अध्याय 1 प्रारंभिक कथन: क्या, कब, कहाँ और कैसे?
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Toggleहम इतिहास क्यों पढ़ें?
- इतिहास हमें बताता है कि आज की दुनिया कैसे विकसित हुई। मतलब यह हमें वर्तमान के अतीत के बारे में बताता है।
- इतिहास एक रोमांचक यात्रा है। यह यात्रा हमें समय और संसार के उस युग में ले जाती है, जब लोगों का जीवन अलग था।
- लोगों की अर्थव्य्वस्था और समाज, उनकी मान्यताएँ और विश्वास, उनके भोजन और कपड़े, उनके घर और बस्तियाँ, उनकी कला और शिल्प सब कुछ आज से अलग था |
- इतिहास पढ़ कर हम समझ पाते है कि आधुनिक दुनिया अनेक सदियों से हो रहे बदलावों का परिणाम है।
- इतिहास हमें सिर्फ़ राजाओं-रानियों, उनकी विजयों और नीतियों के बारे में ही नहीं बताता बल्कि शिकारियों, कृषकों, शिल्पकारों और व्यापारियों के जीवन के बारे में भी बताता है।
- इतिहास सिर्फ़ महान लोगों की जीवनी नहीं है, यह सामान्य लोगों के जीवन और क्रियाकलापों के बारे में भी है।
अतीत के बारे में हम क्या जान सकते हैं?
- अतीत के बारे में हम बहुत कुछ जान सकते है- जैसे लोग क्या खाते-पीते थे, कैसे कपड़े पहनते थे, कैसे घरों में रहते थे?
- आखेटकों (शिकारियों), पशुपालकों, कृषकों, शासकों, व्यापारियों, पुरोहितों, शिल्पकारों, कलाकारों, संगीतकारों और वैज्ञानिकों के बारे में जान सकते है।
- अतीत के बच्चो द्वारा खेले गए खेलो, सुनी गई कहानियों, देखे गए नाटकों और गाए गए गीतों के बारे में भी जान सकते है।
लोग कहाँ रहते थे ?
नर्मदा नदी के तट पर: कई लाख साल पहले आखेटक-खाद्य संग्राहक नर्मदा नदी के तट पर रहते थे।
उत्तर-पश्चिम में स्थित सुलेमान और किरथर पहाड़ियों पर: यहाँ लगभग आठ हज़ार वर्ष पूर्व लोगों ने सबसे पहले गेंहूँ तथा जौं जैसी फसलों को उपजाया और भेड़, बकरी और गाय-बैल जैसे पशुओं को पालतू बनाया। ये लोग गाँवो में रहते थे।
उत्तर-पूर्व में गारो तथा मध्य भारत में विंध्य पहाड़ियों पर: यहाँ कृषि का विकास हुआ, और विंध्य के उत्तर में सबसे पहले चावल उपजाया गया।
सिंधु और उसकी सहायक नदियों के पास: लगभग 4700 वर्ष पूर्व इन नदियों के किनारे कुछ आरंभिक नगर फले-फूले।
गंगा व इसकी सहायक नदियों के किनारे: लगभग 2500 वर्ष पूर्व इन नदियों के किनारे और समुन्द्र तटवर्ती इलाकों में नगरों का विकास हुआ था।
गंगा और इसके दक्षिण में सहायक नदी सोन के आस पास के क्षेत्र को प्राचीन काल में ‘मगध’ कहते थे। इसके शासक बहुत शक्तिशाली थे और उन्होंने एक विशाल राज्य स्थापित किया था।
दक्षिण एशिया (आधुनिक भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और श्रीलंका) एक महाद्वीप से छोटा है, लेकिन विशालता तथा बाकी एशिया से समुन्द्रों, पहाड़ियों तथा पर्वतों से बँटे होने के कारण इसे प्राय: उपमहाद्वीप कहा जाता है।
लोग यात्राएँ क्यों करते थे ?
- काम की तलाश में
- प्राकृतिक आपदाओं के कारण
- सेनाएँ दूसरे क्षेत्रों पर विजय प्राप्त करने के लिए
- व्यापारी व्यापार करने के लिए
- धार्मिक गुरु लोगों को शिक्षा देने के लिए
- नए और रोचक स्थानों को खोजने की चाह में
लोगों के इस आवागमन ने हमारी सांस्कृतिक परंपराओ को समृद्ध किया। लोगों ने एक दूसरे की संस्कृति, परम्पराओं और विचारों को जाना।
देश का नाम
‘इण्डिया’ शब्द इण्डस से निकला है जिसे संस्कृत में सिंधु कहा जाता है। ईरानियों और यूनानियों ने सिंधु को हिन्दोस और इंदोस कहा और इस नदी के पूर्व की भूमि प्रदेश को इण्डिया कहा।
‘भरत’ (उत्तर-पश्चिम में रहने वाले लोगों का एक समूह) का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। बाद में इसका प्रयोग देश के लिए होने लगा।
अतीत के बारे में कैसे जानें?
