Class 7 History Chapter 4 Notes In Hindi

अध्याय 4 मुग़ल: सोलहवीं से सत्रहवीं शताब्दी

मुग़लों ने भारतीय उपमहाद्वीप में, जहाँ लोगों एवं संस्कृतियों में इतनी अधिक विविधताएँ थी, एक साम्राज्य की स्थापना की। 16वीं सदी के उत्तरार्ध में इन्होंने दिल्ली और आगरा से अपने राज्य का विस्तार शुरू किया और 17वीं शताब्दी में लगभग संपूर्ण महाद्वीप पर अधिकार प्राप्त कर लिया। उन्होंने प्रशासन के ढाँचे तथा शासन संबंधी जो विचार लागू किए, वे उनके राज्य के पतन के बाद भी टिके रहे।

मुग़ल कौन थे?

मुग़ल दो महान शासक वंशों के वंशज थे।

  • माता की ओर से वे मंगोल शासक चंगेज़ खान (चीन और मध्य एशिया के कुछ भागों पर राज किया) के उत्तराधिकारी थे।
  • पिता की ओर से वे ईरान, इराक एवं वर्तमान तुर्की के शासक तैमूर (मृत्यु 1404 में) के वंशज थे।

मुग़ल अपने को मंगोल कहलवाने के बजाय तैमूर के वंशज होने पर गर्व का अनुभव करते थे, क्योंकि उनके पूर्वज ने 1398 में दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया था।

मुग़ल सैन्य अभियान

प्रथम मुग़ल शासक बाबर (1526-1530) 12 वर्ष की उम्र में 1494 में फरगना राज्य का उत्तराधिकारी बना।

  • मंगोलों की दूसरी शाखा, उज़बेगों के आक्रमण के कारण उसे अपनी पैतृक गद्दी छोड़नी पड़ी। अनेक वर्षों तक भटकने के बाद उसने 1504 में काबुल पर कब्ज़ा कर लिया।
  • 1526 में दिल्ली के सुलतान इब्राहिम लोदी को पानीपत में हराकर दिल्ली और आगरा पर कब्ज़ा कर लिया।

उत्तराधिकार की मुग़ल परंपराएँ

मुग़ल, ज्येष्ठाधिकार (पिता का बड़ा पुत्र राज्य का उत्तराधिकारी) के विपरीत उत्तराधिकार में सहदायाद (उत्तराधिकार का विभाजन समस्त पुत्रों में कर देना) की मुग़ल और तैमूर वंशों की प्रथा को अपनाते थे।

मुग़लों के अन्य शासकों के साथ संबंध

मुग़लों के शक्तिशाली होने पर कई शासकों ने स्वेच्छा से उनकी सत्ता स्वीकार कर ली। जैसे-राजपूत। परंतु जिन्होंने इंकार किया, उन शासकों के विरुद्ध मुग़लों ने लगातार अभियान किए।

  • अनेकों ने मुग़ल घराने में अपनी पुत्रियों के विवाह करके उच्च पद प्राप्त किए। परंतु कइयों ने विरोध भी किया।
  • मेवाड़ के सिसोदिया राजपूत के लंबे समय तक इंकार करने के बाद हारने पर मुग़लों ने उनके साथ सम्माननीय व्यवहार करके उन्हें उनकी जागीरें वापस कर दीं।
  • पराजित करने परंतु अपमानित न करने के कारण मुग़ल भारत के अनेक शासकों और सरदारों पर अपना प्रभाव बढ़ा पाए।

मनसबदार और जागीरदार 

साम्राज्य में विभिन्न क्षेत्रों के सम्मिलित होने पर मुग़लों ने शुरू में सरदार, तुर्की (तूरानी) फिर ईरानियों, भारतीय मुसलमानों, अफ़गानों, राजपूतों, मराठों और अन्य समूहों को प्रशासन में नियुक्त करना आरंभ किया। मुग़लों की सेवा में आने वाले नौकरशाह ”मनसबदार” कहलाए।

  • “मनसबदार” ऐसे लोग होते थे जिन्हें कोई मनसब यानी कोई सरकारी हैसियत अथवा पद मिलता था।
  • यह मुग़लों द्वारा चलाई गई श्रेणी व्यवस्था थी, जिसके जरिए पद, वेतन और सैन्य उत्तरदायित्व निर्धारित किए जाते थे।
  • पद और वेतन का निर्धारण जात की संख्या पर निर्भर था। जात की संख्या जितनी अधिक होती थी, दरबार में अभिजात की प्रतिष्ठा उतनी ही बढ़ जाती थी और उसका वेतन भी उतना ही अधिक होता था।
  • सैन्य उत्तरदायित्व के अनुसार उन्हें घुड़सवार रखने पड़ते थे।
  • वह अपने सवारों को निरीक्षण के लिए लाते थे। वे अपने सैनिकों के घोड़ों को दगवाते थे और सैनिकों का पंजीकरण करवाते थे। इसके बाद ही उन्हें सैनिकों को वेतन देने के लिए धन मिलता था।

➡ मनसबदार अपना वेतन राजस्व एकत्रित करने वाली भूमि (जागीर) के रूप में पाते थे। जो तकरीबन “इक्ताओं” के समान थीं। परंतु मनसबदार, मुक़्तियों से भिन्न, अपने जागीरों पर नहीं रहते थे और न ही उन पर प्रशासन करते थे। उनके नौकर उनके लिए राजस्व इकट्ठा करते थे।

