अनुभाग एक 一 प्रारंभिक समाज
Table of Contents
Toggleविषय 1: लेखन कला और शहरी जीवन
प्रारंभिक समाज
पुरातत्व विज्ञानिकों ने आरंभिक मानव के जीवन के बारे में, हड्डियों और पत्थर के औज़ारों के अवशेषों की सहायता से पुनर्निर्माण करके यह जानने की कोशिश की है कि:
- वे कैसे घरों में रहते थे
- अपना भरण-पोषण कैसे करते थे
- किन तरीकों से अपने भावों एवं विचारों को अभिव्यक्त करते थे
- आग और भाषा का प्रयोग कब और कैसे शुरू हुआ
- आज के उपस्थित शिकारी खाद्य-संग्राहकों की मदद से अतीत के बारे में जानना
➡ मेसोपोटामिया (वर्तमान इराक) के नगरों का विकास मंदिरों के आस-पास हुआ था। ये नगर सुदूर व्यापार के केंद्र थे। पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर उस समय के शिल्पियों, लिपिकों, श्रमिकों, पुरोहितों, राजा-रानियों आदि के जीवन का पुनर्निर्माण का प्रयत्न किया गया है।
➡ लगभग दस हज़ार साल पहले खानाबदोशों ने खेती के लिए एक स्थान पर बस कर पौधे उगाना सीखा। जैसे:—
- पश्चिमी एशिया में गेहूँ और जौ, मटर और कई तरह की दालों की फसलें
- पूर्वी तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया में ज्वार-बाजरा और धान की फसलें
- ज्वार-बाजरा अफ़्रीका में पैदा किया जाता था।
1. लोगों ने भेड़-बकरी, ढोर, सूअर और गधा जैसे जानवरों को पालतू बनाना सीख लिया।
2. पौधों से निकलने वाले रेशों, जैसे रुई तथा पटसन और पशुओं पर उगने वाले रेशों जैसे ऊन आदि से कपड़े बुनना सीखा।
3. लगभग पाँच हज़ार साल पहले ढोरों और गधों को हल लगाकर खेतों को जोता जाने लगा।
4. कुछ जन-समुदायों ने मिट्टी के बर्तन बनाना सीखकर इसमें अनाज और अन्य उपज इकट्ठी करने और भोजन बनाने के लिए इस्तेमाल करने लगे।
5. औज़ार बनाने के पुराने तरीके चालू रहे। अब कुछ औज़ारों तथा उपकरणों को घिसाई कर चिकना और पॉलिशदार बनाया जाने लगा।
- नए उपकरण जैसे: अनाज की पिसाई और सफाई करने के लिए ओखली व मूसल और पत्थर की कुल्हाड़ी, कसिया और फावड़ा आदि बनाए गए।
6. कुछ इलाकों में, लोगों ने ताँबा और टिन (राँगा) जैसी धातुओं के खनिजों का उपयोग करना सीख लिया। इससे आगे चलकर गहने और औज़ार बनाए गए।
➡ लकड़ी, पत्थर, हीरे-जवाहरात, धातुएँ, सीपियाँ और ऑब्सीडियन (ज्वालामुखी का पक्का जमा हुआ लावा)। लोग इन चीज़ों और इनकी जानकारी के साथ एक एक जगह से दूसरी जगह प्रसार करते जाते थे।
इस प्रकार व्यापार में वृद्धि होकर गाँवों और कस्बों का विकास और लोगों का आवागमन बढ़ता गया। फलस्वरूप छोटे-छोटे जन-समुदायों के स्थान पर छोटे-छोटे राज्य विकसित हो गए।
कुछ विद्वानों ने इसे “क्रांति” कहकर पुकारा क्योंकि लोगों के जीवन में इतना अधिक परिवर्तन आ गया था कि उसे पहचानना भी मुश्किल हो गया था।
मेसोपोटामिया
