अध्याय 6: नए प्रश्न नए विचार
Table of Contents
Toggleबुद्ध की कहानी
बौद्ध धर्म के संस्थापक सिद्धार्थ (गौतम) थे, इनका जन्म लगभग 2500 वर्ष पूर्व हुआ था। बुद्ध क्षत्रिय थे और वह ‘शाक्य’ नामक एक छोटे से गण से संबंधित थे।
➡ उन्होंने ज्ञान की खोज में युवावस्था में ही घर को छोड़ दिया। अनेक वर्षों तक उन्होंने भ्रमण किया और अन्य विचारकों से मिलकर चर्चा करते रहे। अंतत: उन्होंने बोध गया (बिहार) में एक पीपल के पेड़ के नीचे कई दिनों तक तपस्या की, तब उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद से वे बुद्ध के रूप में जाने गए।
➡ वाराणसी के निकट सारनाथ में उन्होंने पहली बार उपदेश दिया। कुशीनारा में मृत्यु से पहले शेष जीवन उन्होंने पैदल ही एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा कर सामान्य लोगों की प्राकृत भाषा में लोगों को शिक्षा दी।
बुद्ध ने शिक्षा दी कि:-
- यह जीवन कष्टों और दुखों से भरा हुआ है, और ऐसा हमारी इच्छा और लालसाओं के कारण होता है, हम आत्मसंयम अपनाकर ऐसी लालसा से मुक्ति पा सकते है।
- लोगों को दयालु होना और मनुष्यों के साथ-साथ जानवरों के जीवन का भी आदर करना चाहिए।
- उनका मानना था कि हमारे अच्छे या बुरे कर्म वर्तमान जीवन के साथ-साथ बाद के जीवन को भी प्रभावित करते है।
भारतीय दर्शन की छह पद्धति (षडदर्शन)
- वैशेषिक – ऋषि कणद
- न्याय – गौतम
- सांख्य – कपिल
- योग – पतंजलि
- पूर्व मीमांसा – जैमिनी
- वेदांत या उत्तर मीमांसा – व्यास
उपनिषद
➡ अधिकांश चिंतको का मानना था कि इस विश्व में कुछ तो ऐसा है जो स्थायी है और मृत्यु के बाद भी बचा रहता है। उन्होंने इसका वर्णन आत्मा तथा ब्रह्म अथवा सार्वभौम आत्मा के रूप में किया है। उनका मानना था कि अंतत: आत्मा तथा ब्रह्म एक ही हैं।
➡ ऐसे कई विचारों का संकलन उपनिषदों में हुआ है, यह उत्तर वैदिक ग्रंथों का हिस्सा थे। उपनिषद का शाब्दिक अर्थ है ‘गुरु के समीप बैठना’। इन ग्रंथो में अध्यापकों और विद्यार्थियों के बीच बातचीत का संकलन किया गया है।
➡ इन चर्चाओं में पुरुष ब्राह्मण और राजा भाग लेते थे। कभी-कभी गार्गी, अपाला, घोषा, मैत्रेयी (स्त्री-विचारक) का भी उल्लेख मिलता है। निर्धन व्यक्ति वाद-विवाद में भाग नहीं लेते थे, इसका अपवाद सत्यकाम जाबाल का है जो अपने समय के प्रसिद्ध विचारकों में से एक बन गए थे।इनके गुरु गौतम नाम के एक ब्राह्मण थे। उपनिषदों के कई विचारों का विकास बाद में प्रसिद्ध विचारक शंकराचार्य द्वारा किया गया।
व्याकरणविद पाणिनि
पाणिनि ने संस्कृत भाषा के व्याकरण की रचना की। उन्होंने स्वरों तथा व्यंजनों को एक विशेष क्रम में रखकर उनके आधार पर सूत्रों की रचना की। ये सूत्र बीजगणित के सूत्रों से काफी मिलते-जुलते हैं। इसका प्रयोग कर उन्होंने संस्कृत भाषा के प्रयोगों के नियम लघु सूत्रों (लगभग 3000) के रूप में लिखे।
जैन धर्म
जैन धर्म के 24वें तथा अंतिम तीर्थकर वर्धमान महावीर ने लगभग 2500 वर्ष पूर्व अपने विचारों का प्रसार किया। वह वज्जि संघ के लिच्छवि कुल के एक क्षत्रिय राजकुमार थे।