अतीत के बारे में जानकारी के स्रोत
पाण्डुलिपि: ये पुस्तकें हाथ से लिखी होने के कारण पाण्डुलिपि कहलाती है। यह प्राय: ताड़पत्रों अथवा हिमालय क्षेत्र में उगने वाले भूर्ज नामक पेड़ की छाल से विशेष तरीके से तैयार भोजपत्र पर लिखी मिलती है।
प्राय: ये पाण्डुलिपियाँ मंदिरों और विहारों में प्राप्त होती है। इन पुस्तकों में धार्मिक मान्यताओं व व्यवहारों, राजाओं के जीवन, औषधियों तथा विज्ञान आदि विषयों की चर्चा मिलती है। कई संस्कृत में लिखे हुए मिलते है जबकि अन्य प्राकृत और तमिल में। प्राकृत भाषा का प्रयोग आम लोग करते थे।
अभिलेख: ऐसे लेख पत्थर अथवा धातु जैसी कठोर सतहों पर उत्कीर्ण किया जाता था। शासक तथा अन्य लोग अपने आदेशों को इस पर उत्कीर्ण करवाते थे, ताकि लोग उन्हें देख-पढ़ सके तथा उनका पालन कर सकें।
अन्य अभिलेखों में राजाओं-रानियों तथा अन्य लोगों के कार्यों और शासकों की विजयों का लेखा-जोखा उत्कीर्ण मिलता है।
पुरातात्विक साक्ष्य:
- पत्थर और ईंट से बनी इमारतों के अवशेष
- चित्रों तथा मूर्तियों के अवशेष
- खुदाई से प्राप्त औजारों, हथियारों, बर्तनों, आभूषणों तथा सिक्कों के अवशेष
- जानवरों, चिड़ियों तथा मछलियों की हड्डियों के अवशेष
- जले हुए अन्न के दाने और लकड़ी के टुकड़ो के अवशेष
पांडुलिपियों, अभिलेखों तथा पुरातत्व से प्राप्त जानकारियों के लिए इतिहासकार प्राय: स्रोत शब्द का प्रयोग करते है। इतिहासकार उन्हें कहते है जो स्रोतों की मदद से अतीत का अध्ययन करते है।
अतीत एक या अनेक?
अलग-अलग समूह के लोगों के लिए अतीत के अलग-अलग मायने थे। उदाहरण के लिए पशुपालकों अथवा कृषकों का जीवन राजाओ तथा रानियों के जीवन से और व्यापारियों का जीवन शिल्पकारों के जीवन से बहुत भिन्न था।
उस समय शासक अपनी विजयों का लेखा-जोखा रखते थे। जबकि शिकारी, मछुआरे, संग्राहक, कृषक और पशुपालक जैसे आम आदमी अपने कार्यों का लेखा-जोखा नहीं रखते थे। पुरातत्व की सहायता से हमें इनके जीवन के बारे में जानने में मदद मिलती है।
तिथियों का मतलब
वर्ष की गणना ईसा मसीह के जन्म की तिथि से की जाती है। अत: 2000 वर्ष का मतलब ईसा मसीह के जन्म के 2000 वर्ष के बाद।और 2000 ई.पू. का मतलब ईसा मसीह के जन्म के 2000 वर्ष पहले।
इतिहास और तिथियाँ
- ई.पू. का तात्पर्य ‘ईसा पूर्व’
- ए.डी. का तात्पर्य ‘एनो डॉमिनी’
- सी.ई. का तात्पर्य ‘कॉमन एरा’
- बी.सी.ई. का तात्पर्य ‘बिफोर कॉमन एरा’
- बी.पी. का तात्पर्य ‘बिफोर प्रेजेंट’
कभी-कभी ए.डी. की जगह सी.ई. तथा बी.सी. की जगह बी.सी.ई. का प्रयोग होता है।
कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ
- कृषि का आरंभ (8000 वर्ष पूर्व)
- सिंधु सभ्यता के प्रथम नगर (4700 वर्ष पूर्व)
- गंगा घाटी के नगर, मगध का बड़ा राज्य (2500 वर्ष पूर्व)
- वर्तमान (लगभग 2000 वर्ष पूर्व)
Class 6 History Chapter 1 Notes PDF In Hindi
इसे भी पढ़े
अध्याय 2: आखेट-खाद्य संग्रह से भोजन उत्पादन तक
अध्याय 3: आरंभिक नगर
अध्याय 4: क्या बताती हैं हमें किताबें और कब्रें
अध्याय 5: राज्य, राजा और एक प्राचीन गणराज्य
अध्याय 6: नए प्रश्न नए विचार
अध्याय 7: राज्य से साम्राज्य
अध्याय 8: गाँव, शहर और व्यापार
अध्याय 9: नए साम्राज्य और राज्य
अध्याय 10: इमारतें, चित्र तथा किताबें
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