों में निवास करते थे और अपने पशुधन के साथ शीतकालीन निवास स्थल से ग्रीष्मकालीन चारण भूमि की ओर चले जाते थे।
➡ नृजातीय और भाषायी संबंधों से मंगोल लोग परस्पर जुड़े थे, पर उपलब्ध आर्थिक संसाधनों में कमी के कारण उनका समाज अनेक पितृपक्षीय वंशों में बँटा था।
- धनी परिवार विशाल और उनके पास अधिक संख्या में पशु तथा चारण भूमि होती थी। इस कारण उनके अनेक अनुयायी और स्थानीय राजनीति में दबदबा होता था।
- भीषण शीत-ऋतु के दौरान इकट्ठी की गई शिकार सामग्रियों और अन्य भंडार में रखी हुई सामग्रियों के खतम होने अथवा वर्षा न होने पर घास के मैदानों के सूख जाने पर पशुधन को प्राप्त करने के लिए वे लूटपाट भी करते थे।
- प्राय: परिवारों के समूह आक्रमण करने और अपनी रक्षा करने हेतु अधिक शक्तिशाली और संपन्न कुलों से मित्रता कर परिसंघ बना लेते थे।
➡ मंगोल और तुर्की कबीलों को मिलाकर चंगेज़ खान का परिसंघ 5वीं सदी के अट्टीला के परिसंघ के बराबर था।
- परंतु चंगेज़ खान की राजनीतिक व्यवस्था बहुत अधिक स्थायी थी जो उसकी मृत्यु के बाद भी कायम रही।
- यह व्यवस्था चीन, ईरान और पूर्वी यूरोपीय देशों की उन्नत शास्त्रों से लैस विशाल सेनाओं का मुकाबला करने में सक्षम थी।
- मंगोलों ने इन क्षेत्रों में नियंत्रण स्थापित करने के साथ जटिल कृषि अर्थव्यवस्थाएँ, नगरीय आवासों, स्थानबद्ध समाजों पर बड़ी कुशलता से प्रशासन किया।
मध्य एशियाई स्टेपी क्षेत्र के तुर्क और मंगोल लोगों के कुछ महान परिसंघ
- सिउंग-नु (200 ई.पू.) तुर्क
- जुआन-जुआन (400 ई.) मंगोल
- एफ़थलैट हूण (400 ई.) मंगोल
- तू-चे (550 ई.) तुर्क
- उइग़ुर (740 ई.) तुर्क
- खितान (940 ई.) मंगोल
इन परिसंघों ने एक ही क्षेत्र पर अधिकार नहीं जमाया और न ही इनका आंतरिक संगठन एक जैसा जटिल था। इनका यायावरी जन समुदाय के इतिहास पर विशेष प्रभाव पड़ा परंतु चीन और समीपवर्ती क्षेत्रों पर इनका प्रभाव भिन्न-भिन्न था।
➡ स्टेपी क्षेत्र में संसाधनों की कमी के कारण मंगोलों और मध्य एशिया के यायावरों को व्यापार और वस्तु विनिमय के लिए चीन के स्थानीय निवासियों के पास जाना पड़ता था।
- यायावर कबीले खेती से प्राप्त उत्पादों और लोहे के उपकरणों को घोड़े, फ़र और स्टेपी में पकड़े गए शिकार से विनिमय करते थे।
- दोनों पक्ष अधिक लाभ प्राप्त करने की होड़ में सैनिक कार्यवाही करने लगते थे।
- मंगोल कबीलों के लोग चीनी पड़ोसियों को व्यापार में बेहतर शर्तें रखने के लिए मजबूर करते थे।
- कभी-कभी वे केवल लूटपाट करने लगते थे।
- मंगोलों का जीवन अस्त-व्यस्त होने पर ही इन संबंधों में बदलाव आता था। तब स्टेपी क्षेत्र में चीनी लोग अपने प्रभाव का प्रयोग करते थे।
- इन सीमावर्ती झड़पों से स्थायी समाज कमज़ोर पड़ने लगे। उन्होंने कृषि को अव्यवस्थित कर दिया और नगरों को लूटा।
- दूसरी ओर यायावर, लूटपाट कर संघर्ष क्षेत्र से दूर भाग जाते थे जिससे उन्हें बहुत कम हानि होती थी।
- चीन को इन यायावरों से विभिन्न शासन कालों में बहुत अधिक क्षति पहुँची।
