अध्याय 1: यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
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Toggle19वीं सदी के दौरान राष्ट्रवाद की ताकत ने यूरोप के राजनीतिक और मानसिक जगत में परिवर्तन लाकर यूरोप में बहु-राष्ट्रीय वंशीय साम्राज्यों के स्थान पर राष्ट्र-राज्य का उदय किया। यूरोप में लंबे समय से एक केंद्रीय शक्ति की प्रभुसत्ता थी। लेकिन संघर्षों और नेताओं तथा आम लोगों की कटिबद्धता से राष्ट्र-राज्य में शासकों के साथ-साथ नागरिकों में भी एक साझा पहचान का भाव और साझा इतिहास या विरासत की भावना निर्मित हुई थी।
अर्न्स्ट रेनन “राष्ट्र क्या है?”
अर्न्स्ट रेनन ने 1882 में सॉबॉन विश्वविद्यालय में दिए एक व्याख्यान में लोगों द्वारा प्रस्तावित इस विचार की आलोचना की थी कि राष्ट्र समान भाषा, नस्ल, धर्म या क्षेत्र से बनता है।
फ़्रांसीसी क्रांति और राष्ट्र का विचार
राष्ट्रवाद की पहली स्पष्ट अभिव्यक्ति 1789 में फ़्रांसीसी क्रांति के साथ हुई। क्रांति से पहले फ़्रांस के संपूर्ण भू-भाग पर एक निरंकुश राजा का आधिपत्य था। क्रांति के बाद राजनीतिक और संवैधानिक बदलाव ने प्रभुसत्ता फ़्रांसीसी नागरिकों को हस्तांतरित कर दी।
- पितृभूमि और नागरिक जैसे विचारों ने संविधान के अंतर्गत सबको समान अधिकार दिए।
- नया फ़्रांसीसी झंडा-तिरंगा चुना गया।
- इस्टेट जेनरल (नेशनल एसेंबली) का चुनाव सक्रिय नागरिकों के समूह द्वारा किया जाने लगा।
- नयी स्तुतियाँ रची गईं, शपथें ली गई, शहीदों का गुणगानーयह सब राष्ट्र के नाम पर हुआ।
- एक केंद्रीय प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गई जिसने अपने भूभाग में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाए।
- आंतरिक आयातーनिर्यात शुल्क समाप्त किए गए और भार तथा नापने की एकसमान व्यवस्था लागू की गई।
- क्षेत्रीय बोलियों की जगह फ़्रेंच राष्ट्र की साझा भाषा बन गई।
➡ क्रांतिकारियों ने यह घोषणा की कि फ़्रांस यूरोपीय लोगों को निरंकुश शासकों से मुक्त कराके राष्ट्रों में गठित होने में मदद करेगा। फ़्रांस की घटनाओं की ख़बर यूरोप के विभिन्न शहरों में पहुँचने पर छात्र तथा शिक्षित मध्य-वर्गों के अन्य सदस्य जैकोबिन क्लबों की स्थापना करने लगे।
नेपोलियन बोनापार्ट
नेपोलियन ने फ़्रांस में राजतंत्र वापस लाकर प्रजातंत्र को नष्ट किया। परंतु उसने प्रशासनिक क्षेत्र में क्रांतिकारी सिद्धांतों का समावेश किया था।
1804 की नागरिक संहिता (नेपोलियन संहिता)
- जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए। कानून के समक्ष बराबरी और संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया।
- इस संहिता को फ़्रांसीसी नियंत्रण के अधीन क्षेत्रों में भी लागू किया गया।
- डच गणतंत्र, स्विट्ज़रलैंड, इटली और जर्मनी में नेपोलियन ने प्रशासनिक विभाजनों को सरल बनाया।