  • अकबर के शासनकाल में इन जागीरों का सावधानीपूर्वक आकलन किया जाता था, ताकि इनका राजस्व मनसबदार के वेतन के लगभग बराबर रहे।
  • औरंगज़ेब के शासनकाल तक प्राप्त राजस्व मनसबदार के वेतन से बहुत कम हो गया। मनसबदारों की संख्या में भी अत्यधिक वृद्धि हुई, जिसके कारण उन्हें जागीर मिलने से पहले एक लंबा इंतजार करना पड़ता था। इस कारण जगीरों की संख्या में कमी हो गई।

फलस्वरूप कई जागीरदार, जागीर रहने पर ज़्यादा से ज़्यादा राजस्व वसूल करने की कोशिश करते थे। औरंगज़ेब इन परिवर्तनों पर नियंत्रण नहीं रख पाया। इस कारण किसानों को अत्यधिक मुसीबतों का सामना करना पड़ा।

ज़ब्त और ज़मीदार

मुग़लों की आमदनी का प्रमुख साधन किसानों की उपज से मिलने वाला राजस्व था। किसान ग्रामीण कुलीनों यानी कि मुखिया या स्थानीय सरदारों के माध्यम से राजस्व देते थे। समस्त मध्यस्थों के लिए, मुग़ल एक ही शब्दーज़मीदारーका प्रयोग करते थे।

  1. अकबर के राजस्वमंत्री टोडरमल ने 10 साल (1570-1580) की कालावधि के लिए कृषि की पैदावार, कीमतों और कृषि भूमि का सावधानीपूर्वक सर्वेक्षण किया।
  2. इन आँकड़ों के आधार पर, प्रत्येक फ़सल पर नकद के रूप में राजस्व निश्चित कर दिया गया।
  3. प्रत्येक सूबे (प्रांत) को राजस्व मंडलों में बाँटा गया और प्रत्येक की हर फ़सल के लिए राजस्व दर की अलग सूची बनाई गई।
  4. राजस्व प्राप्त करने की इस व्यवस्था को “ज़ब्त” कहा जाता था।
  5. यह व्यवस्था उन स्थानों पर प्रचलित थी जहाँ पर मुग़ल प्रशासनिक अधिकारी भूमि का निरीक्षण कर सकते थे और सावधानीपूर्वक उनका हिसाब रख सकते थे। ऐसा निरीक्षण गुजरात और बंगाल जैसे प्रांतों में संभव नहीं हो पाया।
  6. कुछ क्षेत्रों के शक्तिशाली ज़मीदार, मुग़ल प्रशासकों द्वारा शोषण करने पर विद्रोह कर देते थे।
  7. और कभी-कभी एक ही जाति के ज़मीदार और किसान मुग़ल सत्ता के खिलाफ़ मिलकर विद्रोह कर देते थे।
  8. 17वीं सदी के आखिर से ऐसे किसान विद्रोहों ने मुग़ल साम्राज्य के स्थायित्व को चुनौती दी। 

अकबरनामा 

अकबर के करीबी मित्र और दरबारी अबुल फ़ज़्ल ने अकबर के शासनकाल का इतिहास तीन ज़िल्दों में अकबरनामा नामक पुस्तक में लिखा। 

  1. अकबर के पूर्वजों का बयान। 
  2. अकबर के शासनकाल की घटनाओं का विवरण। 
  3. आइने-अकबरी—अकबर के प्रशासन, घराने, सेना, राजस्व और साम्राज्य के भूगोल का ब्यौरा। समकालीन भारत के लोगों की परंपराओं और संस्कृतियों का विस्तृत वर्णन। विविध प्रकार की चीज़ों—फ़सलों, पैदावार, कीमतों, मज़दूरी और राजस्व का सांख्यिकीय विवरण। 

सत्रहवीं शताब्दी में और उसके पश्चात मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य की प्रशासनिक और सैनिक कुशलता के फलस्वरुप आर्थिक और वाणिज्यिक समृद्धि में वृद्धि हुई। परंतु सामाजिक असमानताएँ साफ़ दिखाई देती थीं।

➡ शाहजहाँ के शासनकाल के 20वें वर्ष के दस्तावेज़ों से पता चलता है कि मनसबदार, जिनको उच्चतम पद प्राप्त था, कुल 8000 में से 445 ही थे। 5.6% को ही साम्राज्य के अनुमानित राजस्व का 61.5% वेतन मिलता था। 

  • मुग़ल सम्राट और उनके मनसबदार अपनी आय का बहुत बड़ा भाग वेतन और वस्तुओं पर लगाते थे।
  • इस ख़र्चे से शिल्पकारों और किसानों को लाभ होता था, परंतु राजस्व का भार इतना था कि किसानों और शिल्पकारों के पास निवेश के लिए बहुत कम धन बचता था।
  • और जो बहुत गरीब थे, मुश्किल से ही पेट भर पाए थे। इसमें धनी किसान, शिल्पकारों के समूह, व्यापारी और महाजन को ज़्यादा लाभ होता था।

मुग़लों के कुलीन वर्ग के हाथों में बहुत धन और संसाधन थे, जिनके कारण 17वीं सदी के अंतिम वर्षों में वे अत्यधिक शक्तिशाली हो गए। इनमें से कुछ ने नए वंश स्थापित किए और हैदराबाद एवं अवध जैसे प्रांतों में अपना नियंत्रण जमाया। यद्यपि वे दिल्ली के मुग़ल सम्राट को स्वामी के रूप में मान्यता देते रहें, तथापि 18वीं सदी तक साम्राज्य के कई प्रांत अपनी स्वतंत्र राजनैतिक पहचान बना चुके थे। 

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