8वीं सदी ई.पू. से ही अपनी प्रजा की रक्षा के लिए चीनी शासकों ने किलेबंदी करना शुरू कर दिया था। तीसरी सदी ई.पू. से इन किलेबंदियों का एकीकरण सामान्य रक्षात्मक ढाँचे के रूप में किया गया जिसे आज “चीन की महान दीवार” कहते है।
चंगेज़ खान का जीवन-वृत्त
- चंगेज़ खान (तेमुजिन) का जन्म 1162 ई. में मंगोलिया के उत्तरी भाग में ओनोन नदी के निकट हुआ था।
- उसके पिता येसूजेई जो कियात कबीले का मुखिया थे। यह एक परिवारों का समूह था और बोरजिगिद कुल से संबंधित था।
- उसके पिता की अल्पायु में ही हत्या कर दी गई थी और उसकी माता ओलुन-इके ने तेमुजिन और उसके सगे तथा सौतेले भाइयों का लालन-पालन बड़ी कठिनाई से किया था।
➡ 1170 के दशक में तेमुजिन का अपहरण कर उसे दास बना लिया गया और उसकी पत्नी बोरटे को भी अपहरण से छुड़ाने के लिए उसे लड़ाई लड़नी पड़ी।
- बोघूरचू उसका प्रथम मित्र था जो सदैव एक विश्ववस्त साथी के रूप में उसके साथ रहा।
- उसका सगा भाई (आंडा) जमूका भी उसका एक विश्ववसनीय मित्र था। जो बाद में उसका शत्रु बन गया था।
- तेमुजिन ने कैराईट लोगों के शासक व अपने पिता के वृद्ध सगे भाई तुगरिल उर्फ ओंग खान के साथ पुराने रिश्तों की पुनर्स्थापना की।
➡ 1180 और 1190 के दशकों में तेमुजिन ओंग खान का मित्र रहा और इसकी मदद से जमूका जैसे शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वियों को परास्त किया।
- इसके बाद 1203 ई. में अपने पिता के हत्यारे, शक्तिशाली तातार कैराईट और ओंग खान के विरुद्ध युद्ध छेड़ा।
- 1206 ई. में शक्तिशाली जमूका और नेमन लोगों को पराजित करने के बाद तेमुजिन स्टेपी-क्षेत्र की राजनीति में सबसे प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में उभरा।
उसकी इस प्रतिष्ठा को मंगोल कबीले के सरदारों की एक सभा (कुरिलताई) में मान्यता मिली और उसे चंगेज़ खान “समुद्री खान” या “सार्वभौम शासक” की उपाधि के साथ मंगोलों का महानायक घोषित किया गया।
➡ 1206 ई. से पूर्व चंगेज़ खान ने मंगोल लोगों को एक सशक्त अनुशासित सैन्य शक्ति के रूप में पुनर्गठित कर लिया था।
उसकी पहली मंशा चीन पर विजय प्राप्त करने की थी जो उस समय तीन राज्यों में विभक्त था—
- उत्तर पश्चिमी प्रांतों के तिब्बती मूल के सी-सिआ लोग
- जरचेन लोगों के चिन राजवंश, जो पेकिंग से उत्तरी चीन क्षेत्र पर शासन चला रहे थे।
- शुंग राजवंश जिनके आधिपत्य में दक्षिणी चीन था।
- 1209 ई. में सी-सिआ लोग परास्त हो गए।
- 1213 ई. में चीन की महान दीवार का अतिक्रमण हो गया।
- 1215 ई. में पेकिंग नगर को लूटा गया।
- चिन वंश के विरुद्ध 1234 ई. तक लंबी लड़ाइयाँ चली। इस क्षेत्र के सैनिक मामले अपने अधीनस्थों की देखरेख में छोड़कर 1216 ई. में मंगोलिया स्थित अपनी मातृभूमि में लौट आया।
➡ 1218 ई. में करा खिता (चीन के उत्तरी पश्चिमी भाग में स्थित तियेन-शान की पहाड़ियों पर नियंत्रण) की पराजय के बाद, मंगोलों का साम्राज्य अमू दरिया, तुरान और ख़्वारिज़्म राज्यों तक विस्तृत हो गया।
- जब ख़्वारिज़्म के सुल्तान मोहम्मद ने मंगोल दूतों का वध कर दिया तब उसे चंगेज़ खान के प्रचंड कोप का सामना करना पड़ा।
