अध्याय 5: राज्य, राजा और एक प्राचीन गणराज्य
शासको का चुनाव
आज हम अपने शासकों का चुनाव मतदान द्वारा करते हैं। लगभग 3000 वर्ष पूर्व कुछ लोग बड़े-बड़े यज्ञों को आयोजित कर राजा बनते थे।
अश्वमेध यज्ञ में एक घोड़े को राजा के लोगों की देखरेख में छोड़ दिया जाता था। इस घोड़े को दूसरे राजा के रोकने पर अश्वमेध यज्ञ करने वाले राजा से लड़ाई करनी पड़ती थी। अगर घोड़े को जाने दिया तो इसका मतलब अश्वमेध यज्ञ करने वाला राजा ज्यादा शक्तिशाली था। इसके बाद उन राजाओं को यज्ञ में आमंत्रित किया जाता था।
- यह यज्ञ विशिष्ट पुरोहितों द्वारा पूरा किया जाता था। इसके लिए उन्हें उपहार मिलते थे।
- यज्ञ में आमंत्रित सभी राजा अश्वमेध करने वाले राजा के लिए उपहार लाते थे।
- राजा को राजसिंहासन या बाघ की खाल के विशेष आसन पर बिठाया जाता था।
- यज्ञ के अवसर पर राजा का सारथी राजा की विजयों तथा अन्य गुणों का गान करता था।
- राजा की रानियाँ और पुत्र भी छोटे-छोटे अनुष्ठान करते थे।
पुरोहित राजा के ऊपर पवित्र जल के छिड़काव के साथ-साथ अन्य कई अनुष्ठान करते थे। विश (वैश्य) लोग उपहार लाते थे। अनुष्ठानो में शूद्रों को शामिल नहीं किया जाता था।
वर्ण
उस समय चार सामाजिक वर्ग थे:-
- ब्राह्मण – इनका काम वेदों का अध्ययन-अध्यापन और यज्ञ करना था जिनके लिए उन्हें उपहार मिलता था।
- क्षत्रिय – इनका काम युद्ध करना और लोगों की रक्षा करना था।
- विश या वैश्य – इनमें कृषक, पशुपालक और व्यापारी आते थे।
- शूद्र – इनका काम अन्य तीनों वर्णों की सेवा करना था।
जनपद
जनपद का अर्थ- जन के बसने की जगह होता है। महायज्ञों को करने वाले राजा अब जन के राजा न होकर जनपदों के राजा बन गए।
- दिल्ली में पुराना किला, उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हस्तिनापुर और एटा के पास अतरंजीखेड़ा में जनपदों की बस्तियाँ मिली है।
- यहाँ लोग झोपड़ियों में रहते थे और मवेशियों तथा अन्य जानवरों को पालते थे। वे चावल,गेहूँ, धान, जौ, दालें, गन्ना, तिल और सरसों जैसी फ़सलें उगाते थे।
लोग कुछ धूसर और कुछ लाल रंग के मिट्टी के बर्तन बनाते थे। इन पुरास्थलों में ‘चित्रित-धूसर पात्र’ नाम के विशेष बर्तन मिले है, इस पर सरल रेखाओं तथा ज्यामितीय आकृतियों की चित्रकारी की गई है।
इस तरह के पात्रों में ज़्यादातर थालियाँ और कटोरियाँ ही मिली हैं। ये पात्र बहुत ही पतली सतह के सुंदर और चिकने हैं। शायद इसमें ख़ास मौको पर ख़ास लोगों को भोजन दिया जाता था।
महाजनपद
लगभग 2500 वर्ष पूर्व, कुछ जनपद अधिक महत्वपूर्ण हो गए, जिन्हें महाजनपद कहा गया।
अधिकतर महाजनपदों की एक राजधानी होती थी। कई राजधानियों में लकड़ी, ईंट या पत्थर की ऊँची दीवारों से किलेबंदी की गई थी।
राजाओं ने आक्रमण से सुरक्षा के लिए, अपनी समृद्धि और शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए, और किले के अंदर लोगों और उस क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए किलेबंदी करवाई।