फ़रात और दज़ला नदियों के बीच स्थित मेसोपोटामिया (यूनानी के दो शब्दों मेसोस यानी मध्य और पोटैमोस यानी नदी से मिलकर बना है) में शहरी जीवन की शुरुआत हुई थी।
➡ इसकी सभ्यता अपनी संपन्नता, शहरी जीवन, विशाल एवं समृद्ध साहित्य, गणित और खगोलविद्या के लिए प्रसिद्ध है।
- लेखन-प्रणाली और साहित्य पूर्वी भूमध्यसागरीय प्रदेशों और उत्तरी सीरिया तक तुर्की में 2000 ई.पू. के बाद फैला।
- आरंभिक काल में इसके शहरीकृत दक्षिणी भाग को सुमेर और अक्कद कहा जाता था।
- 2000 ई.पू. के बाद बेबीलोन के महत्वपूर्ण शहर बनने पर दक्षिणी क्षेत्र को बेबीलोनिया कहा जाने लगा।
- लगभग 1100 ई. पू. में असीरियाइयों के उत्तर में राज्य स्थापित कर लेने पर उस क्षेत्र को असीरिया कहा जाने लगा।
- उस प्रदेश की प्रथम ज्ञात भाषा सुमेरियन यानी सुमेरी थी।
- धीरे-धीरे 2400 ई.पू. के आसपास अक्कदी भाषी लोगों ने आकर सुमेरी भाषा का स्थान ले लिया।
- यह भाषा सिकंदर के समय (336-323 ई.पू.) तक कुछ क्षेत्रीय परिवर्तनों के साथ फलती-फूलती रही।
- 1400 ई.पू. से अरामाइक भाषा आई। जो हिब्रू भाषा से मिलती-जुलती थी और 1000 ई.पू. के बाद व्यापक रूप से बोली जाने लगी। आज भी इराक के कुछ भागों में बोली जाती है।
मेसोपोटामिया और उसका भूगोल
पूर्वोत्तर भाग में हरे-भरे, ऊँचे-नीचे मैदान जो धीरे-धीरे वृक्षाच्छादित पर्वत-श्रृंखला के रूप में फैलते गए हैं। यहाँ स्वच्छ झरने तथा जंगली फूल है और अच्छी फ़सल के लिए पर्याप्त वर्षा हो जाती है।
- 7000 से 6000 ई.पू. के बीच खेती शुरू हो गई थी।
- उत्तर में ऊँची भूमि है जहाँ “स्टेपी” (घास के मैदान) हैं, इसलिए यहाँ पशुपालन खेती की तुलना में आजीविका का सबसे अच्छा साधन है।
- पूर्व में दज़ला की सहायक नदियाँ ईरान के पहाड़ी प्रदेशों में जाने के लिए परिवहन का अच्छा साधन हैं।
- दक्षिणी भाग एक रेगिस्तान है जहाँ सबसे पहले नगरों और लेखन-प्रणाली का प्रादुर्भाव हुआ।
➡ फ़रात नदी रेगिस्तान में प्रवेश करने के बाद कई धाराओं में बँटकर बहने लगती है। उस समय ये धाराएँ सिंचाई की नहरों का काम करती थीं। जिससे गेहूँ, जौ और मटर या मसूर के खेतों को सींचा जाता था।
- खेती के अलावा भेड़-बकरियाँ स्टेपी घास के मैदानों, पूर्वोत्तरी मैदानों और पहाड़ों के ढालों पर पाली जाती थीं। जिससे भारी मात्रा में मांस, दूध और ऊन आदि वस्तुएँ मिलती थीं।
- इसके अलावा, नदियों से मछलियाँ और खजूर के पेड़ से फल (पिंड खजूर) मिलते थे।
शहरीकरण का महत्व
मेसोपोटामिया के प्राचीनतम नगरों का निर्माण कांस्य युग (लगभग 3000 ई.पू.) में शुरू हो गया था।
➡ शहरी अर्थव्यवस्थाओं में खाद्य उत्पादन के अलावा व्यापार, उत्पादन और तरह-तरह की सेवाओं के विकसित होने पर किसी एक स्थान पर जनसंख्या का घनत्व बढ़कर कस्बे बसने लगते हैं।