➡ 1219 और 1221 ई. तक के अभियानों में बड़े नगरों (ओट्रार, बुखारा, समरकंद, बल्ख़, गुरगंज, मर्व, निशापुर और हेरात) ने मंगोल सेनाओं के सम्मुख समर्पण कर दिया। प्रतिरोध करने वाले नगरों का विध्वंस कर दिया गया।
- निशापुर में घेरा डालने के दौरान एक मंगोल राजकुमार की हत्या होने पर चंगेज़ खान ने आदेश दिया कि नगर को इस तरह विध्वंश किया जाए कि संपूर्ण नगर में हल चलाया जा सके और बिल्ली कुत्ते भी जीवित न रहे।
➡ मंगोल सेनाएँ सुल्तान मोहम्मद का पीछा करते हुए अज़रबैजान तक चली आईं और क्रीमिया में रूसी सेनाओं को हराने के साथ-साथ कैस्पियन सागर को घेर लिया।
- सेना की दूसरी टुकड़ी ने सुल्तान के पुत्र जलालुद्दीन का अफ़गानिस्तान और सिंध प्रदेश तक पीछा किया।
- सिंधु नदी के तट पर चंगेज़ खान ने उत्तरी भारत और असम मार्ग से मंगोलिया वापस लौटना चाहा। परंतु असहय गर्मी, प्राकृतिक आवास की कठिनाइयों तथा अशुभ संकेतों के आभास से उसने अपने विचार बदल दिए।
- अपने जीवन का अधिकांश भाग युद्धों में व्यतीत करने के बाद 1227 ई. में चंगेज़ खान की मृत्यु हो गई।
➡ स्टेपी क्षेत्र की युद्ध शैली के बहुत से आयामों को आवश्यकतानुसार परिवर्तन और सुधार करके प्रभावशाली रणनीति में बदलने से सैनिक उपलब्धियाँ प्राप्त थी।
- अपने दैनिक जीवन में जंगलों में पशुओं का आखेट करते समय घुड़सवारी तीरंदाज़ी के अनुभव ने उनकी सैनिक गति को तेज़ किया।
- आसपास के भूभागों और मौसम की जानकारी ने उन्हें अकल्पनीय कार्य करने की क्षमता प्रदान की।
- उन्होंने घोर शीत ऋतु में युद्ध अभियान प्रारंभ किए तथा उनके नगरों और शिविरों में प्रवेश करने के लिए बर्फ़ से जमी हुई नदियों का राजमार्गों की तरह प्रयोग किया।
- यायावर लोग अपनी परंपराओं के अनुसार प्राचीरों के आरक्षित शिविरों में पैठ बनाने में सक्षम नहीं थे, पर चंगेज़ खान ने घेराबंदी-यंत्र और नेफ्था बमबारी के महत्व को शीघ्र जान लिया।
- उसके इंजीनियरों ने शत्रुओं के विरुद्ध अभियानों में इस्तेमाल के लिए घातक प्रभाव वाले हल्के चल-उपस्कर का निर्माण किया।
लगभग 1167
तेमुजिन का जन्म
1160 और 70 के दशक
दासता और संघर्ष के वर्ष
1180 और 90 के दशक
संधि संबंधों का काल
1203-27
विस्तार और विजय
1206
तेमुजिन को चंगेज़ खान (मंगोलों का “सार्वभौम शासक”) घोषित किया।
1227
चंगेज़ खान की मृत्यु
1227-41
चंगेज़ खान के पुत्र ओगोदेई का शासन काल
1227-60
तीन महान खानों का शासन और मंगोल एकता की स्थापना
1236-42
बाटू के अधीन रूस, हंगरी, पोलैंड और ऑस्ट्रिया पर आक्रमण। बाटू, चंगेज़ खान के सबसे बड़े पुत्र जोची का पुत्र था।
1246-49
ओगोदेई के पुत्र गुयूक का काल
1251-60
मोंके, चंगेज़ खान के पौत्र और तुलू के पुत्र का काल
1253-55
मोंके के अधीन ईरान और चीन में पुन: आक्रमण
1257-67
- बाटू के पुत्र बर्के का राज्यकाल।
- सुनहरा गिरोह का नेस्टोरियन ईसाई धर्म से इस्लाम धर्म की ओर पुन: प्रवृत होना।
- 1350 के दशक में उनका इस्लाम में निश्चियात्मक रूप से धर्मांतरण हुआ।