- सामंती व्यवस्था को खत्म कर किसानों को भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलाई।
- शहरों में कारीगरों के श्रेणी-संघों के नियंत्रणों को हटा दिया गया।
- यातायात और संचार-व्यवस्थाओं को सुधारा गया।
➡ उद्योगपतियों और लघु उत्पादकों को लगा कि एकसमान कानून, मानक भार तथा नाप और एक राष्ट्रीय मुद्रा से एक इलाक़े से दूसरे इलाक़े में वस्तुओं और पूँजी के आवागमन में सहूलियत होगी। शुरू में हॉलैंड और स्विट्ज़रलैंड और कई शहरों जैसेーब्रसेल्स, मेंज़, मिलान और वॉरसा में फ़्रांसीसी सेनाओं का स्वागत किया गया। मगर बढ़े हुए कर, सेंसरशिप और फ़्रेंच सेना में जबरन भर्ती से लोगों को नेपोलियन की मंशा का पता चला।
यूरोप में राष्ट्रवाद का निर्माण
जर्मनी, इटली और स्विट्ज़रलैंड 18वीं सदी के मध्य में राजशाहियों, डचियों और कैंटनों में बँटे हुए थे। पूर्वी और मध्य यूरोप निरंकुश राजतंत्रों के अधीन थे जिनकी संस्कृति, भाषा और जातीय समूह अलग-अलग थे।
➡ उदाहरण: ऑस्ट्रिया-हंगरी के हैब्सबर्ग साम्राज्य में ऐल्प्स के टिरॉल, ऑस्ट्रिया, सुडेटेनलैंड, (बोहेमियाーयहाँ कुलीन वर्ग में जर्मन भाषी ज़्यादा थे), लॉम्बार्डी और वेनेशिया (इतालवीーभाषी प्रांत) भी शामिल थे।
- हंगरी में आधे लोग मैग्यार भाषा, बाक़ी लोग विभिन्न बोलियों का इस्तेमाल करते थे। गालीसिया में कुलीन वर्ग पोलिश भाषा बोलता था।
- हैब्सबर्ग साम्राज्य के भीतर खेती करने वाले अधीन अवस्था में उत्तर में बोहेमियन और स्लोवाक, कार्निओला में स्लोवेन्स, दक्षिण में क्रोएट तथा पूर्व की तरफ़ ट्रांसिल्वेनिया के राउमन लोग रहते थे।
इन तरह-तरह के समूहों को आपस में बाँधने वाला तत्व, केवल सम्राट के प्रति सबकी निष्ठा थी।
कुलीन वर्ग और नया मध्यवर्ग
यूरोपीय महाद्वीप में सबसे प्रभुत्वशाली वर्ग सामाजिक और राजनीतिक रूप से कुलीन वर्ग था। परंतु इनकी संख्या कम थी। जनसंख्या के अधिकांश लोग कृषक थे।
- वे एक साझा जीवन शैली से बँधे हुए थे।
- वे ग्रामीण इलाक़ों में जायदाद और शहरी-हवेलियों के मालिक थे।
- राजनीतिक कार्यों के लिए तथा उच्च वर्गों के बीच वे फ़्रेंच भाषा का प्रयोग करते थे।
- उनके परिवार अकसर वैवाहिक बंधनों से आपस में जुड़े होते थे।
पश्चिम में ज़्यादातर ज़मीन पर किराएदार और छोटे काश्तकार खेती करते थे जबकि पूर्वी और मध्य यूरोप में भूमि विशाल जागीरों में बँटी थी जिस पर भूदास खेती करते थे।
➡ पश्चिमी और मध्य यूरोप के हिस्सों में औद्योगिक उत्पादन और व्यापार में वृद्धि से शहरों का विकास और वाणिज्यिक वर्गों का उदय हुआ। इंग्लैंड में 18वीं सदी के दूसरे भाग में और फ़्रांस तथा जर्मनी के राज्यों के कुछ हिस्सों में 19वीं सदी के दौरान औद्योगीकरण हुआ।
फलस्वरुप नए सामाजिक समूह (श्रमिक वर्ग और मध्यवर्गㅡउद्योगपति, व्यापारी और सेवा क्षेत्र के लोग) अस्तित्व में आए।
उदारवादी राष्ट्रवाद के क्या मायने थे?