➡ नगर के लोगों को नगर या गाँव के अन्य लोगों द्वारा उत्पन्न वस्तुओं या दी जाने वाली सेवाओं के लिए उन पर आश्रित होना पड़ता हैं। उनमें आपस में बराबर लेन-देन से श्रम-विभाजन शहरी जीवन की विशेषता बनती है।
➡ शहरी विनिर्माताओं के लिए ईंधन, धातु, विभिन्न प्रकार के पत्थर, लकड़ी आदि चीज़ें भिन्न-भिन्न जगहों से आने के कारण संगठित व्यापार और भंडारण की ज़रूरत होती है। शहरों में अनाज और अन्य खाद्य-पदार्थ को गाँवों से लाकर उनके संग्रहण तथा वितरण के लिए व्यवस्था करनी होती है।
➡ अन्य प्रकार के क्रियाकलापों जैसे: मुद्रा काटने वालों को पत्थर के साथ उन्हें तराशने के लिए औज़ार और बर्तन भी चाहिए। शहरी अर्थव्यवस्था को अपना हिसाब-किताब लिखित रूप में रखना होता है।
शहरों में माल की आवाजाही
प्राचीन काल के मेसोपोटामियाई लोग संभवत: लकड़ी, ताँबा, राँगा, चाँदी, सोना, सीपी और विभिन्न प्रकार के पत्थरों को तुर्की और ईरान खाड़ी-पार के देशों से मंगाते थे। जिसके बदले में वे अपना कपड़ा और कृषि जन्य उत्पाद निर्यात करते थे।
- इन वस्तुओं का नियमित रूप से आदान-प्रदान करने के लिए दक्षिणी मेसोपोटामिया के लोगों ने सामाजिक संगठन बनाने की शुरुआत की।
- शहरी विकास के लिए कुशल परिवहन व्यवस्था भी बहुत महत्वपूर्ण होती है। भारवाही पशुओं की पीठ पर रखकर या बैलगाड़ियों में डालकर शहरों में अनाज या काठ कोयला लाना-ले जाना बहुत कठिन और ज़्यादा समय के साथ काफी ख़र्चीला भी होता है।
- इसलिए परिवहन का सबसे सस्ता तरीका जलमार्ग होता है। जिसमें बिना खर्चा किए अनाज के बोरों से लदी हुई नावें, नदी की धारा व हवा के वेग से पहुँचते है।
- पुराने मेसोपोटामिया की नहरें और प्राकृतिक जलधाराएँ छोटी-बड़ी बस्तियों के बीच माल के परिवहन का अच्छा मार्ग थीं।
लेखन कला का विकास
लेखन या लिपि का अर्थ है उच्चरित ध्वनियाँ, जो दृश्य संकेतों या चिन्हों के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं।
➡ मेसोपोटामिया (लगभग 3200 ई.पू.) की पहली पट्टिकाओं में चित्र जैसे चिन्ह और संख्याएँ दी गई हैं। वहाँ बैलों, मछलियों और रोटियों आदि की लगभग 5000 सूचियाँ मिली है, जो दक्षिणी शहर उरुक के मंदिरों में आने वाली और वहाँ से बाहर जाने वाली चीज़ों की होंगी। अतः समाज को अपने लेन-देन का स्थायी हिसाब रखने की जरूरत पड़ने पर लेखन कार्य शुरू हुआ।
मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे। जो इस प्रकार तैयार होती थी:—
- लिपिक चिकनी मिट्टी को गीला करके गूंध कर और थापकर एक पट्टी का रूप देता था जिसे आसानी से हाथ में पकड़ा जा सके।
- उसकी सतहों को चिकना बना कर सरकंडे की तीली की नोक से कीलाकार चिन्ह बना देता था।
- धूप में सूखने के बाद पट्टिकाएँ पक्की हो जाती थीं।
- किसी हिसाब के असंगत या गैर-ज़रूरी लगने पर पट्टिका को फेंक दिया जाता था।
- हर छोटे से सौदे के लिए एक अलग पट्टिका बनाई जाती थी।