- इल खान के विरुद्ध गोल्डन होर्ड और मिस्र देश की मैत्री का प्रारंभ।
1258
- बग़दाद पर अधिकार और अब्बासी खिलाफ़त का अंत।
- मोंके के छोटे भाई हुलेगु के अधीन ईरान में इल खानी राज्य की स्थापना।
- जोचिन और इल खान के मध्य संघर्ष का प्रारंभ।
1260
- पेकिंग में “महान खान” के रूप में कुबलई खान का राज्यारोहण।
- चंगेज़ खान के उत्तराधिकारियों में संघर्ष।
- ओगोदेई का वंश पराजित होकर तोलूयिद में मिल गए।
- मुगल राज्य अनेक स्वतंत्र भागों में अनेक वंशों में विभक्त हो गए।
- तोलूयिद : चीन का यूआन वंश और ईरान का इल खानी राज्य
- चघताई : उत्तरी तूरान के स्टेपी क्षेत्र
- जोचिद वंश : तुर्किस्तान में रूसी स्टेपी क्षेत्र। उन्हें पर्यवेक्षक “गोल्डन होर्ड” के नाम से वर्णन करते थे।
1295-1304
- ईरान मे इल खानी शासक गज़न खान का शासन काल।
- उसके बौद्ध धर्म से इस्लाम में धर्मांतरण के बाद धीरे-धीरे अन्य इल खानी सरदारों का भी धर्मांतरण होने लगा।
1368
चीन में यूआन राजवंश का अंत
1370-1405
- तैमूर का शासन।
- बरलास तुर्क होते हुए उसने चघताई वंश के आधार पर अपने को चंगेज़ खान का वंशज बताया।
- टोलू राज्य चघताई और जोची राज्यों के कुछ हिस्सों (चीन को छोड़कर) को सम्मिलित कर स्टेपी क्षेत्र में एक साम्राज्य का गठन किया।
- अपने को “गुरेगेन” “शाही-दामाद” की उपाधि से विभूषित किया।
- चंगेज़ खान के कुल की एक राजकुमारी से विवाह किया।
1495-1530
- ज़हीरूद्दीन बाबर (तैमूर और चंगेज़ खान का वंशज), फ़रगना और समरकंद के तैमूरी क्षेत्र का उत्तराधिकारी बना।
- वहाँ से खदेड़े जाने पर काबुल पर कब्ज़ा किया।
- 1526 में दिल्ली और आगरा पर अधिकार जमाकर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी।
1500
- जोची के कनिष्ठ पुत्र शिबान का वंशज शयबानी खान द्वारा तूरान पर आधिपत्य।
- उसने शयबानी सत्ता को सुदृढ़ कर इस क्षेत्र से बाबर और तैमूर के वंशजों को खदेड़ दिया।
1759
चीन के मंचुओं ने मंगोलिया पर विजय प्राप्त कर ली।
1921
मंगोलिया का गणराज्य
चंगेज़ खान के उपरांत मंगोल
चंगेज़ खान की मृत्यु के बाद मंगोल साम्राज्य को दो चरणों में बाँट सकते हैं:—
- 1236-1242 : इस दौरान रूस के स्टेपी क्षेत्र, बुलघार, कीव, पोलैंड तथा हंगरी में भारी सफलता प्राप्त की।
- 1255-1300 : इसमें समस्त चीन (1279), ईरान, इराक और सीरिया पर विजय प्राप्त की। इन अभियानों के बाद साम्राज्य की परिसीमाओं में स्थिरता आई।
➡ 1260 के दशक के बाद पश्चिम के सैन्य अभियानों को जारी रखना संभव नहीं हो पाया। फिर भी वियना और उससे परे पश्चिमी यूरोप एवं मिस्र मंगोल सेनाओं के अधिकार में ही रहे।
उनके हंगरी के स्टेपी क्षेत्र से पीछे हट जाने और मिस्र की सेनाओं द्वारा पराजित होने से राजनीतिक प्रवृत्तियों के दो पहलू उभरे।
- मंगोल परिवार में उत्तराधिकार को लेकर आंतरिक राजनीति हुई। जोची और ओगोदेई के उत्तराधिकारी महान खान के राज्य पर नियंत्रित स्थापित करने के लिए एकजुट हो गए।