नए मध्यवर्गों के लिए उदारवाद (आज़ाद) का मतलब था व्यक्ति के लिए आज़ादी और कानून के समक्ष सबकी बराबरी और राजनीतिक रूप से एक ऐसी सरकार जो सहमति से बनी हो। फ़्रांसीसी क्रांति के बाद से उदारवाद निरंकुश शासक और पादरीवर्ग के विशेषाधिकारों की समाप्ति, संविधान तथा संसदीय प्रतिनिधि सरकार का पक्षधर था।
- 19वीं सदी के उदारवादी निजी संपत्ति के पक्षधर थे। लेकिन मताधिकार केवल संपत्तिवान पुरुषों को ही हासिल था।
- जैकोबिन शासन के समय थोड़े समय के लिए सभी पुरुषों को मताधिकार प्राप्त हुआ। मगर नेपोलियन के आते ही पुन: सीमित मताधिकार आ गया।
संपूर्ण 19वीं तथा 20वीं सदी के आरंभिक वर्षों में महिलाओं और संपत्ति विहीन पुरुषों ने समान राजनीतिक अधिकारों की माँग करते हुए विरोध आंदोलन चलाए।
➡ उदारवाद, आर्थिक क्षेत्र में, बज़ारों की मुक्ति और चीज़ों तथा पूँजी के आवागमन पर राज्य द्वारा लगाए गए नियंत्रणों को खत्म करने के पक्ष में था। नए वाणिज्यिक वर्ग एक एकीकृत आर्थिक क्षेत्र के पक्ष में था जहाँ वस्तुओं, लोग और पूँजी का आवागमन बाधारहित हो।
➡ 1834 में प्रशा ने एक शुल्क संघ ज़ॉलवेराइन स्थापित किया, जिसमें अधिकांश जर्मन राज्य शामिल हो गए। इस संघ ने शुल्क अवरोधों को समाप्त किया और मुद्राओं की संख्या दो कर दी। इसके अलावा रेलवे ने गतिशीलता बढ़ाई और आर्थिक हितों को राष्ट्रीय एकीकरण से सहायता मिली।
1815 के बाद एक नया रूढ़िवाद
1815 में नेपोलियन की हार के बाद यूरोपीय रूढ़िवादी सरकारें राजतंत्र, चर्च, सामाजिक ऊँच-नीच, संपत्ति और परिवार को बनाए रखना चाहती थी।
➡ नेपोलियन द्वारा किए गए परिवर्तनों से उन्होंने जान लिया था कि आधुनिक सेना, कुशल नौकरशाही, गतिशील अर्थव्यवस्था, सामंतवाद और भूदासत्व की समाप्तिㅡयूरोप के निरंकुश राजतंत्रों को शक्ति प्रदान कर सकते थे।
वियना संधि
1815 में, ब्रिटेन, रूस, प्रशा और ऑस्ट्रिया ने मिलकर नेपोलियन को हराया था। इन्होंने यूरोप के लिए एक समझौता वियना संधि के रूप में की। जिसकी मेज़बानी ऑस्ट्रिया के चांसलर ड्यूक मैटरनिख ने की थी।
- फ़्रांसीसी क्रांति के दौरान हटाए गए बूर्बों वंश को सत्ता में बहाल किया गया।
- नेपोलियन के अधीन किए गए इलाक़ों को फ़्रांस से ले लिया गया।
- फ़्रांस के भविष्य में विस्तार को रोकने के लिए सीमाओं पर कई राज्य क़ायम किए गए।
- उत्तर में नीदरलैंड्स+बेल्जियम
- दक्षिण में पीडमॉण्ट+जेनोआ
- पश्चिमी में प्रशा+सैक्सनी का एक हिस्सा
- पूर्व में रूस+पोलैंड का एक हिस्सा
- ऑस्ट्रिया को उत्तरी इटली का नियंत्रण मिला।
लेकिन नेपोलियन द्वारा स्थापित 39 राज्यों के जर्मन महासंघ को बरक़रार रखा गया। इस सबका मुख्य उद्देश्य उन राजतंत्रों की बहाली था जिन्हें नेपोलियन ने बर्खास्त कर दिया था।
➡ 1815 में स्थापित रूढ़िवादी शासन व्यवस्थाएँ निरंकुश थीं। निरंकुश सरकारों की वैधता पर सवाल उठाने वाली गतिविधियों को दबाने के लिए सरकारों ने सेंसरशिप के नियम बनाए।