- इसलिए मेसोपोटामिया की खुदाई स्थलों पर सैकड़ों पट्टिकाएँ मिली हैं।
➡ लगभग 2600 ई.पू. के आसपास वर्ण कीलाकार (भाषा सुमेरियन) हो गए। अब लेखन का इस्तेमाल हिसाब-किताब के साथ शब्द-कोश बनाने, भूमि के हस्तांतरण को कानूनी मान्यता प्रदान करने, राजाओं के कार्यों का वर्णन करने और कानून में (देश की आम जनता के लिए) परिवर्तनों को उदघोषित करने के लिए किया जाने लगा।
- 2400 ई.पू. के बाद सुमेरियन भाषा का स्थान अक्कदी भाषा ने ले लिया। इसमें कीलाकार लेखन का रिवाज 2000 से अधिक वर्षों तक चलता रहा।
लेखन प्रणाली
लिपिक को सैकड़ों चिह्न सीख कर पट्टी के सूखने से पहले लिखना होता है क्योंकि जिस ध्वनि के लिए कीलाकार चिह्न का प्रयोग किया जाता था वह एक अकेला व्यंजन यह स्वर नहीं बल्कि अक्षर होते थे। लेखन कार्य के लिए बड़ी कुशलता होने के कारण इसे अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता था।
साक्षरता
मेसोपोटामिया के बहुत कम लोग पढ़-लिख सकते थे। प्रतीकों या चिह्नों की संख्या सैकड़ों में होने के साथ ये कहीं अधिक पेचीदा थे। यदि राजा स्वयं पढ़ सकने पर चाहता था कि प्रशस्तिपूर्ण अभिलेखों में उन तथ्यों का उल्लेख अवश्य किया जाए।
लेखन का प्रयोग
शहरी जीवन, व्यापार और लेखन कला के बीच के संबंधों को ऊरक के एक प्राचीन शासक एनमर्कर के बारे में लिखे गए एक सुमेरियन महाकाव्य में स्पष्ट किया गया।
➡ इस महाकाव्य के अनुसार एनमर्कर अपने शहर के एक सुंदर मंदिर को सजाने के लिए लाजवर्द और अन्य बहुमूल्य रत्न तथा धातुएँ लाने के लिए अपने दूत को अरट्टा के शासक के पास भेजता है।
- पर दूत शासक से अपनी बात सही तरह से व्यक्त नहीं कर पाया।
- तब एनमर्कर ने हाथ से चिकनी मिट्टी की पट्टिका बनाकर उस पर शब्द लिख दिए।
- इस कारण माना जाता है कि सर्वप्रथम राजा ने ही व्यापार और लेखन की व्यवस्था की थी।
दक्षिणी मेसोपोटामिया का शहरीकरण一मंदिर और राजा
5000 ई.पू. से दक्षिणी मेसोपोटामिया में बस्तियों का विकास होने लगा था। इनमें से कुछ प्राचीन शहर बन गए। जैसे मंदिरों के चारों ओर तथा व्यापार केंद्रों के रूप में विकसित हुए और बाकी शाही शहर थे।
➡ बाहर से आकर बसने वाले लोगों ने अपने गाँवों में मंदिरों को बनाना या उनका पुनर्निर्माण करना शुरू किया। पहला ज्ञात मंदिर एक छोटा-सा देवालय, जो कच्ची ईंटों का बना हुआ था। यह उर (चंद्र देवता) और इन्नाना (प्रेम और युद्ध की देवी) का निवास स्थान था।
➡ ये मंदिर ईंटों से बनाए जाते थे जो समय के साथ बड़े होते गए। मंदिरों की यह विशेषता थी कि बाहरी दीवारें कुछ खास अंतरालों के बाद भीतर और बाहर की ओर मुड़ी हुई होती थीं।
- लोग देवी-देवता के लिए अन्न, दही, मछली लाते थे। क्योंकि उन्हें खेतों, मत्स्य क्षेत्रों और स्थानीय लोगों के पशुधन का स्वामी माना जाता था।