- चंगेज़ खान के वंश की तोलूयिद शाखा के उत्तराधिकारियों ने जोची और ओगोदेई वंशों को कमज़ोर करने पर दूसरी स्थिति उत्पन्न हुई।
- 1250 ई. के दशक में मोंके (चंगेज़ खान के सबसे छोटे पुत्र तोलूई का वंशज) के राज्याभिषेक के बाद ईरान में शक्तिशाली अभियान किए गए।
- 1260 ई. के दशक में तोलूई के वंशजों द्वारा चीन में अपने हितों की वृद्धि करने पर सैनिकों और रसद-सामग्रियों का मंगोल साम्राज्य के मुख्य भागों की ओर भेज दिया गया।
- इसके परिणामस्वरूप मिस्र की सेना का सामना करने के लिए मंगोलों ने एक छोटी, अपर्याप्त सेना भेजी।
- मंगोलों की पराजय और तोलूई की चीन के प्रति बढ़ती रुचि से उनका पश्चिम की और विस्तार रुक गया।
- इसी दौरान रूस और चीन की सीमा पर जोची और तोलूई वंशजों के अंदरूनी झगड़ों ने जोची वंशजों का ध्यान यूरोपीय अभियानों से हटा दिया।
सामाजिक, राजनैतिक और सैनिक संगठन
मंगोलों और अन्य अनेक यायावर समाजों में प्रत्येक तंदुरुस्त वयस्क सदस्य हथियारबंद होते थे। आवश्यकता होने पर इन्हीं लोगों से सशस्त्र सेना बनती थी।
- विभिन्न मंगोल जनजातियों के एकीकरण और उसके बाद विभिन्न लोगों के खिलाफ अभियानों से चंगेज़ खान की सेना अविश्वसनीय रूप से एक विशाल विषमजातीय संगठन में परिवर्तित हो गई।
- इसमें स्वेच्छा से स्वीकार करने वाले तुर्कीमूल के उइग़ुर समुदाय के लोग और केराइटों जैसे पराजित लोग भी शामिल थे। चंगेज़ खान इनकी पहचान को मिटाने को कृत संकल्प था।
➡ उसकी सेना स्टेपी क्षेत्रों की पुरानी दशमलव पद्धति के अनुसार गठित थी। जो दस,सौ, हज़ार और दसहज़ार सैनिकों की इकाई में विभाजित थी।
- पुरानी पद्धति में कुल, कबीले और सैनिक दशमलव इकाइयाँ एक साथ अस्तित्व में थीं।
- चंगेज़ खान ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया। और प्राचीन जनजातीय समूहों को विभाजित कर उनके सदस्यों को नवीन सैनिक इकाइयों में विभक्त किया।
- अधिकारी से अनुमति लिए बिना बाहर जाने की चेष्टा करने वाले व्यक्ति को कठोर दंड दिया जाता था।
- सैनिकों की सबसे बड़ी इकाई लगभग दस हज़ार सैनिकों (तुमन) की थी जिसमें अनेक कबीलों और कुलों के लोग शामिल होते थे।
- नई सैनिक टुकड़ियों को नोयान कहा जाता था। जो उसके चार पुत्रों के अधीन थी और विशेष रूप से चयनित कप्तानों के अधीन कार्य करती थी।
- इसमें कई वर्ष घोर प्रतिकूल अवस्था में भी चंगेज़ खान का साथ देने वाले समूह भी शामिल थे।
- उसने सार्वजनिक रूप से अनेक ऐसे व्यक्तियों को आंडा (सगा भाई) कहकर सम्मानित किया था।
- अन्य निम्न श्रेणी के स्वतंत्र व्यक्ति को उसने अपने खास नौकर के पद पर रखा था।
इस तरह से नए वर्गीकरण ने पहले के सरदारों के अधिकारों को सुरक्षित नहीं रखा। जबकि नए अभिजात्य वर्ग ने अपनी प्रतिष्ठा मंगोलों के महानायक के साथ अपने करीबी रिश्ते से प्राप्त की।
➡ इस नवीन श्रेणी में चंगेज़ खान ने अपने नव-विजित लोगों पर शासन करने का उत्तरदायित्व अपने चार पुत्रों को सौंप दिया। इससे उलुस (निश्चित भूभाग नहीं) का गठन हुआ।
- चंगेज़ खान का जीवनकाल निरंतर विजयों और साम्राज्य को अधिक से अधिक बढ़ाने से सीमाएँ अत्यंत परिवर्तनशील थीं।