- जिनका उद्देश्य अखबारों, किताबों, नाटकों और गीतों में फ़्रांसीसी क्रांति से जुड़े स्वतंत्रता और मुक्ति के विचारों पर नियंत्रण करना था। लेकिन फिर भी फ़्रांसीसी क्रांति से प्रेरित उदारवादी राष्ट्रवादियों ने प्रेस की आज़ादी का मुद्दा उठाया।
क्रांतिकारी
1815 के बाद दमन के भय से अनेक उदारवादी-राष्ट्रवादियों को छुपना पड़ा। बहुत सारे यूरोपीय राज्यों में क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने और विचारों का प्रसार करने के लिए गुप्त संगठन उभर आए। क्रांतिकारी होने का मतलब था वियना कांग्रेस के बाद स्थापित राजतंत्रीय व्यवस्थाओं का विरोध करना और स्वतंत्रता और मुक्ति के लिए प्रतिबद्ध होना।
ज्युसेपी मेत्सिनी
इटली का क्रांतिकारी ज्युसेपी मेत्सिनी का जन्म 1805 में जेनोआ में हुआ था। लिगुरिया में क्रांति करने के लिए उसे कार्बोनारी (गुप्त संगठन) से बहिष्कृत कर दिया गया था। उसके बाद उसने दो और भूमिगत संगठनों की स्थापना की।
(1) मार्सेई में यंग इटली और (2) बर्न में यंग यूरोप, इसके सदस्य पोलैंड, फ़्रांस, इटली और जर्मन राज्यों में समान विचार रखने वाले युवा थे।
➡ मेत्सिनी का विश्वास था कि ईश्वर की मर्ज़ी के अनुसार राष्ट्र ही मनुष्यों की प्राकृतिक इकाई थी। इटली को जोड़कर गणतंत्र बनाना था।
- इस मॉडल की देखा-देखी जर्मनी, फ़्रांस, स्विट्रज़रलैंड और पोलैंड में गुप्त संगठन बनाए गए।
- मेत्सिनी ने राजतंत्र का विरोध करके और प्रजातांत्रिक गणतंत्रों के अपने सपने से रूढ़िवादियों को हरा दिया।
क्रांतियों का युग: 1830-1848
इटली और जर्मनी के राज्य, ऑटोमन साम्राज्य के सूबे, आयरलैंड और पोलैंड में क्रांतियों का नेतृत्व उदारवादी-राष्ट्रवादियों ने किया। जो शिक्षित मध्यवर्गीय विशिष्ट लोग (प्रोफ़ेसर, स्कूली-अध्यापक, क्लर्क और वाणिज्य व्यापारी) थे।
- जुलाई 1830, फ़्रांस में विद्रोह कर उदारवादी क्रांतिकारियों ने बूर्बों राजा को उखाड़ कर एक संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना की। जिसका अध्यक्ष लुई फ़िलिप था।
- जुलाई क्रांति से ब्रसेल्स में भी विद्रोह भड़क गया जिस कारण यूनाइटेड किंगडम ऑफ़ द नीदरलैंड्स से अलग हो गया।
➡ यूनान के स्वतंत्रता संग्राम ने पूरे यूरोप के शिक्षित अभिजात वर्ग में राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया था।
- यूनान 15वीं सदी से ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा था। 1821 में यूनानियों ने आज़ादी के लिए संघर्ष आरंभ कर दिया था।
- इन्हें पश्चिमी यूरोप के अनेक लोगों से समर्थन मिला जो प्राचीन यूनानी संस्कृति के प्रति सहानुभूति रखते थे।
- कवियों और कलाकारों ने यूनान को यूरोपीय सभ्यता का पालना बता कर प्रशंसा की और एक मुस्लिम साम्राज्य के विरोध में संघर्ष के लिए जनपत जुटाया।
अंग्रेज़ कवि लॉर्ड बायरन ने धन जुटाया और बाद में युद्ध में लड़ने भी गया। अंतत: 1832 की कुस्तुनतुनिया की संधि ने यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र बना दिया।
रूमानी कल्पना और राष्ट्रीय भावना
राष्ट्रवाद के विकास में युद्धों और क्षेत्रीय विस्तार के अलावा कला, काव्य, कहानियों-क़िस्सों और संगीत ने भी सहयोग दिया।