➡ घर परिवार से ऊपर के स्तर के व्यवस्थापक, व्यापारियों के नियोक्ता, अन्न, हल जोतने वाले पशुओं, रोटी, जौ की शराब, मछली आदि के आवंटन और वितरण और अन्य दूसरे कारक के लिखित अभिलेखों के पालक के रूप में मंदिर ने धीरे-धीरे अपने क्रियाकलाप बढ़ा लिए और मुख्य शहरी संस्था का रूप ले लिया।
➡ फ़रात नदी की प्राकृतिक धाराओं में किसी वर्ष ज़्यादा पानी आने से फसलें डूब जाती थी। तो कभी धाराओं के रास्ता बदलने से खेत सूख जाते थे। कई बार मानव-निर्मित समस्याएँ जैसे: धाराओं के ऊपरी इलाकों के लोगों द्वारा ज़्यादा पानी अपने खेतों में ले जाने से नीचे बसे गाँवों को पानी नहीं मिल पाता था। इसलिए देहातों में ज़मीन और पानी के लिए बार-बार झगड़े होते थे।
- मुखिया के लड़ाई जीतने के बाद लूट का माल साथियों एवं अनुयायियों में बाँटकर हारे हुए समूह के लोगों को वे अपने चौकीदार या नौकर बना लेते थे। परंतु ये नेता स्थायी रूप से समुदाय के मुखिया नहीं रहते थे।
- कुछ समय बाद इन नेताओं ने नई-नई संस्थाएँ और परिपाटियाँ स्थापित की। अब विजेता मुखियाओं ने कीमती भेंटों को देवताओं पर अर्पित किया। जिससे समुदाय के मंदिरों की सुंदरता बढ़ गई।
- एनमर्कर के अनुसार इस व्यवस्था ने राजा को ऊँचा स्थान दिलाकर समुदाय पर उसका पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया।
- मुखियाओं ने ग्रामीणों को अपने पास बसने के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे आवश्यकता पड़ने पर तुरंत उन्हें सेना मिल सकें।
उरुक (4200 ई.पू.-400 ई.) (सबसे पुराना मंदिर-नगरों में से एक) से हमें सशस्त्र वीरों और उनसे हारे शत्रुओं के चित्र मिलते हैं।
- 3000 ई.पू. के आसपास उरुक नगर का 250 हैक्टेयर भूमि में विस्तार होने के कारण दर्जनों छोटे-छोटे गाँव उजड़ कर बड़ी संख्या में आबादी विस्थापित हुई। जो मोहनजोदड़ो नगर से दो गुना था।
- इस नगर के चारों ओर काफी पहले एक प्राचीर बना दी गई थी और 2800 ई.पू. के आसपास वह बढ़कर 400 हैक्टेयर में फैल गया था।
- युद्धबंदियों और स्थानीय लोगों को अनिवार्य रूप से मंदिर का अथवा प्रत्यक्ष रूप से शासक का काम करना अनिवार्य था। जिन्हें काम के बदले अनाज दिया जाता था।
- सैकड़ों ऐसी राशन-सूचियाँ मिली हैं जिनमें काम करने वाले लोगों के नामों के आगे उन्हें दिए जाने वाले अनाज, कपड़े और तेल आदि की मात्रा लिखी गई है।
- शासक के हुक्म से आम लोग पत्थर खोदने, धातु-खनिज लाने, मिट्टी से ईंटें तैयार करने और मंदिर में लगाने, और सुदूर देशों में जाकर मंदिर के लिए उपयुक्त सामान लाने के कामों में जुटे रहते थे।
- इस कारण 3000 ई.पू. के आसपास उरुक में खूब तकनीकी प्रगति भी हुई।
- सैकड़ों लोगों ने चिकनी मिट्टी के शंकु बना के पकाकर उस पर भिन्न-भिन्न रंग किए। जिसे मंदिरों की दीवारों पर लगाया जाता था।