- सबसे बड़े पुत्र जोची को रूसी स्टेपी प्रदेश प्राप्त हुआ। इसका विस्तार सुदूर पश्चिम तक विस्तृत था जहाँ तक उसके घोड़े स्वेच्छापूर्वक भ्रमण कर सकते थे।
- दूसरे पुत्र चघताई को तूरान का स्टेपी क्षेत्र तथा पामीर के पहाड़ का उत्तरी क्षेत्र भी मिला जो उसके भाई के प्रदेश से लगा हुआ था। उसके पश्चिम की ओर बढ़ने से अधिकार क्षेत्र भी परिवर्तित होता गया।
- तीसरा पुत्र ओगोदेई, चंगेज़ खान के संकेत से उसका उत्तराधिकारी होगा और महान खान की उपाधि मिलेगी। इसने राज्याभिषेक के बाद अपनी राजधानी कराकोरम में प्रतिष्ठित की।
- सबसे छोटे पुत्र तोलोए ने अपनी पैतृक भूमि मंगोलिया को प्राप्त किया।
➡ चंगेज़ खान के विचार से पुत्र मिलजुल कर साम्राज्य पर शासन करेंगे इसलिए विभिन्न राजकुमारों के लिए अलग-अलग सैनिक टुकड़ियाँ (तामा) निर्धारित कर दी जो प्रत्येक उलुस में तैनात थी।
- परिवार के सदस्यों में राज्य की भागीदारी का बोध सरदारों की परिषद (किरिलताई) में होता था जिसमें परिवार या राज्य के भविष्य के निर्णय, अभियानों, लूट के माल का बँटवारा, चरागाह भूमि और उत्तराधिकार आदि के समस्त निर्णय, सामूहिक रूप से लिए जाते थे।
➡ चंगेज़ खान की फुर्तीली हरकारा पद्धति से राज्य के दूरदराज़ के स्थानों में परस्पर संपर्क रखा जाता था।
- अपेक्षित दूरी पर सैनिक चौकियों में स्वस्थ एवं बलवान घोड़े तथा घुड़सवार संदेशवाहक तैनात रहते थे।
- इस संचार पद्धति की व्यवस्था करने के लिए मंगोल यायावर अपनी स्वेच्छा से अपने पशु समूहों से अपने घोड़े तथा अन्य पशुओं का दसवाँ हिस्सा प्रदान करते थे। इसे कुबकुर कर कहते थे।
- चंगेज़ खान की मृत्यु के बाद इस पद्धति में और भी सुधार लाया गया।
- इससे महान खानों को अपने विस्तृत महाद्वीपीय साम्राज्य के सुदूर स्थानों में होने वाली घटनाओं की निगरानी करने में मदद मिलती थी।
➡ 13वीं सदी के पूर्वार्द्ध में हुए युद्धों में अनेक नगर नष्ट कर दिए गए, कृषि भूमि को हानि हुई, व्यापार चौपट हो गया तथा दस्तकारी वस्तुओं की उत्पादन व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई।
- सैकड़ों-हजारों लोग मारे गए और इससे कहीं अधिक दास बना लिए गए।
- इसके परिणामस्वरुप ईरान के शुष्क पठार में भूमिगत नहरों (कनात) की मरम्मत न होने से मरुस्थल उस ओर फैलने लगा। जिससे खुरासान के कुछ हिस्से कभी उबर नहीं पाए।
➡ सैन्य अभियानों में विराम आने पर यूरोप और चीन के भूभाग परस्पर संबंद्ध हो गए। अब व्यापारिक मार्ग उत्तर की ओर मंगोलिया तथा नवीन साम्राज्य की केंद्र कराकोरम की ओर बढ़ गए।
- मंगोल शासन में सुरक्षित यात्रा के लिए यात्रियों को पास (फ़ारसी में पैज़ा/मंगोल में जेरेज़) जारी किए जाते थे।
- इसके लिए व्यापारी बाज नामक कर अदा करते थे जिसका अर्थ था कि वे मंगोल शासक (खान) की सत्ता स्वीकार करते थे।
➡ 13वीं सदी ई. में मंगोल साम्राज्य में यायावरों और स्थानबद्ध समुदायों में विरोध कम होते गए।