राजा सेना के सिपाहियों को नियमित वेतन देकर या आहत सिक्के देकर रखने लगे थे।
कर
महाजनपदों के राजा विशाल किले बनवाते थे और बड़ी सेना रखते थे, इसलिए उन्हें प्रचुर संसाधनो की जरुरत होती थी। अब राजा उपहारों पर निर्भर न रहकर नियमित रूप से कर वसूलने लगे।
- फ़सलों पर लगाए गए कर
- कारीगरों के ऊपर लगाए गए कर
- पशुपालकों को जानवरों या उनके उत्पाद के रूप में कर
- व्यापारियों को सामान खरीदने-बेचने पर कर
- आखेटकों तथा संग्राहकों को जंगल की वस्तुएँ देना
कृषि में परिवर्तन
हल के फाल अब लोहे से बनने लगे, जिससे कठोर ज़मीन को आसानी से जोता जा सकता था। और लोगों ने धान के पौधों का रोपण शुरू किया, इस कारण फसलों की उपज बढ़ गई।
मगध
- लगभग 200 सालों के भीतर मगध सबसे महत्वपूर्ण जनपद बन गया।
- गंगा और सोन नदियाँ यातायात, जल-वितरण और ज़मीन को उपजाऊ बनाने के लिए महत्वपूर्ण थी।
- मगध के जंगलो से हाथियों को पकड़ कर उन्हें प्रशिक्षित कर सेना के काम में लगाया जाता था।
- जंगलों से घर, गाड़ियाँ, तथा रथ बनाने के लिए लकड़ी मिलती थी।
- इस क्षेत्र की लौह अयस्क की खदानों ने मज़बूत औज़ार और हथियार बनाने में मदद की।
बिम्बिसार और अजातशत्रु मगध के दो शक्तिशाली शासक हुए। एक और महत्वपूर्ण शासक महापदमनंद जिसने अपना नियंत्रण इस उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग तक फैला लिया था। कई वर्षों तक मगध की राजधानी राजगृह (राजगीर) बनी रही। बाद में पाटलिपुत्र (पटना) को राजधानी बनाया गया।
लगभग 2300 साल पहले, मेसिडोनिया का राजा सिकन्दर विश्व-विजय करना चाहता था। जब वह भारतीय उपमहद्वीप में व्यास नदी पहुँच कर मगध पर कूच करना चाहा तब उसके सिपाही इस बात से भयभीत थे, कि भारत के शासकों के पास पैदल, रथ और हाथियों की बहुत बड़ी सेना थी।
वज्जि
वज्जि (राजधानी-वैशाली (बिहार)) की शासन-व्यवस्था को गण या संघ कहते थे। गण और संघ में प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था। ये सभी विभिन्न अनुष्ठानो को एक साथ सम्पन करते थे।
ये सभी बातचीत, बहस और वाद-विवाद, के ज़रिए शत्रुओं के आक्रमण से निपटने की चर्चाएँ सभाओं में मिलकर करते थे। स्त्रियाँ, दास तथा कम्मकार इन सभाओं में हिस्सा नहीं ले सकते थे।
दीघ निकाय एक प्रसिद्ध बौद्ध ग्रंथ है, इसमें बुद्ध के कई व्याख्यान दिए गए हैं। यह 2300 वर्ष पूर्व लिखा गया था।
गुप्त शासकों ने गण और संघ पर विजय प्राप्त कर उन्हें अपने राज्य में शामिल कर लिया।
कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ
- नए शासक (लगभग 3000 वर्ष पूर्व)
- महाजनपद (लगभग 3000 वर्ष पूर्व)
- सिकंदर का आक्रमण, दीघ निकाय का लेखन (लगभग 2300 वर्ष पूर्व)
- गण या संघ राज्यों का अंत (लगभग 1500 वर्ष पूर्व)
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