➡ रूमानी कलाकारों और कवियों ने तर्क-वितर्क और विज्ञान के महिमामंडन की आलोचना कर उसकी जगह भावनाओं, अंतर्दृष्टि और रहस्यवादी भावनाओं पर ज़ोर दिया। उनका प्रयास था कि एक साझा-सामूहिक विरासत की अनुभूति और सांस्कृतिक अतीत को राष्ट्र का आधार बनाया जाए।
➡ जर्मन दार्शनिक योहान गॉटफ़्रीड (रुमानी चिंतक) ने दावा किया कि सच्ची जर्मनी संस्कृति उसके आम लोगों में और राष्ट्र की सच्ची आत्मा लोकगीतों, जन-काव्य तथा लोकनृत्यों से प्रकट होती थी। इसलिए इन स्वरूपों को एकत्र और अंकित करना राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक था।
- इसका उद्देश्य प्राचीन राष्ट्रीय भावना को वापस लाने के साथ आधुनिक राष्ट्रीय संदेश को ज़्यादा लोगों (जिनमें अधिकांश निरक्षर थे) तक पहुँचाना था।
- पोलैंड, विभाजित होने के बाद भी अपने संगीत और भाषा के ज़रिए राष्ट्रीय भावना को जीवित रखा।
- कैरोल कुर्पिंस्की ने राष्ट्रीय संघर्ष का अपने ऑपेरा और संगीत से गुणगान किया और लोकनृत्यों (पोलेनेस और माज़ुरका) को राष्ट्रीय प्रतीकों में बदल दिया।
➡ रूसी कब्ज़े के बाद, पोलिश भाषा को स्कूलों से हटाकर रूसी भाषा को हर जगह जबरन लादा गया। 1831 में, रूस के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
- अनेक सदस्यों ने राष्ट्रवादी विरोध के लिए पोलिश भाषा का प्रयोग चर्च के आयोजनों और संपूर्ण धार्मिक शिक्षा में किया।
- इस कारण बड़ी संख्या में पादरियों और बिशपों को जेल में डाला फिर सजा में साइबेरिया भेज दिया।
भूख, कठिनाइयाँ और जन विद्रोह
19वीं सदी के शुरू में पूरे यूरोप में जनसंख्या में ज़बरदस्त वृद्धि हुई। ज़्यादातर देशों में नौकरी ढूँढ़ने वालों की तादाद उपलब्ध रोज़गार से अधिक थी। ग्रामीण क्षेत्रों की आबादी, शहर जाकर भीड़ से भरी बस्तियों में रहने लगी।
- नगरों के लघु उत्पादकों को इंग्लैंड से आयातित मशीन से बने सस्ते कपड़ों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।
- यूरोप के कुलीन वर्ग इलाकों में, कृषक सामंती शुल्कों और ज़िम्मेदारियों के बोझ से दबे थे।
- खाने-पीने की चीज़ों के मूल्य बढ़ने या फ़सल खराब होने से शहरों और गाँवों में व्यापक ग़रीबी फैल जाती थी।
➡ 1845 में सिलेसिया में बुनकरों ने ठेकेदारों (कच्चा माल देकर निर्मित कपड़ा बहुत कम दाम में लेते थे) के खिलाफ़ विद्रोह कर दिया था।
- 4 जून को ज़्यादा मज़दूरी की माँग करते हुए ठेकेदारों की कोठियों में जबरन घुसकर तोड़-फोड़ मचा दी। जिस कारण सेना से मुठभेड़ में 11 बुनकरों को गोली मार दी गई।
➡ फरवरी 1848 में, पेरिस के लोग खाने-पीने की कमी और व्यापक बेरोज़गारी से सड़कों पर उतर आए।
- जगह-जगह अवरोध लगाकर लुई फ़िलिप को भागने पर मजबूर किया गया।
- राष्ट्रीय सभा ने एक गणतंत्र की घोषणा करते हुए मताधिकार (21 वर्ष से ऊपर सभी पुरुष) और काम के अधिकार की गारंटी दी।
- रोज़गार उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय कारखाने स्थापित किए गए।
1848: उदारवादियों की क्रांति