- उदाहरण, 1230 के दशक में मंगोलों द्वारा चीन के चिन वंश के विरुद्ध युद्ध में सफल होने पर मंगोल नेताओं ने विचार रखा कि समस्त कृषकों को मौत के घाट उतार कर उनकी कृषि भूमि को चरागाह में बदल दिया जाए।
- परंतु 1270 के दशक में शुंग वंश की पराजय के बाद दक्षिण चीन को मंगोल साम्राज्य में शामिल कर लिया गया।
- चंगेज़ खान का पोता कुबलई खान कृषकों और नगरों का रक्षक बना।
- गज़न खान (चंगेज़ खान के सबसे छोटे पुत्र तोलूई का वंशज) ने अपने परिवार के सदस्यों और अन्य सेनापतियों को कृषकों को न लूटने का आदेश दिया।
➡ चंगेज़ खान के शासनकाल से ही मंगोलों ने विजित राज्यों से नागरिक प्रशासकों को भर्ती कर लिया था। इनका एक स्थान से दूसरे स्थान जैसे चीनी सचिवों का ईरान और ईरानी सचिवों का चीन में स्थानांतरण किया जाता था।
- इससे दूरस्थ राज्यों को संघटित करने में मदद मिली और खानाबदोशों की लूटमारों की धार कम हो गई।
- इनमें से कुछ प्रशासक काफ़ी प्रभावशाली थे जिनका प्रभाव खानों पर भी होता था। उदाहरण—
- 1230 के दौरान चीनी मंत्री ये-लू-चुत्साई ने ओगोदेई की लूटने वाली प्रवृत्ति को बदल दिया।
- जुवैनी परिवार ने भी ईरान में 13वीं सदी के उत्तरवर्ती काल और उसके अंत में इसी तरह की भूमिका निभाई।
- वज़ीर रशीदुद्दीन ने गज़न खान के लिए भाषण में उसने कृषक वर्ग को सताने की बजाय उनकी रक्षा की बात कही थी।
➡ 13वीं सदी के मध्य तक भाइयों के बीच व्यक्तिगत राजवंश बनाने की भावना ने स्थान ले लिया अब उलुस का अर्थ अधिकृत क्षेत्र का स्वामी हो गया।
- चंगेज़ खान के वंशजों के बीच महान पद के लिए तथा उत्कृष्ट चरागाही भूमि के लिए होड़ होने लगी।
- चीन और ईरान दोनों पर शासन करने के लिए आए टोलुई के वंशजों ने युआन और इल खानी वंशों की स्थापना की।
- जोची ने “सुनहरा गिरोह” का गठन कर रूस के स्टेपी क्षेत्रों पर राज किया।
- चघताई के उत्तराधिकारियों ने तुरान के स्टेपी क्षेत्रों पर राज किया।
- मध्य एशिया (चघताई के वंशज) तथा रूस (गोल्डन होर्ड) के स्टेपी निवासियों में यायावर परंपराएँ सबसे अधिक समय तक चली।
➡ चंगेज़ खान के वंशजों का अलग-अलग वंश समूहों में बँट जाने से पिछले परिवार से जुड़ी स्मृतियों और परंपराओं में बदलाव आया।
- इसकी एक शाखा टोलिईद ने अपने पारिवारिक मतभेदों का वृत्तांत बड़ी निपुणता से अपने इतिहास में दिया।
- पिछले शासकों की अपेक्षा प्रचलित शासकों के गुणों को अधिक लोकप्रिय किया।
- इल खानी ईरान में 13वीं सदी के आखिर में फ़ारसी इतिहासवृत्त में महान खानों द्वारा की गई रक्तरंजित हत्याओं का वर्णन और मृतकों की संख्या बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ा की गई।
- चंगेज़ खान के वंशजों को अब स्थानबद्ध समाज में अपनी धाक जमानी थी।
➡ डेविड आयलॉन के शोध के बाद यास पर हुआ कार्य, महान खान की स्मृति को बनाए रखने के लिए उत्तराधिकारियों द्वारा प्रयुक्त, जटिल विधियों का विस्तृत वर्णन करता है।
- यास (यसाक) का अर्थ था विधि, आज्ञप्ति व आदेश। उसका संबंध प्रशासनिक विनियमों से है जैसे आखेट, सैन्य और डाक प्रणाली का संगठन।