- मूर्तिकला चिकनी मिट्टी की अपेक्षा अधिकतर आयातित पत्थरों से तैयार किए जाते थे। फिर कुम्हार के चाक से एक युगांतकारी परिवर्तन आया। जिससे दर्जनों एक जैसे बर्तन बनाना आसान हुआ।
शहरी जीवन
नगरों की सामाजिक व्यवस्था में एक उच्च (संभ्रांत) वर्ग जिसके पास धन-दौलत का ज़्यादातर हिस्सा था। इसकी पुष्टि बहुमूल्य चीज़ें (आभूषण, सोने के पात्र, सफेद सीपियाँ और लाजवर्द जड़े हुए लकड़ी के वाद्य यंत्र, सोने के सजावटी खंजर आदि) विशाल मात्रा में उर में राजाओं और रानिओं की कब्रों या समाधियों में मिलने से होती है।
➡ कानूनी दस्तावेज़ों (विवाह, उत्तराधिकार आदि के) से मेसोपोटामिया समाज द्वारा एकल परिवार को आदर्श मानने का पता चलता है। हालांकि एक शादीशुदा बेटा अपने माता-पिता के साथ ही रहा करते थे। पिता परिवार का मुखिया होता था।
- विवाह के लिए वधू के माता-पिता की सहमति के बाद वर पक्ष के लोग वधू को कुछ उपहार देते थे।
- विवाह की रस्म पूरी होने के बाद दोनों पक्षों की ओर से उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता था।
- फिर एकसाथ बैठकर भोजन करके मंदिर में जाकर भेंट चढ़ाते थे।
- विदाई के समय वधू को पिता दाय का हिस्सा देते थे। पिता का घर, पशुधन, खेत आदि उसके पुत्रों को मिलते थे।
➡ उर (मेसोपोटामिया का नगर) के साधारण घरों की खुदाई 1930 के दशक में सुव्यवस्थित ढंग से की गई थी।
- उसमें टेढ़ी-मेढ़ी व संकरी गलियों के पाए जाने से पता चलता है कि अनाज के बोरे और ईंधन के गट्ठे संभवत: गधे पर लादकर घर तक ले जाते थे।
- नगर-नियोजन की पद्धति का अभाव था क्योंकि पतली वह घुमावदार गलियों तथा घरों के भूखंडों का एक जैसा आकार नहीं है।
- जल-निकासी की नालियाँ और मिट्टी की नलिकाएँ घरों के भीतरी आँगन में पाई गई है।
- इससे यह समझ आया कि घरों की छतों का ढलान भीतर की ओर होता था और वर्षा का पानी निकास नालियों के माध्यम से भीतरी आँगनों में बने हौज़ों में जाता था।
- लोग अपने घर का कूड़ा बुहारकर गलियों में डाल देते थे, जिससे बाहर कूड़े के ढेर से गलियों की सतह ऊँची उठ जाती थी।
- फिर कुछ समय बाद घरों की दहलीज़ों को ऊँचा उठाना पड़ता था।
- कमरों के अंदर रोशनी खिड़कियों से नहीं, आँगन में खुले दरवाजे से आती थी।
➡ शकुन-अपशकुन संबंधी बातें पट्टिकाओं पर लिखी मिली है; जैसे- घर की देहली ऊँची उठी हुई हो तो वह धन-दौलत लाती है। सामने का दरवाज़ा अगर किसी दूसरे के घर की ओर न खुले तो वह सौभाग्य प्रदान करता है, लेकिन अगर घर का लकड़ी का मुख्य दरवाज़ा बाहर की ओर खुले तो पत्नी अपने पति के लिए यंत्रणा (पीड़ा) का कारण बनेगी।
- उर में नगरवासियों के लिए कब्रिस्तान में शासकों तथा जन-साधारण की समाधियाँ पाई गईं, लेकिन कुछ लोगों के क़ब्र साधारण घरों के फ़र्शों के नीचे मिले थे।
पशुचारक क्षेत्र में एक व्यापारिक नगर