जर्मनी, इटली, पोलैंड, ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य के उदारवादी मध्यवर्गों के स्त्री-पुरुषों ने संविधानवाद को राष्ट्रीय एकीकरण की माँग से जोड़कर एक राष्ट्र-राज्य के निर्माण की माँगों को आगे बढ़ाया। यह राष्ट्र-राज्य संविधान, प्रेस की स्वतंत्रता और संगठन बनाने की आज़ादी जैसे संसदीय सिद्धांतों पर आधारित था।
- राजनीतिक संगठनों द्वारा फ़्रैंकफर्ट शहर (जर्मन) में एक सर्व-जर्मन नेशनल एसेंबली के पक्ष में मतदान के बाद 18 मई 1848 को, 831 निर्वाचित प्रतिनिधियों ने फ़्रैंकफर्ट संसद (सेंट पॉल चर्च) में अपना स्थान ग्रहण किया। उन्होंने एक संविधान का प्रारूप तैयार किया।
➡ प्रशा के राजा फ़्रेडरीख विल्हेम चतुर्थ ने ताज को अस्वीकार कर निर्वाचित सभा के विरोधी राजाओं का साथ दिया। जिस कारण कुलीन वर्ग और सेना का विरोध बढ़ने से सामाजिक आधार कमज़ोर हो गया था।
- संसद के मध्य वर्गों के प्रभावी लोगों द्वारा मज़दूरों और कारीगरों की माँगों का विरोध करने पर वे उनका समर्थन खो बैठे। अंत में सैनिकों को बुलाकर एसेंबली भंग करनी पड़ी।
➡ महिलाओं ने आंदोलन में वर्षों से बड़ी संख्या में सक्रिय रूप से भाग लिया था। अपने राजनीतिक संगठन स्थापित किए, अखबार शुरू किए और राजनीतिक बैठकों और प्रदर्शनों में शिरकत की। फिर भी उन्हें एसेंबली में चुनाव के दौरान मताधिकार से वंचित रखा गया था।
➡ 1848 में उदारवादी आंदोलनों को दबाने के बाद भी रूढ़िवादी ताक़ते पुरानी व्यवस्था बहाल नहीं कर पाईं। राजाओं ने क्रांति और दमन के चक्र को समाप्त करने के लिए 1848 के बाद के वर्षों में मध्य और पूर्वी यूरोप में परिवर्तनों को आरंभ किया।
- हैब्सबर्ग अधिकार वाले क्षेत्रों और रूस में भूदासत्व और बंधुआ मज़दूरी समाप्त कर दी गई।
- हंगरी के लोगों को ज़्यादा स्वायत्तता प्रदान की गई।
जर्मनी और इटली का निर्माण
जर्मनी
1848 के बाद यूरोप में राष्ट्रवाद, जनतंत्र और क्रांति से अलग होने लगा। रूढ़िवादियों ने राज्य की सत्ता को बढ़ाने और पूरे यूरोप में राजनीतिक प्रभुत्व हासिल करने के लिए राष्ट्रवादी भावनाओं का प्रयोग किया।
- प्रशा के राजा के प्रमुख मंत्री (ऑटो वॉन बिस्मार्क) की मदद से 7 वर्ष के दौरान ऑस्ट्रिया, डेन्मार्क और फ़्रांस से तीन युद्धों में प्रशा की जीत से एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई।
- 18 जनवरी 1871 में, वर्साय के समारोह में प्रशा के राजा काइज़र विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
- नए राज्य ने जर्मनी की मुद्रा, बैंकिंग और क़ानूनी तथा न्यायिक व्यवस्थाओं के आधुनिकीकरण पर काम किया।
इटली
19वीं सदी के मध्य में इटली सात राज्यों में बँटा हुआ था जिनमें केवल एक-सार्डिनिया पीडमॉण्ड में एक इतालवी राजघराने का शासन था। उत्तरी भाग ऑस्ट्रियाई हैब्सबर्गों के अधीन, मध्य इलाकों पर पोप का शासन और दक्षिणी क्षेत्र स्पेन बूर्बों राजाओं के अधीन थे।
- अभी तक इतालवी भाषा के विविध क्षेत्रीय और स्थानीय रूप मौजूद थे।
- 1831 और 1848 में क्रांतिकारी विद्रोहों की असफलता से इतालवी राज्यों को जोड़ने की ज़िम्मेदारी सार्डिनिया पीडमॉण्ड के शासक विक्टर इमेनुएल द्वितीय पर आ गई।