➡ 30 वर्ष की आयु में वह घर छोड़ जंगल में रहने लगे। 12 वर्ष कठिन और एकाकी जीवन व्यतीत करने के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। उन्होंने अपनी शिक्षा प्राकृत में दी।
महावीर ने शिक्षा दी कि:-
- सत्य जानने की इच्छा रखने वाले प्रत्येक स्त्री व पुरुष को अपना घर छोड़ देना चाहिए।
- किसी भी जीव को न तो कष्ट देना चाहिए और न ही उसकी हत्या करनी चाहिए।
- महावीर के अनुयायियों को भिक्षा माँगकर सादा जीवन बिताना होता था।
- ईमानदार होना, चोरी न करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, पुरुषों को वस्त्रों सहित सब कुछ त्याग देना पड़ता था।
➡ हज़ारों लोगों ने इस नई जीवन शैली को जानने और सीखने के लिए अपने घरों को छोड़ दिया। अधिकांश लोगों के लिए ऐसे कड़े नियमों का पालन करना बहुत कठिन था, वे अपने घरों पर ही रहे और भिक्खु-भिक्खुणी बने लोगों को भोजन देते रहे।
➡ व्यापारियों ने जैन धर्म का समर्थन किया। किसानों के लिए नियमों का पालन कठिन था क्योंकि फ़सल की रक्षा के लिए उन्हें कीड़े-मकौड़ों को मारना पड़ता था।
➡ जैन धर्म, उत्तर भारत के कई हिस्सों के साथ-साथ गुजरात, तमिलनाडु और कर्नाटक में भी फैल गया। जैन धर्म की शिक्षाएँ लगभग 1500 वर्ष पूर्व गुजरात (वल्लभी) में लिखी गई थीं।
संघ
बौद्ध और जैन धर्म के अनुयायी जहाँ घर का त्याग करके एक साथ रहते है उसे संघ कहते है।
विनयपिटक नामक बौद्ध ग्रंथ में संघ में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं के लिए नियम बताए गए है। संघ में पुरुषों और स्त्रियों के रहने की अलग-अलग व्यवस्था थी।
- सभी व्यक्ति संघ में प्रवेश ले सकते थे। इन्हें बहुत सादा जीवन जीना होता था।
- वे अपना अधिकांश समय ध्यान करने में बिताते थे और दिन के एक निश्चित समय में वे शहरों और गाँवो में जाकर भिक्षा माँगते थे।
- वे आम लोगों को शिक्षा देते थे और एक-दूसरे की सहायता भी करते थे। किसी तरह की आपसी लड़ाई के निपटारे के लिए बैठकें भी करते थे।
संघ में ब्राह्मण, क्षत्रिय, व्यापारी, मजदूर, नाई, गणिकाएँ तथा दास आदि प्रवेश लेते थे। इनमें से कई लोगों ने बुद्ध की शिक्षाओं के विषय में लिखा तथा कुछ लोगों ने संघ में अपने जीवन के विषय में सुंदर कविताओं की रचना की।
विहार
बौद्ध तथा जैन भिक्खु पूरे साल एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते हुए उपदेश देते थे। केवल वर्षा ऋतु में वे अस्थायी निवासों या पहाड़ी क्षेत्रों की प्राकृतिक गुफाओं में रहते थे।
➡ कुछ समय बीतने के बाद भिक्खु-भिक्खुणियों और उनके समर्थकों ने अधिक स्थायी शरणस्थल बनाए जिन्हें विहार कहा गया। आरंभिक विहार लकड़ी के, फिर बाद में ईंटों के बनाए गए। पश्चिमी भारत में कुछ विहार पहाड़ियों को खोद कर बनाए गए।
➡ विहारों का निर्माण किसी धनी व्यापारी, राजा अथवा भू-स्वामी द्वारा दान में दी गई भूमि पर होता था। स्थानीय लोग भिक्खु-भिक्खुणियों के लिए भोजन, वस्त्र तथा दवाईयाँ लेकर आते थे बदले में लोगों को शिक्षा मिलती थी।
इस समय बौद्ध धर्म की एक नई धारा महायान का विकास हुआ। इसकी दो मुख्य विशेषताएँ थी:-