2000 ई.पू. के बाद मारी नगर शाही राजधानी के रूप में खूब फला-फूला। मारी नगर फ़रात नदी की उर्ध्वधारा पर स्थित था। इसके ऊपरी क्षेत्र में खेती और पशुपालन साथ-साथ चलते थे लेकिन प्रदेश का अधिकांश भाग भेड़-बकरी चराने के काम आता था।
➡ पशुचारक अपने पशुओं और उनके पनीर, चमड़ा तथा मांस के बदले अनाज, धातु के औज़ार प्राप्त करते थे। फिर भी, किसानों तथा गड़रियों के बीच कई बार इस कारण से झगड़े हो जाते थे:
- गड़रियों द्वारा भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए हुए खेतों से गुज़ार देना।
- किसानों के गाँव पर हमला करके उनका इकट्ठा किया माल लूट लेना।
- बस्तियों में रहने वाले लोगों द्वारा पशुचारकों का नदी-नहर तक जाने का रास्ता रोक लेना।
➡ यायावर समुदायों के झुंड के झुंड पश्चिमी मरुस्थल से अपने भेड़-बकरियों के साथ फसल काटने वाले मज़दूरों अथवा भाड़े के सैनिकों के रूप में आते थे और समृद्ध होकर यहीं बस जाते थे।
- उनमें से कुछ ने अपना शासन स्थापित कर लिया था।
- ये खानाबदोश लोग अक्कदी, एमोराइट, असीरियाई और आर्मीनियन जाति के थे।
- मारी के राजा एमोराइट समुदाय के थे। उनकी पोशाक वहाँ के मूल निवासियों से भिन्न होती थी और उन्होंने मेसोपोटामिया के देवी-देवताओं के आदर की जगह स्टेपी क्षेत्र के देवता डैगन के लिए मारी नगर में एक मंदिर भी बनवाया।
- इस प्रकार, मेसोपोटामिया का समाज और वहाँ की संस्कृति भिन्न-भिन्न समुदायों के लोगों और संस्कृतियों के लिए खुली थी।
➡ मारी के राजाओं को सदा सतर्क एवं सावधान रहना पड़ता था। विभिन्न जन-जातियों के चरवाहों पर कड़ी नज़र के साथ राज्य में चलने-फिरने की इजाज़त थी।
- मारी से लकड़ी, ताँबा, राँगा, तेल, मदिरा और अन्य कई किस्मों का माल नावों के ज़रिए फ़रात नदी के रास्ते दक्षिण और तुर्की, सीरिया और लेबनान के ऊँचे इलाकों के बीच लाया-ले जाया जाता था।
- दक्षिणी नगरों को जाने वाले घिसाई-पिटाई के पत्थर, चक्कियाँ, लकड़ी और शराब तथा तेल के पीपे के जलपोतों को मारी में रोककर अधिकारी सामानों की जाँच के बाद 10% प्रभार वसूल कर आगे बढ़ने देते थे।
मेसोपोटामिया संस्कृति में शहरों का महत्व
मेसोपोटामिया वासी शहरों में अनेक समुदायों और संस्कृतियों के लोग साथ-साथ रहा करते थे। युद्ध में शहरों के नष्ट हो जाने के बाद वे अपने काव्यों के ज़रिए उन्हें याद किया करते थे।
- लोगों के अपने नगरों पर गर्व का पता गिल्गेमिश महाकाव्य से चलता है यह काव्य 12 पट्टिकाओं पर लिखा गया था।
- गिल्गेमिश ने एनमर्कर के कुछ समय बाद उरुक नगर पर शासन किया था। वह एक महान योद्धा था जिसने दूर-दूर तक के प्रदेशों को अपने अधीन कर लिया था।
लेखन कला की देन