- प्रमुख मंत्री कावूर ने फ़्रांस से सार्डिनिया पीडमॉण्ड की एक चतुर कूटनीतिक संधि की। जिससे वह 1859 में ऑस्ट्रियाई बलों को हरा पाया।
- नियमित सैनिकों के अलावा ज्युसेपे गैरीबॉल्टी के नेतृत्व में भारी संख्या में सशस्त्र स्वयसेवकों ने इस युद्ध में हिस्सा लिया।
- 1860 में वे दक्षिणी इटली और दो सिसिलियों के राज्य में प्रवेश कर गए और स्पेनी शासकों को हटाने के लिए स्थानीय किसानों का समर्थन पाने में सफल रहे।
- 1861 में इमेनुएल द्वितीय को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया गया।
ब्रिटेन की अजीब दास्तान
18वीं सदी से पहले ब्रितानी द्वीपसमूह में रहने वाले लोग一अंग्रेज़, वेल्श, स्कॉट या आयरिश一नृजातीय थे। इन सभी जातीय समूहों की अपनी सांस्कृतिक और राजनीतिक परंपराएँ थीं।
- जैसे ही आंग्ल राष्ट्र की धन-दौलत, अहमियत और सत्ता में वृद्धि हुई। उसने द्वीपसमूह के अन्य राष्ट्रों पर अपना प्रभुत्व जमा लिया।
- एक लंबे टकराव और संघर्ष के बाद आंग्ल संसद ने 1688 में राजतंत्र से ताकत छीनकर एक राष्ट्र-राज्य का निर्माण किया। जिसके केंद्र में इंग्लैंड था।
- इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के बीच ऐक्ट ऑफ़ यूनियन (1707) से “यूनाइटेड किंगडम ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन” का गठन हुआ।
➡ इस कारण स्कॉटलैंड की खास संस्कृति और राजनीतिक संस्थाएँ दब गई। स्कॉटिश हाइलैंड्स के निवासी को अपनी आज़ादी व्यक्त करने पर दमन का सामना करना पड़ा। उन्हें अपनी गेलिक भाषा बोलने या अपनी राष्ट्रीय पोशाक पहनने की मनाही थी। उनमें से बहुत सारे अपने वतन को छोड़ गए।
➡ आयरलैंड, कैथलिक और प्रोटेस्टेंट धार्मिक गुटों में बँटा हुआ था। अंग्रेजों ने आयरलैंड में प्रोटेस्टेंट धर्म मानने वालों को बहुसंख्यक कैथलिक देश पर प्रभुत्व बढ़ाने में सहायता की।
- 1798 में वोल्फ़ टोन और उसकी यूनाइटेड आयरिशमेन के अगुवाई में हुए विद्रोह को कुचल कर 1801 में आयरलैंड को बलपूर्वक यूनाइटेड किंगडम में शामिल कर लिया गया।
- नए ब्रितानी राष्ट्र के निर्माण में नए ब्रिटेन के प्रतीक चिह्नों, ब्रितानी झंडा (यूनियन जैक) और राष्ट्रीय गान (गॉड सेव अवर नोबल किंग) को खूब बढ़ावा दिया गया।
राष्ट्र की दृश्य-कल्पना
18वीं और 19वीं सदी में कलाकारों ने राष्ट्र को नारी रूप में प्रस्तुत किया। फ़्रांस में उसे लोकप्रिय ईसाई नाम मारीआन दिया गया जिसने जन-राष्ट्र के विचार को रेखांकित किया। उसके चिह्न भी स्वतंत्रता और गणतंत्र के थे 一 लाल टोपी, तिरंगा और कलगी।
- जनता को एकता के राष्ट्रीय प्रतीक को याद रखने के लिए मारीआन प्रतिमाएँ सार्वजनिक चौकों पर लगाई गईं।
- उसकी छवि सिक्कों और डाक टिकटों पर अंकित की गई।
- इसी तरह जर्मेनिया, जर्मन राष्ट्र का रूपक बन गई। वह बलूत वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहनती है क्योंकि जर्मन बलूत वीरता का प्रतीक है।
प्रतीकों के अर्थ
गुण — महत्व
- टूटी हुई बेड़ियाँ — आज़ादी मिलना
- बाज़-छाप कवच — जर्मन साम्राज्य की प्रतीक शक्ति