- पहले, मूर्तियों में बुद्ध की उपस्थिति कुछ संकेतों (जैसे निर्वाण प्राप्ति-पीपल के पेड़ की मूर्ति द्वारा) द्वारा दर्शाया जाता था पर अब बुद्ध की प्रतिमाएँ बनाई जाने लगीं। इनमें से अधिकांश मथुरा में, तो कुछ तक्षशिला में बनाई जाने लगीं।
- दूसरा परिवर्तन बोधिसत्त्व (ज्ञान प्राप्ति के बाद एकांत वास करते हुए ध्यान साधना करने वाले) में आस्था को लेकर आया। वे लोग अब लोगों को शिक्षा देने और मदद करने के लिए सांसारिक परिवेश में ही रहने लगे।
➡ धीरे-धीरे बोधिसत्त्व की पूजा काफी लोकप्रिय हो गई और पूरे मध्य एशिया, चीन और बाद में कोरिया तथा जापान तक भी फैल गई। बौद्ध धर्म का प्रसार पश्चिमी और दक्षिणी भारत में हुआ, जहाँ बौद्ध भिक्खुओं के रहने के लिए पहाड़ों में दर्जनों गुफाएँ खोदी गई।
बौद्ध धर्म दक्षिण-पूर्व की ओर श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड तथा इंडोनेशिया सहित दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य भागों में भी फैला। थेरवाद नामक बौद्ध धर्म का आरंभिक रूप इन क्षेत्रों में कहीं अधिक प्रचलित था।
तीर्थयात्री
प्रार्थना के लिए पवित्र स्थानों की यात्रा करने वाले लोगों को तीर्थयात्री कहते हैं। भारत की यात्रा पर चीनी बौद्ध तीर्थयात्री बुद्ध के जीवन से जुड़ी जगहों और प्रसिद्ध मठों को देखने के लिए भारत आए थे। प्रत्येक ने अपनी यात्रा का वर्णन लिखा।
- फा-शिएन (1600 वर्ष पूर्व)
- शवैन त्सांग (1400 वर्ष पूर्व)
- इत्सिंग (7वीं ई.)
जीवन के चरण : आश्रम
- ब्रह्मचर्य के अंतर्गत ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य को सादा जीवन बिताकर वेदों का अध्ययन करना होता है।
- गृहस्थ आश्रम के अंतर्गत उन्हें विवाह कर एक गृहस्थ के रूप में रहना होता था।
- वानप्रस्थ के अंतर्गत उन्हें जंगल में रहकर साधना करनी थी।
- अंतत: उन्हें सब कुछ त्यागकर संन्यासी बन जाना था।
आश्रम व्यवस्था ने लोगों को अपने जीवन का कुछ हिस्सा ध्यान में लगाने पर बल दिया।
कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ
- उपनिषदों के विचारक, जैन महावीर तथा बुद्ध (लगभग 2500 वर्ष पूर्व)
- जैन ग्रंथों का लेखन (लगभग 1500 वर्ष पूर्व)
Class 6 History Chapter 6 Notes PDF In Hindi Download
इसे भी पढ़ें
अध्याय 1: प्रारंभिक कथन: क्या, कब, कहाँ और कैसे?
अध्याय 2: आखेट-खाद्य संग्रह से भोजन उत्पादन तक
अध्याय 3: आरंभिक नगर
अध्याय 4: क्या बताती हैं हमें किताबें और कब्रें
अध्याय 5: राज्य, राजा और एक प्राचीन गणराज्य
अध्याय 7: राज्य से साम्राज्य
अध्याय 8: गाँव, शहर और व्यापार
अध्याय 9: नए साम्राज्य और राज्य
अध्याय 10: इमारतें, चित्र तथा किताबें
Legal Notice
This is copyrighted content of Study Learning Notes. Only students and individuals can use it. If we find this content on any social media (App, Website, Video, Google Drive, YouTube, Facebook, Telegram Channels, etc.) we can send a legal notice and ask for compensation. If you find this content anywhere else in any format, mail us at historynotes360@gmail.com. We will take strict legal action against them.