मेसोपोटामिया ने दुनिया को कालगणना और गणित की विद्वत्तापूर्ण परंपरा दी है। 1800 ई.पू. के आसपास कुछ पट्टिकाएँ मिली हैं जिसमें गुणा और भाग की तालिकाएँ, वर्ग तथा वर्गमूल और चक्रवृद्धि ब्याज की सारणियाँ दी गई हैं।
- मेसोपोटामिया का समय का विभाजन सिकंदर के उत्तराधिकारियों ने अपनाया, वहाँ से रोम फिर इस्लाम की दुनिया और फिर मध्ययुगीन यूरोप में पहुँचा।
- लेखन कला, विद्यालय (जहाँ विद्यार्थीगण पुरानी लिखित पट्टिकाओं को पढ़कर उसकी नकल करते थे) और पूर्वजों की बौद्धिक उपलब्धियों को आगे बढ़ाने वाले छात्रों के कारण मेसोपोटामिया की महत्वपूर्ण उपलब्धियों के बारे में पता चल पाया।
काल — रेखा
- लगभग 7000-6000 ई.पू. — उत्तरी मेसोपोटामिया के मैदानों में खेती की शुरुआत
- लगभग 5000 ई.पू. — दक्षिणी मेसोपोटामिया में सबसे पुराने मंदिरों का बनना
- लगभग 3200 ई.पू. — मेसोपोटामिया में लेखन-कार्य की शुरुआत
- लगभग 3000 ई.पू. — उरुक का एक विशाल नगर के रूप में विकास : कांसे के औज़ारों के इस्तेमाल में बढ़ोतरी
- लगभग 2700-2500 ई.पू. — आरंभिक राजाओं का शासनकाल जिनमें गिल्गेमिश जैसे पौराणिक राजा भी शामिल हैं।
- लगभग 2600 ई.पू. — कीलाकार लिपि का विकास
- लगभग 2400 ई.पू. — सुमेरियन के स्थान पर अक्कदी भाषा का प्रयोग
- 2370 ई.पू. — सारगोन, अक्कद सम्राट
- लगभग 2000 ई.पू. — सीरिया, तुर्की और मिस्र तक कीलाकार लिपि का प्रसार; महत्वपूर्ण शहरी केन्द्रों के रूप में मारी और बेबीलोन का उदभव
- लगभग 1800 ई.पू. — गणितीय मूलपाठों की रचना; अब सुमेरियन बोलचाल की भाषा नहीं रही
- लगभग 1100 ई.पू. — असीरियाई राज्य की स्थापना
- लगभग 1000 ई.पू. — लोहे का प्रयोग
- 720-610 ई.पू. — असीरियाई साम्राज्य
- 668-627 ई.पू. — असुरबनिपाल का शासन
- 331 ई.पू. — सिकंदर ने बेबीलोन को जीत लिया
- लगभग पहली सदी ई. — अक्कदी भाषा और कीलाकार लिपि प्रयोग में रही
- 1850 ई. — कीलाकार लिपि के अक्षरों को पहचाना व पढ़ा गया
Class 11 History Chapter 1 Notes In Hindi PDF Download
विषय सूची
अनुभाग दो — साम्राज्य
विषय 2: तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य
विषय 3: यायावर साम्राज्य
अनुभाग तीन — बदलती परंपराएँ
विषय 4: तीन वर्ग
विषय 5: बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ
अनुभाग चार — आधुनिकीकरण की ओर
विषय 6: मूल निवासियों का विस्थापन
विषय 7: आधुनिकीकरण के रास्ते
Legal Notice
This is copyrighted content of Study Learning Notes. Only students and individuals can use it. If we find this content on any social media (App, Website, Video, Google Drive, YouTube, Facebook, Telegram Channels, etc.) we can send a legal notice and ask for compensation. If you find this content anywhere else in any format, mail us at historynotes360@gmail.com. We will take strict legal action against them.