- बलूत पत्तियों का मुकुट —बहादुरी
- तलवार — मुक़ाबले की तैयारी
- तलवार पर लिपटी जैतून की डाली — शांति की चाह
- काला, लाल और सुनहरा तिरंगा — 1848 में उदारवादी-राष्ट्रवादियों का झंडा, जिसे जर्मन राज्यों के ड्यूक्स ने प्रतिबंधित घोषित कर दिया
- उगते सूर्य की किरणें — एक नए युग का सूत्रपात
राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद
19वीं सदी की अंतिम चौथाई तक राष्ट्रवाद का पहले जैसा आदर्शवादी उदारवादी-जनतांत्रिक स्वभाव नहीं रहा था। प्रमुख यूरोपीय शक्तियों ने अपने साम्राज्यवादी उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अधीन लोगों की राष्ट्रवादी आकांक्षाओं का इस्तेमाल किया।
बाल्कन क्षेत्र में राष्ट्रवादी तनाव
इस क्षेत्र में भौगोलिक और जातीय भिन्नता थी। इसमें आधुनिक रोमानिया, बुल्गेरिया, अल्बेनिया, यूनान, मेसिडोनिया, क्रोएशिया, बोस्निया-हर्ज़ेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया और मॉन्टिनिग्रो शामिल थे।
- क्षेत्र के निवासियों को स्लाव कहा जाता था। इसका एक बड़ा हिस्सा ऑटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में था।
- यहाँ रूमानी राष्ट्रवाद के विचारों के फैलने और ऑटोमन साम्राज्य के विघटन से स्थिति काफ़ी विस्फोटक हो गई।
- 19वीं सदी में ऑटोमन साम्राज्य द्वारा आधुनिकीकरण और आंतरिक सुधारों की कोशिश में बहुत कम सफलता मिली।
- धीरे-धीरे करके उसके अधीन यूरोपीय राष्ट्रीयताएँ स्वतंत्र होने लगीं।
- इन लोगों ने आज़ादी या राजनीतिक अधिकारों के अपने दावों को राष्ट्रीयता का आधार दिया। किंतु बाद में विदेशी शक्तियों ने उन्हें अपने अधीन कर लिया।
➡ विभिन्न स्लाव राष्ट्रीय समूहों ने अपनी पहचान और स्वतंत्रता की कोशिश की। बाल्कन राज्य एक-दूसरे से भारी ईर्ष्या करते थे और हर एक राज्य ज़्यादा से ज़्यादा इलाक़ा हथियाने की उम्मीद रखता था।
- इस समय यूरोपीय शक्तियों के बीच व्यापार और उपनिवेशों के साथ नौसैनिक और सैन्य ताक़त के लिए गहरी प्रतिस्पर्धा थी।
- रूस, जर्मनी, इंग्लैंड, ऑस्ट्रो-हंगरी की हर ताकत अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहती थीं। इससे इस इलाक़े में कई युद्ध हुए और अंततः प्रथम विश्व युद्ध हुआ।
➡ 1914 में, साम्राज्यवाद से जुड़कर राष्ट्रवाद यूरोप को महाविपदा की ओर ले गया। लेकिन 19वीं सदी में यूरोपीय शक्तियों द्वारा बनाए गए उपनिवेश देशों द्वारा साम्राज्यवादी प्रभुत्व का विरोध किया जाने लगा।
- राष्ट्रवाद के यूरोपीय विचार कहीं नहीं दोहराए गए क्योंकि हर जगह लोगों ने अपनी तरह का विशिष्ट राष्ट्रवाद विकसित किया।
- मगर समाजों को “राष्ट्र-राज्यों” में गठित करने का विचार अब से स्वाभाविक और सार्वभौम मान लिया गया।
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खण्ड Ⅱ : जीविका, अर्थव्यवस्था एवं समाज
अध्याय 3: भूमंडलीकृत विश्व का बनना
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अध्याय 5: मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
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