- 13वीं सदी के मध्य तक यास का मतलब था चंगेज़ खान की विधि-संहिता।
- 13वीं सदी के मध्य तक मंगोल एक एकीकृत जनसमूह के रूप में उभर कर आए और उन्होंने अत्यंत जटिल शहरी समाजों पर शासन किया जिनके अपने-अपने इतिहास, संस्कृतियाँ और नियम थे। जबकि वे अल्पसंख्यक थे।
- उनके लिए अपनी पहचान और विशिष्टता की रक्षा उनके पूर्वजों से प्राप्त पवित्र नियम के ज़रिये हो सकता था।
- यास मंगोल जनजाति की प्रथागत परंपराओं का एक संकलन था। किंतु उसे चंगेज़ खान की विधि संहिता कहकर मंगोलों ने भी मूसा और सुलेमान की भांति अपने एक स्मृतिकार के होने का दावा किया।
- यास मंगोलों को समान आस्था रखने वालों के आधार पर संयुक्त करने में सफल हुआ।
यद्यपि मंगोलों ने भी स्थानबद्ध जीवन प्रणाली के कुछ पहलुओं को अपना लिया था, फिर भी यास ने उनको अपनी कबीलाई पहचान बनाए रखने और अपने नियमों को उन पराजित लोगों पर लागू करने का आत्मविश्वास दिया।
निष्कर्ष : चंगेज़ खान और मंगोलों का विश्व इतिहास में स्थान
आज हम चंगेज़ खान को एक विजेता, नगरों को ध्वस्त करने वाला और हज़ारों लोगों की मृत्यु का उत्तरदायी व्यक्ति मानते हैं।
- 13वीं सदी के चीन, ईरान और पूर्वी यूरोप के नगरवासी स्टेपी के इन गिरोहों को भय और घृणा की दृष्टि से देखते थे।
- मंगोलों के लिए चंगेज़ खान सबसे महान शासक था : जिसने मंगोलों को संगठित किया, लंबे समय से चली आ रही कबीलाई लड़ाइयों और चीनियों द्वारा शोषण से मुक्ति दिलाने के साथ उन्हें समृद्ध बनाया।
- एक शानदार पारमहाद्वीपीय साम्राज्य बनाया और व्यापार के रास्तों और बाज़ारों को पुनर्स्थापित किया जिनसे वेनिस के मार्कोपोलो जैसे यात्री आकर्षित हुए।
➡ मंगोल शासक विभिन्न धर्मों, आस्थाओं से संबंध रखने वाले थे शमन, बौद्ध, ईसाई और इस्लाम। लेकिन उन्होंने सार्वजनिक नीतियों पर अपने वैयक्तिक मत कभी नहीं थोपे।
- मंगोल शासकों ने सब जातियों और धर्मों के लोगों को अपने यहाँ प्रशासकों और हथियारबंद सैन्य दल के रूप में भर्ती किया।
- 14वीं सदी के अंत में तैमूर एक विश्वव्यापी राज्य की आकांक्षा रखते हुए भी चंगेज़ खान का वंशज न होने पर अपने को राजा घोषित करने में संकोच का अनुभव किया।
- इसलिए उसने अपने को चंगेज़ खानी परिवार के दामाद के रूप में प्रस्तुत किया।
आज, दशकों के रूसी नियंत्रण के बाद, मंगोलिया एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना रहा है उसने चंगेज़ खान को एक महान राष्ट्र नायक के रूप में लिया जिसका सार्वजनिक रूप से सम्मान किया जाता है।
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विषय सूची
अनुभाग एक — प्रारंभिक समाज
विषय 1: लेखन कला और शहरी जीवन
अनुभाग दो — साम्राज्य
विषय 2: तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य
अनुभाग तीन — बदलती परंपराएँ
विषय 4: तीन वर्ग
विषय 5: बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ
अनुभाग चार — आधुनिकीकरण की ओर
विषय 6: मूल निवासियों का विस्थापन
विषय 7: आधुनिकीकरण के रास्ते
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